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यह प्रेम नहीं, लव जिहाद है

यह प्रेम नहीं, लव जिहाद है

by हिंदी विवेक
in दिसंबर २०२२, विशेष, सामाजिक
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श्रद्धा के साथ हुई बर्बर घटना ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया है। अब समय आ गया है कि पूरा हिंदू समाज लव जिहाद के विरुद्ध खड़ा हो ताकि किसी भी लड़की के इस प्रकार के झुकाव के शुरुआती दौर में ही लगाम लगाया जा सके। उससे भी पहले एकजुट होकर ऐसा सार्थक प्रयास किया जाए कि लड़कियों का झुकाव ही इस तरफ न हो सके।

प्रेम जितना छोटा शब्द है। वह उतना ही कठिन दौर से गुजरने के बाद मुकम्मल हो पाता है। एक स्त्री प्रेम करने के लिए क्या कुछ नहीं दांव पर लगा देती है! स्त्री अपने मन और देह को इतनी आसानी से हर किसी को छूने नहीं देती है। यह एक प्रक्रिया है। जिसके तहत एक स्त्री किसी को अपना मन सौंप देना चाहती है! फिर भले ही उसके लिए उसे सामाजिक शुचिता को लांघना पड़े। इस शुचिता को लांघने के दौरान कई बार ताने सुनने को मिलते हैं, अपनों से अलग होना पड़ता है, लेकिन अगर इन सभी बाधाओं से गुजरने के बाद भी स्त्री को प्रेम के बदले अपने तन के टुकड़े-टुकड़े करवाने पड़ें तो यह एक सभ्य समाज को स्तब्ध कर देने वाली घटना है। प्रेम अक्सर साथ जीने-मरने की आकांक्षा के साथ बढ़ता है। प्रेम और घृणा एक साथ नहीं रह सकते हैं। ऐसे में बीते दिनों जो घटना दिल्ली में उजागर हुई, वह एक सुनियोजित हिंसा और हत्या है, जो एक प्रेमी मन, कर ही नहीं सकता है!

श्रद्धा की मौत हमारे सभ्य समाज के सामने अनगिनत सवाल खड़े करती है और यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि आखिर हम किस दिशा में जा रहें हैं। प्रेम में होना या प्रेम करना गुनाह नहीं हो सकता है, लेकिन कोई आफताब पहले प्रेम करने का ढोंग करे! उसके बाद प्रेमिका के 35 टुकड़े कर दे। यह बर्बरता से भी बढ़कर है और इस बर्बरतापूर्ण कृत्य ने हमारी सामूहिक चेतना को झकझोरने का काम किया है। इतना ही नहीं यह घटना एक समाज के तौर पर हमारी नाकामी को भी दिखाती है और जवाबदेहियों से जुड़े सवाल भी खड़े करती है! बेशक, प्रेम करना एक निजी मामला हो सकता है, लेकिन क्या सब कुछ इतना यांत्रिक हो चुका है, जहां मानवीय मूल्यों और संवेदना के लिए कोई जगह लेशमात्र नहीं?

श्रद्धा के साथ जो आफताब ने किया। उसके कई पहलू हो सकते हैं। जिसमें से एक लव-जिहाद भी शामिल है, क्योंकि हमारे देश में लव जिहाद के बढ़ते मामले अब किसी से छिपे नहीं हैं। आये दिन किसी न किसी हिस्से से लव जिहाद की घटना मीडिया की सुर्खियां बनती है। कभी निकिता को एक तरफा प्यार में कोई मुस्लिम लड़का गोली मार देता है, तो कभी कोई शाहरुख अंकिता को जिंदा जला देता है। इतना ही नहीं कोई सूफियान, निधि को चौथी मंजिल से फेंक देता है। यह किसी एक समाज की विस्तारवादी और कलुषित मानसिकता हो सकती है, लेकिन हम और हमारे समाज के लोग इसपर चुप्पी मारकर हमेशा के लिए बैठे रहें और लड़की के साथ उसके माता-पिता के संस्कारों में ही कमी निकालें या फिर हम गंगा-जमुनी तहजीब के खेवनहार बने रहें तो यह दुःखद और आश्चर्य में डालने वाली बात है।

अब वक्त की नजाकत कह रही है कि हमें धर्म को अपनी सुविधा के अनुसार धारण करने वालों से सतर्क रहना है। फिर चाहे वो इधर के लोग हों या उधर के। वामपंथियों ने समाज को गहरी चोट दी है। तभी तो वे लोग लव जिहाद की सोची समझी साजिश के खिलाफ आजतक आवाज नहीं उठा पाए हैं। श्रद्धा ने अपने प्यार को पाने के लिए अपने परिवार को छोड़ दिया था। बदले में उसे क्या मिला? उसके अपने ही प्रेमी ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। 26 साल की श्रद्धा ने तो बेइंतहा प्यार किया था। अपने प्यार को पाने के लिए अपने परिवार को भी छोड़ दिया। मुंबई से दिल्ली आकर अपनी गृहस्थी बसाने के सपने संजोए थे, लेकिन आफताब ने क्या किया? उसकी सांसें ही उससे छीन ली! प्यार का यह अंजाम तो नहीं हो सकता है। ऐसे में सवाल कई हैं और वक्त के साथ इन सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे। पर एक सवाल फिर भी रह जाएगा कि हमारा समाज किस दिशा में बढ़ रहा है। आफताब और श्रद्धा जिस जगह पर रह रहे थे उन्हें कैसे पता नहीं चला? क्या समाज का इतना एकाकी होना सही है जहां आस पास रहने वालों की भी खबर ही न रहे! वो तो शुक्र हो श्रद्धा के पिता का जो उन्होंने अपनी बेटी को ढूढ़ने की पहल की। जिससे यह जघन्य अपराध दुनिया के सामने आ सका। पर आज भी न जाने कितनी हिंदू बेटियां मौत के घाट उतार दी जाती हैं। जिसपर कई बार समाज भी मौन रह जाता है क्योंकि हर कोई अपनी बारी के आने का इंतजार कर रहा है। ऐसे में सवाल यह भी है कि हम तो वसुधैव कुटुम्बकं की रीति में विश्वास करने वाले लोग हैं। फिर आधुनिक होता समाज इतना एकाकी और आभासी क्यों हो चला है!

