कैलेंडर पर नजर पड़ते ही माधुरी चौंक गई। अरे! सिर्फ दस दिन बचे हैं दीपावली को, पता ही नहीं चला कि साल कैसे निकल गया। पिछले पांच सालों से कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है कि घर में कोई त्यौहार मना ही नहीं। पिछले साल माधुरी के ससुर नहीं रहे, उसके पिछले साल चचिया ससुर, उसके पहले सास। बस पांच सालों से ऐसा ही चल रहा है। पर अब इस साल तो दिवाली मना ही सकते हैं और त्यौहार के स्मरण मात्र से ही माधुरी ने अपने अंदर एक पुलक सी उत्पन्न होते महसूस की।
घोर व्यवसाई पति और इसी साल कॉलेज पहुंची बिटिया की व्यस्तता के चलते घर में एक तरह से चौबीसों घंटे एक सन्नाटा सा छाया रहता है। अब इतने बड़े त्यौहार के मनते घर में कुछ रौनक तो रहेगी। और बड़े महीनों बाद माधुरी को लगा कि उसने मन में अंदर से एक पुलक महसूस की है। कितने साल हो गए उसे दीपावली की मिठाइयां हाथ से तैयार किए हुए। उसे जाने कितनी तरह की मिठाइयां और नमकीन बनाने आते हैं।
बचपन से ही मां, चाची और दादी, बुआ लोगों के साथ वह भी सुबह सवेरे नहा धोकर रसोई घर में पहुंच जाया करती थी मिठाईयां बनवाने के लिए। तब रसोई में मानो छोटा मोटा मेला सा लग जाता था। खाना बनाने के समय में हायतौबा ना हो इसलिए दादी ने शुरू से ही घर में यह व्यवस्था रखी थी कि दीपावली की मिठाइयां एक-एक करके सुबह मुंह अंधेरे उठकर बना ली जाएं। तब वह और चाची की बेटी मिनी भी 5 बजे उठ कर नहा धोकर रसोई घर में पहुंच जाती थी। टीनू-मीनू तो तब छोटी थी, वह तो सालों बाद उनकी मंडली में आकर जुड़ी थी। पर कितना अच्छा लगता था हल्की गुलाबी ठंडक का अहसास और रसोई घर में गैस पर उबलती चाय और रिश्तो की उष्मा का सेंक तन-मन को उत्साह से भर देता था। और अनुभवी दादी की देखरेख में मिठाइयां बनने का सिलसिला शुरू हो जाता। बचपन की याद आते ही माधुरी के मुख पर अपने आप ही एक मुस्कान तैर गई। त्योहार के दस बारह दिन पहले से ही घर में उत्सवी माहौल शुरू हो जाता था। एक-एक जन के लिए कपड़े जेवर बनना प्रारंभ हो जाता। एक दिन सारे बच्चों के लिए दो-दो जोड़ा कपड़े सिलवाने डाले जाते, एक लक्ष्मी पूजन के लिए एक जोड़ा भाई दूज पर पहनने के लिए। और तब से लेकर आए हुए कपड़ों को देख देखकर बच्चे आतुरता से राह देखते रहते थे कि कब दीपावली आए और कब नए कपड़े पहनने को मिले।
आज माधुरी सोचती है इतना काम करने के बाद भी उसने मां और चाची को कभी थकते या माथे पर शिकन लाते नहीं देखा। कितना इच्छा, कितनी लगन थी दोनों में। संबंधों की प्रेम स्नेह पूर्ण ऊष्मा का सेंक ही शायद उन्हें हमेशा ऊर्जा से भरा पूरा रखता था और दादा-दादी के आशीर्वाद और शुभेच्छा की छाया भी निश्चित ही उन्हें तनाव मुक्त रखती थी।
