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नृशंस हत्या के पीछे की संस्कृति

नृशंस हत्या के पीछे की संस्कृति

by आशीष अंशू
in दिसंबर २०२२, विशेष, सामाजिक
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पूर्वनियोजित योजना और समाज के सहयोग से हिंदू लड़कियों को बरगलाकर आबादी बढ़ाने की परम्परा मुस्लिम समाज की सहज प्रवृत्ति बन चुकी है। इसी कड़ी में एक पैंतरा जुड़ गया है, शादी की बात करने वाली लड़की की नृशंस हत्या कर देना। इस तरह के मामलों में चाहे लड़का हो या लड़की, शिकार हिंदू ही होता है।

लड़की का नाम मीडिया में श्रद्धा मदान लिखा जा रहा था। बाद में यह बात सामने आई कि मृतक का पूरा नाम श्रद्धा मदन वालकर है। वह अनुसूचित जनजाति से आती थी। भारत में एक वर्ग है जो दशकों से उन मामलों को लेकर मीडिया में अधिक संवेदनशील दिखने का प्रयत्न करता है, जिसमें किसी अनुसूचित जाति या जनजाति से जुड़ा व्यक्ति पीड़ित हो। इस तरह के मामलों का उल्लेख करके भारत में वह कन्वर्जन को सही ठहराता फिरता है। अगड़ी जाति और पिछड़ी जातियों के बीच सामान्य से टकराव को वह समूहशास्त्रीय साबित करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा देता है। महाराष्ट्र में महारों और मराठों के बीच की लड़ाई को उन्होंने इतिहास बनाने के चक्कर में ‘भीमा कोरेगांव’ जैसा काला अध्याय लिख दिया। मराठों के खिलाफ अनुसूचित जाति को अंग्रेजों ने पहले इस्तेमाल किया और इक्कीसवीं सदी में उन्हें अर्बन नक्सल इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन नैरेटिव की ताकत है कि वे अपने तमाम भ्रष्ट आचरण को क्रांति लिखते हैं और उसे भारतीय समाज में प्रगतिशील विचार के नाम से स्थापित करने में भी सफल हो जाते हैं।

इसी तर्ज पर श्रद्धा की नृशंस हत्या के बाद उसे सामान्य अपराध साबित करने के लिए एक बड़ा वर्ग सक्रिय हो गया। वह दुनिया भर से ऐसी-ऐसी घटनाएं तलाश कर ला रहा है, जो 20 साल, 25 साल, 50 साल पहले घटी हैं। दिल्ली में पुणे से अनुसूचित जनजाति की एक लड़की को मुंबई के एक मुस्लिम लड़के आफताब आमिन पूनावाला ने लाकर जिस तरह टुकड़ों में काटा है। जैसे वह हिंदू लड़की को नहीं, बकरीद पर बकरा हलाल कर रहा हो। अपने हाथों से किसी इंसान को इतनी बेरहमी से काटने के बाद कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? इसका जवाब तलाश पाना भारतीय परम्परा और संस्कृति में विश्वास रखने वाले किसी भी धर्म-समुदाय के व्यक्ति के लिए मुश्किल होगा।

एक टीवी चैनल पर पूर्व डीजीपी, झारखंड निर्मल कौर बता रही थी- बहुत तेजी से यह संस्कृति हमारे देश में बढ़ी है, जिसमें मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं। ऐसा करने के लिए विदेशों से बहुत बड़े-बड़े फंड आ रहे हैं। उनको मोटर साइकिल देंगे। बहुत अच्छे पैसे देंगे। पचास हजार से एक लाख रुपए महीना। लड़की यदि फंस जाती है और उसे भगाने में सफल हो गए और कहीं आपराधिक मुकदमा हो गया या पुलिस आ गई तो उन्हें (मुस्लिम संगठनों से) कानूनी सहायता भी मिल जाती है।

