हम भारत का 74 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। भारत को स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 में मिली और 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था । इस कारण प्रत्येक वर्ष इस तिथि पर हम अपने गणराज्य का राष्ट्रीय उत्सव “गणतंत्र दिवस” मनाते हैं। हमारा संविधान हमारे लिए अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत, स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक है । संविधान के प्रावधान तो ऐसे विशिष्ट हैं ही जिनसे भारत पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर रहा है । इसके साथ इसमें भारत के जिन बारह प्रतीक चिन्हों के प्रदर्शित किया है वे भारत के प्रतीक चिन्ह हैं जो राष्ट्र और राष्ट्र निवासियों के स्वत्व जागरण का संदेश दे रहे हैं।
गणतंत्र दिवस यह दिन हमारे लिये आनंद और उत्सव का दिन तो है ही, साथ ही यह राष्ट्र की अस्मिता को अक्षुण्ण रखने के लिये एक संकल्प का दिवस भी है । संकल्प की यह शक्ति हमें जहाँ संविधान निर्माताओं के संदेश से मिलता है तो उसमें प्रदर्शित प्रतीक चिन्ह प्रेरणा भी देते हैं। इन चित्रों में मोहनजोदड़ो, वैदिक काल का स्वरूप, रामायण, महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य, गुप्त काल के अतिरिक्त हिमालय से लेकर सागर आदि के चित्र सुंदर हैं । वास्तव में यह चित्र भारतीय इतिहास की एक सांस्कृतिक यात्रा हैं । इन चित्रों का केन्द्र सम्राट अशोक के कीर्ति स्तंभ का सिंह है जिसे हमने अपना राष्ट्रीय प्रतीक माना है ।
इन चित्रों में यदि इतिहास की कुछ स्मृतियाँ हमें सावधान रहने की सीख दे रहीं हैं तो वर्तमान की चुनौतियाँ अतिरिक्त सतर्कता बरतने का संदेश भी है। हमारे संविधान के प्रावधानों ने हमें अपनी प्रतिभा और दक्षता को उभारने के समुचित अवसर दिये हैं। हमें उनका उपयोग करके अपने भविष्य और अपने राष्ट्र की प्रगति धारा को तीव्र करनी है । संविधान में अधिकार और कर्तव्य दोनों का विवरण है । हमें जितनी चैतन्यता अपने अधिकारों के प्रति होनी चाहिए उससे अधिक अपने कर्तव्यों का भी भान होना चाहिए। तभी तो हम अपने भारत राष्ट्र को पुनः विश्व में अग्रणी बना सकेंगे जैसा कि भारत कभी रहा है । लेकिन इन दिनों जो वातावरण बन रहा है अथवा हमें दिखाई दे रहा है इसमें कर्तव्य वोध कम और अधिकारों की सीमा का उल्लंघन हो रहा है जो हमारे संवैधानिक संप्रभुता केलिये एक चुनौती है ।
संभवतः वर्तमान की इन चुनौतियों का और आधुनिक भारत की संकल्पना का आभास हमारे संविधान निर्माताओं को रहा होगा इसलिए उन्होंने संविधान प्रस्तावना की पृष्ठभूमि में देश वासियों को सतर्क भी किया था । संविधान निर्माताओं ने सांस्कृतिक विरासत को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने के ध्येय से भारतीय संविधान की मूल प्रतिलिपि में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिर चित्रों को स्थान दिया जो मूलतः भारतीय संविधान की भारतीय चैतन्यता को परिभाषित करते हैं । यह विशेषता दुनियाँ के किसी संविधान में नहीं है जो भारतीय संविधान में है ।
यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इस में कुल 450 अनुच्छेद (24 भागों में विभक्त) तथा 12 अनुसूचियां, एक प्रस्तावना तथा 5 परिशिष्ट हैं। और कुल 177369 शब्द शामिल हैं। भारतीय संविधान की विशालता का मुख्य कारण उसका विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र और सांस्कृतिक विविधता है । यही विविधता संविधान में प्रतिबिंबित होती है और यह भी इसकी एक विशेषता है ।
हमारे संविधान की एक और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नागरिकों के बीच मौलिक संबंध स्थापित करता है । मौलिक कर्तव्यों की प्रेरणा देता है । इसका संदेश है की भारत के लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का प्रबल हो जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो।
संविधान में यदि सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता है तो इसका स्वरूप भी व्यापक है । भारतीय संविधान लचीलेपन और कठोरता दोनों का अद्भुत सम्मिश्रण है। संविधान में समय और परिस्थियों के अनुरूप संशोधन की भी व्यवस्था हमारे संविधान निर्माताओं ने की है । आवश्यकतानुसार ऐसे संशोधन सदन के दोनों सदनों के कुल सदस्यों तथा प्रत्येक सदन के दो-तिहाई उपस्थित सदस्यों के मतदान के द्वारा पारित किया जा सकता है। तीसरी विधि में विशेष बहुमत, जो दूसरी विधि में लिखा है, के अलावा 50 प्रतिशत राज्यों के विधान सभाओं द्वारा भी पारित होना आवश्यक होता है।
भारतीय संविधान को लिखनें में कुल 2 वर्ष 11 महीनें और 18 दिन का समय लगा था। संविधान सभा के गठन 6 दिसम्बर 1946 को हुआ था । तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था । उस समय संविधान सभा में कुल सदस्यों की संख्या 389 थी, किन्तु भारत के विभाजन के बाद सदस्यों संख्या घटकर 299 ही रह गई थी । संविधान सभा के प्रमुख सदस्य डॉ राजेन्द्र प्रसाद, भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। इनके अतिरिक्क लगभग सभी राज्यों, धर्मो और जातियों से विभिन्न सदस्य शामिल थे। सभी सदस्यों के नाम देखने के लिए यहाँ क्लिक करे। संविधान सभा के अध्यक्ष डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद थे जबकि ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष डाक्टर भीमराव अंबेडकर थे ।
संविधान निर्माताओं ने अपने संविधान की रचना के पूर्व विश्व के सभी देशों के संविधान का अध्ययन किया था । और जो बात जहाँ अच्छी थी उसे ग्रहण किया था । इसके पीछे उद्देश्य यही था की हम अपनी पूर्ण क्षमता के अनुरूप स्वयं का विकास कर सके और अपने राष्ट्र के गौरव में योगदान दे सके । इसलिए आज हमें गणतंत्र का उत्सव तो मनना चाहिए पर इसके साथ यह संकल्प भी करना होगा कि हम अपने संविधान के अधिकारों का उपयोग करके कर्तव्य का निर्वाहन भी करें जिससे भारत राष्ट्र पुनः अपने गौरव को प्राप्त कर सके । तभी संविधान में प्रदत्त अधिकार और कर्तव्य सार्थक होगे।
– रमेश शर्मा