उजास की आस

दिवाली का समय है। चिंतन और ऐश्वर्य दोनों एक ही स्कूल में कक्षा पांच में पढते हैं। छुट्टियां पड़ने वाली हैं सुनकर दोनो खुश हैं। दो दोस्त आपस में बातें करते हैं कि दिवाली में क्या-क्या करना है।

ऐश्वर्य कहता है- मैं अपने सोसाइटी के फ्रेंड्स के साथ पटाखे जलाऊंगा और मम्मी के साथ शॉपिंग भी करनी है। मम्मी के बहुत सारे फ्रेंड्स भी हमारे यहां रात को डिनर पार्टी पर आ रहे हैं। चिंतन! उस रात को मम्मी पार्टी में रहेंगी इसलिए मैं अकेला हूं ,क्या तुम मेरे साथ रहोगे रात को। वैसे तुम क्या करने वाले हो?

चिंतन पास की बस्ती में रहता था। कहता है ‘ऐश्वर्य इस बार दिवाली पर मेरा काम थोड़ा ज्यादा है, पापा के साथ हाथ बंटाना है, इस बार वह फेरी लगाते हुए दिए बेचने वाले हैं। पिछली बार हमने एक छोटी सी दुकान खोली थी, लेकिन इस बार पापा फेरी लगाने के बारे में बात कर रहे थे। मैंने मम्मी को कहा है कि इस बार मेरे लिए पटाखे जरूर लाना पिछले बार मम्मी नहीं लेकर आई तो मैंने दोस्तों से मांगे थे, पर इसी बात पर मेरी उनसे लड़ाई हो गई। उन्होंने मुझे मना कर दिया और फिर मैं उनके साथ दिवाली मनाने नहीं गया। मैंने मां से कहा कि पटाखे क्यों नहीं लाती हो तो वह बोली कि बेटा पटाखों से नहीं खेलना चाहिए, इनसे बहुत धुआं होता है, हवा खराब होती है, तुम दीए जलाओ और उजाला करके दिवाली मनाओ। माता जी तुम पर कृपा करेंगी।

ऐश्वर्या कहता है ‘यार तुम सही कह रहे हो। ऐसा है तो मैं भी पटाखे नहीं जलाऊंगा मैं भी दीए जलाकर दिवाली मनाऊंगा।’

दिवाली की छुट्टियां हैं। घरों में साफ सफाई हो रही है। सभी अपनी अपनी सामर्थ्य से लछमी जी का स्वागत कर रहे हैं। हर कोई चाहता है कि लछमी जी रात को उनके यहां ही आए। चिंतन की बस्ती में भीलछमी जी का इंतजार है। चिंतन अपने पापा के साथ गली-गली घूम कर दिये और खील-बताशे बेच रहा है। ऐश्वर्य की सोसाइटी में उसकी मां झाड़ू पोछा करती है। सोसाइटी के बाहर से निकलते हुए वह ऐश्वर्य से मिलने का सोच ही रहा था, तभी उसके पापा ने उसे बुलाया और तेज चलकर आवाज लगाते हुए दिए बेचने को कहा।

कल धनतेरस है कुछ नया खरीद कर ले जाना पड़ेगा,लछमी ने बोला था। मेरी ज्यादा बिक्री तो नहीं होती शायद उसे ही मालकिन से कुछ मिल जाए। (राजेश सोचता है )

पापा मेरे लिए नया टिफिन तो ले आओगे ना- चिंतन ने कहा।

हां बेटा ठीक है। धनतेरस पर तेरे लिए टिफिन ही ले आता हूं, उस दिन बर्तन लेना शुभ रहता है।

(बातचीत करते हुए दोनों पिता-पुत्र शाम ढलते घर लौटने लगते हैं।)

आज देर हो गई। पिता सब्जियां लेकर पकाने की तैयारी ही कर रहा था तभी लछमी भी आ जाती है। चिंतन कहता है- ‘क्या मां इतनी देर लगा दी, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था। इतनी देर क्यों हो गई?’

‘तुम्हारे दोस्त ऐश्वर्य को खाना खिलाने में देर हो गई बेटा।’

मां, ऐश्वर्या की मम्मी उसे खाना क्यों नहीं खिलाती है? वह उसके पास क्यों नहीं रहती है?

मां बेटा एक दूसरे को गले लगाते हैं।लछमी फटाफट खाना बना लेती है, सब भोजन करते हैं। चिंतन सो जाता है,लछमी राजेश से कहती है।

‘आज आपको कितना मुनाफा हुआ? क्या दिए बिके?’