श्रीमती कौर आगे कहती हैं – इस तरह के कई मामले आ रहे हैं। सबकल्चर में वहां इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है, जहां आप औरत को बीयरर चेक से अधिक कुछ समझे नहीं। यदि आप ऐसे किसी सबकल्चर से आते हैं तो किसी लड़की की भावना का आपके लिए कोई मोल नहीं है। आपके लिए वह सिर्फ एक उपभोग की वस्तु है। आपने उसका उपभोग कर लिया, उसके बाद मन किया तो उसको मार डाला क्योंकि अब आपको वह पसंद नहीं आ रही थी। उसके साथ वह भाग कर आई तो उसे लगा कि अब यह मेरी हो गई। अब इसके आगे पीछे कोई है नहीं। अब जब उसने शादी की जिद की तो लड़के को बुरा लगा कि ऐसा क्यों? उसने उसकी हत्या कर दी और बड़ी योजना के साथ ठंडे दिमाग से हत्या की क्योंकि उसके सबकल्चर में इसकी अनुमति है।

श्रीमती कौर लड़के को साइकोपैथ कहे जाने वाले दावों को खारिज करते हुए बताती हैं- जितना फूटेज मैंने देखा है, मुझे नहीं लगता कि यह कोई साइको पैथ है। यह उस सबकल्चर से प्रभावित लगता है। जहां से ये हैं। लड़की भगाना, लड़की पटाना, एक सबकल्चर है- जो इन सबकी अनुमति देता है।

श्रीमती कौर की ही बात में यह जोड़ा जा सकता है कि जो सबकल्चर दूसरों की लड़की को भगाने या पटाने में अपने बेटे का पूरी तरह साथ देता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे उसका कुनबा बढ़ रहा है। वही सबकल्चर अपनी बेटी के किसी के साथ पटने में, या किसी के साथ भाग जाने में बिल्कुल साथ नहीं देता। दिल्ली के जहांगीरपुरी में कोचिंग टीचर अंकित कुमार की गोली मारकर हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था।

इसी तरह दिल्ली के रघुवीर नगर में 23 वर्षीय फोटोग्राफर अंकित सक्सेना की हत्या कर दी गई थी। अंकित पर उसकी मुस्लिम प्रेमिका के पिता, मां, मामा और नाबालिग भाई ने सरेआम चाकू से वार किया था। तीन सालों से अंकित और 20 वर्षीय मुस्लिम लड़की रिश्ते में थे। लड़की के परिवार को उनका यह रिश्ता मंजूर नहीं था जिसके चलते उन्होंने इस वारदात को अंजाम दिया।

मतलब साफ है कि जिस सबकल्चर की बात श्रीमती कौर कर रही हैं, वहां हिंदू लड़का हो या लड़की, मरना उसे ही है। लड़का हिंदू होगा तो लड़की के परिवार वाले मार देंगे और लड़की हिंदू हुई तो प्रेमी टुकड़ों में बांट देगा। समाज में धीरे-धीरे सबकल्चर के लिए ऐसी ही मान्यता बनती जा रही है।

जामिया मिलिया इस्लामिया के एक छात्र ने किस्सा सुनाया था। कॉलेज के दिनों में कॉलेज के ग्रुप में हिंदू मुस्लिम सभी लड़के थे। लव अफेयर वगैरह कॉलेज के दिनों में चलता ही है। कैन्टीन की गपशप में यह सारी बातें होती हैं। उसने कई ऐसी शादियों में मदद भी की, जहां मुस्लिम लड़का था और हिंदू लड़की थी। वह इस भेदभाव को नहीं मानता था क्योंकि वह खुद भी एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था। उसके साथ जामिया नगर के पास ही एक कॉलोनी में वह तीन महीने लिव इन में रह चुका था। दोनों ने जब शादी का मन बनाया तो उसने अपने जामिया के मुस्लिम सीनियर को कान्टेक्ट किया। उसे लगा था कि यह सब बहुत आसान होगा। उसके सभी मुस्लिम सीनियर प्रगतिशील सोच वाले हैं। पहले उसने भी तो मदद की है। हुआ भी ऐसा ही। उसके मुस्लिम सीनियर ने सारी बातें सुनी। उसे मदद का आश्वासन भी दिया। यदि लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तो फिर क्या आपत्ति?

