आओ पहल करें

प्रदूषण नियंत्रण के लिए हमें किसी दिन विशेष पर आश्रित होने की बजाय सामाजिक स्तर पर बहुत तेजी से कार्य करना चाहिए, क्योंकि इस महामारी ने बहुत खतरनाक रूप धारण कर लिया है। यदि लोग अभी नहीं चेते तो बहुत तेजी से इसके दुष्परिणाम सामने आएंगे और मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

1984 का दिसम्बर भारत के लिए कहर बनकर आया था। 2-3 दिसम्बर की रात भोपाल शहर की यूनियन कार्बाइड कम्पनी की फैक्ट्री में एकाएक जहरीली गैस एलआईसी या मिक गैस का रिसाव शुरू हो गया। सुबह होते-होते लगभग 3 हजार लोग काल के गाल में समाहित हो चुके थे। आगे काफी दिनों तक उसका प्रभाव बना रहा। एक अनुमान के मुताबिक कुल मिलाकर लगभग 5 लाख से ज्यादा लोग उसकी चपेट में आए। इस दुर्घटना को इतने सालों बाद आज भी पूरी दुनिया में इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा के रूप में जाना जाता है। 1984 की उस गैस त्रासदी के दौरान प्राण गंवाने वाले लोगों की याद करने और प्रदूषण नियंत्रण कृत्यों के महत्व से हर व्यक्ति को अवगत कराने के लिए 2 दिसम्बर का दिन राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के रूप में चिन्हित किया गया। इस दिन का उद्देश्य प्रदूषण को रोकने में मदद करने वाले कानूनों के बारे में लोगों को जागरूक करना, औद्योगिक आपदाओं के प्रबंधन तथा नियंत्रण के प्रति जागरूकता फैलाना और औद्योगिक प्रक्रियाओं व मानवीय लापरवाही से पैदा प्रदूषण को रोकना है। देश के कई हिस्सों में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर जो विकराल स्थिति बरकरार है, ऐसे में इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

प्रदूषण आज न केवल भारत, बल्कि पूरी दनिया के लिए नासूर बनता जा रहा है, जिसकी वजह से बढ़ती बीमारियों के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ कई गुना बढ़ता जा रहा है। हवा में मौजूद प्रदूषण के कण न केवल दिल, दिमाग और फेफड़ों पर गम्भीर असर डालते हैं बल्कि कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों का भी कारण बन रहे हैं। विशेषज्ञों का मत है कि प्रदूषण से उम्र पर पड़ने वाला प्रभाव धूम्रपान और टीबी जैसी बीमारियों से भी ज्यादा है और अगर प्रदूषण को लेकर डब्ल्यूएचओ के मानकों का सख्ती से पालन किया जाए तो लोगों की उम्र में कई साल की बढ़ोतरी हो सकती है।

प्रदूषण किसी भी व्यक्ति के लिए ऐसी समस्या है, जिससे स्वयं को बचाने के लिए निजी स्तर पर कुछ विशेष नहीं कर सकते, बल्कि यह सामूहिक प्रयास है। आज पूरी धरती के लिए प्रदूषण एक विकट समस्या बन चुकी है। विकसित, विकासशील और अविकसित तीनों तरह के देश प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। अमेरिका, चीन भारत समेत कई देशों के बड़े-बड़े शहरों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई है। आलम यह है कि अब लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।

 प्रदूषण प्रकृति की देन नहीं है, बल्कि मानवीय क्रियाकलापों के कारण पूरी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया है। कल कारखानों की चिमनी से निकलने वाले धुएं, गाड़ी और मोटरों के धुएं, पटाखों का फोड़े जाना समेत अनगिनत कारणों से वायु में गैसों का रिसाव हो रहा है। ये जहरीली गैसें जितना प्रकृति को नुकसान पहुंचा रही हैं उससे कहीं ज्यादा इससे मानव समुदाय को खतरा हो गया है, जिसकी रोकथाम बेहद जरूरी है। वायु प्रदूषण भारत में अत्यंत विनाशकारी प्रभाव डालता है। विश्व के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 6 शहर भारत के हैं। 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से 17 लाख लोगों की मृत्यु हुई। डलबर्ग एडवाइजर्स, क्लीन एयर फंड और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सम्मिलित रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में लगभग 95 बिलियन अमरीकी डालर (7 लाख करोड़) की हानि होती है। यह राशि स्वास्थ्य बजट का 2 गुना है। उच्चतम न्यायलय ने स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को अनुच्छेद 21 में व्याख्यायित किया है।

