सेवा परमो धर्मः

कोरोना काल के दौरान देश भर के धार्मिक संस्थानों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने तन-मन-धन से राष्ट्रवासियों की सेवा की। शायद यही कारण था कि भारत में कोरोना का प्रभाव पश्चिमी राष्ट्रों की अपेक्षा कम पड़ा। इस आपदा काल में भारतीय संस्कृति में निहित मानवीय संवेदना का भाव सरकार से लेकर आम आदमी तक प्रवाहित हुआ।

दया, करुणा, सेवा व सहकार जैसे विशिष्ट सद्गुण हमारी सनातन भारतीय संस्कृति को युगों-युगों से जीवंत बनाये हुए हैं। हमारे सनातनी मनीषियों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ की जीवनदृष्टि सदा से इस विश्व वसुधा को पोषित-संरक्षित करती रही है। हमारी ऋषि मनीषा का तत्वचिंतन हमसे यह नहीं पूछता है कि हमारे पास कितनी धन-सम्पदा है, वरन् यह पूछता है कि हमने अपनी सुविधा-साधनों का लोकमंगल के लिए कितना उपयोग किया है! यही वजह है कि भारत की आध्यात्मिक धरती ने हर संकट में सेवा, समर्पण और सद्भाव के विराट आदर्श प्रस्तुत किये हैं। बीते दिनों कोरोना के संकटकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ के अन्तर्गत की गयी ‘प्रकृति, विकृति और संस्कृति’ की अनूठी व्याख्या भारतीय दर्शन के इसी उजले पक्ष को परिभाषित करती है। कोरोना महामारी की भयावह परिस्थितियों में देशभर की आध्यात्मिक व सामाजिक संस्थाओं ने जिस तरह लोकमंगल व जनसेवा के बेमिसाल उदाहरण प्रस्तुत किये; वे इनकी उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लगाने वाले तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवियों को सच का आइना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा न्यूज चैनलों की खबरें इस बात की पुष्टि करती हैं कि कोरोना महामारी व लाकडाउन के दौरान सेवाकार्य ही नहीं; उत्तर कोरोना काल में जनजागरूकता फैलाने में भी देशभर की प्रमुख धार्मिक व सामजिक संस्थाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।

कोरोना महामारी के दौरान जब स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी के कारण हर जगह से मौत की खबरें आ रही थीं, लोग इलाज, दवाइयों और ऑक्सीजन के संकट से जूझ रहे थे; उस विकट स्थिति में केंद्र व राज्य सरकारों के साथ देशभर के मठ-मंदिर व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे कई सामाजिक संस्थानों ने न सिर्फ खुलेमन से आर्थिक सहयोग दिया वरन् अपने बलबूते भोजन व इलाज की व्यवस्था जुटाकर दीन-दुखियों के आंसू भी पोछे। इन आध्यात्मिक संस्थानों में अखिल विश्व गायत्री परिवार, सद्गुरु का ‘ईशा फाउंडेशन’, श्री श्री रविशंकर की ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ संस्था, मां अमृतानंदमयी मठ, इस्कान, बाबा रामदेव की पतंजलि पीठ, मां वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, शिर्डी साईं संस्थान, तिरुपति बालाजी मंदिर, गुजरात के सोमनाथ व अम्बाजी मंदिर, काशी विश्वनाथ व संकटमोचन मंदिर, गोरखनाथ मंदिर, महाराष्ट्र के सिद्धिविनायक व महालक्ष्मी मंदिर, पुरी के श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर, पटना के महावीर मंदिर, अक्षरधाम व स्वामी नारायण मंदिर जैसे अनेकानेक धार्मिक संस्थानों ने बढ़-चढ़ कर राष्ट्रधर्म का पालन किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध ‘तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट‘ की ओर से 200 करोड़, शिर्डी साईं ट्रस्ट की ओर से 51 करोड़, पतंजलि योगपीठ की ओर से 25 करोड़, केरल के माता अमृतानंदमयी मठ की ओर से 13 करोड़, इस्कॉन मंदिर ट्रस्ट से 10 करोड़, हरियाणा के मशहूर माता मनसा देवी मंदिर की ओर से 10 करोड़, माता वैष्णो देवी मंदिर की ओर से सात करोड़, गायत्री परिवार की ओर से दो करोड़, महाराष्ट्र के महालक्ष्मी देवस्थान, कोल्हापुर की ओर से दो करोड़, गुजरात के सोमनाथ व अम्बाजी मंदिर द्वारा एक-एक करोड़, पटना के श्री महावीर हनुमान मंदिर ट्रस्ट की ओर से एक करोड़, राजस्थान के सालसर बालाजी धाम ने 22 लाख, मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट (हरिद्वार) ने 16 लाख, गुजरात के स्वामीनारायण मंदिर संस्थान ने 11 लाख, खाटू श्याम मंदिर ट्रस्ट ने 11 लाख, तमिलनाडु के कांची मठ द्वारा 10 लाख, उज्जैन महाकालेश्वर द्वारा पांच लाख, सीकर के जीणमाता मंदिर ट्रस्ट द्वारा 5 लाख, छत्तीसगढ़ के मां महामाया मंदिर ट्रस्ट समिति द्वारा 5 लाख 11 हजार, अचलेश्वर मंदिर ग्वालियर (मध्यप्रदेश) द्वारा 1 लाख 11 हजार रुपये जनसेवा के लिए दान दिये गये। संकट की गम्भीरता को देखते हुए यूपी के गोरखपुर के सिद्धार्थनगर के काली मंदिर ने अपना तो छह दशक से बंद अपना पूरा दानपात्र ही प्रशासन को सौंप दिया। इन दानवीर संस्थाओं की सूची खासी लम्बी है।

