किसी शहर को स्वच्छ बनाने की बात करने और उसके सफल सम्पादन में बहुत अंतर होता है। इंदौर शहर प्रशासन और वहां के निवासियों ने इस अंतर को बखूबी खत्म किया है, और लगातार इस मामले में खरे उतर रहे हैं। जाहिर सी बात है, इसमें रोज हर व्यक्ति अपना सौ प्रतिशत योगदान देने का प्रयास कर रहा है।
देश के अन्य शहरों को इंदौर से प्रेरणा लेना चाहिए। कभी इंदौर में भी कचरे का पहाड़ हुआ करता था, कभी कचरा जलाया भी जाता था, अब इंदौर में न कचरे का पहाड़ है और न ही सड़कों पर अस्त-व्यस्त कचरा पेटियों में पड़ा कचरा। मध्यप्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान के मार्गदर्शन में इंदौर की जनता ने स्वच्छता अभियान की चुनौती को स्वीकार किया और मां अहिल्या की नगरी के संस्कारों के अनुरूप सकारात्मक जनसहयोग के रूप में सफल किया। हां, हमारा इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है, हम सफाई मित्रों के साथ प्रतिदिन सुबह सूखा कचरा, गीला कचरा, इलेक्ट्रॉनिक सामग्री का कचरा, जैविक कचरा, फूल-पत्तियां और प्लास्टिक का कचरा अलग-अलग एकत्रित कर स्वच्छता वाहन में डालते हैं। इंदौर ने इस वर्ष छह तरह के कचरे के पृथक्कीकरण, थ्री आर के प्रयोग, पालीथिन पर रोक जैसे कठोर कदम उठाए। इस कारण इंदौर को इस वर्ष लगातार छठी बार स्वच्छता पुरस्कार और स्वच्छता सर्वेक्षण में सात सितारों की रेटिंग मिल सकी। स्वच्छता में सिरमौर इंदौर ने साल दर साल शहर की सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाया। इसके अलावा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की वेस्ट वेल्थ के अवधारणा को भी साकार किया है।
कचरे से कमाई – नगर निगम को सूखे कचरे के पृथक्कीकरण प्लांट से प्रतिवर्ष 1.53 करोड़ रुपए, गीले कचरे से बायो सीएनजी प्लांट से प्रतिवर्ष 2.53 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है। इसके अलावा दो वर्षों में निगम ने कार्बन क्रेडिट बेचकर 9 करोड़ रुपए कमाए हैं। बायो सीएनजी प्लांट से बाजार मूल्य से 5 रुपए कम कीमत पर मिलने वाली गैस से साल भर में डेढ़ से दो करोड़ रुपए की बचत होगी। इस तरह इंदौर कचरे से प्रतिवर्ष 13 से 14 करोड़ रुपए कमा रहा है।
इंदौर की आबादी – करीब 35 लाख
नगर का विभाजन – 85 वार्ड एवं 19 जोनल कार्यालय
कचरा संग्रहण – 85 वार्डों में लगभग 70 हजार घरों व 28 हजार प्रतिष्ठानों से कचरा संग्रह
कचरा – 1200 टन सूखा एवं 700 टन गीला कचरा
कचरा संग्रह वाहन – 820
सफाई मित्र – 7 हजार प्रतिदिन शहर की सफाई करते हैं।
6 डस्टबिन, 6 प्रकार का कचरा – इंदौर में घर-घर से कचरा एकत्र करने के साथ प्लांट पहुंचाकर उसका शत-प्रतिशत निपटान किया जा रहा है। दूसरे शहर जहां गीले व सूखे कचरे को अलग करने की मशक्कत में जुटे हैं, वहीं इंदौर में गीले व सूखे कचरे के अलावा प्लास्टिक, घरेलू हानिकारक सामग्री, इलेक्ट्रिक व सैनिटरी वेस्ट को अलग-अलग लिया जा रहा है। 6 डस्टबिन में 6 तरह का कचरा एकत्र कर कचरा संग्रहण गाड़ियों तक पहुंचाया जा रहा है।
थ्री आर माडल – निगम ने रिसाइकिल, रियूज व रिड्यूज मॉडल पर गम्भीरता से काम किया है। शहर में 1 हजार से ज्यादा बैकलेन में सीमेंटीकरण, सफाई कर उनमें पेटिंग बनाई। वहां अनुपयोगी चीजों से कलाकृतियां सजाई। एलआईजी सहित कुछ इलाकों में रहवासी बैकलेन में सब्जियां भी उगा रहे हैं। शहर में चार फोर आर गार्डन तैयार किए गए हैं।
