भारत सरकार द्वारा जारी की गई डिजिटल करेंसी ‘ई-रुपी’ को बहुत सारे लोग बिटकॉइन इत्यादि की भांति समझ रहे हैं, जबकि यह पूरी तरह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए डिजिटल नोट हैं, जिसमें हर नोट का अलग नम्बर होगा। अंतर यही होगा कि वह नोट अब आपके बटुए की बजाय डिजिटल रूप में होगा। इस योजना से नोटों की छपाई पर होने वाले खर्च में भी कटौती की जा सकेगी।
रिजर्व बैंक ने ई-रुपी के नाम से भारत की अपनी डिजिटल करेंसी लांच कर दी है और लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं। लेकिन अहम सवाल तीन हैं। सबसे अहम सवाल यह कि इस डिजिटल करेंसी की आपके लिए, यानी कि आम भारतीय नागरिक के लिए क्या अहमियत है। दूसरा सवाल यह कि क्या बिटकॉइन की तरह हम खुद इसकी माइनिंग कर सकेंगे, इसका कारोबार कर सकेंगे और इसकी कीमत में किस तरह का उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा। और तीसरा यह कि यह नई-नई करेंसी है तो तुरंत कैसे खरीद लिया जाए ताकि हम चंद बरसों में करोड़पति बन सकें, जैसा बिटकॉइन के मामले में हुआ था?
सबसे पहले यह जान लेने की जरूरत है कि भारत की डिजिटल करेंसी वैसी क्रिप्टोकरेंसी नहीं है जैसी कि बिटकॉइन, लाइटकॉइन, रिप्पल और ईथरियम आदि हैं। यह अलग तरह की डिजिटल मुद्रा है जो सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) की श्रेणी में आती है यानी कि किसी देश के प्रधान बैंक की तरफ से जारी की गई गारंटीशुदा करेंसी। यह अलग करेंसी नहीं है बल्कि भारत की मुद्रा, यानी रुपए का ही डिजिटल रूप है। यह कोई अलग एसेट भी नहीं है जैसे कि सोना, जमीन या शेयर होते हैं जिनकी कीमत बाजार की स्थितियों पर निर्भर करती हो तथा घटती-बढ़ती रहे। तो फिर यह डिजिटल रुपया है क्या?
डिजिटल करेंसी रुपया ही है लेकिन कागज या पॉलिमर के रूप में नहीं बल्कि एक अलग रूप में, यानी कि इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल स्वरूप में। हर एक डिजिटल रुपया रिजर्व बैंक की तरफ से जारी किया जाएगा, उसके दस्तावेजों में दर्ज होगा और उसकी सौ फीसदी कीमत अदा करने की गारंटी भी आरबीआई की तरफ से दी जाएगी, वैसे ही जैसे कि नोटों पर बैंक के गवर्नर की तरफ से लिखा होता है कि मैं आपको इतने रुपए अदा करने का वचन देता हूं। यह एक कानूनी करेंसी है जिसका कागज के नोटों के साथ समान कीमत पर लेन-देन हो सकता है। जैसे हर एक रुपए के नोट का अलग नम्बर है, वैसे ही हर एक डिजिटल करेंसी का भी आरबीआई के पास अपना अलग रिकॉर्ड है। अगर आपके पास दस हजार रुपए की डिजिटल करेंसी है तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास दस हजार रुपए हैं लेकिन एक अलग रूप में।
इन रुपयों को डिजिटल वालेट में रखा जा सकेगा। यह सरकार की तरफ से जारी किया गया वैसा ही डिजिटल एप्प होगा जैसे कि डिजिलॉकर है जिसे आप अपने मोबाइल फोन में इन्स्टॉल कर सकते हैं और फिर तमाम तरह के सरकारी दस्तावेज (डिग्री, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि-आदि) डिजिटल फॉरमैट में अपने साथ सुरक्षित रख सकते हैं। फर्क यह है कि ये दस्तावेज आपके पास मूल रूप में कागज या प्लास्टिक स्वरूप में भी मौजूद रहते हैं और डिजिटल स्वरूप में भी। लेकिन अब हमारी मुद्रा या तो कागज के रूप में इस्तेमाल की जा सकेगी या फिर डिजिटल रूप में। यानी कि ऐसा नहीं होगा कि आपके घर पर भी दस हजार रुपए के नोट रखे हुए हैं और मोबाइल फोन पर भी दस हजार की डिजिटल करेंसी रखी है। जैसा कि मैंने कहा, यह छपी हुई कागज की मुद्राओं का डिजिटल स्वरूप है जिन्हें आपस में अदला-बदला जा सकता है। बैंकों के पास ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा जिसके जरिए आप अपने रुपयों को बैंक अकाउंट और अपने डिजिटल वॉलेट (बटुआ) के बीच आजादी से ट्रांसफर कर सकेंगे। इसी तरह से दो लोग आपस में भी लेनदेन कर सकेंगे और कारोबारी ठिकानों के साथ भी। लेकिन तुरंत नहीं, फिलहाल थोड़ा सा इंतजार करना होगा।
अब आप समझ गए होंगे कि हमारी डिजिटल करेंसी बिटकॉइन या ईथरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसीज से अलग है। आपको याद होगा कि रिजर्व बैंक क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल का विरोध करता रहा है, और हमारी डिजिटल करेंसी आने पर लोगों के मन में यह सवाल भी आया है कि तब उसने खुद ही ऐसा क्यों कर दिया। जवाब यही है कि दोनों मुद्राएं एकदम अलग हैं।