प्रदूषण को सार्थक तरीके से अल्प करने के लिए भारत की केंद्रीय सरकार ऊर्जा के अन्य स्रोतों (अक्षय ऊर्जा स्रोत) के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। इस उद्देश्य से सरकार ने ‘पंचामृत सिद्धांत’ के तहत हाल ही में अपनी सकल ऊर्जा आवश्यकता का 50% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का वादा किया है। जिसके तहत भारत सरकार हाइड्रोजन नीति को बढ़ावा दे रही है। साथ ही, वाहनों द्वारा फैल रहे प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने बीएस-6 के नियमों को स्वीकारने का आदेश दिया है। सरकार द्वारा वाहन की आयु 15 वर्ष निर्धारित कर दी गई है, जिससे अधिक उम्र के प्रदूषित वाहन स्क्रैप किये जा सकें। सरकार द्वारा एयर प्यूरिफायर्स को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

नई पीढ़ी या युवाओं की जीवनशैली पर्यावरण प्रदूषण में अधिक योगदान दे रही है। तकनीकी कार्यान्वयन के कारण वे आलसी होते जा रहे हैं। अब वे बाइक और कारों का उपयोग करते हैं जो पर्यावरण के अनुकूल साइकिल के बजाय अधिक वायु प्रदूषण पैदा करती हैं। उनकी आराम की जरूरत विनिर्माण उद्योगों द्वारा पूरी की जाती है जो वायु और जल प्रदूषण का मुख्य कारण हैं। हालांकि, युवा अधिक से अधिक जागरूकता बढ़ाकर पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। स्वस्थ और पर्यावरण के अनुकूल आदत अपनाने से उन्हें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। पेड़ लगाना, साइकिल चलाना या आस-पास की दूरी के लिए पैदल चलना आदि एक बड़ी मदद होगी। पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव में भविष्य की कल्पना करना हृदय विदारक है। अगर पर्यावरण काफी हद तक प्रदूषित होगा तो हमें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन किट अपने साथ रखनी होगी। शुद्ध पानी पीने के लिए हमें एक-एक बूंद की कीमत चुकानी पड़ेगी। इसके अलावा, मनुष्यों का जीवनकाल कम हो जाएगा और वे कई खतरनाक बीमारियों के शिकार होंगे। पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाएगा और हमें जीने के लिए संघर्ष करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग और एसिड रेन का बढ़ता असर इस धरती पर हर जीवन को खत्म कर देगा।

वर्तमान में प्रदूषण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है क्योंकि यह हर आयु वर्ग के लोगों और जानवरों के लिए स्वास्थ्य का खतरा है। हाल के वर्षों में प्रदूषण की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ सीधे मिट्टी, हवा और पानी में मिश्रित हो रही हैं। हालांकि हमारे देश में इसे नियंत्रित करने के लिए पूरा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे गम्भीरता से निपटने की आवश्यकता है अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी बहुत ज्यादा भुगतेगी।  प्रदूषण की दर इंसान के अधिक पैसे कमाने के स्वार्थ और कुछ अनावश्यक इच्छाओं को पूरा करने की वजह से भी बढ़ रही है। आधुनिक युग में जहां तकनीकी उन्नति को अधिक प्राथमिकता दी जाती है वहां हर व्यक्ति जीवन का असली अनुशासन भूल गया है। लगातार और अनावश्यक वनों की कटौती, शहरीकरण, औद्योगीकरण के माध्यम से ज्यादा उत्पादन, प्रदूषण का बड़ा कारण बन गया है। इस तरह की गतिविधियों से उत्पन्न हुआ हानिकारक और विषैला कचरा, मिट्टी, हवा और पानी के लिए अपरिवर्तनीय परिवर्तन का कारण बनता है जोकि अंततः हमें दुःख की ओर अग्रसर करता है। इस बड़े सामाजिक मुद्दे को जड़ से खत्म करने और इससे निजात पाने के लिए सार्वजनिक स्तर पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता है।

                                                                                                                                                                                – आनंद प्रकाश मिश्र 

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