एक भारतवंशी का किसी यूरोपीय देश, खासकर ब्रिटेन का प्रधान मंत्री बनना बड़े गर्व की बात है। भारतवंशियों की विशेषता है कि वे जहां भी गए वहां पर भारतीय मूल्यों के विस्तार के साथ ही साथ उस स्थान के विकास में अपना पूर्ण योगदान दिया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी का प्रयास है कि उन भारतीयों का मौलिक योगदान भारत की श्री में वृद्धि करे तथा भारत की प्रतिभा का पलायन रुके।
ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधान मंत्री पद ग्रहण करने की जितनी चर्चा भारत में हुई उतनी शायद ब्रिटेन में भी नहीं हुई होगी। एक भारतीय मूल का व्यक्ति और वह भी हिंदू ब्रिटेन का प्रधान मंत्री बने तो हमारे यहां उस पर व्यापक चर्चा होनी ही चाहिए। इसे देखने का दृष्टिकोण अलग हो सकता है किंतु यह कई दृष्टियों से विचारने और समझने का प्रश्न तो है ही। भारत के बड़े वर्ग के लिए यह भारतवंशियों के नए सिरे से उत्थान और गर्व का विषय है तो एक समूह के लिए इसमें भी कई प्रकार की नकारात्मकताएं निहित हैं। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम, शशि थरूर, महबूबा मुफ्ती आदि का वक्तव्य देखिए तो आपके उत्साह पर पानी पड़ जाएगा। इन नेताओं की अपनी मानसिक समस्या है। इससे बाहर जाना इनके लिए सम्भव नहीं है। ये इस दृष्टि से सोच नहीं सकते कि एक भारतवंशी ब्रिटेन में, जिसने हम पर लम्बे समय तक शासन किया वहां का प्रधान मंत्री बन रहा वह भी अपनी योग्यता और क्षमता की बदौलत तो इस घटना के निहितार्थ महत्वपूर्ण हैं। इसके मायने भारत भारतवंशियों और हिंदुओं के लिए क्या हैं इस पर विचार करने का दृष्टिकोण इनके अंदर पैदा ही नहीं हुआ। वास्तव में दृश्य अदृश्य बदलाव और उसके पीछे अंतर्निहित सोच और शक्तियों को समझने के लिए जो विजन चाहिए उसका अभाव हमारे यहां बड़े वर्ग के अंदर है। यह बात अलग है कि वे स्वयं को सबसे बड़ा विजनरी मानते हैं।
मुख्य बात यह है कि ऋषि सुनक जिस भारतीय संस्कृति के मूल से उत्पन्न हुए उनके संदर्भ में उनके व्यवहार कैसे हैं?
उन्होंने इस्कॉन मंदिर जाकर गौ की पूजा की और यह संदेश दे दिया कि अपने धर्म, संस्कृति, सभ्यता को लेकर वे कितने निष्ठावान हैं। शपथ ग्रहण करते समय ऋषि सुनक के हाथों में कलावा बांधा हुआ था। जैसा आप जानते हैं कलावा मंगल का, संकल्प का रक्षा का सूत्र माना जाता है।
ब्रिटेन के लिए पहला अवसर था जब कोई भारतवंशी अपने धर्म का पालन करते हुए ब्रिटिश सत्ता सम्भाल रहा है। ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधान मंत्री पद पर आसीन होने के साथ सम्पूर्ण विश्व के भारतवंशियों के अंदर आनंद की अनुभूति स्वाभाविक है। भारत और भारतीयता को गहराई से समझने वाले हमारे मनीषियों ने भारतीय संस्कृति, धर्म और अध्यात्म के आधार पर ही एक राष्ट्र के रूप में इसके शीर्ष पर पहुंचने तथा सम्पूर्ण विश्व के लिए रास्ता दिखाने योग्य बनने की कामना की थी। महात्मा गांधी से लेकर विवेकानंद, महर्षि अरविंद, विनायक दामोदर सावरकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ केशव बलिराम हेडगेवार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय आदि सभी महापुरुषों ने भारतीय राष्ट्र का आधार संस्कृति को ही माना है।
भारतीय संदर्भ में राष्ट्र राजनीतिक और भौगोलिक संकल्पना न होकर सांस्कृतिक स्वरूप है। यानी राज्य के रूप में कोई भौगोलिक क्षेत्र अलग-अलग हो सकता है। लेकिन संस्कृति ,धर्म, सभ्यता, जीवन शैली के आधार पर एक राष्ट्र माना जाएगा। आज सम्पूर्ण विश्व में नजर दौड़ायें तो इस दृष्टि से भारत से ज्यादा ताकतवर और वर्तमान संदर्भ में प्रभुत्वशाली राष्ट्र कोई नहीं हो सकता।
भारतवंशियों पर काम करने वालों ने बताया है कि इस समय मोटा-मोटी 200 से ज्यादा भारतीय मूल के लोग दो दर्जन से ज्यादा देशों की सत्ता में शीर्ष पदों पर हैं। ऐसी स्थिति विश्व में किसी और देश की नहीं।
