अतीक के आतंक का अंत

अतीक अहमद की हत्या के बाद विपक्षी दल कितने भी आरोप लगाएं लेकिन उसके द्वारा पीड़ितों की बड़ी लम्बी सूची है। अब सारी जिम्मेदारी जांच एजेंसियों के ऊपर है ताकि उसके आकाओं के नाम सामने आ सकें।

राजनेता से माफिया बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का भी उसी खौफनाक तरीके से अंत हो गया जैसे तरीके अंजाम देने के आरोप उन पर हैं। हत्या का राज चौंकाने वाला हो सकता है परंतु आवश्यक ये भी है कि ऐसे बाहुबलियों को पालने-पोसने वाले सफेदपोशों पर भी अंकुश लगे।

15 अप्रैल को प्रयागराज में मेडिकल जांच के लिए ले जाते समय मीडियाकर्मी के रूप में आए तीन युवकों ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी। पत्रकार साथ-साथ चलते दोनों से सवाल कर रहे थे। जब अतीक से पूछा गया कि बेटे असद के अंतिम संस्कार में आपको नहीं ले जाया गया। आपका क्या कहना है? इस पर अतीक ने कहा, ‘नहीं ले गए तो नहीं गए।’ तभी पास से कनपटी पर गोली लगी और अगले 10 सेकेंड में अतीक भाई अशरफ समेत ढेर हो गया। इतनी ही देर में ताबड़तोड़ 22 राउंड गोलियां चलाई गईं। सूत्रों के अनुसार, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सामने आया है कि अतीक को नौ, जबकि पांच गोलियां उसके भाई अशरफ को लगी थीं।

यह वही अतीक था जिसने उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक और तत्कालीन एसपी सिटी, इलाहाबाद ओ.पी. सिंह को 1989 में धमकी दी थी, अगर तुम मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश करोगे तो गोली मार दी जाएगी। सिंह ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में बताया, उसने मेरे अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया और एक उप निरीक्षक के साथ दुर्व्यवहार किया। हालांकि बहस के दौरान ही उच्च-अधिकारी (बल और सरकार तथा राजनीतिक दलों में) ने शॉट्स मंगाए और उन्हें उसकी गिरफ्तारी न करने का आदेश दिया गया।

सिंह के अनुसार, उसे जबरदस्त राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, इसलिए हम उसे गिरफ्तार किए बिना लौट आए। सभी पुलिसकर्मियों की सीमाएं होती हैं जिन्हें हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। गैंगस्टर अतीक पर करीब 130 मामलों में आरोपी होने के बावजूद उसे पहली बार पिछले महीने ही दोषी ठहराया गया था।

सिंह का मानना है कि वह धर्म के साथ चलता था और मुसलमानों में मसीहा के रूप में देखा जाता था। वह बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक वोट बैंक का आनंद ले रहा था। राजनीतिक दल और नेताओं का संरक्षण इस हद तक था कि गवाह अपने बयान से मुकर गए और उनके खिलाफ मामले नहीं बन पाए। वास्तव में, यहां तक कि जब उनकी संलिप्तता कई मामलों में कथित या संदिग्ध थी, तब भी उनका नाम एफआईआर में शामिल नहीं होता था।

सिंह ने अहमद की शक्ति को राजनीति और माफिया के बीच घातक साठगांठ का जबरदस्त मिश्रण बताया। पूर्व डीजीपी ने कहा, उसे कई पूर्व मुख्यमंत्रियों का भी समर्थन प्राप्त था। उसके गिरोह के सदस्य उसे रॉबिनहुड जैसी शख्सियत के रूप में देखते थे।

नैनी जेल के पूर्व जेलर एसपी पांडेय के अनुसार, उन्हें धमकी दी थी कि इतनी गोली मारेगा कि शरीर पोस्टमॉर्टम लायक तक नहीं बचेगा। जेल का स्टाफ तक उसका खास था। वो सिस्टम का एनकाउंटर करता था। जेल में बंद अतीक से सत्ताधारी दल के एक बहुत बड़े नेता मिलने आते थे।