यूं तो वर्ष भर ही परिवार एक दूसरे की छत्रछाया में रहता था लेकिन तीज त्योहारों पर तो कहने ही क्या। तीज त्यौहार तो एक घर के सदस्यों को ही नहीं वरन आस-पड़ोस मोहल्ले भर के लोगों तक को एक दूसरे के करीब ले आता था। बचपन की यादों को मन ही मन दोहराते हुए माधुरी ने तय कर लिया था कि वह क्या-क्या और कितना बनाएगी। जब से इस घर में आए हैं दिवाली मन ही नहीं पाई है। इस घर की ये पहली दिवाली है। पूरी कॉलोनी में तो संभव नहीं है लेकिन आसपास के छह सात घरों में तो वह मिठाईयां जरूर भिजवाएगी।
अमित के ऑफिस जाने के बाद और प्रिया के कॉलेज जाने के बाद माधुरी बाजार जाकर चुन चुन कर सारा सामान ले आई। अब माधुरी का बड़ा कोई रहा नहीं और व्यस्तता के चलते अमित से तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह उसके या प्रिया के लिए दीपावली पर पहनने को नए कपड़े और जेवर ले आएंगे। तो एक दिन माधुरी खुद ही बाजार जाकर अपने लिए साड़ी, अमित के लिए पूजा पर पहनने को कुर्ता पजामा और प्रिया के लिए लहंगा चुन्नी और एक सूट ले आई। इन दोनों को सरप्राइज देगी तो कितना खुश हो जाएंगे। प्रिया वैसे तो सारा समय जींस और कैपरी पहनती है, कम से कम त्यौहार में तो परंपरागत भारतीय कपड़े पहने।
मां और चाची तो वसु बारस से ही दरवाजे पर रंगोली बनाना शुरु कर देती थी। आंगन का एक खास कोना रंगोली बनाने के लिए तैयार किया जाता था। एक कोने में चीनू मीनू के लिए मिट्टी का छोटा सा किला बनाया जाता, उसे रंगा जाता, उसमें मिट्टी के सिपाही रखे जाते और मां छोटे-छोटे बर्तनों में छोटी-छोटी गुजिया और शकरपारे तीनों को खेलने को देती।
माधुरी ने अपने लॉन में लगी ऑस्ट्रेलियन घास को देखा। लॉन में कहीं भी तो जमीन का एक टुकड़ा नहीं था जिसको लेकर वह रंगोली बना सके। सच में जमीन तो बगिया में होती है, लॉन में मिट्टी का अपनापन कहां होता है। बाकी घर के चमचमाते मार्बल की चकाचौंध में रंगोली फीकी पड़ जाएगी। पिछली बार गृह प्रवेश के लिए दरवाजे के एक और रंग बिरंगी रंगोली बना दी थी तो सफेद मार्बल पर रंगों के धब्बे पड़ गए थे। अमित कितना चिल्लाए थे मार्बल की हालत देखकर। जब तक घिसाई करवा कर छूट नहीं गए तब तक अमित का मूड खराब रहा। ‘यह सब फालतू का पिछड़ापन यहां नहीं चलेगा’ अमित ने मुंह बनाकर कहा था।
तब से माधुरी की कभी हिम्मत ही नहीं हुई रंगोली बनाने की। बचपन में तो वह और मिनी रोज ही नई नई रंगोलियां बनाती थी। कोई रोक टोक नहीं थी। रंगोली की तरह तब जीवन में और त्योहारों में भी कितना रंग था।
