भारत प्रेम के नाम पर विवेकशून्य उन्माद बन्द हो

उचित और अनिवार्य कर्तव्य तो यह था कि भारत के शासक 1947 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में यह वाद ले जाते कि  इंग्लैंड के शासकों ने अनधिकृत रूप से नितांत अनुचित और अवैध रूप से समुद्र पार से आकर भारत के एक हिस्से में स्वयं को शासक घोषित कर दिया था और फिर भारत के संसाधनों का शोषण और दोहन कर बहुत अधिक धन अवैध रूप से लूटा और इसलिए 90 वर्ष की अवधि में इस प्रकार का अवैध और अनुचित शासन करने के लिए तथा भारत के लोगों की संपदा और सम्मान तथा राष्ट्रीय संसाधनों को इस प्रकार अपने छोटे से नेशन स्टेट  के सुख सुविधाओं के लिए लूट कर ले जाने और नियोजित करने अथवा राजकोष के नाम पर संचित करके ले जाने के आपराधिक कार्य के लिए अब क्षतिपूर्ति करते हुए वे तत्काल भारत को 50 अरब पाउंड क्षतिपूर्ति प्रदान करें।

परंतु दुर्भाग्यवश अंग्रेजों से अनुचित शर्तों के द्वारा अपने नाम पावर का ट्रांसफर करा  बैठे लोगों ने यह स्वाभाविक कार्य नहीं किया और अपना कर्तव्य नहीं निभाया ।
परंतु जो स्वयं को बुद्धि संपन्न और सजग प्रबुद्ध मानते हैं उन्हें कम से कम बौद्धिक स्तर पर तो सत्य को कहना चाहिए और किसी भी प्रकार अवैध एवं अन्यायी ब्रिटिश हस्तक्षेप  को शासन नहीं कहना चाहिए। उसे शासन इंग्लैंड वाले कहें तो कहें। कहते रहें। भारत वाले क्यों कहेंगे ? वह हमारे लिए शासन नहीं था, वह अत्याचार पूर्ण हस्तक्षेप मात्र था।

जहां तक मुसलमानों की बात है ,मुसलमान तो एक भी मुसलमान विदेशी नहीं है। सब यहीं के हैं। क्योंकि तब तक मध्य एशिया से चंपा तक भारत ही था। अतः भारत क्षेत्र के धर्म विहीन पापी लोगों ने  जो लूट की है ,विध्वंस किया है और लोभी हिंदुओं से मिलकर कुछ हिस्सों में जो उन्होंने साझेदारी में शासन कियाहै, उसका गुण दोष विवेचन उनके कार्यों के आधार पर किया जाए । उसे भारत की गुलामी कहना तो सरासर झूठ है और भारत द्रोह है।

– रामेश्वर मिश्र पंकज

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