इन केंद्रों की अन्य सहयोगात्मक गतिविधियों की बात करें तो कोरोना संकट में पटना के महावीर मंदिर समिति ने सैकड़ों संक्रमितों को मुफ्त में ऑक्सीजन सुविधा मुहैया करायी। मुंबई के स्वामी नारायण मंदिर तथा जैन मंदिर ने 100 बिस्तर वाले कोविड सेंटर के साथ पैथोलॉजी लैब की व्यवस्था कर सैकड़ों मरीजों का निःशुल्क इलाज कराया। महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव स्थित संत गजानन महाराज मंदिर द्वारा कोरोना रोगियों के लिए 500-500 बेड के आइसोलेशन परिसर बनाने के साथ अपनी सामुदायिक रसोई से सैकड़ों लोगों को मुफ्त भोजन कराया गया। वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर ने कम आय वर्ग वाले अनेक कोरोना संक्रमितों को मुफ्त दवा वितरित की। पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने भी 120 बिस्तरों वाले कोविड केयर सेंटर की सुविधा उपलब्ध करायी। मुंबई के कांदिवली के पावन धाम मंदिर ने अपनी चार मंजिला इमारत को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर यूनिट, ऑक्सीमीटर, पल्स मीटर, पोर्टेबल बीपी उपकरण, मॉनिटर मशीन से लैस 100 बेड वाले क्वारंटाइन सेंटर बनाया। इस्कॉन मंदिर की ओर से गर्भवती महिलाओं, घर में रह रहे बुजुर्गों, बच्चों व कोरोना मरीजों के लिए फ्री भोजन के लिए स्पेशल किचन शुरू कर हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किया गया। अमृतानंदमयी मठ की ओर से संचालित कोच्चि स्थित अमृता इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसिज (अमृता हास्पिटल) में सैकड़ों कोविड संक्रमितों की मुफ्त देखभाल की गयी। इंदौर में राधास्वामी सत्संग केंद्र में कोरोना संकट के दौरान देश का दूसरा सबसे बड़ा 600 बिस्तरों वाला मां अहिल्या कोविड केयर सेंटर बना। इस परिसर में 10 बड़े एलईडी लगाकर रामायण, महाभारत आदि का प्रसारण किया गया। अयोध्या के ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ने ऑक्सीजन प्लांट को स्थापित करने में 55 लाख का सहयोग दिया। दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी की तरफ से 250 बेड का कोविड फैसिलिटी सेंटर बनाया गया तथा गुरुद्वारे की तरफ से लोगों के लंगर के साथ कोरोना संक्रमित लोगों के घर खाना पहुंचाने का अभियान चलाया। गोरखनाथ मंदिर ने गोरखपुर एवं बलरामपुर के तुलसीपुर में अस्पताल का संचालन किया था। श्रीसोमनाथ ट्रस्ट तथा अम्बाजी मंदिर की ओर से कोरोना स्थिति से निपटने के लिए लॉकडाउन प्रभावित इलाकों में भोजन की व्यवस्था की। वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ओर से कोविड पीड़ितों के लिये 600 बेड व भोजन की व्यवस्था की गयी। उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित कोरोना टेस्ट लैब की मशीन खराब होने पर पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट ने उसे लाखों रुपए की टेस्टिंग मशीन दान दी। गायत्री परिवार द्वारा बड़े पैमाने पर मास्क वितरण तथा देवसंस्कृति विश्व विद्यालय में 500 बेड के क्वारिनटाइन सेंटर की व्यवस्था करने के साथ ‘गृहे गृहे गायत्री यज्ञ’ का ऑनलाइन अभियान चलाकर देश विदेश में हजारों लोगों को स्वास्थ्य व पर्यावरण शुद्धि के प्रति जागरूक किया। ‘आर्ट आफ लिविंग’ ने ‘मिशन जिंदगी’ अभियान चला कर बड़े पैमाने पर पीड़ितों व जरूरतमंदों को दवा व भोजन की सुविधा उपलब्ध करायी। बाबा रामदेव ने कोरोना के निदान में योग व आयुर्वेद चिकित्सा की उपयोगिता को पूरी मजबूती से देशवासियों के सामने रखा। हम सब भली भांति जानते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सा से बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी से मुक्त हुए, बचे रहे। इसी तरह काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट व अन्नपूर्णा मंदिर ट्रस्ट तथा हरिद्वार के शांतिकुंज तीर्थ, श्रीराम की नगरी अयोध्या तथा श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा हजारों लोगों को निःशुल्क भोजन कराया गया। यही नहीं, देश के चर्चित धर्मगुरुओं ने ‘पाजिटिविटी अनलिमिटेड’ अभियान के तहत अपने सकारात्मक उद्बोधनों से भयभीत जनता में नयी ऊर्जा का संचार किया। कोरोना के दंश से पीड़ित समाज को भयमुक्त करने तथा हताश व अवसादग्रस्त लोगों का मनोबल, उत्साह व साहस बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परिवार प्रबोधन गतिविधि के तहत समूचे काशी प्रांत में सवा पांच लाख हनुमान चालीसा पाठ का धार्मिक अनुष्ठान तथा उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महारूद्र महामृत्युंजय महामंत्र के सवा लाख जाप का 11 दिवसीय अनुष्ठान किया गया।

