ब्लैंक चैक

कहते हैं कि आदमी को कभी बड़े बोल नहीं बोलने चाहिए। ये समय है। इसे परिवर्तनशील कहा जाता है। जाने कब किस करवट बैठ जाय। पर क्या किया जाय, कहावत ये भी है कि जब खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान।

दरअसल हमारे मौहल्ले के वर्मा जी के ऊपर भी खुदा मेहरबान था सो उनके घर दो-दो हुंडी तो हैं पर डिग्री एक भी नहीं है। अब जिसको लेना ही लेना हो और देना धेलाभर भी न हो किसी को, तो फिर बड़े बोल क्यों नहीं बोलेगा और आसमान पर क्यों नहीं थूकेगा। सो वर्मा जी भी गाहे-बगाहे, रास्ता-चौराहे, जहां और जब मौका मिलता, बड़े बोल बोले बिना न रहते। ऊपर से खुदा की खुदाई ये कि उनके दोनों ही पुत्र, सही मायने में सुपुत्र निकलते जा रहे थे।

बड़े पुत्र ने इंजीनियरिंग की और एक ही अटैम्प्ट में एक बड़ी कम्पनी में ऊंचे पद पर लग गया। छोटे ने डॉक्टरी की पढ़ाई की और सरकारी अस्पताल में लग गया। साथ ही अपना निजी क्लीनिक भी खोल लिया जिसमें सरकारी ड्यूटी के बाद  वेतन से भी अधिक की कमाई होने लगी।

बस और क्या चाहिए। वर्मा जी की उंगलियां ही नहीं पूरा हाथ ही घी में था।

तो भाईयो और बहनो, अब आप बतायें कि सावन के अंधे को हरा ही हरा नहीं दीखेगा तो और क्या दीखेगा।

वर्मा जी के दोनों राजकुमार अब विवाह योग्य हो गये तो वर्मा जी को दिन में भी सुहाने सपने दीखने लगे। यों तो वर्मा जी भी सरकारी नौकरी से ही रिटायर हुए थे। ऐसी-वैसी से नहीं, पौ बारह वाली नौकरी से। जिसमें वर्मा जी ने अकूत धन खींचा था। वैसे देखने में वर्मा जी का चेहरा-मोहरा ऊपर वाले ने ऐसा बनाया है कि उनकी भोली सूरत को देखकर कोई नहीं कह सकता कि इस आदमी ने कभी किसी से एक पैसा भी लिया होगा। केवल चेहरा-मोहरा ही नहीं, उनके क्रिया-कलाप भी सामने वाले को मुग्ध करने वाले रहे हैं। गोमुखी में हाथ घुसाकर, माला पर निरंतर सीता-राम के नाम का जाप और अगर किसी साधु-महात्मा को आता हुआ देख लें तो अपनी सरकारी कुर्सी को छोड़कर उसके आगे साष्टांग दंडवत मुद्रा में लेट जायें और उसको तब तक न हिलने दें जब तक कि उस साधू-महात्मा का हाथ, आशीर्वाद स्वरूप अपने सिरपर न रखवा लें।

लेकिन भीतर ही भीतर अपने चमत्कारों से वर्मा जी ने सरकार को खूब चूना लगाया और दो नम्बर की कमाई दौलत से एक पॉश कॉलोनी में एक हजार वर्ग गज का प्लॉट लेकर लम्बी-चौड़ी हवेली बनवा ली।

स्वाभाविक है कि जहां गुड़ होता है, चींटियां सूंघ-सूंघ कर वहां पहुंच ही जाती हैं। वर्मा जी के दोनों राजकुमारों के विवाह के लिए भी आने वालों का तांता लगने लगा। लम्बी-चौड़ी हवेली, और सुयोग्य कमाऊ सुपुत्र। और क्या चाहिए लड़की वालों के लिए? सो भाई, वर्मा जी क्यों चुप रहते? कहते हैं कि ऐसी स्थितियों में तो गूंगा भी बोल उठता है। वर्माजी ने अपने सुपुत्रों के रेट निर्धारित कर रखे थे। करें भी क्यों न, अब उनके कोई डिग्री तो थी नहीं। दोनों ब्लैंक चैक थे जितना मन करे, रकम भर लो।

वर्मा जी लड़की वालों को ठोक-बजाकर परखने में लगे हुए थे। तभी एक ऐसी घटना घटित हो गई जिससे वर्मा जी के कान खड़े हो गये।

हुआ यह कि वर्माजी के साले का लड़का, जो बाहर पढ़ने गया हुआ था, ने अपनी क्लास की एक लड़की से ही विवाह कर लिया। सारी घटना सुनकर वर्मा जी को तो 440 वोल्ट का ऐसा झटका लगा जैसे यह घटना उनके साले के लड़के की न होकर उनके खुद के लड़के की हो। यद्यपि उन्हें अपने सपूतों पर पूरा भरोसा था कि साले के लड़के की बात दूसरी है उसके लड़के ऐसा नहीं कर सकते। फिर भी एक अनजाने भय से वह अंदर ही अंदर हिल गये। उन्हें याद आया कि उनके साले को भी अपने  लड़के पर इतना ही भरोसा था जितना आज उनको अपने बेटों पर है।

वर्माजी ने उस घटना के बाद अपने सुपुत्रों को समय-समय पर मौखिक वार्निंग लैटर इश्यू करना शुरू कर दिया- “खबरदार अगर तुममें से किसी ने भी अपने मामा के लड़के की सी हरकत की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। समझ लेना इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा-हमेशा के लिए बन्द हो जायेंगे।”