बाजार से मिट्टी के तरह-तरह के डिजाइन वाले दीए लाकर माधुरी ने उन्हें पानी में भिगोया और सूखने रख दिया। दोपहर में वह कपास लेकर बतियां बनाने बैठी तो मन में एक हूक उठी कितना अकेलापन लग रहा है, पहले घरों में कितने सारे लोग थे। मिलजुल कर हंसते बातें करते कब काम खत्म हो जाता पता ही नहीं चलता था। अमित को तो शुरू से ही यह सब त्यौहार समय की बर्बादी लगते हैं। प्रिया जब तक छोटी थी तब उसे कौतूहल होता था। पर अब वह भी अपने दोस्तों सहेलियों में ही व्यस्त रहती हैं पूरे समय। त्यौहार के बहाने अमित और प्रिया को अपने घर और माधुरी के करीब आने का मौका मिलेगा यह सोच कर ही माधुरी को बड़ा अच्छा लगा।
अरे भाभी जी आप सवेरे-सवेरे यह सब क्या करने बैठ गई? हरी खाना बनाने आया तो माधुरी को सेव के लिए बेसन सानते देखकर आश्चर्य से बोला।
अरे पांच दिन रह गए हैं दीपावली को। आज से ही मिठाईयां और नमकीन बनाना शुरु कर दूंगी तब जाकर पांच दिनों में सब बन पाएगा। तू पहले खाने की तैयारी करके रख ले फिर दोनों मिलकर सेव और चूड़ा बना लेंगे। माधुरी उत्साह से बोली।
हरि भी जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगा। घर में बस हरि ही एक ऐसा व्यक्ति था जिससे माधुरी चार बातें कर लेती थी। हरि को भी रसोई घर के कामों का और खाना बनाने का बड़ा उत्साह था। जब तक हरि घर में रहता उससे बातें करने में माधुरी का वक्त गुजर जाता। खाने की तैयारी करके हरि ने बड़े उत्साह से माधुरी की मदद की। सेव चूड़ा बनाकर उसने डिब्बों में भरकर रख दिया। घर में माधुरी के अलावा बस हरि ही था जिसे त्यौहार का चाव था। वह माधुरी को बताता जा रहा था कि उनके गांव में दिवाली पर क्या-क्या करते हैं, कितने पटाखे उड़ाते हैं, कैसे नए कपड़े बनवाते हैं और भी न जाने क्या-क्या।
तीन दिनों में हरी और माधुरी ने कई चीजें बनाकर रख लीं। हरि छुट्टी लेकर गांव जा रहा था दीपावली मनाने। माधुरी ने उसे रुपये दिए और बनाई हुई सारी चीजें डब्बे में भरकर उसके बच्चों के लिए दीं। हरि को पहले तो बहुत संकोच हुआ फिर माधुरी के पांव छूकर गदगद होता हुआ खुशी-खुशी गांव चला गया।
बच्चे तो आप की हाथ की मिठाई पाकर इतना खुश हो जाएंगे ना भाभी की पूछिए मत। एक बार आपने मठरी दी थी ना तो आज तक उनका स्वाद याद है बच्चों को। चलते हुए हरि ने माधुरी से कहा तो उसे लगा कि जैसे भीगी हवा का शीतल झौंका उसे धीरे से सहला गया है।
गुजिया बनाने के लिए भरावन और आटा तैयार करके माधुरी ने बड़े उत्साह से प्रिया को उठाया मदद करवाने के लिए। सोचा मदद भी हो जाएगी और बिटिया के साथ घंटा दो घंटे बातें भी हो जाएंगी। वैसे तो प्रिया को आजकल दो मिनट भी बातें करने का समय नहीं मिलता है। आज कॉलेज की छुट्टी भी है इसी बहाने प्रिया कुछ सीख लेगी। प्रिया के रूम में जाकर माधुरी ने प्रिया को उठाकर गुजिया बनवाने के लिए कहा तो प्रिया बुरी तरह चिढ़ गई, ‘यह क्या मम्मा आज छुट्टी है, वैसे ही तो नेट पर प्रोजेक्ट के लिए मटेरियल ढूंढ कर रात में तीन बजे सोई थी और आपने सुबह सुबह उठा दिया। और आप भी क्यों बेवजह परेशानी मोल ले रही हैं। बाजार में एक से एक मिठाइयां मिलती है। यह गुजिया भुजिया कौन खाएगा? आपको बनाना है तो आप बनाओ और आप ही खाओ लेकिन प्लीज ऐसे स्टूपिड कामों के लिए मेरी नींद मत खराब करो।’ और प्रिया मुंह पर चादर तान कर सो गई।
