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आन्तरिक सुरक्षा की चुनौती: ड्रग्स तस्करी

आन्तरिक सुरक्षा की चुनौती: ड्रग्स तस्करी

by हिंदी विवेक
in देश-विदेश, मीडिया, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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व्यापक सुरक्षा वातावरण एवं नवीन विश्व व्यवस्था के आधार पर भारतीय सुरक्षा की आन्तरिक एवं वाह्य रक्षा चुनौतियों के सन्दर्भ में व्यापक चिन्तन, मनन, सजग एवं सतत सतर्क रहने की आवश्यकता है। किसी राष्ट्र की उत्पत्ति के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा की प्रक्रिया का भी जन्म हो जाता है, जो कि राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक पहलू से सम्बन्धित है। देश का गौरव, समृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा व्यापक है और इस परिभाषा के प्रमुख घटक हैं देश में मजबूत सरकार, सीमाओं की सुरक्षा एवं आन्तरिक सुरक्षा, आर्थिक सुदृढ़ता, ऊर्जा एवं प्राकृतिक संसाधनों में आत्मनिर्भरता, संचार के साधन एवं रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भी सम्मिलित है। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि देश में सामाजिक सामंजस्य एवं सौहार्द का वातावरण तथा कानून व न्याय व्यवस्था की एक बेहतर स्थिति हो। राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होने से देश की वैश्विक स्तर पर स्थापित प्रतिष्ठा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्येक राष्ट्र की सभी नीतियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति मानी जाती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का मुख्य लक्ष्य अपने राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति अथवा उसकी रक्षा करना होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा से तात्पर्य राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता, संप्रभुता व नागरिकों के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करना है। वर्तमान दौर में हमारे देश के समक्ष अनेक संगठित अपराधिक गतिविधियां जैसे-आतंकवाद, अलगाववाद, माओवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद, सम्प्रदायवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, साइबर अपराध, मनी लॉण्डरिंग, हथियारों का अवैध व्यापार आदि जैसी समस्याएं मौजूद हैं, जो भारत की आन्तरिक सुरक्षा को नकारात्मक अथवा प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं, जिससे देश की एकता एवं अखण्डता के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। देश की आन्तरिक सुरक्षा को आज सबसे बड़ी चुनौती मिल रही है, वह है-ड्रग्स तस्करी।
भारत की आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। खतरों की सीमा तथा दायरा जटिल, विविध, बहुआयामी एवं चिन्तनीय होता जा रहा है। देश की आन्तरिक सुरक्षा समस्याओं में सबसे घातक समस्या ड्रग्स का फैलता जाल है। एक बड़ी तादाद में हमारे युवा नशे की लत का शिकार हो रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ड्रग तस्करी, आतंकियों तथा गैंगस्टरों का गठजोड़ तैयार होता जा रहा है, जो निःसन्देह एक बड़ी व कड़ी चुनौती एवं चिन्ता का विषय है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मादक पदार्थों (ड्रग्स) का सेवन समाज की एक बेहद गंभीर समस्या है। इससे न केवल एक परिवार, समाज, राज्य एवं देश टूटता है, बल्कि इससे मानवीय मूल्यों की सुरक्षा हेतु भी संकट खड़ा हो जाता है। जिस प्रकार से भ्रष्टाचार और जनसंख्या वृद्धि देश के लिए एक गंभीर मसला है, उसी तरह से नशाखोरी भी एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इस चुनौती को बड़ी गंभीरता से लिये जाने की सामयिक आवश्यकता है।