वर्मा जी को अपने बेटों पर पूरा भरोसा था सो अपने साले को भी सुनाये बिना नहीं चूके-“देख समीर, तेरे छोरा ने जैसा किया है न, मेरे किसी छोरे ने ऐसा किया होता तो घर में नहीं घुसने देता।”

समीर बेचारा क्या कहता। अपना दाम खोटा होने पर किसी को दोष नहीं दिया जाता सो वर्मा जी की बात सुनकर चुप लगा गया। पर एक फिल्म का गाना है न कि ‘सच कहती है दुनिया, इश्क पर जोर नहीं।’ सो जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है, वर्मा जी के बड़े सुपुत्र को भी अपने साथ काम करने वाली एक लड़की की अदाएं लुभा गईं।  पहले तो कई महीने तक उसने वर्मा जी से यह बात छुपाने का प्रयास किया लेकिन कहावत है न कि -‘इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते’ सो उड़ते उड़ते हवा के संग वर्मा जी के कानों तक भी बात पहुंच ही गई।

वर्मा जी ने बहुत स्यापा किया। बहुत धमकी दी पर क्या किया जाय-‘दिल है कि मानता नहीं।’ सो वर्मा जी के एक बटा दो सुपुत्र ने कोर्ट मैरिज करके, कम्पनी द्वारा एलाट किए गये बंगले में ही रहना शुरू कर दिया तो वर्मा जी के बड़बोलेपन में फिफ्टी-फिफ्टी का रौब रह गया। अब वह अपने छोटे सुपुत्र को चेतावनी पत्र इश्यू करते रहते-‘देख छोटे, तेरे बड़े भाई ने तो मेरी नाक कटा दी। वह तो था ही नालायक, लेकिन अगर तूने भी ऐसी-वैसी कोई हरकत की तो फिर समझ लेना।

चूंकि वर्मा जी के पास अब केवल एक ही ब्लैंक चैक बचा था सो अब उन्होंने एक ही चैक में दोनों चैकों की रकम भरने की सोची। आखिरकार एक योग्य डॉक्टर है उनका पुत्र। इतना ही नहीं , खुद का क्लीनिक भी है जिसमें कोविड-19 की मेहरबानी से खूब पौ-बारह करने को मिला। भला ऐसे सुयोग्य और सोने की चिड़िया को कौन लड़की वाला अपना दामाद नहीं बनाना चाहेगा।

सो अब वर्मा जी के हाथ में लटकी गोमुखी में अंगूठे और मध्यमा उंगली के बीच चलती माला पर राम-सीता का जाप चलता रहता पर दिल – ओ – दिमाग दहेज की रकम की गणना में ही उलझा रहता।

छोटा-मोटा आदमी तो अपनी लड़की के रिश्ते के लिए वर्मा जी की एक हजार वर्ग गज में बनी आलीशान कोठी को देखकर ही कदम रखने की हिम्मत नहीं कर पाता और जो आता भी वह वर्मा जी की ऊंची उड़ान के आगे बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता। सो छुटका की उम्र का ग्राफ मंहगाई की तरह ही तेजी से बढ़ने लगा तो छुटका मन ही मन चिंतित रहने लगा। उसे अब लगने लगा कि पिताजी की यही हठ रही तो लगता है मरीजों की सेवा करते-करते ही सारा जीवन बीत जायेगा और अपनी सेवा करवाने का तो अवसर ही नहीं आयेगा।

छुटका ने एक दिन हिम्मत जुटाकर यह बात अपनी मां को बताई। मां ने पुत्र की पीड़ा को ध्यान में रखते हुए अपने पतिदेव को समझाने का प्रयास किया। कहा कि बैल गर ब्याहेगा नहीं तो क्या बूढ़ा भी नहीं होगा। तुम्हारे दरवाजे से रोजाना कितने लड़की वाले आ-आकर लौट जाते हैं। क्या आपको कोई ठीक नहीं लगता? अरे यह दहेज की रट लगाना छोड़कर कोई सुयोग्य सी कन्या के साथ छोटे की भांवर डलवा दो। क्या करोगे दहेज का? ऊपर वाले की कृपा से खूब लम्बी-चौड़ी कोठी है। आपने भी जिन्दगीभर खूब कमाया है और छोरा भी कमा ही रहे हैं।”

वर्मा जी को एक ओर तो एक ब्लैंक चैक की रकम डूब जाने का पछतावा और दूसरी ओर एक ही छोरा के ब्याह में दोनों के दहेज की भरपाई करने की जुगाड़ का मंथन। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी के सुसुझाव को ठुकरा दिया-“अरे तेरे बड़े कुपुत्र ने खानदान की नाक कटवा दी। किसी के सामने मुंह खोलने लायक भी नहीं छोड़ा। अब छोटे की शादी में दोनों की भरपाई हो तो शाख लौटे।”

शाख लौटाने का चक्कर इतना लम्बा खिंचा कि इंतजार करते-करते अपने पिता को भरपूर आश्वासन देने के बावजूद एक दिन छोटे का भी मन डोल ही  गया और वह अपने क्लीनिक की सहकर्मी डॉक्टर सुनीता के साथ रफूचक्कर हो गया।

अब तो वर्मा जी के दोनों ब्लैंक चैकों पर बिना भरे ही स्याही फैल गई। बड़े बोल बोलना तो दूर, शर्म के मारे अब वह अपनी कोठी के अहाते से बाहर भी कदम नहीं रखते।

 

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