‘हिंदी विवेक’ की जयपुर यात्रा

हिंदी विवेक परिवार हर साल अपने कर्मचारियों के लिए दो शानदार पिकनिक आयोजन करता है, जिसके अंतर्गत देश के किसी भूभाग का भौगोलिक और सांस्कृतिक अवलोकन करते हैं। जिसका उद्देश्य होता है कर्मचारियों के जैविक परिवार और कार्यस्थल के परिवार का मिलन। यदि कोई संस्था अपनी कर्मचारियों के साथ-साथ उसके परिवार की मानसिक सेहत काफी ख्याल रखें तो दोनों परिवारों के बीच कुछ अलग और अनूठा रिश्ता कायम हो जाता है। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण पहल कर्मचारियों की सपरिवार पिकनिक के माध्यम से ही किया जा सकता है। हर साल होने वाले इस सामूहिक यज्ञ के वर्तमान चरण के अंतर्गत हिंदी विवेक परिवार के सभी सदस्यों ने रजवाड़ों की नगरी राजस्थान की राजधानी जयपुर और उसके पास धार्मिक शहर पुष्कर पर्यटन स्थल का आनंद उठाया और अपने देश की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का भरपूर आनंद लिया। पिकनिक की शुरुआत 21 जनवरी को मुंबई के बोरिवली स्टेशन से हुई और 26 जनवरी की सुबह इसी स्टेशन पर उतर कर सबने थकान मिटाने के लिए अपने अपने घरों की राह ली, ताकि अगले दिन भरपूर ऊर्जा से आफिस के कार्यों का समन्वयन करने के लिए तैयार हो जाएं।

21 जनवरी को कुछ लोग ऑफिस आए थे जबकि बाकी लोगों को परिवार सहित बोरिवली स्टेशन पर उपस्थित होना था। लगभग 5:00 बजे सभी लोग बोरिवली पहुंच गए लेकिन मुकेश गुप्ता जी नदारद थे। कई बार उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उधर से कोई फोन नहीं उठा रहा था। संतोष की बात यह थी कि ट्रेन 10 मिनट लेट थी और ट्रेन खुलने से कुछ मिनट पहले गुप्ता जी स्टेशन पर नमूदार हुए। अद्भुत और नैनाभिराम दृश्य था। वे अपने दोनों गोद में दोनों बच्चियों को उठाने के अलावा बड़ा सा बैग लिए अपनी निश्छल मुसकान बिखेरते हुए चले आ रहे थे, और उनके पीछे लम्बे लम्बे डग भरती हुई उनकी पत्नी भीं। उनके सपरिवार आ जाने से हम सभी ने राहत की सांस ली, जबकि राजेंद्र नगरकर उनकी एक बेटी को अपनी गोद में लेकर लाड़ करने लगे।

सभी लोगों की सीटें एक ही डिब्बे में थीं और पिकनिक का उल्लास सबके मन हिलोरें मार रहा था। हमारी ट्रेन ने सही समय पर गंतव्य तक पहुंचाया और हमारी पिकनिक के लिए पहले से आरक्षित बस ने शहय का एक अर्धवृत्ताकार चक्कर काटते हुए हमारे होटल तक पहुंचाया। दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर और वहां के सुस्वादु हल्के भोजन का आनंद ले हम अपने पहले पड़ाव की ओर चल पड़े। सारथी महोदय ने रास्ते में एक छोटा सा ब्रेक लिया और विधानसभा के पास बने शहीद स्मारक के दर्शन करने का मौका दिया। राजस्थान के वीर सपूतों को समर्पित स्मारक लाल बलुआ पत्थर से बना है। तमाम राजकीय भवनों के बीच यह स्मारक तारों के बीच चंद्रमा की तरह अलग और विशिष्ट आभा बिखेर रहा है। हम सब ने वहां पर समूह चित्र लिया और राष्ट्र के सपूतों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी।

 

बिड़ला मंदिर का धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल तथा सुरम्य वातावरण सैलानियों के मन को असीम संतोष से परिपूर्ण आह्लाद का अनुभव करवा रहा था। पर हमें कहां मालूम था कि हमारी मनःस्थिति लगभग एक घंटे के भीतर 180 डिग्री पर घूम जाने वाली थी, क्योंकि हमारी शाम राजस्थानी संस्कृति, राजपूती शान और मनभावन देशी कार्यक्रमों के बीच चोखी ढाणी में गुजरने वाली थी।

चोखी ढाणी का मतलब होता है ’अच्छा गांव’। यहां आपको मिलेंगे राजस्थान के अलग अलग इलाकों के लोक नृत्य, जिसमें की कालबेलिया नाच सबसे अधिक प्रसिद्ध है। चोखी ढाणी में है तो बहुत कुछ है पर बताने से जाकर आनंद लेने वाली चीज है। सारे दृश्यों का अवलोकन करने के बाद एक झोपड़ीनुमा हाल में ‘राम राम सा’ की आवाज के साथ गरमजोशी से आपका स्वागत होता है। खाना खिलाने वाला स्टाफ जोश से भरा है। वे सब आपको बार बार टोक देंगे, होकम थे तो काईं कोनी खा रया (हाडोती भाषा)। वैसे तो यह गांव वास्तविक गांव से काफी अलग है। फिर भी एक गांव का एहसास कराती चकाचौंध भरी दुनिया है, जिसकी संकल्पना बिकती है। पिछले दिन की तरह आज भी मैं और अमोल पेडणेकर सर नहा धोकर सबसे पहले लॉबी में पहुंच चुके थे। आज हमारा गंतव्य था जयपुर से 140 किलोमीटर दूर स्थित पुष्कर तीर्थ। बस में बैठते ही फरमाइशी गानों की कड़ी एक बार फिर से जुड़ गई। इस बार उसमें श्याम और नगरकर भी जुड़ गए। हिंदी और मराठी के लोकप्रिय गानों के बीच राजेंद्र नगरकर भाई के डांस ने चार चांद लगा दिए। पुष्कर से एक घंटे पहले ही बस बिगड़ गई इसलिए सारथी महोदय ने कुछ छोटी गाड़ियों की व्यवस्था की। प्रवास के इस भाग में हमें थार के प्रसिद्ध रेगिस्तान के सीमावर्ती भाग के दर्शन भी गए।