प्रिया के व्यवहार और अपमान से आहत माधुरी चुपचाप रसोई घर में वापस आ गई और काम करने लगी। पुराने दिनों में परिवार के सदस्यों के बीच का अपनापन और त्योहारों की उमंग याद आ गए। आज तो हरि भी नहीं है। मन में एक कचोट उठी। अकेलेपन के एहसास से आंखें भीग गयी। प्रिया तो अभी बच्ची है उसकी बात का क्या बुरा मानना, थक गई होगी बेचारी पर देखना दिवाली वाले दिन स्वाद लेकर सारी चीजें खाएगी। माधुरी ने अपने आप को आश्वासन दिया और गुजिया बनाने लगी।
दीपावली वाले दिन माधुरी ने सुबह जल्दी उठकर बड़ी-बड़ी थालियों में सारी मिठाईयां सजाई, रुमाल से उन्हें ढंका और बड़े चाव से पड़ोस के घर में ले जाने लगी। बचपन में पूरे मोहल्ले में मिठाइयों के थाल पहुंचाने का काम माधुरी और मिनी का ही था। इतने उत्साह से दोनों सवेरे नहा धोकर नए कपड़े पहन कर मिठाइयों के थाल पहुंचाने जाती थी तब। मोहल्ले की चाची या दादी, नानी और बुआएं उन्हें प्यार से बिठाते, मिठाई खिलाती और उनके थालियों में उनकी मिठाईयां रखकर अपने यहां की मिठाईयां भर देते। मिठाइयों के आदान-प्रदान के बहाने से स्नेह और प्यार आशीर्वाद का आदान-प्रदान भी हो जाता। मुख्य तो यही बात थी कि त्योहारों के बहाने मोहल्ले भर के लोगों की आपस में स्नेह बंधन और मजबूत हो जाते।
परसों का प्रिया का व्यवहार देखकर उसे उठाकर थालियां देकर आने को कहने का माधुरी को साहस ही नहीं हुआ। सोचा वैसे तो कोई किसी के यहां आता जाता नहीं है, इसी बहाने 5-10 मिनट सबके यहां बैठकर सबके हालचाल जान लेगी। द्वार पर रंगोली बनाने की हिम्मत तो नहीं हुई तो उसने गेंदे गुलाब और शेवंती के फूलों से ही रंगोली बना दी थी। थाली लेकर वह अपनी रंगोली को बचाकर बाहर निकली और सबसे पहले सामने वाली मिसेज भटनागर के यहां गई। बहुत देर तक बेल बजाने के बाद वे आंखें मिलती हुई और ऊंघती हुई गाउन पहने ही बाहर आई अरे आप इतनी सुबह सुबह? मिसेज भटनागर ने दरवाजे पर ही खड़े-खड़े प्रश्न किया।
आज दिवाली है तो सोचा आपको विश कर दूं। माधुरी को बड़ा संकोच हो रहा था, उन्हें नींद से उठा देने के लिए लंबी वासी लेकर बोली।
उनकी हालत देखकर माधुरी का अंदर जाने का मन ही नहीं किया। दरवाजे पर ही थाली उनके हाथ में पकड़ा कर माधुरी ने पलटते ही दरवाजे के धड़ाम से बंद होने की आवाज सुनी। उनके बाद माधुरी मिसेज शर्मा के घर गई।