ज्यादातर क्रिप्टोकरेंसी को जारी करने वाले निजी लोग हैं या फिर निजी संस्थान, न कि बैंक या सरकारें जो उनकी कीमत की गारंटी ले सकें। यहां पर रिजर्व बैंक की गारंटी है। बिटकॉइन जैसी कुछ क्रिप्टोकरेंसीज की माइनिंग की जा सकती है यानी कि आप खुद भी अपने कुछ बिटकॉइन तैयार कर सकते हैं अगर आपके पास उसके लिए जरूरी तकनीकी कौशल और सॉफ्टवेयर हैं। यहां हर एक डिजिटल रुपया रिजर्व बैंक की तरफ से जारी किया जाएगा। क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार होता है भले ही ज्यादातर देशों में आज भी वह पूरी तरह से कानूनी नहीं है। हमारी करेंसी का शेयर बाजार की तरह से कारोबार नहीं होने वाला है। बिटकॉइन आदि की कीमत घटती-बढ़ती रहती है लेकिन डिजिटल रुपये के साथ ऐसा नहीं होगा। आपके डिजिटल वॉलेट में आज दस हजार डिजिटल मुद्राएं हैं तो एक साल बाद भी उनकी कीमत उतनी ही रहेगी। क्रिप्टोकरेंसीज को चुरा लिए जाने का खतरा है जो यहां नहीं है। डिजिटल करेंसी को आप कहीं से खरीद नहीं रहे हैं बल्कि अपने ही धन का स्वरूप बदलकर उसे डिजिटल रूप में सहेज रहे हैं।
रिजर्व बैंक ने ऐसा क्यों किया। इसलिए कि आज वित्तीय क्षेत्र में भारत की डिजिटल तकनीकें इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि हम अपना अगला और बड़ा कदम उठाने की स्थिति में आ गए हैं। यूपीआई की मिसाल आपके सामने है जिसकी बदौलत आज हर एक शख्स अपने मोबाइल फोन से लेन-देन कर रहा है। लेकिन यह लेनदेन सिर्फ धन के हस्तांतरण के रिकॉर्ड के रूप में हो रहा है और वास्तविक (भौतिक) रूप में आपका रुपया एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा नहीं जाता, सिर्फ बैंकों के दस्तावेजों में प्रविष्टि हो जाती है कि यह धन वहां पर इस्तेमाल कर लिया गया है। यही बात नेटबैंकिंग पर लागू होती है। लेकिन डिजिटल करेंसी मात्र प्रविष्टि नहीं होगी बल्कि उनका अपना (इलेक्ट्रॉनिक) अस्तित्व होगा।
एक सामान्य नागरिक के रूप में डिजिटल करेंसी आपको सुरक्षा और सुविधा देगी। कागज की मुद्रा खराब हो सकती है, फट सकती है, चुराई जा सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि कोई आपको नकली मुद्रा थमा जाए। डिजिटल करेंसी के साथ इनमें से कुछ भी नहीं होगा। कागज के नोटों की छपाई पर रिजर्व बैंक हर साल चार हजार करोड़ से लेकर आठ हजार करोड़ रुपए का खर्च करता है। यह खर्चा नाटकीय अंदाज में घटाया जा सकेगा। खराब हुए कागज के नोटों को जलाकर उनकी जगह पर दूसरे नोट छापे जाते हैं। डिजिटल करेंसी इस समस्या का समाधान कर देगी।
यह नेटबैंकिंग से ऐसे अलग है कि इसका सेटलमेंट तुरंत होगा, जैसे रुपयों का होता है। इधर दिया, उधर लिया, क्योंकि इसमें ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग हो रहा है और हर एक रुपया प्रमाणित है, और उसका स्वतंत्र, सम्प्रभु, प्रमाणित वजूद है। नेटबैंकिंग में कई बार आपको सूचना मिलती है कि आपके तीन लाख रुपए के ट्रांसफर में दो या ज्यादा दिन भी लग सकते हैं। आने वाले समय में सम्भव है कि आप बिना इंटरनेट कनेक्टिविटी के भी डिजिटल करेंसी का प्रयोग कर सकें। पारम्परिक बैंकिंग से तुलना करें तो बैंक ड्राफ्ट बनवाने, चेक जारी करने, उनके बाउंस होने, हस्ताक्षर मैच न करने, अकाउंट में धन के बिना चेक दे दिए जाने, ड्राफ्ट चोरी हो जाने और ऐसी ही अनेक दूसरी असुरक्षाओं तथा वक्त की सीमाएं खत्म हो जाएंगी क्योंकि लेनदेन डिजिटल और त्वरित हो जाएगा।
तो जल्दी से अपने रुपयों को इलेक्ट्रॉनिक फॉरमैट में बदल लिया जाए? नहीं, इसके लिए आपको इंतजार करना होगा। हमारी डिजिटल करेंसी बिना किसी तकनीकी दिक्कत के जारी तो हो गई है लेकिन फिलहाल उसका इस्तेमाल कुछ बड़े बैंकों तक सीमित है जिनके बीच लाखों करोड़ रुपयों तथा प्रतिभूतियों का आपसी लेनदेन करने पर करोड़ों की रकम खर्च हो जाती है। फिलहाल चुनिंदा बैंकों के सीबीडीसी अकाउंट बनाए गए हैं जिन्हें आरबीआई संचालित कर रही है। बैंक पहले अपने करेंट अकाउंट से इस अकाउंट में धन ट्रांसफर करेंगे और फिर एक दूसरे के साथ लेनदेन कर सकेंगे। यह पहला चरण है। अगले चरण में यह मुद्रा हम तक पहुंचेगी, लेकिन उसके लिए हमें पायलट परियोजना के सफलता से पूरा होने का इंतजार करना होगा।
बालेन्दु शर्मा दाधीच