पुष्कर के पवित्र तीर्थ में स्नान करने के बाद हमें ब्रह्मा जी के इकलौते मंदिर में दर्शन करने का सौभाग्य मिला। यहां से बाहर निकलने के बाद हमें पता चला कि ऊंट गाड़ी से पांच-सात किलोमीटर जाने पर थार के रेगिस्तान का आनंद लिया जा सकता है। वह पहुंचने के बाद ऐसा लगा कि मानो हम किसी फिल्म या सीरियल के सेट पर आ गए हैं। कोई ऊंटगाड़ी पर फोटो खिंचवा रहा था, तो कोई रेत पर बैठकर बहुतेरे पोज बनाकर तो कोई ऊंट पर बैठकर। सूर्यकांत आयरे और उनकी पत्नी राजस्थानी वेशभूषा में अलग अलग मुद्राओं में फोटो खिंचवा रहे थे और सोनाली मैडम अपने पतिदेव सचिन जाधव के साथ आयरे युगल की फोटो खींचने में व्यस्त थीं। इस तरह के पिकनिक अत्यावश्यक हैं क्योंकि ये आपके मन के उन दरवाजों को खटखटाते हैं जिन्हें आप सामान्य जीवन में बंद किए रहते हैं। इसीलिए लम्बी छुट्टियां मनाकर लौटने के पश्चात् लोग ज्यादा ऊर्जा से काम करते हैं। ये छुट्टियां इतनी ऊर्जा भर देती हैं कि दस बातें पूछे जाने पर एक बार जवाब देने वाली तेजस्वी रायकर चहक रही थी और ऊंटगाड़ी पर अलग अलग एंगल से फोटो निकलवा रही थी।

 

                                                      

मैं इन सब पचड़ों से दूर रहने वाला जीव हूं इसलिए मैं मुंबई से ही दो अवैतनिक फोटोग्राफर लेकर चला था। प्रशांत जी का बेटा कृष्णा और पल्लवी मै’म की बिटिया सुरभि। सभी युगल नए नवेले जोड़ों की तरह मगन थे, फिर संदीप माने और उनकी पत्नी का क्या कहना! भोला की बेटी आरोही जिसे मैं प्यार से हिरोइन कहता हूं, प्राप्ति, वेदांश, रियान जैसे बच्चे तो मानों वहीं बस जाना चाहते थे। हमारे गाइड नरेंद्र में सबसे पहले हम सबको जयपुर शहर की बसाहट, इतिहास भूगोल गौरवशाली परंपरा और पिंक नगरी की विशेषताओं से अवगत कराया। हमें हवामहल और जल महल थी दूर से दर्शन कराए, जबकि मुख्य महल के बाहरी भाग, जिसे अब संग्रहालय का रूप दिया जा चुका है, के विधिवत दर्शन कराए। वहां पर हम सब ने राजसी ठाट बाट, हथियार, युद्धनीति और विलासिता के साधनों का अवलोकन किया। उसके बाद का हिस्सा पूरी तरह से महिलाओं की खरीदारी को समर्पित रहा। राजस्थान सरकार द्वारा प्रायोजित दुकान में साड़ी, कम्बल और रजाई जैसी खरीदारी के बाद महिलाओं का समूह बापू मार्केट में घुसा। चार-पांच घंटों के बाद बाहर निकलते समय हर महिला और पुरुष के दोनों हाथ थैलों से भरे थे। जबकि अमोल सर और मैं, जो इस पिकनिक में खरीदारी की पीड़ा से मुक्त थे, हनुमान मंदिर में आरती का आनंद ले रहे थे। सबके मन में यही भाव था कि, सोने से पहले अपने सामानों की किस तरह करीने से सजाना है? इन्हें रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त व्यवस्था है या कोई एक्स्ट्रा बैग खरीद लेना चाहिए। हर कोई आज के दिन का उपयोग कर लेना चाहता था क्योंकि उन्हें पता था कि अगले दिन गाड़ी में बैठने के बाद थकान उतारने के लिए भरपूर समय है।

                     

पिकनिक के कुछ दिन बाद सूर्यकांत आयरे की पत्नी ने सर और पल्लवी मै’म को फोन पर धन्यवाद दिया कि, उन लोगों के बेहतरीन संयोजन में उन्हें परिवार के साथ एक शानदार जगह देखने को मिली और इसी बहाने हिंदी विवेक परिवार के अन्य सदस्यों और उनके जैविक परिवार से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह संदेश उस जुड़ाव और संकल्प की पूर्ति का द्योतक है, जिसके लिए हिंदी विवेक परिवार इस तरह के शानदार आयोजनों निर्णय लेता है ताकि हिंदी विवेक परिवार की मजबूती का धागा और सुदृढ़ हो।

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