गौरतलब हो कि वामपंथी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को साम्प्रदायिक कहकर हिंदू धर्म की सरहदों में बांधने की कोशिश करते हैं लेकिन सोशल मीडिया के वर्तमान युग में वे भी कोरोना से निर्णायक जंग में संघ के योगदान को नकार नहीं सकते। सत्यता यह है कि हिंदू-मुसलमान का भेद किये बिना संघ और संघ के 40 से अधिक आनुषांगिक संगठन तथा अन्य वैचारिक संगठन युद्ध स्तर पर पूरे देश में मदद पहुंचाने में जुटे रहे। मानव सेवा के संकल्प के साथ हर जरूरतमंद को भोजन, दूध, रसोई गैस, दिनचर्या के जरूरी सामान, दवाइयां, चिकित्सकीय सहायता पहुंचाने में जुटे ये स्वयंसेवक अपना रक्त भी दूसरों के जीवन के लिए दान करने में तत्पर दिखे। सेवाभारती, विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ व किसान संघ समेत कमोबेश सभी संगठनों ने देश की इस सबसे बड़ी आपदा में लोगों को मदद पहुंचाने के साथ बेसहारा पशु और बेजुबान पक्षियों का भी खयाल रखा। राष्ट्रीय सेवा भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ऋषिपाल डडवाल के अनुसार देश में तीन लाख से अधिक स्वयंसेवक सेवा में जुटे रहे। इनमें सेवाभारती से जुड़े 12,500 एनजीओ भी कार्यरत रहे।

इसी तरह कोरोनाकाल में स्कूलों में तालाबंदी के दौरान देशभर के कई शहरों में शिक्षकों ने मोहल्ला स्कूल खोलकर छात्रों में शिक्षा की अलख जगाकर सफलता की एक नई इबारत लिखी। ऐसे ही मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सामाजिक संस्था ‘सरोकार’ ने श्मशान घाटों एवं कब्रिस्तान में कोरोना वायरस के कारण जान गंवाने वाले लोगों का अंतिम संस्कार करने वाले कई श्रमिकों का दो-दो लाख रुपये का जीवन बीमा करा कर मानवता की अनूठी मिसाल पेश की। ऐसे उपक्रमों की एक लम्बी सूची है।