वर्तमान विश्व के 25 देशों में भारतीय मूल के लगभग 313 राजनेताओं ने कोई न कोई पद सम्भाला है।
चीन के आदिवासी चीनी भी दुनिया भर में भारी संख्या में है किंतु उनकी ऐसी स्थिति नहीं जैसी हमारी है। सच है कि आजादी के बाद इस शक्ति को सहयोग करने और उन्हें भारत के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ने की सुनियोजित कोशिश नहीं हुई। अगर हुआ होता तो आज भारत की स्थिति विश्व परिदृश्य पर बिल्कुल अलग होती। हालांकि गैर सरकारी स्तर पर अलग-अलग संगठनों ने इन भारतवंशियों को जोड़ने, अपने धर्म, संस्कृति, परम्परा, सभ्यता के साथ उनका लगाव बनाए रखने के लिए लगातार काम किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अनेक देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ या अन्य नामों से काम कर रहा है जिनमें वहां के हिंदुओं की उपस्थिति होती है। इसी तरह संघ के अन्य क्षेत्र आदि काम कर रहे हैं। हमारे देश के अनेक साधु-संतों के आश्रमों का योगदान भी इस मामले में महत्वपूर्ण है। आज आपको उन सभी देशों में जहां हिंदू थोड़ी अच्छी संख्या में हैं, पूजापाठ एवं कर्मकांड कराने वाले ब्राह्मण आसानी से उपलब्ध हैं। पूजा स्थल तो हैं ही। जगह-जगह लोगों ने जमीनें खरीद कर मंदिर और गुरुद्वारे बनवाए हैं। सरकार ने इस शक्ति को थोड़ी देर से पहचाना और प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन आरम्भ हुआ। नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल में इन्हें अनिवासी भारतीय कहा गया तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इन्हें प्रवासी भारतीय नाम दिया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व भर के भारतवंशियों को जिस रूप में सम्बोधित कर भारत से जोड़ने की भूमिका निभाई है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। अपने पहले कार्यकाल में वे जहां भी गए उन्होंने भारतवंशियों का प्रभावी कार्यक्रम रखा और उन्हें यह भान कराने की कोशिश की कि आप कैसी संस्कृति के वाहक हैं तथा जिस देश में रहते हैं उसके प्रति आपकी क्या जिम्मेदारी है। नरेंद्र मोदी ने कई दूसरे देशों के नेताओं और राजवंशों के सम्बंध प्राचीन भारत के साथ स्थापित किया है, जोे भावनाओं के आधार पर भारत के प्रभाव विस्तार का आधार बन रहा है। सितम्बर 2014 में अपनी पहली अमेरिकी यात्रा के दौरान मैडिसन स्क्वायर में नरेंद्र मोदी की पहली ऐसी प्रभावी सभा हुई जिसमें उन्होंने भारतीयों, भारतीय सभ्यता, अध्यात्म, धर्म -संस्कृति पर काफी कुछ बोला और वहीं से यह घोषणा की कि अब भारत विश्व का नेतृत्व करने के लिए खड़ा हो गया है। वह बात भले आई गई हो गई लेकिन स्वामी विवेकानंद के बाद अमेरिकी भूमि पर ऐसी घोषणा करने वाला उन्हें पहला नेता कहना होगा।
यह अपने आप नहीं हो सकता। अमेरिका सहित सम्पूर्ण विश्व के प्रभावी भारतवंशियों की ताकत ही से इसे वास्तविक धरातल पर लाया जा सकेगा। कई पहलू इन सम्भावनाओं के पक्ष में जाते हैं। अभी अमेरिका के मैरीलैंड प्रांत ने अक्टूबर 2022 को हिंदू विरासत महीना घोषित किया है।
वास्तव में आम भारतीय हिंदुओं और हिंदू धर्म से निकली हुई अन्य शाखाओं यानी सिख, बौद्ध, जैन, आदि लोगों ने अलग-अलग देशों में अपने व्यवहार से पूरे समुदाय की छवि सकारात्मक बनाई है। ये जहां गए वहां ईमानदारी से परिश्रम किया, अपनी संस्कृति-सभ्यता और धर्म का पालन करते हुए भी उस देश से स्वयं को जोड़ा। उस देश के प्रति निष्ठावान रहे और वहां के लिए जितना सम्भव हुआ किया है। इनका योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि सम्बंधित देशों के लोगों ने भी उन्हें अपना स्वीकार किया है। इसी कारण इतनी संख्या में भारतवंशी आज दुनिया में राजनीति के शीर्ष पर होने के साथ-साथ व्यवसाय, तकनीक, वैज्ञानिक, अकादमी, एक्टिविज्म आदि सभी क्षेत्रों में अपना झंडा बुलंद कर रहे हैं।