उल्लेख है कि भारत डार्कनेट पर बिक रहे मादक पदार्थों की आपूर्ति के लिए दक्षिण एशिया में सबसे अधिक सूचीबद्ध किये जाने वाले गन्तव्यों में से एक है। यही नहीं, देश की बड़ी दवा कम्पनियों के उत्पादों के नशीले पदार्थों की तस्करी में इस्तेमाल होने का जोखिम भी बेहद ज्यादा पाया गया है। एक वैश्विक एण्टी नारकोटिक्स निकाय ने अपनी मार्च 2022 की एक रिपोर्ट में यह दावा किया है। वियना स्थित अन्तर्राष्ट्रीय स्वापक नियन्त्रण ब्यूरो (आईएनसीबी) ने वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में वैश्विक स्थिति के विश्लेषण विषय के तहत भारत और दक्षिण एशिया में मादक पदार्थों की तस्करी के परिदृश्य पर एक विस्तृत रूप से मीमान्सा की गयी है। ‘गोल्डन क्रीसेन्ट’ एवं ‘गोल्डन ट्राईएंगल’ अफीम के विश्व में सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैं।
‘गोल्डन क्रीसेन्ट’ मध्य, दक्षिण और पश्चिम एशिया के बीच स्थित क्षेत्र है, जो तीन देशों यथा अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान में विस्तृत है। जबकि ‘गोल्डन ट्राईएंगल’ एक ऐसा क्षेत्र है, जहां थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं रुआक एवं मेकांग नदियों के संगम पर मिलती हैं। इन क्षेत्रों की उपस्थिति के फलस्वरूप मादक द्रव्य (ड्रग्स) का बढ़ता निरन्तर व्यापार भारत की आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती बनकर उभरा है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार पर नकेल करने के लिए विश्वव्यापी प्रयासों के बावजूद दुनिया भर में वितरित कुल उत्पादों में से केवल 23.5 प्रतिशत ही जब्त किये जाते हैं। जब्त किये गये अधिकांश उत्पाद, उनमें से लगभग 97 प्रतिशत मध्य पूर्ण में बने हैं। यद्यपि ‘गोल्डन क्रिसेन्ट’ में अफगानिस्तान अफीम और हेरोईन का प्रमुख उत्पादक है, किन्तु अधिकांश बरामदगी उसके पश्चिमी पड़ोसी देश ईरान में की जाती है। उत्तरी मार्ग के माध्यम से अफीम और हेरोईन की तस्करी ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान के रास्ते रूसी संघ में की जाती है।
दक्षिण मार्ग के माध्यम से हेरोईन अफगानिस्तान से पाकिस्तान और ईरान से समुद्री मार्ग के द्वारा दक्षिण एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया क्षेत्र तक जाती है। हिन्द महासागर क्षेत्र का विशाल विस्तार ड्रग तस्करों के लिए एक पसंदीदा मार्ग है। उल्लेखनीय है कि ईरान और पाकिस्तान दोनों ही देश मादक पदार्थों की आदत की महामारी का सामना कर रहे है और दोनों देशों ने इसे एक राष्ट्रीय आपदा भी घोषित किया हुआ है। किसी भी देश में ड्रग्स तस्करों की सक्रियता आन्तरिक सुरक्षा तंत्र के समक्ष कैसी गंभीर चुनौतियां खड़ी करती है, यह किसी से छिपा नहीं है। जरूरत इस बात की है कि हमें न केवल ड्रग्स तस्करी के देश व्यापी नेटवर्क को ध्वस्त करना होगा, बल्कि उस अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क पर भी जोरदार अंकुश लगाना होगा, जो भारत में मादक पदार्थ खपाने मे ंलगा हुआ है। इसकी अब अनदेखी नहीं की जा सकती कि विगत एक-डेढ़ वर्ष में सीमावर्ती  राज्यों और बन्दरगाहों के साथ महानगरों में बड़ी मात्रा में ड्रग्स की उस खेप को पकड़ा है, जो बाहरी देशों से लाई गयी थी। भारत ने ‘आपरेशन गरुण’ के तहत अपनी छापामार कार्यवाही करके अनेक तस्करों को गिरफ्तार किया।
नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अनुसार ड्रग्स रैकेट देश भर में फैला हुआ है और इसका एक सरगना नाइजीरिया भी है। भारत में नशीले पदार्थों की आवक किस तरह से बढ़ती जा रही है? यह एक गंभीर चिन्ता का विषय बन गया है। पहले तो जम्मू-कश्मीर और पंजाब में लगी पाकिस्तान की सीमा से ही नशीले पदार्थ आ रहे थे, लेकिन अब समुद्री और हवाई मार्ग के माध्यम से ड्रग्स की खेप आ रही है। इससे यही प्रतीत होता है कि अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग्स तस्करों ने भारत को अपना पसन्दीदा ठिकाना बना लिया है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इण्टर सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) नशीले पदार्थों की तस्करी में कई वाहकों को अपने एजेंट के रूप में भर्ती कर रही है। आई.एस.आई. उन्हें वित्तीय सहायता और सैन्य सहयोग देने के अलावा अपने ही देश में उनकी अपराधिक गतिविधियों के लिए कानूनी छूट प्रदान करती है। ड्रग्स तस्करी उनकी आय का एक बड़ा स्रोत बन चुका है। देश में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख करोड़ रुपये का ड्रग्स कारोबार किया जाता है।