अरे आपने क्यों तकलीफ की सर्वेंट के हाथ भिजवा देती। मिसेज शर्मा ने अभिजात ठसके के साथ कहा और अपने शानदार सोफे पर बैठे-बैठे ही उन्होंने नौकर को आवाज देकर माधुरी की लाई थाली अंदर ले जाने को कहा। माधुरी को बहुत बुरा लगा कि उन्होंने थाली नौकर से लेने को कहा खुद नहीं ली। उनकी उपेक्षा माधुरी को अंदर तक आहत कर गई।
मैंने तो कल ही शहर की सबसे महंगी दुकान से सभी जान पहचान वालों के लिए मिठाइयों की टोकरियां पैक करवा कर मंगवा ली थी। यह हाथ से मिठाई बनाकर भेजना तो मिडल क्लास मेंटेलिटी लगती है। उन्होंने माधुरी पर कटाक्ष किया।
पैसा तो माधुरी के पास भी बहुत है, पर हाथ से बने पकवानों में जो मिठास होती है वह बाजार से लाई मिठाई में कहां। लेकिन बाउंड्री वॉल की ऊंचाई ने दिलों के बीच दीवार खड़ी कर दी हैं। उन पर लगे शीशों के टुकड़ों ने संबंधों को लहूलुहान कर दिया है। पैसों की गर्मी ने संबंधों की आत्मीयता को भाप बनाकर उड़ा डाला है। भावना और आत्मीयता से रिक्त लोगों से क्या उम्मीद की जाए।
माधुरी अपने घर को लौट आयी। मिसेज शर्मा का नौकर बाजार की महंगी मिठाई की टोकरी पहुंचाने आया। माधुरी का मन किया उनकी मिठाई उनके दरवाजे पर फेंक आने का पर अपने आप को ज़ब्त कर गई।
दो घरों के कटु अनुभव के बाद किसी और घर में जाने की माधुरी की हिम्मत ही नहीं हुई। आजकल के हाई सोसाइटी के लोग त्योहारों पर स्नेह और अपनेपन की जगह बस पैसे को ही महत्व देते हैं। दस बजे प्रिया उठी और अमित के पास जिद करने लगी कि उसे अपने फ्रेंड्स के लिए गिफ्ट और मिठाइयां खरीदनी है।
मैंने तो ढेर सारी मिठाइयां बनाई है बेटा, मैं तुम्हारे फ्रेंड्स के लिए पैक कर देती हूं। माधुरी ने प्रिया से कहा।
ओह मम्मी! आजकल यह सब कौन खाता है? सारे फ्रेंड्स मेरा मजाक उड़ाएंगे। मैं तो चॉकलेट के सेलिब्रेशन पैक गिफ्ट करूंगी। प्रिया ने मुंह बिचका कर कहा और अमित के साथ बाजार चली गई।
माधुरी का मन बहुत दुखी हो गया था। तब भी उसने सोचा कोई बात नहीं शाम को तो सब लोग मिलकर ही लक्ष्मी जी की पूजा करेंगे और दीपावली मनाएंगे। अमित प्रिया को उसकी सहेलियों के साथ शॉपिंग मॉल में छोड़ कर अपने काम से चला गया। दोपहर को उसने माधुरी को मोबाइल पर सूचना दे दी कि वह एक जरूरी मीटिंग में है और लंच उन लोगों के साथ ही लेगा और प्रिया भी अपनी फ्रेंड के साथ रेस्टोरेंट्स में लंच करेगी। माधुरी ने एक गहरी निश्वास ली। बहुत रोकने पर भी उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
शाम को प्रिया और अमित वापस आए तो माधुरी नई साड़ी पहन कर तैयार होकर बैठी थी।
‘हैप्पी दिवाली मॉम।’ प्रिया ने एक चमचमाता पैकेट माधुरी के हाथ में देते हुए कहा तो माधुरी का मन उत्साह से भर उठा। उसने बड़े प्यार से गिफ्ट खोला तो उसमें हीरे के टॉप झिलमिला रहे थे।
