हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
सनातन भारत से है ‘आइडिया ऑफ भारत’ वालों का संघर्ष

सनातन भारत से है ‘आइडिया ऑफ भारत’ वालों का संघर्ष

by रमेश पतंगे
in विशेष, सामाजिक
0

“आइडिया ऑफ भारत” वालों का संघर्ष सनातन भारत से है। ऊपरी तौर पर यह संघर्ष संघ विचार धारा के विरुद्ध दिखाई देता है। संघ विचारधारा सनातन भारत की विचारधारा है। सनातन भारत याने सनातन समाज। सनातन समाज याने समय के साथ जो बदलता रहता है वह! वैदिक काल में हमारे पूर्वज यज्ञ करते थे। तब देवी देवताओं के मंदिर नहीं थे। इस यज्ञ याग के विरुद्ध भगवान गौतम बुद्ध, भगवान महावीर ने अपनी आवाज उठाई। उनकी आवाज के अनुसरण में धीरे-धीरे यज्ञ बंद होते चले गए। यह अहिंसक बदल हुआ। हिंसा से समाज बदलना अपना स्वभाव नहीं है।

भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के अनुयायियों ने उनकी मूर्तियां बनाई। इन मूर्तियों की बाद में पूजा शुरू हुई। उनका अनुसरण कर वैदिक देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बनने लगी, उनके मंदिर बनने लगे और हमारा समाज मूर्तिपूजक हो गया। काल के अनुसार बदलते रहना हमारा स्वभाव हो गया। इस्लामी आक्रमण काल में भक्ति संप्रदाय का उदय हुआ। भजन, संकीर्तन, नाम स्मरण, मनुष्य सेवा ऐसे सब विषय समाज में आ गए और इससे सनातन भारत का निर्माण होता गया।

“आइडिया ऑफ भारत” के समर्थक सनातन भारत का यह इतिहासक्रम स्वीकार नहीं करते हैं। वे तो हमें बताते हैं भगवान गौतम बुद्ध ने वेदों के विरुद्ध विद्रोह किया, हिंदू धर्म कोअस्वीकार किया, बौद्ध हिंदू नहीं, भगवान महावीर जैन भी हिंदू नहीं। आइडिया भारत वाले हिंदू विरुद्ध बौद्ध विरुद्ध जैन ऐसे झगड़े कराते रहते हैं। एक तो वह महामूर्ख हैं या हम महामूर्ख होंगे। वैदिक काल में हिंदू शब्द नहीं था। मूर्तिपूजक हिंदू नहीं था। जो था ही नहीं उसको कैसे नकार सकते हैं? हमारे पुरोगामी पंडित जो बताते हैं वही सत्य है ऐसा मानने लायक महामूर्ख हम भी नहीं हैं।

हम हिंदू हैं यानी क्या हैं? हम हिंदू हैं इसलिए काल के अनुरूप बदलने वाले हैं। भारत की धर्म परंपरा हमारी धर्म परंपरा है ऐसा मानने वाले हैं। हम हिंदू हैं अर्थात जैन, बौद्ध, वैदिक इन सब मार्गो से आए हुए लोगों का मिलन है। इसलिए यह सारे महापुरुष हमारे हैं। उनके व्यक्तित्व एवं शिक्षा का गहरा परिणाम हमारे रोज के जीवन शैली पर हुआ है। हम एक दूसरे के विरोधक न होकर एक दूसरे के सहचर हैं। सनातन भारत के विचारों से बंधा यह भारत है।

हमें ध्यान रखना चाहिए कि जो संघ की विचारधारा से संघर्ष की बात करते हैं वे सच्चे अर्थों में हिंदू समाज के साथ संघर्ष की बात करते हैं। इसका हमें ठीक तरह से आकलन करना चाहिए। यह संघर्ष संघ और सहयोगी संस्थाओं के विरुद्ध वामपंथी विचारधारा, कांग्रेसी विचारधारा, जिहादी विचारधारा इनमें आपस का नहीं है यह संघर्ष समग्र सनातन हिंदू समाज और ऊपर दिए गए संगठनों के बीच का है।

इसलिए यह संघर्ष संस्था में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का ना होकर संपूर्ण समाज के द्वारा लड़ने का है और भविष्य में भी लड़ना पड़ेगा। 1980 तक हम इस लड़ाई में एकाकी थे। समाज के सभी लोगों को तब ऐसा नहीं लगता था कि यह संघर्ष हमारा भी है। अपने अस्तित्व पर आक्रमण हो रहा है। यह आक्रमण वैचारिक है, धार्मिक है, सांस्कृतिक है, इसका भान पूरे समाज को नहीं हो रहा था। 1980 के दशक में एकात्मता यात्रा, रामजानकी यात्रा, रथ यात्रा इसके कारण समाज में अस्मिता, एकात्मता, और जागृति बड़े पैमाने पर होने लगी।