आज स्थिति यह है कि देश के प्रत्येक राज्य, जिला, तहसील, कस्बा व गावं तक नशे का कारोबार किसी न किसी रूप में देखा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों में नशाखोरी अपनी मजबूत पैठ बना चुका है। यह नशा विभिन्न रूपों में जैसे- शराब, कैनिबस (भांग, गांजा, चरस व तम्बाकू) ओपिओइड ड्रग्स (हेरोईन, अफीम, बोडी/भुक्की व अन्य फार्मास्यूटिकल ड्रग्स) शेडेटिव, हिप्नोटिक, नशीली दवाओं को इन्जेक्शन द्वारा नसों में लगाना, उत्तेजक पदार्थ, नार्काेटिक/स्वायत्त निकोटिन में उपलब्ध कराये जाते हैं। पंजाब में अकेले नशे का काला कारोबार अरबों-खरबों रुपये का है। अनेक युवा नशीले पदार्थों के आदी हो जाने के कारण अपनी जिन्दगी तबाह कर चुके हैं। ड्रग्स का कारोबार तब से और अधिक बढ़ा है जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना अधिपत्य जमाया हुआ है।
एक कटु सच्चाई है कि देश के अनेक राज्यों में सतर्कता एवं निगरानी के बावजूद भी युवा पीढ़ी को बर्बाद करने वाला यह काला कारोबार खूब फल-फूल रहा है। यह जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक फैला हुआ है। असम के मुख्यमंत्री का कहना है कि मणिपुर व मिजोरम के रास्ते उनके राज्य में मादक पदार्थ लाये जाते हैं, चूंकि नशीले पदार्थों का व्यापार माफिया तत्वों द्वारा देश-विरोधी शक्तियों के साथ मिलकर किया जाता है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि सुरक्षा एजेंसियां व विशेष रूप से हमारी सीमा की सुरक्षा करने वाली एजेंसियों को और अधिक सजगता, संजीदगी व सहयोग से काम करने की आवश्कता है। मादक पदार्थों की तस्करी विद्रोही समूहों के लिए आय का एक अन्य प्रमुख स्रोत है और भारत के बाहर अपने सहयोगियों के साथ सहयोग का एक बड़ा साधन भी है। इस प्रकार ड्रग्स तस्करों के अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय नेटवर्क को तोड़ने के लिए व्यवस्थित व बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाये जाने की महती आवश्यकता है।
भारत में बढ़ते मादक पदार्थों के सेवन के प्रमुख कारण-
– हमारे देश की सीमा से सटे ‘गोल्डन क्रिसेण्ट’ व ‘गोल्डन ट्राइएंगल’ की उपस्थिति।
– सीमा पर तस्करी, अवैध प्रवासी एवं बड़ा कारोबार।
– पश्चिमीकरण का बढ़ता निरन्तर प्रभाव।
– परिवार की संरचना में आया बदलाव।
– आर्थिक तनाव में वृद्धि होना।
– बेरोजगारी की व्यापकता का बढ़ना।
– संस्कार व चरित्र रहित शिक्षा व नैतिक मूल्यों का पतन।
– अप्रभावी पुलिस व्यवस्था का होना।
– भय, भूख एवं भ्रष्टाचार का बढ़ता प्रभाव।
– बिना परिश्रम के पैसा कमाने की निम्न सोच होना।
– भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिनके निकट प्रमुख मादक पदार्थों का उत्पादन होना।
– मानवीय अज्ञानता या कमजोरी व सांस्कृतिक मूल्यों में बदलाव।
– तनाव, अवसाद, चिन्ता, संघर्ष व परेशानी से बचने के सरल रूप।
– मनोभाव की अभिव्यक्ति न कर पाना।
– दवा के रूप में प्रयोग बाद में दवा के गुलाम बन जाना।
– न्यूरोटिंक सुखानुभूति का होना।