बहुत सुंदर हैं। माधुरी ने प्यार से प्रिया और अमित से कहा और टॉप्स पहन लिए। ‘यह देखो! मैं तुम दोनों के लिए क्या लाई हूं’ कहकर माधुरी ने अमित के हाथ में कुर्ता पजामा और प्रिया को लहंगा चुन्नी देते हुए कहा चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, पूजा का मुहूर्त होने वाला है।
‘फॉरेन से कुछ इंपॉर्टेंट गेस्ट आने वाले हैं उनके साथ डिनर लेना है। आई एम ऑलरेडी लेट और सॉरी यह कुर्ता पजामा मैं बाद में पहन लूंगा। अभी तो मुझे सूट पहनना पड़ेगा।’ कहते हुए अमित अपने रूम में तैयार होने जाने लगे।
‘लेकिन पूजन…?’ माधुरी ने पूछा।
‘सॉरी डार्लिंग पूजा पाठ करने के लिए तो सारी उम्र पड़ी है लेकिन ऐसा ऑफर रोज-रोज नहीं मिलता। यदि यह काम मिल गया तो तुम्हें वर्ल्ड टूर करवाने ले जाऊंगा।’ और अमित तेजी से कमरे में चला गया।
‘मुझे भी फ्रेंड्स के साथ पार्टी में जाना है। परसों से तो फिर पढ़ाई और कॉलेज की भाग दौड़ शुरू हो जाएगी। सो वी आर गोइंग टू एंजॉय टुडे। डिनर मैं बाहर ही करूंगी।’ प्रिया ने माधुरी को एक और धक्का दिया।
तुम तो यह पहन लो। माधुरी ने लहंगा प्रिया की और बढ़ाते हुए कहा।
‘ओह मॉम! मैं डिस्को थेक में जा रही हूं, किसी फ्रेंड के रिसेप्शन में नहीं।’ प्रिया ने लहंगा वहीं पटका और अपने रूम में चली गई।
थोड़ी ही देर में प्रिया और अमित चले गए। माधुरी ने समय आने पर बुझे मन से अकेले ही पूजा की और शगुन के पांच दीये लगाकर बाहर लॉन में आ गई। दरवाजे पर भी उसने एक दीया रख दिया और सीढ़ी पर ही बैठ गई। दीपावली पर आतिशबाजी और पटाखों की आवाज की जगह रॉक म्यूजिक की धमाकेदार आवाज आ रही थी। किसी के घर में शायद दिवाली का आधुनिक तरह से सेलिब्रेशन किया जा रहा था। पकवानों की सुगंध के स्थान पर हवा में विलायती रम और व्हिस्की की गंध आ रही थी।
हम लोगों से तो हरी ही भला है जो अपने परिवार के साथ आनंद और हर्ष उल्लास के साथ त्यौहार तो मना रहा होगा। अच्छा होता वह सारी मिठाईयां हरि को ही दे देती, कम से कम उसके बाल बच्चे और परिवार वाले खुशी से खा तो लेते माधुरी ने सोचा।
रात के बारह बज रहे थे। दूर स्थित कोई घर बिजली की लड़ियों की चकाचौंध रोशनी में जगमगा रहा था। इस त्यौहार का आनंद और अपनापन मानो बिजली की लड़ियों की चकाचौंध रोशनी में घबरा कर कहीं खो गया है।
दीये की लौ फड़फड़ाने लगी थी। दीये में तेल खत्म हो रहा था। इसी तरह से तो आजकल रिश्तो में भी ऊर्जा खत्म होती जा रही है तभी संबंध टूटे-टूटे से और त्यौहार बुझे-बुझे से हो गए हैं।
माधुरी के मन का अकेलापन और दुख और भी गहरा हो गया। आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी जिसे रोकने की उसने कोई कोशिश भी नहीं की। अंदर मिठाइयों से सजी थालियां टेबल पर सजी पड़ी थी। बुझते दीये की लौ के टिमटिम उजाले में माधुरी के कानों के टॉप्स में जड़े हीरे चमचमा रहे थे।
विनीता राहुरिकर