उम्र या अकल

हुआ यह कि भूलोक  में प्राणियों को भेजने के लिए नरक संकाय के निदेशक प्रमोदी लाल जी प्रत्याशियों से केवल दो प्रश्न पूछते थे – मानव योनि के इच्छुक प्राणी, आयु और बुद्धि में से किसको प्राप्त करने के लिए प्राथमिकता देंगे और दूसरा कि वापसी में फिर जन्नत या जहन्नुम किस जगह में लौटना चाहेंगे? उस  बेतहाशा लम्बी कतार में खड़े मेरा नम्बर जैसे-तैसे आया तो मैंने कहा -मुझे तो उम्र की बरकत में इजाफा चाहिए। तो भैयाजी कम से कम 99 वर्ष का पट्टा हमारे नाम कर दिया जाए।

किंतु प्रमोदी लाल ने हमसे दूसरा प्रश्न पूछने से पहले एक प्रश्न और लटका दिया – हे परम समझदार पिंड!  बुद्धि से अधिक आयु को महत्व क्यों दे रहे हो? हमने सपाट से उत्तर दिया- अरे साहब सुना नहीं क्या यह शेर – लाए थे मांग जिंदगी बस चार दिन बनाम, दो आरजू में कट गई दो इंतजार में। तो साहब हमें बुद्धि नहीं लम्बी उम्र चाहिए। प्रमोदी लाल मूड में थे, पूछ बैठे कि चलो दी लम्बी उमर, पर इरादा क्या है? हमने सपाट से उत्तर दिया- जाएंगे खंडाला! झूमेंगे -चूमेंगे, गाएंगे -नाचेंगे, मस्ती करेंगे और क्या?

99 वर्ष में से 16 साला तक की उम्र तो पिटते-कुटते बीतेगी और फिर आगे नून तेल लकड़ी की जुगाड़ में साठा सो पाठा की उम्र गुजर जाएगी। बचे गिने-चुने 39 वर्ष तो फिर मौज मस्ती नहीं की तो क्या गई-सई भी खाक में मिला दें?

प्रमोद लाल जी हंसे लेकिन अपनी कर्तव्य निष्ठा के कारण दूसरा प्रश्न पूछ बैठे- वापसी में स्वर्ग या नरक क्या पसंद करेंगे? इसका अतिरिक्त सवाल न पूछने से पहले पूरा ब्यौरा देते हुए मैंने उत्तर दिया- नर्क ही ठीक है साहब। स्वर्ग में यह गलत है, ऐसा करो-वैसा करो- यह सब सुनना  मेरे मिजाज के खिलाफ है, मुझे बर्दाश्त नहीं होगा। तो साहब अभी तो 99 वर्ष में काफी लम्बे वर्ष और जीना है और ये वरिष्ठ-गरिष्ठ की उम्र भी मस्ती वाली है। कहा भी है हमने –

साठा तो पाठा सुने, असिया रसिया यार।

कि जो जीवे निन्यानवे बन जाए नम्बरदार॥

तो हो जाए न -चलती हो खंडाला..?

चलते -चलते इतना और हमारा तजुर्बा सुनिए-

मानो न मानो अक्लमंद से उम्रदराज है बेहतर।

जन्नत के सपने ढपोर जहन्नुम से हैं बदतर ॥

                                                                                                                                                               डॉ. राजेन्द्र मिलन

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