पारम्परिक चिकित्सा की ओर पुनरागमन

कोरोना की महामारी ने लोगों को अपनी जीवनशैली पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर दिया था। लोगों को पहली बार समझ में आया कि स्वास्थ्य का स्थान धन से काफी ऊपर है। सम्पूर्ण विश्व के साथ भारत ने भी उक्त महामारी को झेला लेकिन सरकारी प्रयासों और डॉक्टरों की निःस्वार्थ सेवा की वजह से भारत में जान का नुकसान अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम हुआ।

वर्ष 2019 के अंतिम दौर में पूरे विश्व में जिस प्रकार कोरोना से हाहाकार मचा हुआ था इन विकट परिस्थितियों में भी भारत बहुत हद तक बचा हुआ था। दुनिया के लगभग सारे चिकित्सा के क्षेत्र में पूरी दुनिया में झंडा गाड़ने वाले विकसित देश, कोरोना महामारी के आगे घुटने टेक चुके थे परन्तु भारतीय जनमानस अपनी सतत् जीवन शैली, प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एवं सार्थक प्रयासों के कारण बहुत हद तक बचा हुआ था।

तात्पर्य यह है कि वर्ष 2019 के दिसम्बर महीने में दुनिया के कुछ देशों में कोरोना महामारी के लक्षण मिलने शुरू हो गए थे। भारत में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को मिला। महामारी वैश्विक थी तो भारत पर भी इसका असर पड़ना तय था। महामारी के खिलाफ मजबूत इच्छा शक्ति वाली मोदी सरकार ने हिम्मत न हारकर हर दिन नए इंतजाम किए। लॉकडाउन लगाया, सख्त नियम बनाए गए, जगह-जगह कोरोना के सम्भावित मरीजों की टेस्टिंग शुरू हुई। जो मरीज मिले उन्हें कोरोन्टाइन किया गया। बाहर से आने वाले लोगों पर विशेष ध्यान दिया गया। कुल मिलाकर कोरोना की पहली लहर में पाते-खोते वर्ष 2020 के आखिर तक भारत मजबूत स्थिति में पहुंच गया था।

भारत सरकार की पिछले 6-7 सालों की चिकित्सा के क्षेत्र में की गई तैयारियां भी काम आईं। वर्तमान में भारत में 2 लाख से अधिक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, 750 जिला अस्पतालों एवं 550 मेडिकल कॉलेजों का एक विशाल चिकित्सा नेटकवर्क है। डॉक्टरों एवं स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में पहले के मुकाबले 15 से 20 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। शुरुआत में कोरोना को लेकर भारत में और भयावह स्थिति की आशंका व्यक्त की जा रही थी। लेकिन भारत की तैयारियों ने किसी भी आशंका को निराधार कर दिया। कोरोना काल में पूरे भारत में लगभग 4000 हजार कोविड की जांच के लिए लैब खोले गए। कोरोनाकाल में उपयोग होने वाले चिकित्सा उपकरणों का भी भारत में बड़ी मात्रा में उत्पादन शुरू हो गया। भारत सरकार ने निजी संस्थानों के साथ मिलकर वैक्सीन व दवाओं का निर्माण शुरू किया। ‘वैक्सीन रिसर्च’ एवं ‘वैक्सीनेशन अभियान’ चलाकर वैक्सीन की पहली और दूसरी नि:शुल्क डोज लगवाई गई। आज स्थिति यह है कि करोड़ों लोगों को बूस्टर डोज भी लग चुके हैं। भारत की यह मजबूत तैयारी और सरकार की इच्छा शक्ति से सिर्फ भारतीय जनमानस स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में ही मजबूत नहीं हुआ बल्कि भारत दुनिया के कई बड़े देशों एवं विकसित देशों के लोगोें की स्वास्थ्य सेवाओं की मदद के लिए आगे भी आया। भारत ने पड़ोसी देशों एवं अन्य गरीब देशों को नि:शुल्क वैक्सीन पहुंचाने का महत्वपूर्ण उपकार किया है।

कोरोना महामारी के पहले और दूसरे दौर की बात करें तो भारत में जो नुकसान हुआ वो बाकी देशों के मुकाबले नहीं के बराबर रहा। पूरे महामारी के दौरान साढ़े पांच लाख के आसपास लोगों की मौत हुई और मृत्यु दर 1.5 प्रतिशत से अधिक नहीं रही। इसके लिए यदि हम पूरे परिप्रेक्ष्य में भारतीय जनमानस की सतत् जीवन शैली, भारत की प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख एवं कोरोना महामारी के दौरान उनके योगदान की बात ना करें तो उचित नहीं होगा