उस मुलाकात वाले दिन ना जाने ऐसा क्या हुआ था कि उसकी लव पार्टनर जो एक मुस्लिम लड़की थी ने अगले दिन से उसका फोन उठाना बंद कर दिया। सामने दिखी तो उसने पूरी तरह लड़के को अनदेखा कर दिया। जिस लड़की के साथ वह लिव इन में रह चुका था। दोनों शादी को लेकर गम्भीर थे। उसने उस लड़के को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। इस बात को आज कई साल हो गए लेकिन उस लड़की ने आज तक नहीं बताया कि लड़के के साथ उसने ब्रेकअप क्यों किया?

पटना के एक व्यवसायी के साथ हुई घटना भी दिलचस्प है। आईआईटी की पढ़ाई के दौरान बिहार की ही एक मुस्लिम लड़की से उनकी अच्छी दोस्ती हुई। दोनों कई-कई दिनों तक कभी शिमला, कभी गैंगटोक घूमने के लिए गए। होटल के एक ही कमरे में रुके लेकिन जब शादी की बात आई तो लड़की इस बात पर अड़ गई कि लड़के को कन्वर्ट होना होगा। जबकि लड़के ने यह प्रस्ताव भी रखा कि तुम मुस्लिम रहकर मेरे साथ रह सकती हो। तुम्हारे नमाज के लिए कमरे में एक खास कोना बना देंगे। लड़के ने यह तक तय कर लिया था कि उन दोनों का जो बच्चा होगा, उसको 18 वर्ष धर्म और मजहब से दूर रखेंगे। बालिग होते ही वह खुद तय कर लेगा कि उसे क्या बनना है? लेकिन इन इमोशनल बातों पर उनकी प्रेमिका तैयार नहीं हुई। उसे अपना पति मुसलमान ही चाहिए था। उसकी शादी की सिर्फ एक शर्त थी कि लड़का कन्वर्ट हो जाए। लड़के ने कन्वर्ट होना स्वीकार नहीं किया।

हिंदू-मुस्लिम रिश्ते में पीड़ित लड़का भी हो सकता है, लड़की भी हो सकती है लेकिन इतना तय है कि अधिकांश मामलों में पीड़ित हिंदू ही होगा। अब देखिए ना, हिंदू लड़की के साथ दिल्ली जैसी ही वारदात बांग्लादेश में हुई है। वेबसाइट फर्स्ट पोस्ट के मुताबिक, अबू बकर नाम के एक आरोपी ने अपनी हिंदू प्रेमिका की बेरहमी से हत्या कर दी है। उसका सिर काट दिया। फिर उसके शरीर के टुकड़े किए और बॉडीपार्ट्स को नाले में बहा दिया। बांग्लादेश रैपिड एक्शन फोर्स ने फिलहाल अबू बकर को गिरफ्तार कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक मारी गई महिला का नाम कविता रानी है।

ऐसी कई घटनाएं हैं, जहां मुस्लिम आरोपी ने किसी गैर मुस्लिम महिला का बेरहमी से कत्ल कर दिया। कई मामलों में परिवार भी हत्या में शामिल पाया गया है। जिन मामलों का जिक्र यहां किया जा रहा है, ये मामले रिकॉर्ड पर दर्ज हैं लेकिन इससे कई गुना अधिक मामले ऐसे हैं जिसकी सनद तक नहीं ली गई।

बहरहाल समाज में इन विषयों पर जागृति बढ़ी है। अब समाज भी पूछ रहा है कि क्या कोई ऐसी घटना जानते हो जहां हिंदू लड़के ने अपनी लिव इन मुस्लिम महिला मित्र की इतनी बेरहमी से हत्या की हो! बताओ, जानते हो क्या?

 

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