सिसोदिया की गिरफ्तारी पर हाय तौबा 

आम आदमी पार्टी के नेता अपने बयानों और विरोध प्रदर्शनों से यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी केवल राजनीतिक कारणों से हुई है। हालांकि दिल्ली की शराब नीति की जांच एजेंसियों द्वारा छानबीन पर नजर रखने वालों के लिए यह किसी दृष्टि से आश्चर्य की घटना नहीं है। वैसे कुछ महीनों में मनीष सिसोदिया की भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी स्वतंत्र भारत की राजनीति की बहुत बड़ी ट्रेजेडी है। मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल के बाद अन्ना हजारे अभियान के दूसरे प्रमुख चेहरे थे। आप याद करेंगे तो मनीष सिसोदिया अन्ना हजारे के साथ रहते थे। अनको कहां ले जाना है, कहां बयान देना है सब कुछ सिसोदिया के जिम्मे था।

अन्ना अभियान भारतीय राजनीति और सत्ता से भ्रष्टाचार के अंत के नाम पर हुआ था। दिल्ली के लोगों ने आप को उस माहौल के कारण ही भारी बहुमत दिया था। कल्पना कर सकते हैं कि जिन लोगों ने अरविंद केजरीवाल ,मनीष सिसोदिया और इनको साथियों से एक नई राजनीति की उम्मीद की होगी उन्हें कितना बड़ा धक्का लगा होगा। हालांकि सत्ता में आने के साथ ही आम आप नेताओं का व्यवहार अन्ना अभियान से बिल्कुल विपरीत होता गया। पार्टी के विधायकों, नेताओं और मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पिछले वर्ष मई से ही जेल में है। पर उनका इस अभियान से उस तरह जुड़ाव नहीं था जैसा  केजरीवाल और सिसोदिया का था। इस नाते सिसोदिया की गिरफ्तारी पूर्व में हुई भ्रष्टाचार के आरोपों में अन्य नेताओं की गिरफ्तारी से बिल्कुल अलग बहुत बड़ी घटना मानी जाएगी।

 केजरीवाल सहित आप के नेता जो भी तर्क दे रहे हैं वह सरकार के पूरे व्यवहार और शराब घोटाले के मामले पर गहराई से नजर रखने वालों के गले नहीं उतर सकता। सीबीआई जैसे उपमुख्यमंत्री स्तर के नेता को, जिसके पास सरकार के 18 मंत्रालय हो बार-बार पूछताछ के लिए बिना ठोस संदेश और आधार के नहीं बुला सकती। नई आबकारी नीति को अंतिम रूप देने के लिए बनाए गए मंत्रिमंडलीय समूह के प्रमुख मनीष सिसोदिया ही थे। सत्येंद्र जैन और कैलाश गहलोत इसमें शामिल थे।  मामले में ईडी द्वारा 9 लोग गिरफ्तार हुए तथा दो आरोप पत्र दाखिल यह जा चुके हैं तो भ्रष्टाचार है। सीबीआई को देखना था कि इस भ्रष्टाचार में मनीष सिसोदिया की सीधी संलिप्तता है या नहीं? जो कुछ सामने आया है उसके अनुसार अब सीबीआई सिसोदिया को भ्रष्टाचार का षड्यंत्र रचने से लेकर अंजाम दिलाने तक में प्रमुख भूमिका देख रही है। निस्संदेह, सब कुछ न्यायालय के फैसले पर निर्भर करेगा। सिसोदिया पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7, भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी यानी आपराधिक साजिश और 477 ए यानी खातों में फर्जीवाड़ा आदि लगा है। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7 भ्रष्ट या गैरकानूनी माध्यमों या निजी प्रभाव का इस्तेमाल करके सरकारी सेवक को प्रभावित करके अनुचित लाभ लेने से संबंधित है।

