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हिम हाई सिद्धि संस्कृति  (हिम सी सात्विक संस्कृति)

हिम हाई सिद्धि संस्कृति (हिम सी सात्विक संस्कृति)

by डॉ. सुशील कुमार कोटनाला
in विशेष, संस्कृति, सामाजिक, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
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प्रलय के उपरांत जिस स्थान पर स्वयं भगवान ने मनु को भेजा हो, वहां की संस्कृति की प्राचीनता की क्या उपमा दी जाए? शुद्धता जहां के वातावरण और लोगों की पहचान हो वहां की संस्कृति को क्या कहा जाए? हिमाचल जो गया वहां के प्रेम में न डूबा यह तो हो ही नहीं सकता। सादगी और शुद्धता ही जहां की सुंदरता हो वहां की संस्कृति को क्या कहा जाए?

हिमाचल प्रदेश जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह हिमालय की गोद में बसा हुआ प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त एक सुन्दर हिमालयी प्रदेश है। उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित यह राज्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिमाचल में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पूर्व का है। अंग्रेज और गोरखा युद्ध के पश्चात यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अधीन आ गया। सन 1857 ई. तक यह महाराजा रणजीतसिंह के शासन के अन्तर्गत (पंजाब के पर्वतीय सीण प्रान्त छोड़कर) पंजाब राज्य का भाग था। सन 1956 में इसे केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया। सन 1971 ई. में हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम -1971 के अन्तर्गत इसे 25 जनवरी 1971 को भारत का अठारहवां राज्य बनाया गया।

प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न यह प्रान्त अनेक सदानीरा नदियों के कारण जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से अपनी आय का बड़ा भाग अर्जित करता है। उच्च कोटी की गुणवत्ता वाले सुर्ख लाल सेबों के उद्यान इस राज्य की ओर पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते है, सब्जी उत्पादन भी यहां के लोगों का प्रमुख व्यवसाय है। होम स्टे (घरेलू विश्राम गृह) तथा रोमांचपूर्ण पर्यटन के लिए यह प्रदेश विश्वविख्यात है।

अनेक दुर्लभ प्रकार जड़ी-बूटियों तथा आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन में भी यह देश का अग्रणी राज्य बन रहा है। भ्रष्टाचार यहां न के बराबर है और केरल के पश्चात यह सबसे कम भ्रष्ट राज्यों में भारत का दूसरा राज्य है। इस प्रदेश में 95% हिन्दूधर्म के अनुयायी निवास करते हैं।

हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का इतिहास है। अनेक पुरातात्विक उत्खननों ने इस बात की पुष्टि की है। यह सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का आदि प्रदेश होने के साथ -साथ प्राचीन वैदिक सभ्यता का उद्गम प्रदेश भी है। आर्यों के अनेक समूहों ने यहां अपने -अपने राज्य स्थापित किए है। आर्यों के साथ-साथ दास, दस्यु और निषाद जातियों का भी यह निवासस्थान है। उन्नीसवी शताब्दि में महाराजा रणजीत सिंह ने इस प्रदेश के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया था, यही कारण है कि इस प्रदेश पर पंजाब का व्यापक प्रभाव रहा है। कालान्तर में अग्रेजों ने भी गोरखों को पराजित कर अनेक छोटे-छोटे राज्यों को अपने साम्राज्य में विलीन कर दिया।

हिमाचल प्रदेश हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणी का भाग है। हिमालय की तीनों प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं बहुत हिमालय, लघु हिमालय तथा शिवालिक श्रेणी इस हिमालयी राज्य में स्थित हैं। विशेष रुप से लघु हिमालय की पर्वतीय उपत्यकाएं और अधित्यकाएं पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। ऋग्वेद में वर्णित अकिरी (चिनाब), पुरुएणी (रावी), अरिजिकिया (व्यास) शतदुई (सतलुज) और कालिंदी (यमुना) मे पांच प्रमुख नदियां हिमाचल प्रदेश को स्पर्श करते हुए आज भी बह रही है। इनके प्रवाह में यहां के तटों पर रहने वाले मानवों का इतिहास तथा संस्कृति का वैदिक एवं पौराणिक गान विद्यामान है।