भारतीय संविधान ने भले ही सबको अपने हिसाब से जीवन जीने की स्वतंत्रता दी है, लेकिन किसी को गुमराह करना तो न्यायोचित नहीं ना! लव जिहाद एक ऐसा ही कुचक्र है, जहां हिंदू धर्म की लड़कियों को गुमराह करके उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है। यहां तक कि हिंदू बनकर लड़कियों से दोस्ती करना, अपने प्यार के जाल में फंसाना और जब हिंदू लड़कियां न मानें या उनसे मन भर जाए तो उन्हें मौत के घाट उतार देना। कहीं न कहीं यही श्रद्धा के मामले में भी हुआ है। वरना जिस स्त्री(लड़की) ने अपनी देह किसी के हवाले कर दी हो। वह भी अपने घर वालों की मर्जी के विरुद्ध जाकर और अपना शहर छोड़कर लिव-इन में रहना मंजूर किया हो। उसे प्रेम में रहते हुए मौत के मुंह में तो नहीं धकेला जा सकता है। वह भी इतना निर्ममता के साथ! यह एक साजिश ही हो सकती है। जिसकी शिकार अक्सर हिंदू लड़कियां हो जाती हैं। आज के समाज का एक विद्रूप चेहरा यह भी है कि छोटी सी घटनाओं पर जो छाती पीटने लगता है, वह श्रद्धा के 35 टुकड़े हो जाने के बाद भी खमोश है। अभी तक कोई मोमबत्ती गैंग आवाज नहीं उठा रही और न ही कोई शाहीनबाग में बैठकर अनशन करने को तैयार है!

ऐसे में अब लव जिहाद की बढ़ती इन घटनाओं को देखते हुए उससे पीड़ित परिवारों को ही मुहिम छेड़नी होगी, क्योंकि हमारे देश मे सती प्रथा, बाल विवाह जैसे विषयों पर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग चीख-चीख कर अपनी राय रखता है। लेकिन जब बात लव जिहाद की आती है तो सेक्युलरिज्म का चोला ओढ़ कर बैठ जाता है। भारतीय समाज में स्त्री विमर्श के मुद्दे वामपंथी हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि आज भी 21 वीं सदी में महिलाएं अपने हक के लिए आवाज नहीं उठा पाती हैं। पुरुषों के पीछे खड़े होकर जीना मानो उनकी आदत सी बन गयी है। यही वजह है कि आज महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो केरल के सायरो-मलाबार चर्च ने पहली बार लव जिहाद के खिलाफ आवाज उठाई थी। इसमें कहा गया कि केरल सहित अन्य राज्यों में ईसाई युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर उन्हें इस्लामिक स्टेट में आतंकवादी संगठनों में भेजा जा रहा। द सायनाड ऑफ सायरो मालाबार चर्च के कार्डिनल जार्ज एलनचेरी की अध्यक्षता में भी यह बात कही गई थी कि राज्य सरकार लव जिहाद के मामलों पर कोई उचित कार्यवाही नहीं कर रही है। केरल में यह मुद्दा समय-समय पर ईसाई संगठनों द्वारा उठाया जाता रहा है। लेकिन वहां की वामपंथी सरकार ने इस दिशा में कभी कोई उचित कार्रवाई नहीं की और आज यह पूरे भारत में पैर पसार चुका है। विशेषकर इसकी आड़ में मुस्लिम समाज के युवक हिंदू लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं। ऐसे में जिस दौर में टीवी पर, स्कूल-कॉलेज में, खेलकूद में, अखबार पत्रिकाओं में, कोर्स की किताबों तक में सेक्युलरिज्म की महिमा गायी जा रही है और टेलीविजन हो या फिर ओटीटी प्लेटफॉर्म यहां तक कि इंस्टा, फेसबुक पर भी प्रेम का पाठ पढ़ाया जा रहा है फिर हिंदू समाज के परिजनों को ही अपनी लड़कियों को सभी धर्म का मर्म समझाना होगा और उन्हें सही गलत की सीख देने के साथ प्रेम के महत्व को भी समय से बताना होगा। उन्हें समझाना होगा कि किस तरह उन्हें फंसाने के लिए कोई सूफियान, आफताब और शाहरुख जाल बिछा सकता है। यहां किसी लड़की को गलत ठहराने की बजाए उन लड़कों का विरोध करना होगा, जिनके कारण भोली भाली लड़कियां अक्सर ऐसी शिकार बनाकर अपनी जान गंवा बैठती हैं। साथ ही लव-जिहाद जैसे मसले पर सरकार को भी सख्ती दिखाने की आवश्यकता है। तभी श्रद्धा जैसी लड़कियां प्रेम के जाल में फंसने से बच पाएंगी और उनका जीवन सुरक्षित हो पाएगा।

                                                                                                                                                                                         सोनम लववंशी 

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