पहली नजर से मामले को देखें तो आप नेताओं की तरह यह नहीं मान सकते कि सिसोदिया की गिरफ्तारी किसी राजनीतिक कारण से की गई यानी उन्हें जानबूझकर फंसाया गया है। सीबीआई की ओर से गिरफ्तार किए जाने के कारणों से संबंधित जो कुछ सामने आया है उसके कुछ बिंदुओं का उल्लेख जरूरी है। एक ,सिसोदिया डिजिटल साक्ष्यों और गवाहों के बयान पर संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए। दो, उनसे जो कुछ पूछा गया उसमें अधिकांश प्रश्नों को उन्होंने टालने की कोशिश की। तीन, वे इस बात का उत्तर नहीं दे सके कि नई शराब नीति आने के पहले ही शराब कंपनियों के पास उसका दस्तावेज कैसे पहुंच गया? सिसोदिया के सामने व्हाट्सएप पर लीक नीति के स्क्रीनशॉट रखे गए। चार, दक्षिण भारत की लॉबी 100 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान क्यों दिया इसका जवाब भी वे नहीं दे पाए। पांच,  सरकारी गवाह बने दिनेश अरोड़ा के बयानों का सिसोदिया खंडन नहीं कर पाए हैं।

दिनेश अरोड़ा मनीष सिसोदिया के सहयोगी रहे हैं। सीबीआई ने अरोड़ा का दंडाधिकारी के समक्ष धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराया। हालांकि अरोड़ा का बयान सार्वजनिक नहीं है किंतु उनमें ऐसी बातें हैं जिससे सिसोदिया संपूर्ण भ्रष्टाचार के शीर्ष पुरूष साबित होते हैं। और छह,अन्य आरोपियों के साथ सिसोदिया ने मोबाइल नष्ट क्यों किए इसका भी  संतोषजनक उत्तर देना उनके लिए संभव नहीं रहा। अन्य आरोपियों के साथ सिसोदिया द्वारा नष्ट मोबाइलों के नंबर और हैंडसेट की विस्तृत जानकारी सीबीआई के पास है। विभिन्न लोगों के नाम के हैंडसेट व सिम कार्ड वाले कुल पांच मोबाइलों का उपयोग वे करते थे। इन नंबरों पर जिनने सिसोदिया से बात की उन्होंने जांच एजेंसी को बताया । अगर इरादा गलत नहीं था तो इन मोबाइलों को, जिनके नाम से थे, वापस किया जाता । इन्हें नष्ट करना इस संदेह को मजबूत करता है कि इसके पीछे सबूतों को समाप्त करने की भावना थी। तो ये सारे कारण सीबीआई की दृष्टि में उनके गिरफ्तारी के बनते हैं ।

आप सीबीआई के पहले आरोप पत्र और ईडी के दोनों आरोप पत्रों पर सरसरी नजर दौड़ायें तो शराब नीति और इससे जुड़ी भ्रष्टाचार की पूरी तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। आप का यह तर्क गलत है कि सीबीआई द्वारा 8 महीने की जांच के बावजूद कुछ भी सिसोदिया के विरुद्ध प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि आरोपपत्र में उनका नाम नहीं है। सबूतों के साथ अन्य आरोपियों की सूची में  नहीं लेकिन सभी आरोप पत्रों में मनीष सिसोदिया का नाम है। पहले आरोपपत्र में सीबीआई ने स्पष्ट लिखा है कि मनीष सिसोदिया मुख्य आरोपी हैं जिनके विरुद्ध जांच चल रही है। तीनों आरोप पत्रों में जगह-जगह चर्चा है कि कैसे पैसे के लेनदेन हुए, किन-किन से कब बातचीत और किनके साथ बैठकें हुईं , किस तरह शराब नीति तैयार करने में भूमिका रही…। आरोप पत्र में उनके नाम न होने की बात बिल्कुल गलत है। इनमें सिसोदिया के तत्कालीन सचिव और दिल्ली सेवा के अधिकारी अरविंद का बयान है कि जीओएम की किसी बैठक में थोक विक्रेता को 12% कमीशन देने पर चर्चा नहीं हुई थी। सिसोदिया ने उन्हें फोन करके मुख्यमंत्री आवास पर बुलाया था जहां सत्येंद्र जैन भी मौजूद थे। वही सिसोदिया ने उन्हें एक नोट दिया और उसके आधार पर जीओएम की रिपोर्ट तैयार करने को कहा। इसी नोट में थोक विक्रेता को 12% कमीशन देने का उल्लेख था।