अस्मिता जागृति का यह प्रवाह क्रमशः बलवान होता गया। स्वयं प्रेरणा से विविध स्तर पर व्यक्ति और संस्था अस्तित्व में आते रहे। अपने-अपने तरीके से भी व्यक्ति और संस्थाएं अपनी जड़ों को खोज रहे हैं। रामदेव बाबा संघ कार्यकर्ता नहीं है परंतु वे जो कार्य कर रहे हैं वह हिंदू जागृति का कार्य है। समाज को अपनी जड़ों की ओर ले जाने का कार्य उनके द्वारा किया जा रहा है। संपूर्ण समाज में योग का प्रचार, आयुर्वेद का प्रचार, स्वदेशी उत्पादनों का प्रचार वे कर रहे हैं। उनका यह कार्य अतुलनीय है। श्री श्री रविशंकर, सद्गुरु को चाहने वाला एक बड़ा वर्ग समाज में है वे संघ की भाषा में नहीं बोलते परंतु उनका कार्य भी समाज को अपनी जड़ों की ओर ले जाने का है। समाज की अस्मिता को जगाने का उनका कार्य है।

संशोधन के क्षेत्र में राजीव मल्होत्रा का नाम प्रमुखता से लेना पड़ेगा। वामपंथी पंडितों ने भारतीय इतिहास को किस प्रकार विकृत किया यह वे सप्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इस विषय पर उनके ग्रंथ प्रमाण हैं। उनके आगे लेखक अरुण शौरी ने अलग-अलग विषयों पर ग्रंथ लिख कर गलत इतिहास निर्माण करने वालों को नग्न किया है। महाराष्ट्र में भी ‘असत्यमेव जयते’ इस शीर्षक की पुस्तक अभिजीत जोग ने लिखी है। हमारा सच्चा इतिहास कौन सा है यह उन्होंने सप्रमाण प्रस्तुत किया है यही सब काम अपनी दृष्टि से सनातन भारत जागृति के काम है।

सिनेमा के क्षेत्र में राष्ट्रीय विषयों पर सिनेमा बनाए जाने लगे हैं। ‘बेबी,’ ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘तानाजी’, ‘अफजल खान वध’, ऐसे अनेक विषयों पर निर्माता अब सिनेमा बनाने लगे हैं। प्रेक्षक ऐसे सिनेमा को भारी प्रतिसाद दे रहे हैं। व्यावसायिक दृष्टि से भी ये सिनेमा अत्यंत सफल हो रहे हैं। अपना वास्तविक इतिहास, जो स्वत: को प्रगतिशील कहते हैं,उन लोगों ने दबा कर रखा था वह अब मुक्त हो रहा है। यह एक जबरदस्त परिवर्तन हुआ है।

धार्मिक क्षेत्र का यदि विचार किया जाए तो तीर्थ क्षेत्रों में जबरदस्त भीड़ एकत्र हो रही है। मंदिर के बाहर की कतारें बढ़ती जा रही है। सभी त्योहार अब पारंपरिक पद्धति से मनाने पर जोर दिया जा रहा है। त्योहारों पर स्त्री, पुरुष, बच्चे अपनी- अपनी पारंपरिक पोशाक में घूमना पसंद कर रहे हैं। दीपावली उत्सव के दिन “दीपावली प्रभात” सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में भाव गीत, अभंग, उत्तम कविता और गाने प्रस्तुत किए जाते हैं। इस कार्यक्रम में कर्कश गीत, अश्लील नृत्य कोई भी प्रस्तुत नहीं करता।

हिंदू समाज की जागृति ऐसे सभी क्षेत्रों में हो रही है। इस जागृति का संगठन होना चाहिए। संगठित रूप देने के लिए सबको एक ही मंच पर आना चाहिए ऐसा नहीं। प्रत्येक व्यक्ति अपने- अपने तरीके से अपने-अपने काम कर रहा है, उनके पीछे हमको खडे रहना चाहिए। आप अकेले नहीं हम आपके साथ हैं संदेश दिया जाना चाहिए। उनके कार्य की प्रशंसा होनी चाहिए। समय पर उन्हें कुछ साधनों की आवश्यकता हो तो समाज ने उसकी पूर्ति करना चाहिए। उनके हाथ मजबूत करना चाहिए। यह हमारे संगठन में नहीं है इसलिए हमारे नहीं ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, वह हमारे समाज के हैं इसलिए हमारे हैं ऐसा ही विचार हमें करना चाहिए।