‘ना रे! नहीं बिके। आधे से ज्यादा घर वापस ले आया, कोई खरीदने को तैयार ही नहीं है। थोड़ा खील बताशे बिक गए। घूमते-घूमते चिंतन भी थक गया है पर हाथ बंटाएगा तो कुछ धंधे के बारे में भी समझा करेगा। भला हो कि आरटीई के तहत अच्छे स्कूल में लिख पढ़ रहा है। भविष्य की आस तो इसीसे है वरना हमारा तो क्या है।’

‘मैंने भी मालकिन से पैसे और छुट्टी की बात की। लेकिन उन्होंने टाल दिया। पिछले महीने जब मेरी तबीयत खराब हो गई थी, तो तनख्वाह में से कुछ पैसे गैर हाजरी के नाम पर काट दिए थे।’

‘तू क्यों करती है वहां काम, और घरों में क्यों नहीं जाती, अच्छा पैसा मिल जाता है कहीं-कहीं।’

‘नहीं जी! सोसाइटी में सब लोग अच्छे नहीं हैं, वह तो भला हो मैडम जी का जो अच्छे से बात कर लेती हैं। उनके पति बाहर ही डॉक्टरी करते हैं इज्जत की नौकरी है वहां, अच्छा है। वरना कई साहब तो बहुत बदतमीजी से पेश आते हैं। हम विरोध करते हैं तो उल्टा हम पर ही उंगली उठाते हैं।

ऐसे लोगों के घर क्यों जाती है क्या आदमी को पहचान नहीं सकती तू?’

‘किसकी सफेद कालर के नीचे कितने दाग हैं क्या पता? पेट की भूख और अपने बच्चे का मुखड़ा देखकर अच्छी तनख्वाह के लालच में ऐसे लोगों के घर जाकर काम भी करना पड़ता है। पर जब कोई आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो हम भी आवाज उठाने से नहीं डरते। तभी तो कई घर छोड़ आई हूं मैं। जो सच कहूं तो इनकी असलियत सामने आ जाती।’

‘रहने दे! अमीर हैं, बड़े साहब लोग हैं। तू अपनी मान-मर्यादा का ख्याल रख बस। मेरे होते हुए इतना सब सहन करने की जरूरत नहीं है।’

(वह अपने आंसू पोछ लेती है )

‘कल धनतेरस पर क्या ला रहे हो? मिठाई भी लानी पड़ेगी, कुछ मालकिन को भी तो देना है। चिंतन का मन भी मिठाई, खिलौने, पटाखे और नया टिफिन लेन का कर रहा है, पर वह मुझसे ज्यादा कुछ नहीं कहता।’

‘टिफिन तो ला ही दूंगा उसके लिए। पर मकान पर लगाने के लिए झालर महंगे आएंगे। पटाखे लाकर फायदा नहीं है, फूटने ही हैं तो क्या फायदा?’

‘इसका बड़ा मन करता है जी। बच्चा है, अभी क्या समझेगा।’

‘और तू ,तुझे क्या चाहिए?’

‘आप सब राजी खुशी रहो, बस।’

‘तू है खुश?’

‘हां! मैं तो हूं।’

‘कैसे?’

‘राजेश की गोद में सिर रख देती है, मुस्कुरा कर कहती है- ऐसे।’

निशा स्वप्न समेट लाती है।

धनतेरस का दिन आया। बाजार में बड़ी रौनक है बस्ती में भी सब घरों में साफ-सफाई चल रही है। लछमी ने भी साफ-सफाई, पूजा-पाठ किया और चिंतन से कहकर काम पर जाने लगी।

चिंतन ने कहा ‘मां! आज शाम को जल्दी आ जाना, फिर मिठाई भी बनाना और बाजार से मुझे कुछ लेकर आना।’

लछमी बोली ‘ठीक है बेटा, मैं आज मालकिन से बात करूंगी, फिर शाम को खरीदारी करने चलेंगे। तेरे लिए नए कपड़े भी लाने हैं, घर में नए बर्तन भी चाहिए।’

चिंतन बोला-‘याद रखना मां भूलना मत।’

‘हां बेटा, ठीक है’ कहते हुए लछमी काम पर गई।

ऐश्वर्य के घर पर पहुंचते ही लछमी का स्वागत उसी ने किया दौड़ते हुए उनके पास पहुंचा और उनके गले लगा।

‘आंटी आप आ गए, मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। चलिए ना कुछ बनाकर खिला दीजिए मम्मी ने नाश्ता करा दिया है पर मन नहीं भरा आप कुछ बना दीजिए।’

‘बेटा आपने मम्मी के पास मन भर कर क्यों नहीं खाया?’

