वैलेंटाइन डे एक गम्भीर चुनौती

प्रेम वह है जो जीव में आसक्ति न स्थापित होने दे, प्रेम वह है जो प्राणी मात्र के कल्याण की कामना करें। प्रेम वह है जहां शांति की स्थापना हो, प्रेम वह है जहां मन, बुद्धि, हृदय में सात्विकता हो, प्रेम वह है जहां कोई पर्दा न हो, प्रेम वह है जहां सत्यता को स्वीकारने में कोई संकोच न हो, प्रेम वह है जहाँ कोई ऊंच-नीच, भेद-भाव, छुआछूत आदि का कलंक न हो, प्रेम वह है जहाँ आनन्द हो, और अन्ततः प्रेम वह है जहां मोक्ष की कामना हो। फरवरी माह की सात से चौदह तारीख के बीच मनाये जाने वाले वेलेंटाइन डे से आज कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। खासकर इस दिवस के लिए युवा पीढ़ी पूरे साल लालायित और बेसब्र दिखती है।

मानों हमने वेलेंटाइन डे को एक परंपरा का रूप देकर इसका निर्वहन करना अपना परम कर्त्तव्य समझ लिया है। आज की युवा पीढ़ी जिस वेलेंटाइन डे को प्रेम दिवस की संज्ञा देकर मना रही है उन्हें वेलेंटाइन डे की हकीकत से रू-ब-रू कराना बेहद जरूरी है। इसलिए प्रेम जैसे पवित्र शब्द को बदनाम न किया जाए, इसके अर्थ को अनर्थ में न परिवर्तित किया जाए, इसके भाव को कलंकित न किया जाए आज यही समय की मांग है। आज भारतवर्ष में भी प्रेम जैसे पवित्र शब्द पर प्रेम दिवस (वैलेंटाइन डे) के नाम पर विनाशकारी, कामविकार का विकास हो रहा है जो आगे चलकर डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, खोखलापन, पशुप्रवृत्ति की ओर ढकेल रहा है। वर्तमान समय में भारतवर्ष में भी पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करने वाले लोग वैलेंटाइन डे के नाम पर फूहड़ता वाला सप्ताह मनाने लगे हैं।

वैलेंटाइन डे जैसी कुप्रथाओं की वजह से आध्यात्मिक भारत मे भी लोग अश्लीलता, फूहड़ता, स्वच्छन्दता, निर्लज्जता को फैशन मानने लगे हैं। वैलेंटाइन डे की दुराचार की बीमारी आज लगातार भारत में बढ़ती जा रही है जिसका सबसे बड़ा कारण है बाजारीकरण। व्यावसायिक कम्पनियां अपने फायदे के लिए इस प्रकार के डे मनाने के लिए बाजार में विज्ञापन देते हैं और खरीददारी के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिससे उनका बड़ा फायदा होता है और भारतीय संस्कृति अपसंस्कृति में शनैः शनैः परिवर्तित होती है। वस्तुतः वैलेंटाइन डे बाजारीकरण, पाशुविक और वासनावृत्ति को बढ़ावा देने वाला दिन है। स्वार्थी तत्वों द्वारा इसे बढ़ावा देकर युवा व बाल पीढ़ी को विनास की ओर धकेला जा रहा है। फूल, चॉकलेट, अश्लील पुस्तकें, ग्रीटिंग कार्ड, गिफ्ट कम्पनी एवं अनेक विदेशी यूट्यूब चैनल, विदेशी कम्पनियां अपने आर्थिक लाभ हेतु चरित्रभ्रष्ट करने के लिए अरबों करोड़ो रूपये खर्च करती हैं। जिसके शिकार सम्पूर्ण विश्व के लोग हो रहे हैं। वैलेंटाइन डे के द्वारा बाल व युवा पीढ़ी को नैतिक, चारित्रिक, एवं सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करके धन कमाना चाहती हैं। वैलेंटाइन डे का दुष्प्रभाव देखते हुए कई देशों ने इसे न मनाने की सिफारिश की है, कई बड़े लोगों ने भी इसे रोकने का सुझाव दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार कई विकसित देशों में भी इसके चलते वहां बहुत सारी समस्याएं पैदा हो रही हैं जिससे वहां कुछ कठोर निर्णय लिये जा रहे हैं।

वैलेंटाइन डे के चलने वाले सप्ताह में युवक व युवतियों में सुसाइड के मामले बढ़े हैं। वैलेंटाइन डे की आड़ में प्यार के झांसे में फंसाकर धोखाधड़ी करने वालों का काम भी जोरों पर रहता है। हर मनुष्य अपने संस्कारों से ही पहचाना जाता है। उसके संस्कार ही समाज में उसे प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठत बनाते है। तो हम ऐसी संस्कृति का अनुसरण क्यों करें जिसमें हमारा जीवन अंधकार की घोर खाई की ओर जा रहा हो। यूरोप और अमेरिका का समाज एक पत्नी नही बल्कि वह अनेक स्त्रियों में विश्वास करता है। यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या महिला मिले जिसकी एक ही शादी हुई हो, ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके वहां। पाश्चात्य सभ्यता में एक शब्द है “लिव इन रिलेशनशिप” इसका मतलब होता है कि “बिना शादी के पति-पत्नी की तरह रहना”। अब यही वैलेंटाइन-डे भारत में आ गया है । यहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है ।

अब ये वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़कियाँ बिना सोचे-समझे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। भारत देश संस्कारी देश है। यहाँ हर रिश्ते का अपना महत्व है। इस देश में पति को नारायण और पत्नी को लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है। भारत की नारी को भोग की वस्तु नही बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

ऐसे भारत देश में वैलेंटाइन डे की गन्दगी से युवावर्ग जिस दिशा की ओर बढ़ रहा है वो बहुत ही भयावह है। तो हम ऐसी संस्कृति का अनुसरण क्यों करें जिसमें हमारा जीवन अंधकार की घोर खाई की ओर जा रहा हो। इससे तो अच्छा हम अपनी पवित्र संस्कृति अपनाएं। हमारे शास्त्रों में माता-पिता को देवतुल्य माना गया है और इस संसार में अगर कोई हमें निस्वार्थ और सच्चा प्रेम कर सकता है तो वो हमारे माता-पिता ही हो सकते है। वैलेंटाइन डे भारतीय सभ्यता के लिए एक गंभीर चुनौती है। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसके बावजूद पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में भारत के युवा जकड़े जा रहे हैं। हमारे देश के युवा वर्ग का सही मार्गदर्शन करने के लिए कोई आगे नहीं रहा है। जिसकी वजह से वैलेंटाइन डे भारतीय युवाओं पर हावी हो रहा है। इसलिए भारत के युवकों अपसंस्कृति को छोड़कर भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित हों और आगे बढ़े। भारत ही सबका मार्गदर्शन करें यही आज सभी की जिम्मेदारी है।

– बालभास्कर मिश्र

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