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हिंदुत्व की सबसे बड़ी देन ‘बौद्धिक स्वतंत्रता’

Galileo Galilei (1564-1642) before members of the Holy Office in the Vatican in 1633, 1847. Found in the Collection of Musée du Louvre, Paris. (Photo by Fine Art Images/Heritage Images/Getty Images))

हिंदुत्व की सबसे बड़ी देन ‘बौद्धिक स्वतंत्रता’

by हिंदी विवेक
in विज्ञान, विशेष, सामाजिक
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सन् 1633 यानि ईसा के सलीबीकरण के 1600 साल बाद मिनर्वा, रोम का एक कॉन्वेंट।

घुटनों पर बैठ जाओ और माफी मांगो उन अपराधों की जो तुमने अपनी अज्ञानता में की है। मजहबी अधिकारियों की आवाज़ आते ही एक अपराधी घोषित किये जा चुके शख्स को सिपाहियों ने जबरन उसके घुटने पर बिठा दिया।

उसने बेचारे ने उनसे माफ़ी मांगने के लिए मुंह खोला ही था कि (अ)धर्माधिकारी गरजे:- ठहरो! माफी में तुम वही पढ़ोगे जो तुमको लिखकर दिया गया है। उसके सिवा कुछ भी नहीं।

उनकी क्रूर आज्ञा मिलते ही सिपाही ने एक कागज़ का टुकड़ा गैलिलियो के हाथ में थमा दिया।

यंत्रवत जड़वत गैलीलियो पढ़ता चला गया –

“सभी अतिविशिष्ट व्यक्तियों एवं विश्वासी ईसाईयों के मन से मेरे कारण उत्पन्न आशंका को दूर करने के उद्देश्य से मैं सच्चे मन और निष्कपट आस्था व विश्वास के साथ अपनी की गई गलतियों, अधर्म और पवित्र कलीसा के विरुद्ध की गयी सभी अन्य गलतियों और निषिद्ध मतों का शपथपूर्वक त्याग करता हूं उनके लिए स्वयं को कोसता हूं, और उनसे नफरत करता हूं।साथ ही मैं यह भी शपथ लेता हूं कि भविष्य में कभी भी मौखिक या लिखित रूप से कोई ऐसी अभिव्यक्ति या दावा नहीं करूंगा, जो मेरे बारे में इस जैसी आशंका पैदा करे। मैं इस शपथ के साथ खुद को वचनबद्ध करता हूं और इसे सत्यापित करने के लिए मत-त्याग के इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रहा हूं।”

कहते हैं, इस प्रकार अपने मत-त्याग की शपथ लेने और क्षमा-याचना के लिए घुटनों के बल बैठे गैलीलियो जब उठे तो निर्लिप्त भाव से धीरे-से बोले- ‘मैं फिर कहूंगा कि यह (पृथ्वी) घूमती है।’

आश्चर्य है न फरीसी, पुरातनपंथी, याजक और पुरानियों के अधार्मिक वर्चस्व को चुनौती देने वाले मसीह ईसा जिनको सलीब दी गई थी उनके मत के अनुयायी गैलिलियों के साथ भी वही कर रहे थे जो सोलह सौ साल पहले ईसा के साथ किया गया था।

कारण क्या है कि ज्ञान विज्ञान और तर्क बुद्धि जिन बातों को नहीं मानती उसे भी जबरन मनवाया जाता है? कारण है सोच में तार्किकता और बुद्धिमता की कमी और उसे दबाने की प्रवृत्ति जो उनके झूठे वर्चस्व को चुनौती देती हो।

मजहब जब आपके रोजमर्रा के जीवन और चिंतन शैली में जबरन घुसने लग जाया करे तो उसकी अंतिम परिणति यही होती है और समाज विद्रोह कर बैठता है। तत्कालीन रूप से भले अहंकार विजयी हो पर अंत में जीतता सत्य ही है क्योंकि प्रकृति में सिवाय ईश्वर अंतिम सत्य कुछ भी नहीं होता। हरेक सत्य सापेक्ष होता है।

चर्च और पोप तमाम क्रूरताओं के बावजूद गैलीलियो के नाम और उसके यश को मिटा नहीं पाये। आज की पीढ़ी गैलीलियो पर गर्व करती है, उसके साहस को नमन करती है और दूसरी ओर उन्हें प्रताड़ित करने वालों की हंसी उड़ाते हुए उनकी ज़हालत पर अफ़सोस करती है।

इसलिए बाद में चर्च के कुछ जिम्मेदारों को भी एहसास हुआ कि अपनी पवित्र किताब की अवैज्ञानिक मान्यता के आसरे अगर उनका समाज रहता तो न ही यूरोप की औद्योगिक क्रांति आती, न नासा जैसी संस्था का अस्तित्व होता और न ही यूरोप में और पश्चिम जगत में ज्ञान और विज्ञान आता।

गलिलियो के दुनिया छोड़ने के चार सौ साल बाद अभी से कुछ दशक पहले चर्च ने गैलीलियो के साथ की गई अपनी ज्यादतियों के लिए माफी मांगी और प्रायश्चित स्वरूप वेटिकन में उनकी मूर्ति स्थापित कराने की घोषणा की।

मुझे हिंदू होने पर गर्व इसलिए है क्योंकि हिंदू धर्म चिंतन की चैतन्यता को जीवित रखता है, नवीन और वैज्ञानिक मान्यताओं को अनुमति देता है, तर्क और न्याय दर्शन को स्वीकारता है, विज्ञान को मानता है, वाद- विवाद की परंपरा का पोषण करता है। यही कारण है कि हमारे यहां जीसस, ब्रूनो, गैलीलियो और जॉन ऑफ आर्क जैसे तो कई हुए पर उनको न तो जिंदा जलाया गया, न सलीब दी गई और न ही यातनाएं।

मानव जाति को हिंदुत्व की सबसे बड़ी देन यही ‘बौद्धिक स्वतंत्रता’ है जो किसी के पास नहीं है, इसे बनाए रखिए तो एक दिन सब इस ओर आ जायेगा।

– अभिजित सिंह 

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Tags: astronomerengineergalileo galileiphysicist

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