राहुल गांधी कंटेनर यात्रा में कह रहे हैं कि उनका संघर्ष संघ और भाजपा से है। राहुल गांधी का संघर्ष सनातन भारत और हिंदू धर्म से है ऐसा वातावरण बनाना चाहिए। आज दिखने वाली सनातन समाज की जागृति कई बार तात्कालिक विषयों तक सीमित रहती है। उदाहरण के लिए मुस्लिम समाज के कुछ सिरफिरे अनेक बार समाज में जो चाहे बोलते हैं, हिंसक काम करते हैं, उसकी प्रतिक्रिया समाज में होती है। राजनीति क्षेत्र का यदि विचार किया तो अनेक राजनीतिक नेताओं का राजकीय धंधा हिंदू समाज को निम्न स्तर तक बोलने का होता है। हिंदू आतंकवाद कहना, सरस्वती पूजा क्यों करते हैं ऐसा कहना, आगे से गणेश जी पूजा ना करें ऐसा कहने पर उसकी प्रतिक्रिया समाज में उत्पन्न होती है। कभी-कभी तो वे बहुत तीव्र और असभ्य भाषा में होती है। वैचारिक संघर्ष तत्काल प्रतिक्रिया देकर नहीं लड़े जा सकते। उसके लिए दीर्घकालीन योजना बनानी पड़ती है। संयमित भाषा का उपयोग करना पड़ता है।

अलग-अलग स्तरों पर यह काम करना होगा। हिंदुत्व का विषय हमेशा चर्चा में रहता है। हम 21वीं सदी में है। यह सदी विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की है। विज्ञान- तकनीकी ज्ञान के आधार पर आर्थिक उन्नति करने का है। पुराना समाज दर्शन काल बाह्य होता जा रहा है।नई समाज रचना निर्माण होती जा रही है। पुराण की अनेक कथाएं विज्ञान और बुद्धि वाद पर टिक नहीं पा रही हैं। प्रत्येक देश का भविष्य वैश्विक स्थिति पर अवलंबित रहता है। वैश्विक सत्ता संघर्ष को विराम नहीं है। इस्लामिक और ईसाई करण यह संगठित और प्रचारी धर्म हैं। उनके आक्रमण को पूर्ण विराम नहीं है, इस पार्श्वभूमी पर 21 वे शतक का हिंदुत्व याने क्या? यह स्पष्ट करना पड़ेगा। वैचारिक संघर्ष- दुर्बल वैचारिक नीव पर लड़ना असंभव है।

नया हिंदुत्व याने तिलक, टोपी, माला, तीर्थ यात्रा, उपवास, राशि भविष्य, ग्रहण, मंगल दिवस इन्ही में यदि फंसा रहा तो ऐसा हिंदुत्व वैचारिक संघर्ष में कुछ भी काम का नहीं है। वर्तमान में केवल पेट के लिए काम करने वाले शास्त्री, पंडित, भविष्यवेत्ता, राशिफल बताने में निष्णात ग्रहों के विशेषज्ञ हैं और आम लोग इन्हीं लोगों को मानने वाले हैं। उनकी दृष्टि से हिंदुत्व याने पुराने लोगों को शास्त्र की शिक्षा दे रहे हैं ऐसा बता कर भ्रमित करने का है। उनका व्यवसाय धन कमाने का है। वैचारिक संघर्ष में उसका कुछ उपयोग नहीं वे हमसे चार हाथ दूर ही होने चाहिए।

समाज को कर्म प्रधान करना, वैचारिक शस्त्रों को प्रशिक्षण देना तथा वैचारिक युद्ध के लिए सिद्ध करना यह समय की मांग है। देश का विचार करते समय प्रत्येक राज्य में सनातन भारत के साथ संघर्ष करने वाली टोली है। यह टोली साधन संपन्न है।इस टोली का अभ्यास किया जाना चाहिए। उनके लेख उनकी पुस्तकें पढ़ी जानी चाहिए। राशिफल बताने की अपेक्षा इस लेखन में और उन पुस्तकों का फलित क्या है इन लोगों को समझकर बताना चाहिए। आज के समय की यही आवश्यकता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindu culturehindu culture. hindu traditionsidea of indiasanatan bharat

रमेश पतंगे

Next Post
बॉलीवुड के बेशर्म रंग -जनवरी- २०२३

बॉलीवुड के बेशर्म रंग -जनवरी- २०२३

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

1