‘मम्मी को देर हो रही थी आंटी! मम्मी जल्दी में थी और आज शाम को पापा भी आने वाले हैं, शायद रात को पार्टी होगी।’

‘लछमी थोड़ा चिंतित हुई। फिर एक गहरी सांस लेकर उसने ऐश्वर्य से कहा ‘बेटा चलो तुम्हारे लिए आलू के पराठे बना लेती हूं। चिंतन को भी बहुत अच्छे लगते हैं।’

‘वाह आंटी! बहुत अच्छा, चिंतन और मैं तो बेस्ट फ्रेंड हैं इसीलिए तो उसे भी अच्छे लगते हैं। क्या आपने उसके लिए भी बनाए?’

‘नहीं बेटा आज मुझे लेट हो रहा था, इसीलिए नहीं बनाए।’

अच्छा।

लक्ष्मी ऐश्वर्या के लिए परांठे बना देती है और उसे प्यार से खिलाती है। गोद की जो कोमलता मां से नहीं मिली, ऐश्वर्य उसे लछमी से अनुभव कर रहा है। लछमी उसका सिर सहलाती है। 10 साल के उस बच्चे को  चिंतन की तरह ही प्यार करती है।

‘बेटा तुम्हारा सिर गर्म क्यों है? बुखार तो नहीं आ रहा?’

’हां आंटी शायद बुखार आ रहा है।’

‘ओह! तूने मम्मी को नहीं बताया?’

‘नहीं।’

‘क्यों बेटा?’

‘आपको बताना चाहता हूं।’

‘लछमी दौड़कर गीली पट्टी लेकर आई, ऐश्वर्य के माथे पर रखा और उसका बुखार उतरने लगा।’

‘शाम हुई मालकिन नहीं आई। फोन की घंटी बजती है, लछमी दौड़ कर जाती है।’

‘मालकिन उसे कहती है- ‘आज तुम घर पर ही रुको, साहब आएंगे रात तक पहुंचेंगे। ऐश्वर्य भी अकेला है, साहब के लिए खाना भी बना लेना। मैं क्लब की पार्टी में जा रही हूं।’

‘लेकिन मालकिन आज तो धनतेरस है। घर पर पूजा करनी है, शाम को बाजार से पूजा वगैरह का सामान भी खरीदना है। आप से तनखा की बात भी करनी थी। अगर आज से छुट्टी मिल जाती तो……।’

‘बस काम के दिन ही तुम लोगों को छुट्टी चाहिए। काम के दिन नहीं आओगी तो रोज की छुट्टी कर लो। वैसे भी मेड्स की कमी नहीं है सोसाइटी में। तुम्हारी लापरवाही बहुत बर्दाश्त कर ली मैंने। पिछली बार जो तुम बहुत उल्टा सीधा कह रही थी, ऐश्वर्य के फादर के बारे में वो भी सह लिया। सोचा कि तुम ईमानदार हो तुम्हें माफ कर देना चाहिए पर आइंदा से याद रखना, मेरे पर्सनल मैटर में ज्यादा इंटरफेयर मत करो नहीं तो नौकरी दूसरी ढूंढ लो।’

मालकिन ने फोन पटका और लछमी ने भी भौंहें तान ली। मन ही मन कहने लगी चार हज़ार महीने की नौकरी ठीक है; पर इतना तो सहन करने की मजबूरी नहीं है। आज तो हद हो गई है, एक स्त्री होने के नाते तो मालकिन इतना समझ ही सकती है। लेकिन जो अपने बच्चे का दुख समझ नहीं पाती और अपने पति के बारे में नहीं सोचती उस से क्या आस रखनी। पर मेरा पति और बच्चा; उनकी क्या गलती है। आज त्यौहार के दिन भी उनके पास नहीं जाऊंगी तो कितना बुरा लगेगा। सबके घर लछमी का स्वागत हो रहा है और मैं यहां फस गई हूं। शाम की गहराई बढ़ती, अंधेरा उसके मन में खौफ जगाता।

रात गहरी हुई। 10:30 बजने को आए, फ्लैट में ऐश्वर्य और लछमी दोनों अकेले थे। लछमी ऐश्वर्य के लिए खाना बना कर ले आई और उसे खिलाने लगी।

‘बेटा आज आपके पापा भी आ रहे हैं। आज आप उनके साथ बैठेंगे, उनके साथ रह लेंगे ना। आज आपको उनके साथ सोना है, मम्मी कल सुबह तक आएंगी।’

‘क्यों आंटी आप मेरे साथ नहीं रह रहे?’