कोरोना महामारी के आते ही जिस प्रकार भारत सरकार ने भारत की पुरानी चिकित्सा पद्धतियों के हाथ खोले और योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा ने आगे आकर पूरे मोर्चे को सम्भाला- काबिलेतारीफ रहा।

भारतीय पारम्परिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों के जानकारों ने पाया कि ज्यादातर वे लोग कोरोना महामारी की चपेट में आ रहे हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, जो डरे हुए हैं, जिनका खानपान सही नहीं है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा ने मोर्चा सम्भाल लिया तो लोगों को भीतर से भयमुक्त करने के लिए योग ने मोर्चा सम्भाला। पौष्टिक खाने पर विशेष जोर दिया गया। कम कीमत पर और बहुत मेहनत से उपलब्ध पारम्परिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा औषधियों का उपयोग लोगों ने खूब किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि लाखों लोग खान-पान सही करके, काढ़ा पीकर और नियमित योग करके न सिर्फ कोरोना महामारी से ठीक हुए बल्कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सफल हुए।

वर्तमान भारत सरकार की मजबूत इच्छा शक्ति एवं उसकी दूरदर्शिता ही है कि उसने वर्ष 2014 में योग को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दिलाने का कार्य किया और उसके कुछ ही दिन बाद भारत सरकार ने आयुष विभाग का दायरा बढ़ाकर आयुष मंत्रालय तक पहुंचा दिया। विभाग से मंत्रालय बनते ही योग और आयुर्वेद का महत्व और उसकी जिम्मेदारियां दोनों बढ़ गईं। भारत की सभी पारम्परिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली कोरोना काल में अपना महत्व एवं विश्वनीयता दोनों साबित कर पाई। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की सभी पारम्परिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली के महत्व को समझा और ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रैडिशनल मेडिसिन केंद्र की स्थापना के लिए भारत को चुना। यह अत्यंत खुशी एवं महत्त्व की बात है कि भारत की पुरातन, पारम्परिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली का महत्व वैश्विक स्तर पर स्थापित हो गया है। जिससे सतत्, प्राकृतिक एवं पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों से पूरे विश्व का जनमानस लाभान्वित हो सकेगा।

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अलावा आयुर्वेद के क्षेत्र में काम करने वाली स्वामी रामदेव की दिव्य फार्मेसी समेत कई अन्य निजी क्षेत्र में काम कर रहे फार्मेसी संस्थानों ने बड़ी संख्या में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक दवाओं की खोज की। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने आयुष किट तैयार की और अधिक संख्या में लोगों में वितरित भी किया। जिन लोगों ने किट का इस्तेमाल किया अथवा आयुर्वेद की किसी न किसी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधि को ले रहे थे उनमें संक्रमण दर नहीं के बराबर रही। जो लोग नहीं ले रहे थे उनमें संक्रमण की दर 8 गुना अधिक थी। भारत सरकार ने बीच-बीच में कई सर्वे किए जिसमें यह निकलकर आया कि भारत में रहने वाले अधिकतर लोग आयुर्वेदिक सुझावों को अपने जीवन का हिस्सा बना चुके थे जैसे सुबह उठकर गुनगुना पानी पीना, बाहर से आने पर भाप लेना, दिन में दो से तीन बार काढ़ा पीना, च्यवनप्राश खाना आदि।

आज योग लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुका है। शहर में रहने वाले लोग सोसायटी के क्लबों में, पार्कों में योग की क्रियाएं करते देखे जा सकते हैं। जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो मानों प्रकृति में ही ऑक्सीजन की कमी हो गई हो। विश्व के लगभग सभी स्थानों में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी हो गई। डॉक्टर और अस्पताल हाथ खड़े करने लगे, ऐसे में विपरीत समय में यह सामने आया कि योग एवं प्राणायाम की क्रियाओं के द्वारा शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और जापान की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने अपने शोध में पाया कि आयुर्वेदिक औषधियों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली औषधि अश्वगंधा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधियों में सबसे उत्तम साबित हुई है। अश्वगंधा एक ऐसी आयुर्वेदिक औषिधि है जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण बीमारियों के इलाज में भी कारगर है।

कोरोना महामारी के दौरान गिलोय, एलोवेरा, तुलसी, हल्दी और अश्वगंधा की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची जो अभी भी जारी है। अब लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा सिर्फ फ्रूट जूस नहीं रहे बल्कि उनके समानांतर आंवला, गिलोय और एलोवेरा के जूस भी लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं। बहुत से भारतीय घरों में चाय की जगह काढ़ों ने ले ली है।

