नागरिक उत्तरदायित्वों को स्पष्ट करती पुस्तक

विश्व की हर भाषा में लोगों को मोटिवेट करने के लिए ग्रंथों की भरमार है। बहुत से लोग केवल लफ्फेबाजी करते हैं और उनकी बातें किसी ठोस कार्य का परिणाम नहीं होती। परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने अनुभवों एवं कार्यों को किसी पुस्तक के शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यदि आप गहराई से उनकी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं तो उनके मनोभावों की गहराई, जो उनके कर्म में भी परिलक्षित होती है, के दर्शन अनायास हो जाते हैं। सविता राव की आंग्ल भाषा में लिखी पुस्तक ‘इंडिया पॉजिटिव सिटिजन’ भी उन्हीं में से एक है। अंग्रेजी संस्करण की अपार सफलता के बाद पाठकों के बीच इसके हिंदी संस्करण को लेकर उत्सुकता थी। अब पुस्तक का हिंदी अनुवाद भी इसी शीर्षक से पाठकों के लिए उपलब्ध है।

नागरिक मुद्दों पर कार्य करने वाली सविता राव की इस पुस्तक में आप भारत के विभिन्न हिस्सों के अद्भुत लोगों से रूबरू होंगे। इसके माध्यम से आप उनके द्वारा किए जाने वाले सामाजिक कार्यों और उससे लोगों को जोड़ने की कला से भी परिचित होंगे क्योंकि चाहे सड़क पर डाले जाने वाले कूड़े-कचरे की बात हो, वायु प्रदूषण हो, देश की महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा की बात हो या समानता की पहल; एक राष्ट्र के रूप में हम जिन महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना करते हैं, आम नागरिकों की सहायता के बिना उनसे पार पाना असम्भव है। लेखिका ने आम जन को प्रेरित करने के लिए 2012-1013 में ‘इंडिया कुछ कर’ अभियान की शुरुआत की, पर उन्हें अपने कार्यों का बेहतर परिणाम 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद मिलना शुरू हुआ। नरेंद्र मोदी की स्वच्छ भारत की पहल को लोगों का व्यापक समर्थन मिलने से उनके कार्यों को भी व्यापक गति मिली। लेखिका यह मानती हैं कि, उससे पहले कोई नेता देश के नागरिकों को जन सामान्य के मुद्दों पर इतने बड़े पैमाने शामिल नहीं करवा पाया था। सविता राव के लेखों में भी यह भाव परिलक्षित होता है। शुरू के 9 अध्याय भारत की आंतरिक और बाह्य शक्ति के प्रवर्तकों के नाम हैं। इस भाग का हर अध्याय किसी महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित ललित निबंध है। इनमें से हर विषय एक महाग्रंथ लिखे जाने की काबिलियत रखता है लेकिन लेखिका में उस पर सरल शब्दों में प्रकाश डालने का प्रयास किया है। उसके बाद हर सप्ताह के मोटिवेशन के लिए एक कहानी के हिसाब से साल भर के लिए 52 कहानियों का गुच्छा पिरोया गया है, जिसमें समाज के हर पहलू को समाहित करने का प्रयास किया गया है। यहां पर भी लेखिका कम शब्दों में ज्यादा भाव व्यक्त कर पाने की काबिलियत का बेजोड़ प्रदर्शन करती हैं। पुस्तक के अंतिम भाग में उन्होंने अपनी संस्था के कार्यों, उसके विस्तार, मानवीय पक्ष आदि पर भी चर्चा की है। पुस्तक का यह वही अंश है जिस पर हम समीक्षा की शुरुआत में चर्चा कर चुके हैं। यह अंश लेखिका के किए गए कार्यों को विस्तार से बताने के साथ ही पुस्तक की विश्वसनीयता को भी बढ़ा देता है।

अंग्रेजी और हिंदी के संस्करणों को पढ़ने के बाद एक बात मन में आती है कि भाषा का जो प्रभुत्व अंग्रेजी में दिखाई देता है उसका एक तिहाई भी हिंदी में दिखाई नहीं देता। भाषा असुलभ होने के कारण शुरू के 2-3 पन्ने पढ़ने के बाद ही ऊब होने लगती है जो कि पूरी पुस्तक पढ़ने से परावृत्त करती है। पुस्तक में ले-आउट का भी कोई ध्यान नहीं रखा गया है। लेख कहां समाप्त हो रहे हैं, पन्ने कहां छोडे गए हैं, इनका कोई तालमेल नहीं हैं। समीक्षा के लिए वाचन करते समय मुझे भी इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा। प्रस्तुतीकरण और भाषा इन दो गम्भीर मुद्दों को यदि दरकिनार कर दें तो विचारों के प्रवाह की दृष्टि से पुस्तक अच्छी कही जा सकती है।

इस तरह की पुस्तकें केवल पढ़ने के लिए नहीं होती। इनका मूल उद्देश्य होता है कि आप इनसे प्रेरणा लेकर राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान को लेकर सजग हों। इससे आपका द़ृष्टिकोण विकसित होता है और आप अपने कार्यों को जीवंत तरीके से करने के अलावा अन्य लोगों को अपने कार्यों से प्रभावित कर सकेंगे।

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