भारत, संविधान और विदेशों में महिला अधिकार

Continue Readingभारत, संविधान और विदेशों में महिला अधिकार

आधुनिक दुनिया की तथाकथित सभ्य सभ्यताओं ने महिलाओं एवं अश्वेतों को हमेशा अधिकारों से वंचित रखा। वहां पर अधिकार पाने के लिए इन्हें लम्बा संघर्ष करना पड़ा। परंतु भारतीय सभ्यता में इनके लिए लघु विचार कभी नहीं रहे। इसीलिए मुस्लिम और अंग्रेेजी राज्य में महिलाओं एवं दलितों का उत्पीड़न होने…

संविधान के प्रावधानों में झलकता राष्ट्र का स्वरूप

Continue Readingसंविधान के प्रावधानों में झलकता राष्ट्र का स्वरूप

हम भारत का 74 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। भारत को स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 में मिली और 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था । इस कारण प्रत्येक वर्ष इस तिथि पर हम अपने गणराज्य का राष्ट्रीय उत्सव "गणतंत्र दिवस" मनाते हैं। हमारा संविधान हमारे लिए अद्वितीय…

राजव्यवस्था में शक्ति के मुख्य स्रोत जन गण मन हैं

Continue Readingराजव्यवस्था में शक्ति के मुख्य स्रोत जन गण मन हैं

संविधान की उद्देशिका में इन्हें ‘हम भारत के लोग‘ कहा गया है। संविधान सभा में 22 जनवरी 1947 के दिन पारित संकल्प (धारा 4) में कहा गया है, ‘‘प्रभुत्व संपन्न भारत की सभी शक्तियां और प्राधिकार, उसके संघटक भाग और शासन के सभी अंग ‘लोक‘ से उत्पन्न हैं।‘‘ भारत का…

संविधान, लोकतंत्र और अमृत महोत्सव

Continue Readingसंविधान, लोकतंत्र और अमृत महोत्सव

निश्चित रूप से दुनिया में हमारी साख के पीछे हमारा मजबूत संविधान और विश्व का सबसे बड़ा एवं सशक्त लोकतंत्र ही हैं, जो दुनिया के लिए आश्चर्य, विश्वास के साथ स्वीकार्यता की कसौटी पर खरा उतर कर भारत को विश्व गुरू की ओर अग्रसर कर रहा है।

सभी नागरिकों को समान अधिकार – रामदास आठवले

Continue Readingसभी नागरिकों को समान अधिकार – रामदास आठवले

भारतीय संविधान ने सभी को समान अधिकार दिया है। आज विश्व को शांति, मित्रता, मानवता और विश्व बंधुत्व की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन के अहंकार की भावना का त्याग कर मानवता, प्रेम, आनंद, संतुष्टि एवं विश्वास निर्माण करना जरूरी है। यह वक्तव्य केन्द्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री…

डिलिस्टिंग :संविधान और कन्वर्जन का षड्यंत्र

Continue Readingडिलिस्टिंग :संविधान और कन्वर्जन का षड्यंत्र

म.प्र का मालवा औऱ निमाड़ इन दिनों एक अलग ही आंदोलन से गुंजित है। डीलिस्टिंग।इस मुद्दे को लेकर धार,झाबुआ,अलीराजपुर,रतलाम बड़वानी जिलों में बड़ी बड़ी रैलियां हो रही है। 40 से 44 डिग्री तक तपती दुपहरी में भी हजारों की संख्या में जनजाति समाज के लोग डिलिस्टिंग की मांग करते हुए…

अल्पसंख्यक होने का पुनः निर्धारण हो

Continue Readingअल्पसंख्यक होने का पुनः निर्धारण हो

भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यकवाद हमेशा से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। अभी हाल के दिनो में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा  इस विषय पर कोर्ट में करी गई अपील ने इस मुद्दे को फिर एक बार सुर्ख़ियो में ला खड़ा किया है। अल्पसंख्यक प्रश्न आज का है, ऐसा…

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर

Continue Readingभारतीय संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू (म.प्र.) में हुआ था। उनके पिता श्री रामजी सकपाल तथा माता भीमाबाई धर्मप्रेमी दम्पति थे। उनका जन्म महार जाति में हुआ था, जो उस समय अस्पृश्य मानी जाती थी। इस कारण भीमराव को कदम-कदम पर असमानता…

तंत्र में गण की संपूर्ण प्रतिष्ठापना का लक्ष्य बाकी है

Continue Readingतंत्र में गण की संपूर्ण प्रतिष्ठापना का लक्ष्य बाकी है

भारत इस मायने में अनूठा है जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस अलग-अलग मनाए जाते हैं। 15 अगस्त, 1947 को हम अंग्रेजों की दासता से स्वतंत्र अवश्य हुए पर  26 जनवरी ,1950 को गणतंत्र यानी अपना तंत्र अपनाया। सामान्य शब्दों में गण का अर्थ आमजन तथा तंत्र का व्यवस्था है।…

वास्तविक लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक पत्रकारिता

Continue Readingवास्तविक लोकतंत्र के लिए वैकल्पिक पत्रकारिता

राजतंत्र में भी लोकतंत्र की यह व्यवस्था हज़ारों वर्षों के प्रयोग व विमर्श का परिणाम थी। पश्चिम के प्रभाव में हमने स्वतंत्र होने पर डेमोक्रेसी को अपनाया और लोकतंत्र या प्रजातंत्र को भुला दिया। लोक का मन जानने के लिए पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम हो सकता है। पत्रकारिता समाज की ऐसी रचना है जिसमें कुछ इस कार्य में दक्ष नागरिकों को दायित्व दिया जाता है कि वे लोक व प्रशासन में सेतु का कार्य करें। 

आजादी का 75वां वर्ष न्याय-व्यवस्था की दिशा व दशा

Continue Readingआजादी का 75वां वर्ष न्याय-व्यवस्था की दिशा व दशा

भारत की न्यायपालिका की संवेदना भारत के जनमानस के साथ जुड़ी दिखाई नहीं देती। उसका अपना एक सामंती चरित्र है, जो हर प्रकार से शक्तियों से परिपूर्ण किन्तु किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है और बड़ी आत्ममुग्ध और स्व-संचालित है। वह अपने बारें में किसी समीक्षा को पसंद नहीं करता। 

लंकाकाण्ड की प्रतीक्षा

Continue Readingलंकाकाण्ड की प्रतीक्षा

प्रथम विश्वयुद्ध क्या यूरोप के किसी संविधान या कानूनी व्यवस्था के अन्तर्गत हुआ था ? युद्ध हुआ, पुराने साम्राज्य खंडित हुए, नये देश बने| बिस्मार्क और कैसर, मेजिनी, गैरीबाल्डी क्या संविधान के संशोधनों की प्रतीक्षा कर रहे थे कि यह हो जाए तब संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार हम राष्ट्रीय क्रांतियों का आगाज करें ? द्वितीय विश्वयुद्ध भला किस…

End of content

No more pages to load