‘मुझे घर जाना है, घर पर पूजा करनी है। चिंतन आज मुझसे बहुत गुस्सा होगा। मैं उसके साथ बाजार भी नहीं जा पाई, उसके पापा भी गुस्सा होंगे। चिंतन को डांटते होंगे, मुझे तो जाना ही पड़ेगा।

‘नहीं मैं कहीं नहीं जाने दूंगा, आप चिंतन को यहीं बुला दो आंटी। मैं पापा के साथ नहीं रहूंगा। पापा बहुत गुस्सा करते हैं।’

‘अरे! लेकिन।’

‘नहीं-नहीं, कहीं नहीं जाना है। वह जोर-जोर से रोने लगता है और लछमी के सीने से लग जाता है। एक बच्चे को अपने बाप से इतना डरते देख उसको विश्वास नहीं हुआ।’

‘लछमी का फोन बजता है। लड़खड़ाती जुबान में राजेश कहता है, अरे कहां रह गई तू, कुलक्षणी! घर छोड़ दिया क्या?’

पीछे से चिंतन के सिसकने की आवाज आ रही थी। लछमी स्पीकर पर चिंतन से कहती है- ‘बेटा मुझे माफ कर दो बेटा। सॉरी आज आपके दोस्त की मम्मी घर पर नहीं है। तुम्हारे दोस्त को बहुत बुखार है, उसकी तबीयत ठीक नहीं है बेटा और वो मुझे घर नहीं आने दे रहा। मैं उसे कैसे छोड़ दूं इसलिए मुझे आपके दोस्त के साथ रहना पड़ेगा बेटा।’

‘चिंतन थोड़ा गुस्से से कहता है, मां तुम बहुत गंदी हो, तुम मेरी मम्मी नहीं हो। ऐश्वर्य की ही मम्मी हो, तुम मेरे साथ नहीं रहती, मैं तुमसे बात नहीं करूंगा।’

‘नहीं बेटा ! मैं कल सुबह आपके लिए गिफ्ट लेकर आऊंगी, वह सिसकने लगती है।’

राजेश फोन काट देता है।

रात गहरा रही थी। ऐश्वर्य के साथ लछमी बालकनी में बैठी थी। एक-एक कर सोसाइटी के घरों की लाइटें बंद होती हैं। कुछ लोग परिवार के साथ बालकनी में बैठे थे। ऐश्वर्य लछमी की गोद में सो रहा था। उसका सिर सहलाती लछमी मौन रुदन कर रही थी।

आज धनतेरस पर घर-घर में लछमी जी के आने का इंतजार हो रहा है और अपने घर की लछमी दूसरों के घर दासी बनी हुई है। मेरे बच्चे का दिल कितना टूटा होगा? बाप शराब पीकर, बच्चे को डांट-पीटकर फिर बाजार चला गया होगा। पता नहीं घर किस हाल में होगा? कल सुबह जब जाऊंगी तो क्या होगा? और आज रात को ……?

गोद में उठाकर ऐश्वर्य को उसके कमरे में ले आयी। 12:30 हो गए थे। ऐश्वर्य को सुला कर उसके पैरों के नीचे, पलंग के पास लेट कर आराम करने लगी। तभी दरवाजे की घंटी बजती है।

लछमी सिहर जाती है दरवाजे पर आवाज आती है – अरे खोलो; खोलते क्यों नहीं?

लछमी ऐश्वर्य को जगाने की सोचती है लेकिन उसका माथा तो बुखार से तपने लगा था। ऐसी हालत में उसे उठाना ठीक नहीं है। बेचारा बड़ी मुश्किल से तो सो रहा है।

तेजी से उठकर उसने अपनी साड़ी ठीक की। 26 साल की उस युवती ने दरवाजा खोला।

‘नमस्ते साहब।’

‘नमस्ते जी! वैभवी कहां है?’

‘मालकिन जल्दी ही आने वाली होंगी, कुछ जरूरी काम से गईं हैं।’

‘मतलब यहां नहीं है ना?’