प्रकृति ने हिमाचल को चार प्रमुख ऋतुएं प्रदान की है:- 1) ग्रीष्म, 2) शरद 3) वर्षा तथा 4) शीत। मैदानी क्षेत्रों में ग्रीष्म तथा वर्षा का प्रभाव अधिक है जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा तथा शीत का प्रभाव अधिक रहता है। अनेक उष्णजल के प्राकृतिक स्रोत भी हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हिमाच्छदित धवल पर्वत शिखर, कल -कल-हल-हल कर बहती हुई दूधिया नदियां, स्वच्छ निर्मल निर्झर तथा देवदारु के सघन वन, बांज-बुरांश के चौडीपत्तीदार वृक्षों के वनों ने हिमाचल को स्विटजरलैंड से अधिक सुंदर बनाने में कोई कमी नही रखी है। भाषायी विविधता में भी कांगडी, चमियाली, सिरमौरी, पहाड़ी पंजाबी और भंडियाली को हिन्दी तथा संस्कृत भाषाएं आपस जीने की भूमिका निभाती है। हिन्दू, बौद्ध और सिख यहां के प्रमुख धर्म हैं। शरणागत दलाईलामा की निर्वासित सरकार यहीं धर्मशाला में विराजमान है।

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति भारत की संस्कृति का दर्पण है। अनेक प्रकार की बोलियां, पहनावा तथा विश्वास के पश्चात भी समरस समाज का अद्भुत उदाहरण है। हिमाचल प्रदेश कुल्लु-मनाली की हिमाचली टोपी विश्व प्रसिद्ध है और यह हिमाचल की पहचान है।

हिमाचल प्रदेश का मुख्य भोजन थाय है। थाय स्वादिष्ट व्यंजनों से भरी एक थाली है, इसमें दाल, चावल, राजमा, दही आदि सम्मिलित रहता है। गुड़ इस भोजन की शोभा बढ़ाता है। पीले कद्दू के साथ गुड़ के मिश्रण से तैयार सब्जी का भी प्रयोग किया जाता है। पर्व आदि विशेष अवसरों पर इसके बिना भोजन अपूर्ण माना जाता है। मनाली और चम्बा में इसका प्रचलन अधिक है। धाम के अतिरिक्त तुड़किया भात, माद्रा, सिद्धू, भेय, बबरू (मिष्ठान्न), खट्टा तथा तिब्बती व्यंजन आदि हिमाचल के प्रमुख पकवान हैं।

हिमाचल के मध्यभाग तथा कुल्लु आदि क्षेत्रों के पुरुष ‘दोहडू’ और स्त्रियां ‘ढियाठू’ पहनती है। ‘दोहडू’ विशेेष प्रकार के भेड़ से निर्मित ऊन द्वारा बनी हुई एक चादर है, जो कमर के नीचे बांधी जाती है। ‘ढिमाठ’ एक सुन्दर सूती वस्त्र होता है, जो स्त्रियों द्वारा माथे पर बांधा जाता है।

हिमाचल के लोग सीधे-सरल होते है और छल-कपट से कोसों दूर रहते हैं। अधिकांश हिमाचली शाकाहारी हैं। यहां फल तथा सूखे मेवों का सेवन अधिक मात्रा में किया जाता है। कहीं उच्च हिमालय की हिमाच्छदित पर्वतीय श्रृंखलाएं, कहीं मध्य अथवा उपहिमालय की सुन्दर उपत्यकाएं तथा अदित्यकाएं तो वहीं शिवालिक की छोटी-छोटी हरी-भरी पहाड़ियां और कहीं सविस्तृत मैदानी क्षेत्र हिमाचल की भौगोलिक विविधताओं ने ही हिमाचल को विविध बोली भाषाएं, विविध ढंग के खानपान तथा पहनावे प्रदान किए है।