यह वही अतीक था, जिसके आतंक से 2012 में हाईकोर्ट के एक या दो नहीं बल्कि कुल 10 जज जमानत पर फैसला लेने से ही डर गए। इन 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। उस समय तक अतीक अहमद जेल में बंद था। चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी थी। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत दे दी। जेल से बाहर आकर अतीक ने चुनाव तो लड़ा लेकिन उसका दबदबा अब पहले वाला नहीं रहा था, तो चुनाव हार गया। हराने वाला कोई और नहीं राजू पाल की पत्नी पूजा पाल थी, जिसकी 2005 में हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में फिर से अतीक अहमद चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर इलाहाबाद से नहीं, बल्कि श्रावस्ती से। लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा।

यह वही अतीक था, जिसका परिवार कभी बेहद गरीब था और उसके पिता तांगा चला कर गुजारा चलाया करते थे। अतीक का किस्सा ये बताता है कि अगर राजनीतिक संरक्षण मिले तो कोई अपराधी किस सीमा तक जा सकता है। वो अपना कद इस हद तक तक बढ़ा सकता है कि भारतीय राज्य और इसके सारे इंस्टीट्यूशन उसके सामने बौने पड़ जाते हैं। वह इलाहाबाद पश्चिम सीट से लगातार 5 बार विधान सभा का सदस्य चुना गया। वह फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुना गया।

अतीक भले ही मुसलमानों का मसीहा बना रहा हो, लेकिन जैसे अपराधी या आतंकी का कोई धर्म नहीं होता वैसे ही लूटपाट, दादागिरी, हत्या करने में उसके दरबार में भी कोई भेदभाव नहीं था। प्रयागराज के लोग आज भी 10 साल पुरानी घटना को याद करके सिहर उठते हैं। मामला ये हुआ कि अतीक ने अपने ही गुर्गे के एक रिश्तेदार अशरफ को अपना एक काम सौंपा था। किसी कारण से अशरफ ने उस काम को करने से मना कर दिया। फिर क्या था, अतीक और अशरफ आग-बबूला हो गए। अतीक के भाई अशरफ ने इस पीड़ित अशरफ की प्रयागराज के चौराहे पर बेरहमी से पिटाई करके उसके हाथ-पैर तक तोड़ दिए। अतीक के गुर्गों ने तो मदरसे से दो नाबालिग लड़कियों तक को उठा कर बलात्कार किया और फेंक कर चले गए।

प्रयागराज की सूरजकली पर अतीक ने अपना अत्याचार इस कदर ढाया कि रूह कांप जाए। अतीक के गुर्गे एक दिन आए और जमीन पर जबरन कब्जा जमा लिया। हालांकि, जब सूरजकली ने इसका विरोध जताया तो उसके पति की हत्या करवा दी। सूरजकली के अनुसार, अतीक ने उसे खुद बुलाया और कहा था कि अब तुम्हारा पति नहीं है। हम तुम्हारा अच्छे से देखभाल करेंगे। तुम्हारे पास जो भी सम्पत्ति हो, मेरे नाम पर लिख दो।

अब मुख्तार अंसारी की बढ़ी टेंशन

मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के माफिया को मिट्टी में मिला देने के संकल्प और प्रयागराज में अतीक-अशरफ की हत्या के बाद मुख्तार के लिए मामला टेंशन वाला हो गया है। पूर्व विधायक कृष्णानंद राय की हत्या व विहिप के कोषाध्यक्ष नंदू रूंगटा अपहरण कांड में आने वाला फैसला 29 अप्रैल तक टल तो जरूर गया, मगर यह फैसला बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी के लिए और चिंता का विषय हो सकता है। मुख्तार के भाई और वर्तमान में सांसद अफजाल अंसारी की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। यही नहीं, चेतगंज में अवधेश राय हत्याकांड की बनारस कोर्ट में सुनवायी अंतिम दौर में है। इसमें फैसला भी आना बाकी है।

मुख्तार अंसारी के साम्राज्य को बनाए रखने में अतीक ने मदद की। कभी भी दोनों के गिरोह में कोई टकराव नहीं हुआ। आज धर्म के आधार पर अलग-अलग चश्मे से देखनेवालों को वह दिन भी नही भूलना चाहिए। एक ही धर्म के दोनों बाहुबली जिसे चाहते थे घुटने टेकने पर मजबूर कर देते थे। बल्कि इन दोनों के बीच आनेवाले का अंजाम भी दर्दनाक होता था।

