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जनजाति समाज ही सनातन भारत का बीज

जनजाति समाज ही सनातन भारत का बीज

by मुकेश गुप्ता
in फरवरी २०२३, विशेष, सामाजिक
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देशभर के वनों के उन्नयन का भार उठाने वाला वनवासी जनजाति समुदाय हमारी सनातन संस्कृति का प्रमुखतम अंग है परंतु सनातन संस्कृति पर प्रहार करने वाले लोग उन्हभड़काते रहते हैं कि आप तो हिंदू संस्कृति से अलग, स्वतंत्र समुदाय हैं। जनजाति विकास मंच और जनजाति चेतना परिषद जैसे प्रबोधन के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसी विध्वंसकारी शक्तियों के अलगाववादी विचारों के संक्रमण को रोका जा सके।

जनजाति समाज को अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए सर्वप्रथम अपने अस्मिता की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि जनजाति समाज ही सनातन भारत का बीज है। जनजाति संस्कृति, संस्कार, प्रकृति पूजन एवं अन्य पूजा पद्धति आदि परम्परा हमारी अस्मिता के मानबिंदु हैं। इसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। वर्तमान समय में धर्मांतरण के संकट के कारण हमारी अस्मिता व अस्तित्व खतरे में है। जनजाति समाज को अपनी जड़ों से काटने के लिए अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत ईसाई मिशनरियां दिन रात जुटी हुई हैं। इनके षड्यंत्र को समझना होगा और जागरूकता ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है। इसके लिए हमारा सही एवं स्पष्ट दृष्टिकोण होना आवश्यक है। यह उद्गार मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के उप सचिव लक्ष्मण मरकाम ने दिया। जनजाति विकास मंच द्वारा डहाणू में आयोजित जनजाति चेतना परिषद सभा में बतौर मुख्य वक्ता वह बोल रहे थे। उन्होंने जनजाति व्यक्ति की पहचान, विशेषता, संविधान, अधिकार, आरक्षण, गोंड जनजाति साम्राज्य एवं वैभवशाली इतिहास सहित एनआरसी, डेमोग्राफी चेंज, बांग्लादेशी घुसपैठ, जेएनयू, कांग्रेस, राजनीति, वामपंथी, सेक्युलर गैंग, जिहाद आदि विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

इसके पूर्व जनजाति विकास मंच के सचिव छगन बच्चू वावरे ने अपनी प्रस्तावना में कहा कि असामाजिक तत्व एवं मिशनरियां यह भ्रम फैलाने के लिए झूठा प्रचार करते हैं कि आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता और वे हिंदू नहीं हैं। उनके इसी कहावत में गड़बड़ है, षड्यंत्र है, जबकि सच्चाई यह है कि उनका धर्म होता है और वे सच्चे सनातनी हिंदू हैं। आदिकाल से वे सनातन परम्परा के अंतर्गत प्रकृति की पूजा करते आए हैं। अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत जनजाति समाज को केंद्र बनाकर धर्मांतरण का कुचक्र जोड़ने के लिए नहीं अपितु तोड़ने के लिए चलाया जा रहा है। इस खतरे से बचाने एवं जागृति के लिए जनजाति विकास मंच की ओर से जनजाति चेतना परिषद के माध्यम से उद्बोधन और प्रबोधन किया जाता है। साथ ही जनजाति क्षेत्रों में सेवा, संस्कार, स्वावलम्बन एवं उनके संस्कृति-सभ्यता के संरक्षण- संवर्धन हेतु जनजाति विकास मंच तन्मयता से कार्यरत है।

उल्हासनगर मनपा के उपायुक्त अजित रत्ना गोवारी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास के लिए आज हम सब एकत्रित हुए हैं। विघटनकारी शक्तियां तोड़ने एवं जनजाति समाज में विद्वेष फैलाने का काम करती हैं और हम जोड़ने का कार्य करते हैं। आदिवासी, मूलनिवासी, रावण व महिषासुर पूजा जैसे कार्यक्रम उनकी विभाजनकारी मानसिकता को दर्शाते हैं।

चर्चा सत्र के दौरान संतोष जनाठे ने जनजातियों के शौर्य, पराक्रम और संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में जनजाति समाज के वीर योद्धा बड़ी संख्या में थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए जंगल सत्याग्रह में जनजातियों ने अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था। उन्होंने आगे कहा कि हमारा मुकाबला अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से है इसलिए अब कुछ करने की आवश्यकता है। संविधान और कानून रूपी शस्त्र से हमें लड़ना सीखना होगा। समाज हो या सोशल मीडिया प्लेटफार्म सभी स्थानों पर हमें अप्रचार के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। ‘जैसे को तैसा’ के तर्ज पर मुंहतोड़ उत्तर देना होगा। उन्होंने कुछ प्रेरक उदाहरण देकर भी लोगों का मार्गदर्शन किया। जनजाति संस्कृति सभ्यता के संरक्षण-संवर्धन हेतु उन्होंने जनजाति मानबिंदु के प्रतीक महापुरुषों एवं देवताओं की जयंती बड़े स्तर पर शुरू करने और जनजाति, लोक संस्कृति, नृत्यकला, लोककला, हस्तकला आदि कलाकारों को प्रोत्साहित करने के साथ ही साथ पर्व त्योहारों को धूमधाम के साथ मनाने का आह्वान किया।

जनजाति विकास मंच के अध्यक्ष नरेश मराड ने अपने वक्तव्य में सिंह गर्जना करते हुए कहा कि जनजाति समाज वास्तविकता में हिंदू ही है, हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है। इसलिए आज भी हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्वों, परम्पराओं एवं लोकगीतों में प्रभु राम, शिव, हनुमान आदि हिंदू देवी देवताओं का उल्लेख होता है। उन्होंने हिंदू पूजा पद्धति एवं पर्वों में जनजाति समाज की समानताओं को विशेष रूप से उल्लेखित किया और यह स्पष्ट किया कि हम सब एक हैं।

हर वर्ष जनजातियों को बौद्धिक रूप से जागरूक करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। जनजाति चेतना परिषद का यह आयोजन डहाणू के वडकून स्थित पांचाल समाज सभागार में किया गया। वसई के गटविकास अधिकारी प्रदीप डोल्हारे के हाथों क्रांतिवीर बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया।

कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में उल्हासनगर मनपा के उपायुक्त अजित रत्ना गोवारी, वसई के गटविकास अधिकारी प्रदीप डोल्हारे, विशेष अतिथि मातोश्री हॉस्पिटल की बालरोग विशेषज्ञ डॉ. जयश्री भुसारा, मुख्य वक्ता लक्ष्मण मरकाम सहित डॉ. प्रशांत कनोजा, डॉ. संजय लोहार, एड. रविंद्र वैजल, नरेश मराड, सुनील कामडी आदि मान्यवर मंच पर उपस्थित थे। इस दौरान विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देनेवाले तथा जनजाति समाज का नाम रोशन करने वाले अनेक गणमान्य जनों को शाल, श्रीफल, स्मृतिचिह्न एवं पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में जनजाति विकास मंच के अध्यक्ष नरेश मराड, सचिव छगन बावरे, सह सचिव संतोष हड्बाल, संतोष जनाठे, जगन्नाथ हिलिन, एड. यशवंत कोदे, विवेक करमोड़ा, राजेश कोरडा, विकास कनोजा, योगेश भुयाल, रविन्द्र भुरकूडे, संजय पारधी, अंकुश शिंगडा, प्रदीप बायेडा, दामोदर जी आदि ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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Tags: folk artfolk artistsfolk musicindigenous tribes of indiajanajati chetna parishadjanajati vikas manch

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