सीबीआई और ईडी दोनों का कहना है कि  12% में से आधा नगद के रूप में आप के पास जाता था। जिसे दक्षिण लौबी कहा गया उसे 100 करोड़ का अग्रिम इस छह प्रतिशत कमीशन के एवज में गया था। वैसे पहली नजर में देखने से ही लगता है कि दिल्ली सरकार की शराब नीति में नियमों का उल्लंघन करने के साथ कैसे शराब निर्माताओं से लेकर थोक और खुदरा कारोबारियों आदि से फंड प्राप्त किया जाए इसके पूरे आधार बनाए गए। सीबीआई और ईडी दोनों ने लाइसेंसधारकों को लाइसेंस शुल्क माफ या कम करके अनुचित लाभ दिलाने का आरोप लगाया है। इससे बचने के लिए खातों में गलत प्रविष्ठियां भी सामने आई। कोरोना के कारण 28 दिसंबर, 2021 से 27 जनवरी, 2022 तक निविदा लाइसेंस शुल्क पर छूट दी गई थी जिससे सरकार को करीब 144.36 करोड़ रुपए के नुकसान की बात है। ध्यान रखिए ,सिसोदिया की गिरफ्तारी के पूर्व ईडी और सीबीआई आबकारी नीति को प्रभावित करने वाले दर्जनों संदिग्ध सरकारी और प्राइवेट लोगों से पूछताछ कर चुकी है, दिल्ली,  मुम्बई, गुरुग्राम, फरीदाबाद, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और पंजाब के दर्जनों स्थानों पर छापे के साथ वहां से प्राप्त साक्ष्यों की कड़ियां जोड़ने में भी काफी हद तक सफल  है।

वैसे मामला केवल सिसोदिया तक सीमित नहीं है। आरोप पत्रों में अरविंद केजरीवाल का भी उल्लेख है। उदाहरण के लिए ईडी ने अपने आरोपपत्र में कहा है कि आरोपी विजय नायर ने अपने फोन से फेसटाइम वीडियो कॉल से शराब कंपनी इंडोस्पिरिट्स के प्रबंध निदेशक समीर महेंद्रू की अरविंद केजरीवाल से बात कराई थी।  इसके केजरीवाल ने समीर महेंद्रू से कहा ‘विजय मेरा लड़का है, आपको उस पर भरोसा करना चाहिए और उसके साथ काम करना चाहिए।’ ईडी के आरोप पत्र में इन पैसों का गोवा चुनाव प्रचार में खर्च करने का आरोप भी है। आरोप पत्र में कहा गया है कि आप के सर्वे दल में शामिल वालेंटियरों को करीब 70 लाख रुपए का नकद भुगतान किया गया। कम्यूनिकेशन इंचार्ज विजय नायर ने कुछ लोगों को नकद भुगतान लेने को कहा था। इसी आरोपपत्र में कहा गया है कि विजय नायर आप की ओर से

आंध्रप्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सांसद मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी, उनके बेटे राघव मगुन्टा, अरबिंदो फार्मा के डायरेक्टर पी सरथ चंद्र रेड्डी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी कविता कलवकुंतला के एक समूह से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत ली थी। विजय नायर केवल सिसोदिया के लिए नहीं बल्कि पूरी पार्टी के लिए काम कर रहे थे। इसमें इस बात के विवरण है कि हैदराबाद के व्यवसायी अभिषेक बोइनपल्ली ने सिसोदिया के सहयोगी दिनेश अरोड़ा के साथ मिलकर पैसे ट्रांसफर कराए। जब तक न्यायालय अंतिम तौर पर फैसला नहीं देता कौन कितना दोषी है इसके बारे में शायद अंतिम निष्कर्ष निकालना कठिन हो लेकिन शराब घोटाला हुआ इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। घोटाले और आबकारी नीति पर लगे आरोपों का स्वीकार्य जवाब देने की जगह आप के नेता इसे नैतिकता और विशिष्ट राजनीति के ऊंचे पायदान पर खड़े होने का जो पाखंड कर रहे हैं उसे कोई विवेकशील व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता। केजरीवाल भारत की पहली सरकार है जिसने दिल्ली के लोग शराब की सर्वाधिक खपत करें इसे प्रोत्साहन देने के लिए ज्यादा बोतल खरीदने पर ज्यादा छूट से लेकर देर रात तक शराब परोसे जाने यहां एवं वहां हर प्रकार के मनोरंजन के साधन इस्तेमाल की स्वतंत्रता दी। यह नैतिक मामला है जिसका कानूनी जवाब नहीं हो सकता। हर दृष्टि से यह शर्मनाक और निंदनीय नीति थी। नीति को वापस ले लेने से केजरीवाल सरकार के अपराध कम नहीं हो जाते।

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