अतीक अहमद को जो मकान या जमीन पंसद आ जाती तो वह उसकी हो जाती थी। इसके लिए भवन स्वामी को उसका फरमान ही काफी होता था। यदि उससे किसी ने टकराने की कोशिश की तो मौत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं होता था।

प्रयागराज की पुष्पा सिंह का प्रयागराज में एक घर था। वह कसारी-मसारी इलाके में अपने पति के साथ रहती थीं। पुष्पा सिंह के अनुसार, पति नौकरी करते थे, लेकिन एक दिन पता चला कि उनका ट्रांसफर ऑर्डर आया है। इस वजह से उन्हें प्रयागराज छोड़कर कानपुर जाना पड़ा। उन्होंने घर में ताला मार रखा था। लेकिन, जब एक दिन वह कानपुर से वापस लौटे तो देखा कि अतीक के गुर्गों ने उनकी जमीन पर कब्जा जमा लिया है। घर को भी ध्वस्त कर दिया है।

अतीक का बेटा अली भी पिता के नक्शे कदम पर चल रहा था। जीशान नामक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि अली अपने गुर्गों के साथ उसके घर आया और कनपटी पर पिस्टल लगाकर पांच करोड़ की रंगदारी मांगी। जब उसने रंगदारी देने से मना कर दिया तो अली ने उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी। इस दौरान उसने दहशत फैलाने के इरादे से कई राउंड फायरिंग भी की। गिरोह की रंगबाजी के अनगिनत मामले हैं।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद बाहुबलियों की कमर तोड़ी जाने लगी, एनकाउंटर होने लगे तो अली और उमर के सरेंडर कर जेल जाने के बाद अतीक गैंग की कमान उमेश पाल हत्याकांड में वांछित तीसरे बेटे असद ने सम्भाल ली थी। वह अतीक की तरह ही गुर्गों को हुक्म देता था। माफिया के करीबी उसे छोटे सांसद कहकर पुकारते थे और वह गिरोह का संचालन लखनऊ महानगर स्थित एक फ्लैट से करता था। लेकिन, अतीक की हत्या से एक दिन पहले ही पुलिस एनकाउंटर में वह भी मारा गया। अतीक जिस असद कालिया को बेटे जैसा मानता था वह भी पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है। अब अतीक की फरार पत्नी शाइस्ता परवीन और राजदार बमबाज गुड्डू मुस्लिम सहित अन्य गुर्गों की तलाश जारी है।

गुड्डू मुस्लिम के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान से अवैध हथियारों की ड्रोन से भारत में तस्करी में अतीक गैंग का प्रमुख लिंक है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने रिमांड की कॉपी में खुलासा भी किया है कि माफिया अतीक अहमद पाकिस्तान से हथियार खरीदता था।

बहरहाल, अतीक-अशरफ का तो अंत हो गया। अशरफ की कथित मत्युपूर्व लिखी चिट्ठी से क्या भंडाफोड़ होगा? एसआईटी और न्यायिक जांच की रिपोर्ट भी आती रहेगी। अखिलेश यादव, मायावती सहित विपक्ष राजनीतिक-धार्मिक रंग देता रहेगा। यह सवाल तो तबतक बना रहेगा कि इस हत्याकांड की सुपारी किसने दी? क्या अतीक अहमद अपना मुंह खोलने वाला था? क्या किसी अंतरराष्ट्रीय राज के फाश होने या स्थानीय राजनीतिक आकाओं के किसी राज का पर्दाफाश होने का किसी को डर था। क्योंकि, शासन-प्रशासन की मिलीभगत होती तो हत्यारे युवक कत्तई जय श्रीराम का नारा नहीं लगाते। सरकार अपनी किरकिरी क्यों कराएगी? विचारणीय यह भी है कि माफियाओं-अपराधियों को जनता कब तक नेता चुन कर लोकतंत्र की हत्या अपने हाथों करती रहेगी। अपराधियों के मानवाधिकार के लिए आवाज उठाने वालों की आवाज तब क्यों नहीं उठी जब कितने निरीह लोगों का उत्पीड़न हो रहा था?

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