हिमाचल अपने सुहावने मौसम और दर्शनीय स्थलों के कारण भारत के ‘स्वास्थ्य राजधानी’ बनने की क्षमता रखता है। भारतीय तथा विदेशी पर्यटकों की मांग को देखते हुए हिमाचल में बड़ी संख्या में आयुर्वेद केन्द्र (पंचकर्म केन्द्र) और स्पा खुल रहे है। मनाली में योग और आयुर्वेद पर्यटन की अवधारणा (थीम) पर बड़ी संख्या में होटल उभर रहे है।

भारत में योग और आयुर्वेद यात्राओं का आयोजन करने वाली मुंबई की एक कंपनी के अतुल मोहिले ने कहा कि यह पहली बार है कि वह मनाली में आयुर्वेद और योग यात्रा लेकर आए हैं इस सुन्दर प्राकृतिक स्थान का चयनकर वह प्रसन्न हैं।

हिमाचल में अनेक हिंदू, बौद्ध तथा सिख तीर्थस्थल हैं। कांगड़ा नगर के बाहर स्थित माता ब्रिजेश्वरी का मन्दिर अपनी अकूत धनसम्पदा के कारण मुस्लिम आक्रमणकारियों की क्रूरता का साक्षी बनता रहा है। आक्रमण और भूकम्प से बस्त यह मन्दिर नित नवीन निर्माणों के कारण सन 1920 से अविरल श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है। नवी शताब्दी में निर्मित बैजनाथ मन्दिर भी पालमपुर के निकट श्रद्धालुओं की आस्था के रुप में वर्तमान है। कांगड़ा से ही 30 किमी की दूरी पर ज्वालामुखी मन्दिर अवस्थित है। मन्दिर के गर्भगृह के मध्य में एक कुण्ड है जहां नौ ज्वालाएं प्रज्वलित हो रही है। इन्हीं ज्योतियों की माता के रुप में पूजा का विधान है।

मनाली नगर का नामकरण मनु के नाम पर हुआ है। मनाली शब्द का अर्थ है ‘मनु का निवास स्थान’। पौराणिक आख्यान के अनुसार जल प्रलय से संसार के विनाश के पश्चात मानवता के सृजन हेतु महात्मा मनु विशाल नाव से इसी स्थान पर उतरे थे। जयशंकर प्रसाद का महाकाव्य कामायनी मनु द्वारा सृष्टि सृजन का सुन्दर वृतान्त प्रस्तुत करती है। मनाली में आज भी महर्षि मनु का प्रचीन मंन्दिर विद्यमान है। मनाली को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। मनाली को सप्तर्षि का घर भी बताया गया है। हिमाचल के सुप्रसिद्ध सेबों के उद्यान भी मनाली में अपनी सेब से भारी लकदक डालियों के लिए विख्यात है। यहां बेर और नाशपाती के साथ -साथ लालिमा लिए हुए सेब भी आय के सबसे बड़े माध्यम है।

मनाली अपने बौद्ध मठों के लिए भी जाना जाता है। अनेक तिब्बती शरणार्थी भी यहां देखे जा सकते है। मनाली आयुर्वेद के बड़े केंद्र के रुप में विकसित होता जा रहा है। योग तथा आयुर्वेद के द्वारा स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करने हतु हजारों पर्यटक मनाली पहुंचते है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी वो काव्य सृजन की प्रेरणा प्रदान करने में मनाली की प्रकृति का महत्वपूर्ण योगदान है।

मनाली में ही हिडिम्बा देवी का प्राचीन गुफा मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर भारतीय महाकाव्य महाभारत के भीम की पत्नी को समर्पित है। यह हिमाचल के सर्वाधिक लोकप्रिय मन्दिरों में से एक है। इसे डुंगरी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मन्दिर सघन देवदार के वन के मध्य स्थित है। यह मन्दिर चार मंजिला संरचना में पैगोडा शैली में बना हुआ है। हिमपात के समय इस मन्दिर को देखने वाले पर्यटकों तथा तीर्थाटकों की संख्या बढ़ जाती है।

इन विविध आंचलिक संस्कृतियों के समन्वय से हिमाचल की श्रेष्ठ संस्कृति का सृजन हुआ है जो भारतीय संस्कृति की महान संस्कृति का पोषण करती है।

 

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