केवल उद्योग नहीं सेवा भी

कोरोना काल ने मानवीय कमजोरियों को उजागर करने के साथ ही साथ लोगों के आपसी सौहार्द्र को भी अभिलेखित किया। देश के उद्योगपति घराने भी जन सेवा में पीछे नहीं थे। सभी बड़े औद्योगिक घरानों ने तन-मन-धन से समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का प्रयत्न किया। साथ ही, देशभर के संस्थाओं ने भी समाज सेवा के कार्य का सफलतापूर्वक निर्वहन किया।

संकट काल में कैसे पूरा समाज एकजुट हो जाता है इसकी एक झलक देखने को मिली इस बार के कोरोना महामारी में। एक आपदा तो थी ही लेकिन इसने लोगों को पास आने, परिवार और समाज में सद्भावना विकसित करने में भी बड़ी भूमिका अदा की। मानवीय संवेदनाओं को उभारने, खुद के और व्यापार के खर्च प्रवृत्तियों के पुनरीक्षण का भी समय लोगों को मिला। कई बार संकट छुपे हुये नायकों को भी बाहर लाता है ऐसा कुछ इस कोरोना काल में भी हुआ, मोहल्ले, नगर, प्रदेश और देश स्तर तक एक नये सामाजिक नेतृत्व का पता चला। समाज के भीतर छुपे हुये मानवीय स्पंदन के स्वर खुलकर सुनाई दिये। कॉरपोरेट, सामाजिक संस्था समेत व्यक्तिगत रूप में कई लोगों के दरियादिल चेहरे सामने आये, ऐसे तमाम लोग, संगठन जिसके दिल में समाज के लिए दर्द था वह सब लोग खुल के सामने आये। किसी ने समय दान दिया, किसी ने धन किसी ने खाना और राशन, किसी ने व्यवस्था तो किसी ने ज्ञान से सहायता की। डॉक्टर और चिकित्सा समाज के योगदान को भी भूला नहीं जा सकता। एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों ने सामने आकर अपने शोध और जानकारी के माध्यम से लोगों तक जानकारी पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इन्हीं में से कुछ उल्लेखनीय योगदान है जिसे हमें कोरोना के जाने की बेला में जरूर याद करना चाहिये ताकि एक दस्तावेज के रूप में हम कृतज्ञता भी व्यक्त कर सकें और लाखों सक्षम लोगों को प्रेरणा भी मिल सके। यह दस्तावेज समाज के बारे में हमारे राय और चिंतन के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। सूची तो बहुत लम्बी है और इसमें गांव से लगायत राष्ट्रीय स्तर के लोग हैं। कुछ राष्ट्रीय स्तर के बड़े नामों में टाटा, रिलायंस ग्रुप, अजीम प्रेम जी, एल एंड टी, अडानी, अम्बुजा सीमेंट, कोल इंडिया, स्टेट बैंक, कोका कोला इंडिया, बोस्च इंडिया, आईसीआईसीआई, वालमार्ट, फ्लिपकार्ट, एनएसई, पावर फाइनेंस कारपोरेशन, डी मार्ट, डॉ लाल पैथ लैब, डालमिया भारत ग्रुप, यूपीएल, वेदांता, ओएनजीसी, एशियन पेंट, इनफ़ोसिस, मैन काइंड फार्मा, गडथ ग्रुप, गोदरेज, टीवीएस, आईटीसी, बजाज ग्रुप , कोटक बैंक , एक्सिस बैंक आदि प्रमुख रूप से हैं। भारत वंशी प्रवासी भारतीयों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी उसमें से एक यूपी के प्रवासियों का एक संगठन उत्तर प्रदेश डेवलपमेंट फोरम भी था जिसने अपने विदेशों में बैठे प्रवासी मित्रों के सहयोग से यूपी के 65 गांवों में ऑक्सीमीटर बैंक जैसा अभियान चलाया।