कांपती हुई लछमी बोली- ‘ऐश्वर्य है।’

‘क्या कर रहा है वह?’

‘बुखार है इसीलिए मैंने अभी सुला दिया है साहब।’

‘बुखार तो मुझे भी है। 46 वर्षीय डाक्टर उसकी ओर बढ़ता है।’

‘आप भोजन कर लीजिए साहब। मैं परोस देती हूं। मालकिन आने वाली होंगी।’

‘वह दौड़कर रसोई में चली जाती है, खाना लेकर आती है और उसे परोस देती है। वह नहा कर आता है, खाने के लिए बैठता है और उससे शराब मांगता है।’

‘दरवाजे के पास खड़ी लछमी देने से मना कर देती है। मैं शराब को हाथ नहीं लगाती साहब। आप खुद ही ले लीजिए और आपके बेटे को बुखार है उसका इलाज करवा दीजिएगा।’

‘उसका ध्यान नहीं रखती तू?’

‘रखती हूं साहब।’

‘उसे अपना ही बेटा समझ।’

‘तू भी तो मेरे लिए उसकी मां जैसी ही है।’ कहकर बुरी तरह हंसने लगा।

कांपती हुई लछमी पीछे हटने लगी। ‘साहब मेरा पति मेरा इंतजार कर रहा होगा। मुझे मालकिन ने आपको खाना परोस देने के लिए कहा था, रात 1:30 बज गए हैं मुझे जाने दीजिए।’

‘हां ठीक है। यह ले…. अपनी बख्शीश तो ले जा।’

‘जेब से हजारों की गड्डी निकालता है, उसे दिखाते हुए बुलाता है।’

दूर दीवार से सटकर खड़ी हुई लछमी कहती है ‘नौकर को दिवाली की भेंट ऐसे दूर से ही दे दीजिए साहब।‘

‘नहीं, हाथ पर देता हूं। पास आकर ले जा। आ जल्दी आ।’

दोनों मुट्ठी भींचकर, दबे कदम आगे आती है। डॉक्टर उसका हाथ पकड़ लेता है।

‘अरे !अरे छोड़ो मुझे!, छोड़ो मुझे!’

‘आवाज नीचे कर छोकरी! बहुत सती सावित्री बनती है। पैसे ले और बात खत्म कर। किसी को पता चलेगा तो गर्दन काट दूंगा और तेरे परिवार का भी नामो निशान मिट जाएगा। चुपचाप ले पैसे और मेरी बात मान ले, किसी को पता नहीं चलेगा। तू भी खुश रह और मुझे भी कर। अच्छा खासा रुपया दूंगा, तेरी दीवाली हो जाएगी।’

‘औरतों की इज्जत कर बदतमीज। मेरा पति तुझे नहीं छोड़ेगा। तेरे जैसे सफेदपोश लोगों को हम अच्छी तरह जानते हैं। तू मुझे ऐसे ही मत समझ, मैं शोर मचा दूंगी, तेरा पर्दाफाश होगा। तू मालकिन के साथ भी धोखा कर रहा है। छोड़ मुझे।’

वह दरिंदा अपने गंदे हाथों से उसकी चीख दबा लेता है। उसका हाथ खींचता हुआ उसे घसीट कर अपने कमरे की ओर लेकर चलता है। लछमी अपने बचाव की कोशिश करती है ,उसके हाथ से छूट जाती है। वो उसे कसकर खींचता हुआ अपने कमरे में लाकर पटक देता है। लछमी रोती हुई अपने बिखरे कपड़े और बाल संभालती दरवाजे की तरफ आकर भागने की कोशिश करती है लेकिन वह उसको थप्पड़ मार कर उसे कुछ अचेत कर देता है।

कुछ देर बाद वह अपना होश फिर संभाल लेती है तो देखती है कि वह नीच शराब पीता हुआ, उसे निकट से छूने की कोशिश कर रहा था। उसने उसके कमजोर शरीर पर राक्षसी नाखूनों से निशान कर दिए थे। खरोचों से खून बह रहा था। उसका नारीत्व, उसकी गरिमा, उसका पतिव्रत ही उसका जीवन था, जो कभी भी लुट सकता था। उसके पति का चेहरा उसकी आंखों के सामने आता उसकी तस्वीर से हिम्मत लेकर अपने पास लेटे उस दरिंदे से खुद को छुड़ाते हुए लछमी ने पास फलों की टोकरी पर रखे चाकू से उसकी उंगलियों पर वार किया। वह कराहने लगा और इसी बीच कुछ फटे हुए वस्त्रों और अंगों पर लगे घाव को ढंकते हुए वह दरवाजे की तरफ भागी। तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आकर चिल्लाने लगी।

