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प्रकृति और अध्यात्म के सम्मोहन का सिद्ध मंत्र उत्तराखंड

प्रकृति और अध्यात्म के सम्मोहन का सिद्ध मंत्र उत्तराखंड

by अमोल पेडणेकर
in अध्यात्म, देश-विदेश, पर्यावरण, मीडिया, राजनीति, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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भारत देश विविधताओं से भरा है। अपने देश में भाषा, धर्म, जातियों-उपजातियों तथा रहन-सहन की विभिन्नता के कारण भारत के सामाजिक रंग-रूप में भी विविधता दिखाई देती हैं। भारत कि यह वैविध्यपूर्ण लोक संस्कृति ही भारतीय जीवन शैली की परिचायक है। रीति-रिवाज, वेशभूषा, खानपान, लोक-कथाएं, लोक-देवता, मेले, त्योहार, मनोरंजन के साधन आदि सब उसमें शामिल हैं। इन सभी का प्रस्तुतिकरण हमारे लोक गीतों, लोक कथाओं और साहित्य के माध्यम से निरंतर होता रहता है। प्राचीन काल से भारत में यह संपन्नता दिखाई दे रही है।

भारत में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ केवल घोषवाक्य नहीं अपितु यह भारतीय संस्कृति का उद्घोष है। सारा संसार एक परिवार, एक कुटुंब हैं। इसे समझना ही भारतीयता को समझने जैसा है। भारत का यह विचार मनुष्य की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एकता के विस्तार का प्रतीक है। भारतीयता का सामाजिक जीवन कहीं ना कहीं यह भूमिका पुरातन काल से अब तक अवश्य निभाता आया है। इसी कारण अनेक आक्रमणों तथा विजयों-पराजयों के पश्चात भी भारतीय मूल्य अब तक सुरक्षित हैं।

हिंदी विवेक का मंतव्य यही है कि देश की इन्हीं विभिन्न लोक संस्कृतियों एवं राज्यों का परिचय अपने विशेषांकों के माध्यम से कराने की कोशिश की जाए, क्योंकि उसी से हमारे मन में एक दूसरे के प्रति अपनत्व की भावना जागृत होगी। प्रादेशिक लोक संस्कृति ही भारतीय संस्कृति को पुष्ट करती है, समृद्ध बनाती है। इसलिए हम गर्व से कहते हैं कि भारत उदाहरण है एकता में अनेकता का और अनेकता में एकता का।

हिंदी विवेक मासिक पत्रिका का इस वर्ष का दीपावली विशेषांक उत्तराखंड राज्य की संपन्नता, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मूल्यों को अपने पाठकों तक पहुंचाने हेतु समर्पित है। इस दीपावली विशेषांक में उत्तराखंड राज्य की संस्कृति, अस्मिता, लोक परंपरा, लोक संस्कृति वहां की समस्याएं एवं अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा प्रस्तुत की गई है। उत्तराखंड राज्य के विकास हेतु भारतीय स्वतंत्रता से लेकर उत्तराखंड के निर्माण तक और उत्तराखंड के निर्माण से लेकर अब तक जो प्रयास हुए हैं, उन प्रयासों पर सटीक मत मान्यवरों के आलेखों के रूप में सम्मिलित हैं। उत्तराखंड से जुड़े वैविध्यपूर्ण विषयों को अत्यंत रुचकर और बोधगम्य ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास ‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकास भूमि’ विशेषांक में किया गया है।

‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकास भूमि’ विशेषांक के लिए विद्वानों के आलेख आमंत्रित करते समय हमारा अनुरोध यही था कि उत्तराखंड राज्य की संस्कृति की झांकी आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करें ताकि उत्तराखंड को और अधिक जानने की हिंदी विवेक के पाठकों की उत्सुकता के साथ न्याय किया जा सके। किसी प्रदेश में गए बिना भी वहां की लोक संस्कृति का पूर्ण परिचय अन्य राज्यों के निवासियों को कराने का हिंदी विवेक मासिक पत्रिका का प्रयास है।

उत्तराखंड हमारे देश का वह सीमांत राज्य है। यहां परिश्रम और संघर्ष से जीवन के मूल्यों का जतन किया जाता है। प्रकृति जहां सम्मोहन के सिद्ध मंत्र का निरंतर अधिष्ठान करती दिखाई देती है। उत्तराखंड हमारे देश के लिए निसर्ग का वह वरदान है, जहां प्राकृतिक संपदाओं का भंडार है। तीर्थों के आकर्षण से लेकर जड़ी बूटियां, खनिज संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य यहां की धरोहर है।

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड नाम से भारतीय गणतंत्र का 27 वां राज्य बना। उस समय के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस राज्य का पुनर्गठन किया। हिमालय की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यहां देश के शेष हिस्सों से लंबे समय तक आवागमन अत्यंत कठिन रहा है किंतु आजादी के बाद इस क्षेत्र में विकास कार्यों का प्रारंभ हुआ और उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद सड़कों, पुलों, सुरंगों तथा जलाशयों के निर्माण में तेजी आई। इन विकास कार्यों का जनजीवन पर बहुत सकारात्मक असर तो हो रहा है लेकिन गत 7 दशकों में हुए इन परिवर्तनों के बावजूद भी इस प्रांत में बहुत समस्याएं हैं, जिन पर विशेष ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