ड्रग्स तस्करों ने इस समय देश भर में अपनी गहरी जड़े जमा ली हैं। अब जरूरत इस बात की है, मादक पदार्थ तस्करों पर नकेल डालने के हर प्रयास जरूरी हो गये हैं, जैसा कि आतंकी संगठन पीएफआई की कमर तोड़ी जा चुकी है। अतः नशे का काला कारोबार करने वालों के विरुद्ध देश को बड़ी गंभीरता के साथ कदम उठाने होंगे। चूंकि मादक पदार्थों की बढ़ती खपत न केवल युवाओं को गुमराह करके नशे की लत डाल रही है, बल्कि उनका जीवन बर्बाद करके अपराध तन्त्र को फलने-फूलने का अवसर भी प्रदान कर रही है। वर्तमान दौर में नशा-तस्करों ने अपना सहयोगी आतंकवादियों एवं गैंगस्टरों को बना लिया है। अपराध तन्त्र के इस दौर में आतंकवादी संगठनों को ड्रग्स तस्करों की सहायता के साथ ही उनकी सहानुभूति, समर्थन, शक्ति व सक्रियता का सहारा मिल गया है। यह गठजोड़ राष्ट्रीय सुरक्षा व शांति के लिए एक बड़ी चुनौती बन गयी है। आन्तरिक सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से खतरा बने तत्वों के विरुद्ध जीरो टालरेन्स की नीति अपनानी होगी, ताकि उनके दुःसाहस का दमन किया जा सके।
वर्तमान दौर में ड्रग्स का चलन बहुत बढ़ता जा रहा है, यह चिन्ता का विषय इसलिए भी है, क्योंकि एक तो यह लोगों की सेहत खराब करता है और दूसरी बात उसकी बिक्री से मिलने वाली धनराशि आतंकवादी, अपराधी एवं उग्रवादी संगठनों के खाते में जाती है। भारत में ऐसे अनेक संगठन एक बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं।
मादक पदार्थ तस्करों द्वारा प्रत्येक प्रकार का नशा सम्बन्धित लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया जाता है। इसके साथ ही महंगा नशा अमीर लोगों के लिए तथा सस्ता नशा गरीबों तक पहुंचाया जाता है। समाज का एक बड़ा वर्ग इसी कारण नशे का शिकार बन चुका है। इससे न केवल एक व्यक्ति, परिवार बल्कि समाज एवं देश टूटने या बर्बाद होने को मजबूर हो जाता है। समस्या यह है कि मादक पदार्थ तस्करों द्वारा पुलिस, प्रशासन एवं राजनीतिज्ञों के बीच मिली भगत का भी संकेत मिलता है, जो बेहद निन्दनीय एवं चिन्तनीय है।
मादक पदार्थों के उपयोग से सम्बन्धित नशीली दवाओं से सम्बन्धित प्रावधान हेतु नारकोटिक्स ड्रग्स एण्ड साइकोट्रोपिक सब्सटेन्स (एन.डी.पी.एस.) संशोधन विधेयक, 2021 लोक सभा में प्रस्तुत किया गया। इसमें एऩ.डी.पी.एस. एक्ट 1985 में संशोधन किया जायेगा, जिसके तहत प्रावधान यह हैं-
– यह अधिनियम मादक औषधि और मनोदैहिक पदार्थों से सम्बन्धित निर्माण, परिवहन और खपत जैसे कार्यों को नियन्त्रित करता है।
– इस अधिनियम के तहत कुछ अवैध गतिविधियों का वित्तपोषण जैसे कि भांग की खेती, मादक औषधि का निर्माण या उनसे जुड़े व्यक्तियों को शरण देना एक प्रकार का अपराध है।
– इस अपराध के दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों को 10 से 20 वर्ष का कठोर कारावास और कम से कम 1 लाख रुपये के जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
– यह नशीले पदार्थों और मनोदैहिक पदार्थों के अवैध व्यापार से अर्जित या उपयोग की गयी सम्पत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान करता है।
– यह कुछ मामलों में मृत्यु दण्ड का भी प्रावधान करता है, जब वही एक व्यक्ति बार-बार अपराधी पाया जाता है।
– इस अधिनियम के तहत वर्ष 1986 में नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एन.सी.बी.) का भी गठन किया गया।
– नार्काे समन्वय केन्द्र (एन.सी.ओ.आर.डी.) का गठन 2016 में किया गया और नार्काेटिक्स नियंत्रण के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
– नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो को एक नया साफ्टवेयर यानी जब्ती सूचना प्रबन्धन प्रणाली (एस.आई.एम.एस.) विकसित किया गया जो नशीली दवाओं के अपराध और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगा।
मादक द्रव्य का प्रभाव-
– घरेलू हिंसा, कलह, संकट, डाक्टर की समस्यायें और मृत्यु का उच्च जोखिम।
– अर्थ व्यवस्था पर पड़ता प्रतिकूल प्रभाव।
– कमाण्ड, कन्ट्रोल व कम्युनिकेशन में कमी आना।
– स्वास्थ्य, सुरक्षा, शान्ति एवं विकास हेतु अवरोध।
– अनुपस्थित, कम उत्पादकता और कमजोर विवेक।
– व्यक्तिगत दुख, पारिवारिक परेशानी व कलह, दुर्घटनायें घटित होना।