लिस्ट तो बहुत लम्बी है, बीते समय के साथ ऐसे लोगों को योगदान को याद करने और दस्तावेजीकरण के लिये कुछ लोगों को यहां उद्धृत कर रहा हूं। रिलायंस ग्रुप परीक्षण सुविधाओं, पीपीई निर्माण सुविधाओं, स्वास्थ्य देखभाल के लिए कोविड -19 विशेष वार्डों के अलावा सबसे कमजोर लोगों की आपातकालीन खाद्य आवश्यकताओं से लेकर तत्काल जरूरतों पर बड़े पैमाने पर आगे आया था। हेल्थकेयर से लेकर मेडिकल ऑक्सीजन तक, आजीविका के समर्थन से लेकर टीकाकरण तक, हर स्तर पर रिलायंस परिवार ने मिशन मोड पर तत्काल जरूरतों को पूरा किया। जिसमें प्रमुख रूप से है मिशन ऑक्सीजन जिसके तहत राज्यों को मुफ्त तरल चिकित्सा ऑक्सीजन प्रदान करना तथा 1लाख से अधिक रोगियों के लिए प्रतिदिन 1,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन सुनिश्चित करना था। इसके लिए दूसरी लहर के दौरान, रिलायंस ने तरल चिकित्सा ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए जामनगर में अपने कारखाने को रिकॉर्ड समय में पुनर्निर्मित किया। इस सुविधा ने भारत के मेडिकल ग्रेड लिक्विड ऑक्सीजन के कुल उत्पादन में 11% का योगदान दिया। जबकि रिलायंस मेडिकल-ग्रेड लिक्विड ऑक्सीजन का निर्माता नहीं था, लेकिन जरूरत की घड़ी में देश के साथ खड़े होने के लिए यह एक ही स्थान से इस जीवन रक्षक संसाधन का भारत का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया और यह पूरा काम मुकेश अम्बानी के व्यक्तिगत नेतृत्व में चल रहा था जिन्होंने उत्पादन के साथ इसकी लॉजिस्टिक भी सुनिश्चित की। रिलायंस ने मिशन अन्न सेवा के तहत फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और कमजोर समुदायों के लिए करीब  8.5 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन वितरित किया।

इस मिशन के तहत 19 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 200 से अधिक एनजीओ भागीदारों के माध्यम से कमजोर समुदायों को भोजन सुनिश्चित किया गया। आवश्यक वस्तुओं का परिवहन करने वाले ट्रक चालकों के बीच भोजन भी वितरित किया गया, जिन्हें भोजन तक पहुंचना मुश्किल हो गया क्योंकि तालाबंदी के कारण रेस्तरां बंद थे। पश्चिम बंगाल, केरल और ओडिशा में रिलायंस पेट्रोल स्टेशन भी ट्रक ड्राइवरों को भोजन वितरित करने के लिए पहुंचे।  मिशन कोविड इंफ्रा के तहत कमजोर समुदायों के लिए मास्क वितरण के माध्यम से सुरक्षा के साथ-साथ अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत किया। विभिन्न स्थानों पर कोविड देखभाल के लिए 2,000 से ज्यादा बेड स्थापित और करीब 1.4 करोड़ से अधिक मास्क बांटे, तथा मिशन वैक्सीन सुरक्षा के तहत सबसे कमजोर समुदायों सहित 40 लाख से ज्यादा लोगों का मुफ्त कोविड19 टीकाकरण करवाया। निर्बाध आपातकालीन सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए, रिलायंस फाउंडेशन ने कोविड-19 रोगियों के परिवहन को आसान बनाने के लिए सरकार द्वारा अधिसूचित वाहनों और एम्बुलेंस को मुफ्त ईंधन प्रदान किया। 21 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में 70,000 एम्बुलेंस में करीब  27 लाख लीटर से अधिक मुफ्त ईंधन प्रदान किया।

टाटा भी इस मानवीय अभियान में आगे था, रतन टाटा ने 1500 करोड़ रुपये देने की घोषणा के साथ टाटा के कर्मचारियों ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए कई करोड़ का योगदान दिया। ऑक्सीजन एक्सप्रेस के माध्यम से टाटा स्टील के कलिंगनगर प्लांट से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति शुरू करना हो या सात क्रायोजेनिक कंटेनरों वाली ऑक्सीजन ट्रेन को ओडिशा के जाजपुर जिले के कलिंगनगर से 132 टन तरल मेडिकल ऑक्सीजन को दिल्ली ले जाना हो, टाटा स्टील ने विभिन्न राज्यों में सड़क मार्ग से 3630 टन तरल ऑक्सीजन की आपूर्ति की है। राष्ट्रीय तात्कालिकता को देखते हुए, टाटा स्टील अपनी विनिर्माण इकाइयों के माध्यम से विभिन्न राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और दिल्ली के अस्पतालों में प्रतिदिन तरल चिकित्सा ऑक्सीजन की आपूर्ति करता रहा। जाजपुर जिले में आईसीयू सुविधा के साथ मेडिका कोविड अस्पताल, गंजम के सीतलपल्ली में 200 बिस्तरों वाला टाटा कोविड अस्पताल, जिसमें वेंटिलेटर के साथ 55 आईसीयू बेड जिला प्रशासन को सौंपा। टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स ने इन परिस्थितियों में सबसे तेज और सबसे उपयुक्त विकल्प इंजीनियरिंग पर काम करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया था जिसने ऑक्सीजन के भंडारण और वितरण के लिए वैकल्पिक और आउट ऑफ बॉक्स समाधानों के ज्ञान प्रसार हेतु श्वेतपत्र निकाला कि कैसे चिकित्सा ऑक्सीजन सेवा के लिए सीओ2 अग्निशामक और एलपीजी सिलेंडर का रूपांतरण किया जा सकता है। 10 राज्यों में ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करने में सहायता की, 300  अस्पतालों को सहायता देने के लिये बड़े पैमाने पर क्षमता का निर्माण किया।

अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने एकीकृत स्वास्थ्य सेवा की क्षमता के निर्माण के तहत 100से अधिक जिलों और 200 से अधिक ब्लाकों  में 15 करोड़ लोगों तक सहायता पहुंचाई जिनमें कुछ बहुत ही पिछड़े जिले भी थे। जमीनी स्तर पर महामारी निगरानी, निगरानी, जागरूकता निर्माण और समुदाय सेवा के माध्यम से 10,000 से अधिक ऑक्सीजन बेड, 1000 आईसीयू बेड, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली क्षमता निर्माण लगभग 80,000 प्रति दिन क्षमता वाले टेस्टिंग लैब 45 सार्वजनिक अस्पतालों को सहायता दी। अपने इस कार्य से 54 करोड़ भोजन पैकेट 1.3 करोड़ लोगों तक पहुंचाया, तथा 27 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में 83 लाख लोगों की आजीविका को पुनर्जीवित करने में मदद की है। इस पूरे अभियान में 1600 सदस्यों की कोर टीम के साथ 800 भागीदार संगठनों के 55,000 से अधिक सदस्य, 10,000 से अधिक सार्वजनिक (सरकारी) स्कूल शिक्षक, 2500 अजीम प्रेम जी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के साथ विप्रो की तकनीकी विशेषज्ञ टीम लगी थी। वित्तीय आवश्यकता को देखते हुए इस ग्रुप ने अपनी पूर्व घोषित सहायता राशि को 1125 करोड़ से बढ़ाकर 2125 करोड़ किया।

इस दौरान जन भागीदारी से कैसे इसमें सहायता की जा सकती है का उदाहरण प्रवासियों की संस्था उत्तर प्रदेश डेवलपमेंट फोरम ने दिखाई, जिसने प्रथम लहर के दौरान देश के पश्चिम और दक्षिण के राज्यों में चैनल पार्टनर और सहयोगियों के माध्यम से करीब 50000 लोगों को खाना और आजीविका तथा परिवहन सुविधा प्रदान की। द्वितीय लहर के दौरान लक्साई लाइफ साइंस के स्वीडन स्थित सीईओ डॉ राम उपाध्याय और मैंने खुद कमान संभाली और 3 बड़े वेबिनार, 10 से ज्यादा मेडिकल वीडियो बुलेटिन जारी करने के साथ साथ, जब ऑक्सीजन के कारण मौतें बढ़ने लगी तो हमने यूपी के 65 गांवों में ऑक्सीमीटर बैंक का एक अनूठा प्रयोग चलाया। अपने शोध के माध्यम से यूपीडीएफ ने पता लगाया कि ऑक्सीजन की कमी का पता लगने या हैप्पी हाईपोक्सिया के कारण लोगों को अंतिम समय में ऑक्सीजन की कमी का पता चलने में वक्त लग रहा है और ऐसे में हॉस्पिटल में पहुंचने और जगह मिलने में 48 घंटे लग जा रहे थे क्यूंकि गांवों में हॉस्पिटल वैसे नहीं थे और कस्बों और शहरों के अस्पतालों में जगह नहीं थी। ऐसे में इस टीम ने यह भी पाया कि गांवों में किसी के पास ऑक्सीमीटर तो क्या थर्मामीटर रखने का चलन नहीं है। यूपीडीएफ ने 100 स्वयंसेवकों की टीम जो जमीनी स्तर पर युवाओं द्वारा संचालित था के माध्यम से 65 गांवों में ऑक्सीमीटर बैंक खोल गांवों में पर्याप्त ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर उपलब्ध कर नियमित गहन परिक्षण करा उन्हें लगातार खतरे से बाहर रखा। यूपी सरकार के निगरानी समिति से तारतम्य मिला अगर कहीं संदेह हो तो उन्हें वहां तक पहुंचाया और इस पूरे अभियान के दौरान यह गांव किसी भी कैजुअलटी से बचे रहे। स्वीडन में बैठे डॉ राम उपाध्याय तथा लंदन में बैठे डॉ दीप्ती गुप्ता चौबीसों घंटे इन स्वयंसेवकों को गाइड करने में लगे रहे।

कुल मिलाकर समाज की यह तस्वीर जो संकट काल में दिखाई दी उसने सभी खाइयों को समाप्त कर यह सिद्ध किया की दुनिया के लोग एक हैं।

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