पहाड़ों की खेती और मैदानी प्रदेशों की खेती में जो अंतर है, उस अंतर के कारण निर्माण होने वाली समस्या बहुत गहरी है। रोजी-रोटी के लिए वैकल्पिक जरिया ना होने के कारण राज्य से बहुत बड़ी मात्रा में पलायन हो रहा है। प्राकृतिक संसाधनों, खनिज भंडारों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। विकास और पर्यावरण दोनों में संतुलन ना होने के कारण पर्यावरण का विनाश हो रहा है। मानवीय जीवन पर उसका कठोर परिणाम हो रहा है। पहाड़ों को जर्जर होने से बचाया जाना भी आवश्यक है। पहाड़ों में परिश्रम से भरी जिंदगी और मैदानी शहरों में बढ़ रही अति विलासिता विरोधाभासी है। धर्मांतरण और देश विरोधी शक्तियों के गतिविधियां भी तेज गति से बढ़ रही हैं। अगर भविष्य में देश की विकास यात्रा में उत्तराखंड को सम्मिलित करना है तो वर्तमान में उत्तराखंड के सीमांत प्रदेशों की समस्याओं की सुध लेना अत्यंत आवश्यक है।

आज चीन के द्वारा भारत के सीमांत क्षेत्रों तक जो विस्तारकार्य किया जा रहा है, वह केवल तिब्बत की स्वतंत्रता से सम्बंधित नहीं है अपितुहिमालय क्षेत्र में अनेक राज्यों की सुरक्षा का भी है। गलवान के बाद चीनी विस्तार की समस्या उत्तराखंड राज्य की सीमाओं पर भी महसूस होने लगी है। इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और उसके लिए हमें उत्तराखंड राज्य को सामर्थ्य सम्पन्न बनाने कीदृष्टि से कार्य भी करना होगा।

लोक संस्कृति में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। बदलती परिस्थितियों में परंपरा, अस्मिता एवं आधुनिकरण का मेल स्वाभाविक रूप में होता रहता है। भारत के विभिन्न प्रदेशों की लोक संस्कृतियों की जब हम बात करते हैं, तो वह एक दूसरे से कुछ ना कुछ सीखते हैं, ग्रहण करते हैं। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा उत्तराखंड राज्य की संस्कृति की झलक दिखाने वाला यह विशेषांक प्रकाशित करना भारत की एक सांस्कृतिक खिड़की खोलने जैसा है। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका प्रकाशित इस विशेषांक के माध्यम से उत्तराखंड राज्य के संस्कृति और समस्या को दर्शाने का प्रयास किया गया है।

उत्तराखंडवासियों की लोक संस्कृति, अस्मिता, लोक रीति पर प्रकाश डालनेवाले आलेख विशेषांक में शामिल हैं। उत्तराखंड के मूलनिवासी अनेक राज्यों में फैले हुए हैं। उन्होंने मुंबई, पुणे, नासिक, दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे शहरों के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया है। उनके कार्य के तत्व और तंत्र का विवेचन करनेवाले आलेख भी इस विशेषांक में सम्मिलित हैं। हमें विश्वास है कि उत्तराखंड राज्य की विशालतम लोक संस्कृति को कम से कम शब्दों में प्रस्तुत करने का यह लघु प्रयास हमारे सुधि पाठकों को रुचिकर लगेगा।

राष्ट्रीय विचारों के प्रकाश से भारत भूमि के कोने-कोने को आलोकित करने का प्रयास हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के माध्यम से विगत 12 सालों से हो रहा है। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका राष्ट्रीय विचारधारा की प्रगति और प्रयासों की वैचारिक साक्षी तथा साथी बनी हुई है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एवं विदेश में भी हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के पाठकों की संख्या में विस्तार हो रहा है।

केवल उत्तराखंड राज्य की संस्कृति के सप्तरंगों को ही नहीं वरन उत्तराखंड के बहुरंगी स्वभाव को प्रकट करना इस ‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकासभूमि’ विशेषांक का मुख्य उद्देश्य है। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकासभूमि’ विशेषांक उत्तराखंड की लोक संस्कृति की विपुलता और विविधता की एक झांकी प्रस्तुत करने का प्रयास है।

विगत दो सालों से कोरोना संक्रमण और अफगानिस्तान में आतंकवादी सरकार बनने का भारत सहित सम्पूर्ण विश्व पर बहुत बड़ा असर हुआ है। कोरोना संक्रमण की दो विनाशकारी लहरों और विश्व की धड़कनें बढ़ाने वाली अफगानिस्तान में घटी घटनाओं से अनेक प्रश्न निर्माण हो गए हैं। उन प्रश्नों पर गहराई से चर्चा करने वाले आलेख दीपावली विशेषांक में प्रस्तुत किए गए हैं। कुल मिलाकर प्रदेश-देश और विदेश के संदर्भ में विस्तृत जानकारियां उपलब्ध कराने वाला यह दीपावली विशेषांक है। हमें विश्वास है कि हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के इस प्रयास को पाठक अपनत्व से स्वीकार करेंगे।

उत्तराखंड राज्य से जुड़े हुए विभिन्न दृष्टिकोणों को कलमबद्ध करने का एक प्रयास है हिंदी विवेक मासिक पत्रिका का ‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकास भूमि दीपावली विशेषांक।’ भारत की विविधता को अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत करने की हिंदी विवेक की अब तक भूमिका रही है। इसी श्रृंखला में यह दिपावली विशेषांक प्रस्तुत किया गया है। ‘उत्तराखंड: देवभूमि से विकास भूमि’ दीपावली विशेषांक को प्रकाशित करने में उत्तराखंड और महाराष्ट्र के गणमान्य लेखकों एवं विज्ञापनदाताओं का योगदान हमें मिला है। साथ ही विशेषांक की पूर्ति के लिए देहरादून के हिंदी विवेक के हितचिंतक अभिमन्यु कुमार, मुंबई के उर्बा जोशी, भारत विकास परिषद के कोकण प्रांत अध्यक्ष महेश शर्मा, राजेश्वर उनियाल और राजेश नेगी आदि मान्यवरों का अनमोल योगदान रहा है। आप सभी का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

 

 

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