– आत्म सम्मान की कमी, निराशा व हताशा में वृद्धि।
– चोरी, अपहरण, रिश्वत तथा आत्महत्या का बढ़ना।
– इसके फलस्वरूप हेपटाइटिस बी तथा सी व तपेदिक जैसे रोगों की वृद्धि।
– कार्यकुशलता व उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव।
– मूल्यवान विचारों की बेहद हानि होती है।
– सांस्कृतिक परिवेश के पतन का एक प्रमुख कारण।
– भावनात्मक एवं सामाजिक समस्याओं में वृद्धि करता है।
भारत मे ंमादक पदार्थ के उपयोग से सम्बन्धित वर्ष 2019 में जारी की गयी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की रिपोर्ट-
– अल्कोहल, भारत में नशे हेतु सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला मादक पदार्थ है।
– वर्ष 2018 में आयोजित सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 5 करोड़ भारतीयों द्वारा भांग व अफीम का उपयोग किया गया।
– एक अनुमान के अनुसार लगभग 8.5 लाख लोग ड्रग्स इन्जेक्शन प्रयोग करते हैं।
– नशे के कुल अनुपातिक मामलों में आधे से अधिक पंजाब, असम, दिल्ली, हरियाणा, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम और उत्तर प्रदेश राज्यों से है।
– लगभग 60 लाख लोगों को अफीम के सेवन की समस्या से मुक्त होने की आवश्यकता है।
– बच्चों में सर्वाधिक शराब के सेवन का प्रतिशत पंजाब में पाया गया तथा इसके बाद क्रमशः पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश का स्थान है।
मादक पदार्थों के खतरे पर नियंत्रण हेतु प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियां व सम्मेलन-
-नारकोटिक्स ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) कन्वेंशन (1961)
-साइकोट्रॉपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)
-नारकोटिक ड्रग्स और साइकोन्टॉपिक पदार्थों के अवैध यातायात के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)।
-ट्रान्सनेशनल क्राइम (यू.एन.टी.ओ.सी.) 2000 के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन।
विगत लगभग एक वर्ष में नारकोटिक्स विभाग व विभिन्न राज्यों की पुलिस ने एक बड़ी मात्रा में हेरोईन, कोकेन और अन्य नशीले पदार्थों की खेप पकड़ी गयी। गुजरात के मुंद्रा बन्दरगाह में हाल ही में आतंकवाद विरोधी दस्ता (ए.टी.एस.) तथा तटरक्षक (इण्डियन कोस्ट गार्ड) ने अपनी समुद्री कार्यवाही में पाकिस्तान की एक नाव से 350 करोड़ की ड्रग्स और 6 तस्करों को गिरफ्त में लिया गया। उक्त इस घटना से पूर्व आतंक निरोधी दस्ता व तटरक्षक बल का यह छठा संयुक्त अभियान था। जिसमें बड़ी मात्रा में 14 सितम्बर 2022 को लगभग 200 करोड़ रुपये मूल्य की 40 किलोग्राम हेरोईन पाकिस्तानी नाव से ही पकड़ी गयी थी। इसी प्रकार से मुम्बई के एक गोदाम से 50 किलो मेफेड्रोन (मादक पदार्थ) को जब्त किया गया। जिसकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत 120 करोड़ आंकी गयी।
यद्यपि नारकोटिक्स विभाग व हमारी अन्य सुरक्षा एजेंसियां अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही है। इसके बावजूद नारकोटिक्स का व्यापार भारत में अभी भी पल्लवित, पुष्पित व फलित हो रहा है। अतः इस समस्या को गंभीरता से लिया जाना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह देश की आन्तरिक सुक्षा के लिए एक बड़ी व कड़ी चुनौती बनता जा रहा है। सबसे गंभीर चिन्तन का विषय यह है कि हमारी युवा पीढ़ी जो भारत का भविष्य है, वह इसके चक्रव्यूह में घिरती जा रही है। आवश्यकता इस बात की है कि फ्रण्ट पर बड़ी संजीदगी, सतर्कता, संयम एवं शक्ति से कार्य करने पर विशेष बल देना होगा। अब न केवल ड्रग्स तस्करों के देशव्यापी नेटवर्क को ध्वस्त करना होगा, बल्कि उस अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क पर भी लगाम लगानी होगी, जो भारत में मादक पदार्थ खपाने में लगा हुआ है।
  – डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र

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