कोविड का दौर रहा हो अथवा कोविड के बाद का दौर दोनों ही स्थितियों में योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा लोगों के स्वास्थ्य का आधार बनकर उभरे हैं। कोरोना से पीड़ित रहे लोग जब कोरोना से उबरे तो उनमें पोस्ट कोविड इफेक्ट देखने को मिले जैसे कमजोरी, कई तरह के स्किन से जुड़ी समस्याएं, सांस लेने में दिक्कतें आदि। ऐसी स्थिति में भी योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा ने लोगों का साथ दिया और लोगों को उस बुरे दौर से करिश्माई रूप से बाहर भी निकाला।

कोविड महामारी ने मानव स्वास्थ्य पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव छोड़े हैं। हम सब खासकर शहरी आबादी, पैसे कमाने की धुन में इतनी मगन हो चुकी थी कि स्वास्थ्य हमारे एजेंडे से लगभग बाहर हो चुका था। पैसे कमाना, उस पैसे से अधिक से अधिक संसाधन जमा करना, खान-पान, रहन-सहन की बेतरतीब जीवनशैली हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। कोरोना काल में ऐसे लोगों को एक जोर का झटका लगा है। उन्हें आभास हुआ है कि जिस रास्ते पर वे चल रहे थे, ठीक नहीं है। कोरोना के समय में बहुत से ऐसे लोगों की मृत्यु हुई जिनके पास धन-दौलत की बिल्कुल कमी नहीं थी फिर भी वे खुद को बचा नहीं पाए। इतना सबकुछ होने के बाद एक सबक मिला कि धन तो जरूरी है पर स्वास्थ्य उससे कहीं ज्यादा जरूरी है। अधिकतर लोग अपने स्वास्थ्य पर प्रमुखता से ध्यान देने लगे हैं, यह कोरोना काल का सबसे सकारात्मक पहलू है।

मानव स्वास्थ्य के लिए हम सबका विश्वास योग, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति काफी बढ़ा है। यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव है।

आयुर्वेद के बेहतर प्रभाव के बाद औषधीय पौधों के प्रति लोगों का लगाव बढ़ा है। पहले तुलसी हमारे घरों का हिस्सा हुआ करती थी परंतु कोरोना महामारी के बाद तुलसी ने पुन: अपना महत्व साबित किया है। इसके अलावा एलोवेरा, गिलोय अब तो लगभग हर घर के गमले तक पहुंच चुके हैं। यह कोरोना महामारी का हमारे जीवन पर तीसरा सबसे बड़ा प्रभाव है।

कोरोना महामारी के जो सकारात्मक प्रभाव हैं हम सबको प्रसन्न होने के लिए पर्याप्त हैं परन्तु कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं और ये नकारात्मक प्रभाव हमारी नासमझी को दर्शाते हैं। बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो कोरोना महामारी के भय से अभी भी उबर नहीं पाए हैं। भय के कारण अनावश्यक रूप से गर्म पानी पीने, जरूरत से ज्यादा काढ़ा पीने, हर समय मास्क लगाए रखने के कारण कई अन्य शारीरिक व्याधियों को जन्म दे रही हैं। आज हल्की सी छींक आने पर, जुकाम होने पर एवं बुखार आने पर लोगों को कोरोना होने का भय हो जाता है। कोरोना होने के भय से एक दूसरे से मिलने में, किसी बड़े समारोह में जाने में अधिकांश लोग बचते हैं। हम सभी सही समझ, योग से एवं आयुर्वेदिक चिकित्सकों की सलाह से मानव स्वास्थ्य के इन नकारात्मक प्रभावों को भी दूर कर सकते हैं।

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि वर्तमान में योग,

आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा मानव स्वास्थ्य के लिए वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं है बल्कि कोरोना महामारी में यह साबित हुआ कि भारत की पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियां महामारी के दौर में भी मानव स्वास्थ्य के लिए रीढ़ साबित हुई हैं।

प्रयोजनम चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकार प्रशमनं च॥

आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी व्यक्ति के रोग का प्रशमन करना है।

इस प्रकार आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली प्राकृतिक तंत्र को बिना नुकसान पहुंचाए सभी प्रकार के विकारों को मानव शरीर से दूर करता है जो आज की सभी संक्रमित बीमारियों के इलाज में एवं मानव स्वास्थ्य को संरक्षित करने में अत्यंत उपयोगी है और स्वस्थ, सुखी एवं सम्पन्न जनमानस के लिए मानव स्वास्थ्य सर्वाधिक जरूरी है।

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