‘बचाओ! बचाओ! ऐश्वर्य उठो बेटा! बचाओ! अपनी आंटी को बचा लो बेटा! भागकर बालकनी में जाती है और चिल्लाने लगती है, बचाइए! बचाइए! मुझे बचा लीजिए।‘

ऐश्वर्य दौड़कर आ जाता है, अपनी आंटी को देखता है उनके गले लग जाता है। तभी उसका पिता आता है, शराब के नशे में चूर, वासना में जलता हुआ। अपने बच्चे को भी नहीं देखता, अपने बच्चे का हाथ पकड़कर धकेल देता है और लछमी के मुंह पर जोरदार तमाचा मार देता है लछमी इन प्रहारों से कुछ अधमरी हो जाती है।

उसकी साड़ी खींचने का प्रयास करता है। ऐश्वर्य उसे रोकता है, वह उसकी नहीं सुनता। सोसाइटी के लोग इकट्ठा होते हैं, दरवाजा खटखटाते हैं, दरिंदा कुछ घबरा जाता है। ऐश्वर्य तेजी से दौड़ कर दरवाजा खोल देता है।

सुबह के 3:30 बज रहे थे। दरवाजे के बाहर ऐश्वर्य की मां और सोसाइटी के लोग खड़े थे कुछ लोग कामवाली की गलती बता रहे थे। डॉक्टर साहब तो बड़े शरीफ और बड़े आदमी हैं वह ऐसा क्यों करेंगे?

लछमी की मालकिन अपने पति की तरफदारी कर रही थी ‘इन औरतों का कोई भरोसा नहीं है। इनका चाल चरित्र पहले से ही खराब रहता है, पैसे वाले आदमी देखे नहीं कि अपना चरित्र उजागर कर देती हैं। हमने तो भरोसे से नौकरी पर रखा था, इसने मेरे पति को शराब पिलाकर उसकी बदनामी करके, मुझे बर्बाद करने की ठान ली थी।’

सोसाइटी की एक महिला कहती है ‘अरे उसकी हालत तो देखो; उसके साथ क्या हुआ है। उसकी अधमरी हालत है, सब पता चलता है कि इसके साथ कैसा हुआ है। मैं इस कामवाली को जानती हूं यह इमानदार औरत है। ऐश्वर्य की मां! औरत ही औरत का दुख समझती है जरा उसकी हालत तो देखो।’

‘तो क्या आप मेरे पति पर शक कर रही हैं?’

सोसाइटी के लोग लछमी को अस्पताल भेज देते हैं, पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती है। घटना का गवाह था ऐश्वर्य, जो अपने पिता की गलती बता देता है। रिपोर्ट में लछमी के साथ हुए दुष्कर्म के प्रयास की पुष्टि होती है और पता चलता है कि इसका जिम्मेदार वही दरिंदा था।

दस दिन बाद लछमी वापस अपने घर जाती है। उसका बच्चा उसे पंखा कर रहा है अबकी दिवाली उसने बिना लछमी के ही बिताई थी। राजेश लछमी पर ही शक कर रहा है और उसे छोड़कर जाना चाहता है क्योंकि अब वह उसके काम की भी नहीं रही। लछमी ने भी विरोध नहीं किया, बस वह अपने बच्चे को अपने पास ही देखना चाहती है।

न्याय की कोई गुंजाइश नहीं है, पर अब और अन्याय सहन नहीं कर सकती। जो हो रहा है ठीक ही है, उसने परिस्थितियों से संधि कर ली है। अंधेरा बहुत गहरा है। वह बस एक दिया ही तो जला सकती है।

रात को लछमी अपनी खिड़की के पास दिया जला रही है। चिंतन कहता है मम्मी क्या कर रही हो? दिवाली चली गई अब उजाला क्यों कर रही हो?

आज यहां बहुत अंधेरा है बेटा।

तो तुम क्या कर रही हो?

आस का उजाला कर रही हूं, शायद औंस का अंधेरा मिट जाए।

अंधेरी रात में मलिन बस्ती में झोपड़ी के अंदर लछमी का दिया जग-मगा रहा था।

                                                                                                                                                   किरण पुरोहित 

 

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