सातवीं बार जीत के लिए इन चुनौतियों को करना होगा पूरा
इंदौर में 120 माइक्रॉन से कम के पॉलीबैग पर पूर्ण रूप से रोक व सिंगल यूज प्लास्टिक व डिस्पोजेबल पर लगाना होगा पूर्ण प्रतिबंध।
अभी वायु गुणवत्ता का स्तर ठीक करने में इंदौर को पूरी तरह सफलता नहीं मिली है। कुछ माह वायु प्रदूषण स्तर कम रहा है तो कुछ महीनों में बढ़ोतरी भी दिखाई दी है। ऐसे में अब यह प्रयास होगा कि वायु गुणवत्ता के लिए सालभर एक्यूआइ का स्तर 50 से कम हो।
कचरे के उत्पादन में कमी करनी होगी। अभी 402 ग्राम प्रति व्यक्ति कचरा शहर में उत्पन्न हो रहा है। इसे 398 ग्राम प्रति व्यक्ति तक लाना होगा। इसके लिए होम कम्पोस्टिंग व जीरो वेस्ट जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा। प्लास्टिक व डिस्पोजेबल में भी कमी लानी होगी।
शिकायतों का निराकरण – इंदौर 311 एप पर पिछले पांच वर्षों में 10.5 लाख शिकायतें पहुंचीं। इनका 24 घंटे में निराकरण किया गया। सफाई कार्य सम्बंधित शिकायतों का 99.8 फीसदी तक निराकरण करने में सफलता मिली।
प्लास्टिक पर रोक – इंदौर के बाजारों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाई गई है। इसका असर यह हुआ कि पहले जहां 800 किलो प्रतिदिन सिंगल यूज प्लास्टिक आता था, अब सिर्फ 200 से 300 किलो ही पहुंच रहा है। 120 माइक्रॉन से कम के पॉलीबैग को प्रतिबंधित किया गया है। पहले 400 किलो कैरीबैग की पॉलीथिन पहुंचती थी। लेकिन अब इसमें 150 किलो की कमी आई। सीमेंट फैक्ट्रियों को ईंधन के रूप में पुनः उपयोग में नहीं आने वाला 180 टन कचरा प्रतिदिन दिया जाता है।
सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट : इंदौर में प्रतिदिन में 60 टन भवन का मलबा एकत्र किया जाता है। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर 100 टन क्षमता में सीएंडडी प्लांट संचालित हो रहा है। यहां पर मलबे से ईंट, पेवर ब्लॉक व टाइल्स का निर्माण किया जा रहा है। इनका निगम के निर्माण कार्यों में भी इस्तेमाल हो रहा है। इस प्लांट के संचालन से भी निगम को कमाई हो रही है।
शहर सौंदर्यीकरण – एक दर्जन से ज्यादा चौराहों पर फाउंटेन लगवाए गए, जो हवा में उड़ने वाले धूल कणों को सोखते हैं। चौराहों के लेफ्ट टर्न का चौड़ीकरण हुआ, सेंट्रल डिवाइडर बनाए गए। इन पर पौधारोपण किया है।
गीले कचरे से बन रही सीएनजी
इंदौर से रोजाना 500 टन गीला कचरा एकत्रित कर प्लांट पर पहुंचाया जाता है, इस गीले कचरे से न सिर्फ बॉयो सीएनजी बन रही है, बल्कि खाद भी तैयार हो रही है। इसके लिए देवगुराड़िया के पास प्लांट लगाया गया है,। कचरे से बायो सीएनजी बनने तक की साइकिल करीब 20 से 25 दिन की होती है। 17 हजार किलोग्राम सीएनजी गैस रोजाना बनकर पम्पिंग स्टेशंस आदि को सप्लाई होती है। इससे हर महीने 4 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है। प्लांट के माध्यम से एक साल में 1 लाख 30 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जा सकेगा। इससे फिलहाल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आई है। ग्रीन एनर्जी भी मिल रही है, ऑर्गेनिक कम्पोस्ट का उत्पादन भी हो रहा है। करीब 40 सिटी बसें सीएनजी से संचालित हो रही हैं।