कोरोना से जंग में सामाजिक संस्थान

कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सरकार और आम लोगों की मदद को टाटा, अम्बानी, अडानी और विप्रो जैसे देश के जाने माने व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी खुले मन से आगे आये। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अम्बानी ने 1500 करोड़ तथा विप्रो एंटरप्राइजेज लिमिटेड और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए संयुक्त रूप से 1,125 करोड़ का सरकारी सहयोग दिया। इसके साथ ही सरकारी संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित कर जरूरतमंदों को भोजन व इलाज की हर सम्भव मदद मुहैया करायी। यह जानना दिलचस्प है कि फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने भी कोरोना महामारी के दौरान पीड़ितों की खुले हाथों से मदद कर सोशल मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थीं। इसके अतिरिक्त इस महामारी में अक्षयपात्र, सेवा इंटरनेशनल, बचपन बचाओ आंदोलन, साल्वेशन आर्मी, रेडक्रॉस सोसाइटी, हेल्प-एज इंडिया, सुलभ चैरिटीज जैसे कई राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठनों ने भी सराहनीय योगदान दिया। सामाजिक संगठन ‘सेवा इंटरनेशनल भारत’ के सचिव श्याम परांडे की मानें तो 25 से भी ज्यादा देशों से मिले दान से महामारी के दूसरे दौर में 80,000 से ऊपर जरूरतमंदों को राशन किट, 50,000 मेडिकल किट, 8000 ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर, 25,000 ऑक्सीजन मीटर, 4000 पीपीई किट वितरित कराने के साथ जरूरत वाले स्थानों पर 80 ऑक्सीजन प्लांट लगवाने के साथ शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले प्रवासियों और बेघर आबादी के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित करने के साथ सामाजिक दूरी, साफ-सफाई तथा कोविड से जुड़े सामाजिक दंश के प्रति लोगों को जागरूक करने, बेघर, दिहाड़ी मजदूरों, और शहरी गरीब परिवारों को आश्रय प्रदान करने के सरकारी प्रयासों का समर्थन करने, पीपीई और सैनिटाइजर, साबुन, मास्क, दस्ताने आदि जैसे सुरक्षात्मक चीजों के वितरण में सक्रिय भूमिका निभायी। समाचारपत्र ‘दैनिक भास्कर’ के अनुसार छत्तीसगढ़ की स्वयंसेवी संस्थाओं ‘आशा की किरण’, ‘छत्तीसगढ़ सिख फोरम’ और ‘दशमेश सेवा सोसायटी’ ने संकटकाल में हजारों जरूरतमंदों को भोजन, मास्क व सेनेटाइजार, साबुन, बिस्कुट आदि उपलब्ध कराया। इन संस्थाओं ने रायपुर में चिन्हित 10 हजार परिवारों तक राशन पहुंचाने के साथ पुलिस व प्रशासन के साथ मिलकर रायपुर के सभी गुरुद्वारों में मुफ्त लंगर की व्यवस्था भी की। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की सामजिक संस्था ‘समर्पण’ की संस्थापक प्रियंवदा राणा के मुताबिक उनकी संस्था ने महामारी के दूसरे दौर में हजारों की संख्या में कोविड किट, सर्जिकल मास्क, सर्जिकल ग्लव्स एवं फेस शील्ड का वितरण करने के साथ पीड़ितों को भोजन की सुविधा उपलब्ध करायी। कोरोना महामारी से लोगों को बचाने के लिए वाराणसी की स्वयंसेवी संस्था ‘जन विकास समिति’ ने भी बढ़ चढ़कर सहयोग किया। इस संस्था ने जरूरतमंदों को जरूरी सामान मुहैया कराने के लिए प्रशासन के साथ मिलकर घर-घर जाकर लोगों की मदद बांटी। संस्था से जुड़े रवि शेखर और एकता ने बताया कि महामारी के दौरान उन लोगों ने सैकड़ों जरूरतमंदों को मास्क, सेनेटाइजर व पानी की बोतलों के साथ आटा, चावल, दाल, आलू, प्याज, टमाटर, फल, तेल, नमक, साबुन, तेल, बिस्किट, ब्रेड आदि सामग्री का वितरण किया। इसी तरह दिल्ली की सामाजिक संस्था ‘समाधान’ के संस्थापक पवन शर्मा की टीम ने कोरोना महामारी के दौरान हजारों पीड़ितों की मदद की। बकौल पवन, 25 मार्च से लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद एक दिन वे अपने बैडमिंटन क्लब के दोस्तों के साथ बैठे लॉकडाउन में जरूरतमंद लोगों की मदद करने पर विचार कर रहे थे। क्लब से जुड़े सभी 21 लोगों ने मिलकर लॉकडाउन के 21 दिनों तक प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन ने 100 लोगों को खाना खिलाना तय किया। उसी दौरान प्रधान मंत्री मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन में इस्तेमाल किए गए शब्दों ‘कोरोना से बचाव के लिए सावधानी ही समाधान है’ में ‘समाधान’ शब्द ने उन्हें आकर्षित किया। फिर सभी ने मिलकर ‘समाधान’ नाम से संस्था बनाकर 27 मार्च से रसोई शुरू की। शुरू में मंदिर से बर्तन लेकर खुद ही सुबह की चाय बनाकर नाश्ते में रस्क और दोपहर के खाने में पुलाव बनाकर बांटना शुरू किया। देखते देखते बड़ी संख्या में लोगों ने मदद करना शुरू किया तो हलवाई रखकर खाना बनवाना शुरू कर दिया गया। इस सहयोग से उन सब ने 100 दिनों से अधिक समय तक प्रतिदिन 400 लोगों को खाना खिलाया। भोजन के अलावा 700 जरूरतमंद लोगों को राशन किट व दवाई के अलावा दो लोगों को डायलिसिस की सुविधा भी उपलब्ध करायी।

 

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