राजनीतिक संकटों से घिरा पाकिस्तान

 

पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। ऐसे में पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान और सेना के बीच बढ़ता विवाद वहां की परिस्थितियों को और ज्यादा बर्बादी की ओर ले जाएगा। वहां गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है।

पाकिस्तान जहां एक ओर अपनी बदहाली के कारण बुरी तरह से बेहाल है, वहां दूसरी ओर सियासी अस्थिरता का दौर तेजी से बदलता नजर आ रहा है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों और रेंजर्स ने जिस नाटकीय रूप से इस्लामाबाद उच्च न्यायालय परिसर से गिरफ्तार किया, वहां के उच्चतम न्यायालय ने उतनी ही प्रक्रिया के साथ उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया। इससे ऐसा प्रतीत होने लगा कि इस सियासी संघर्ष में इमरान खान को राहत एवं विजय प्राप्त हुई है। इसके वाजूद उच्चतम न्यायालय जैसी शीर्ष संस्था के आदेशों को धता बताते हुए न केवल उसके आदेशों को नकारा बल्कि, जिस मुख्य न्यायाधीश ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के आदेश दिये, उनके विरुद्ध मामला दर्ज करने के लिए वहां की सरकार द्वारा एक विशेष समिति का गठन किया गया। यह विशेष समिति मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदिआल पर शपथ लेने के उल्लंघन और गलत कार्यों के आरोप में सर्वोच्च न्यायिक परिषद (सुप्रीम जुडिशियल काउंसिल) में मामला दर्ज करायेगी। उल्लेखनीय है कि इस विशेष समिति का गठन पाकिस्तानी संसद (नेशनल असेम्बली) ने सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया है।

पाकिस्तान का लोकतंत्र संकट के दौर से गुजर रहा है। सत्ता तथा विपक्ष का संघर्ष समस्त मर्यादाओं को ताक पर रखकर लोकतंत्र के लिए एक स्पष्ट अशुभ संकेत है। हास्यास्पद स्थिति है कि जो इमरान भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर सेना के समर्थन से अपनी सत्ता में पहुंचे थे, वही इमरान इस समय भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों से घिरे हुए हैं। पाकिस्तान की सेना पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि उसे राजनीति में कूदने में शर्म आनी चाहिए और यदि राजनीति में कूदने का इतना शौक है तो वह अपनी खुद की राजनीति पार्टी बना सकती है। इस समय इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) तेरह दलों का सत्तारूढ़ गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट और सेना के बीच खुले तथा मर्यादाविहीन संघर्ष में पाकिस्तान की प्रत्येक लोकतांत्रिक संस्था गहरे संकट के दौर से गुजर रही है।

पाकिस्तान के इतिहास में लोकतंत्र एवं सेना के बीच सियासी उठापटक का एक लम्बा खेल खेला जाता रहा है, किंतु इस बार पाकिस्तान में इमरान खान के समर्थकों ने गिरफ्तारी को लेकर अपना जोरदार उत्पात ही नहीं मचाया, बल्कि सेना और सैन्य ठिकानों को भी अपना निशाना बनाया। इमरान खान की समर्थक पार्टियों के लोगों ने न केवल रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर अपना धावा बोला बल्कि लाहौर के कोर कमांडर लेफ्टिनेंट सलमान फैयाज गनी के घर को भी पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। इसके साथ ही अन्य शहरों में भी सेना के शिविरों में घुसकर जोरदार तांडव किया गया। यही नहीं सड़कों पर खुलकर उतरे इमरान खान के समर्थक सेना के अधिकारियों को सरेआम गालियां भी देते दिखाये गये, जो कि एक अभूतपूर्व घटना है। इमरान सेना के विरुद्ध खुलकर विरोध करने वाले पहले राजनेता बन गये हैं। आश्चर्य किंतु सत्य है कि इमरान खान जिस सेना के सहारे अपनी सत्ता सम्भालने में सफल हुए थे, उसी सेना के सबसे बड़े विरोधी बनकर उतरे हैं। शायद इमरान खान अपने जोश, जज्बे व जुनून में आकर भूल गये हैं कि पाकिस्तान में सेना का विरोध व बैर लेकर अपनी राजनीति कोई भी नहीं चला सका है। अतः इस प्रकार सेना का विरोध भविष्य के लिए इमरान खान हेतु घातक सिद्ध हो सकता है।

यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि पाकिस्तान इस समय जिस स्थिति की ओर बढ़ रहा है, उससे निकलना उसके लिए आसान नहीं होगा। बदहाली से बेहाल पाकिस्तान अब बिखराव की ओर चल पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप अब आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से और अधिक अस्थिर बन जाने की एक बड़ी परिस्थिति बनती जा रही है। इमरान खान ने कहा कि ये सही समय है कि जो शक्तियां हैं उन्हें समझदारी से पुनर्विचार करना चाहिये अन्यथा देश को पूर्वी पाकिस्तान जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। पाकिस्तान में चल रहा यह अस्थिरता का दौर जो भी करवट ले, किंतु यह सुनिश्चित हो गया कि पाकिस्तान की आंतरिक कलह और अस्थिरता ने देश और विशेष रूप से उसकी सेना के लिए बहुत कुछ सदैव के लिए बदल दिया है। यह भी संकेत नजर आने लगे हैं कि अब पाकिस्तान गृह युद्ध की ओर अपने कदम बढ़ा चुका है। भले ही यह सही है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र एवं सेना का विवाद आजादी के वक्त से ही चला आ रहा है और कहा जाता है कि सेना और मौलवी ही पाकिस्तान को संचालित करते रहे हैं। यहां पर लोकतंत्र के नाम पर हुए चुनाव अवाम के साथ छल से अधिक कुछ साबित नहीं हुए हैं।

पाकिस्तान में इस समय महंगाई चरम पर है तथा विकास दर निचले स्तर पर है। इसके साथ ही विदेशी मुद्रा भंडार सीमित होकर चार अरब डालर पर आ गया है। स्थिति यह हो गयी है कि पाकिस्तान इस समय कुछ भी आयात करने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान निरंतर कर्ज जाल में फंसता जा रहा है। यही हालात बने रहे तो कर्ज चुकाने में पाकिस्तान डिफाल्टर बन सकता है। इससे भविष्य में उसके लिए कहीं से कर्ज के रूप में मदद मिलना सम्भव नहीं हो सकेगा। पाकिस्तान का सियासी संकट सेना के साथ राजनीतिक टकराव भी बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। भीड़ द्वारा सेना को इस तरह निशाना बनाने की बात की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन के महानिदेशक का यह बयान कि, “सेना ने अत्यधिक धैर्य, सहनशीलता और संयम दिखाया और अपनी प्रतिष्ठा की परवाह किये बिना व्यापक देशहित में बेहद धीरज के साथ काम लिया।”

यह जग-जाहिर है कि पाकिस्तान ने अपनी सरजमीं पर अनेक आतंकी संगठनों को आसरा दिया हुआ है। पाकिस्तान के क्वेटा व पेशावर से तालिबान आतंकवादी संगठन नियंत्रित होता है। पाकिस्तान ही इसके आतंकवादियों की पौध को पोषित, पल्लवित व फलित करता है।

एक ओर जहां पाकिस्तान में अराजकता और अस्थिरता का माहौल व्याप्त है, महंगाई दर 47 प्रतिशत के पार निकल गई है, वहीं आज आलम यह है कि वहां की अवाम हेतु रोजमर्रा की वस्तुओं को खरीदना भी मुहाल है। इसके साथ ही पाकिस्तानी रुपये की कीमत गिरकर 284 रुपये प्रति डॉलर हो गयी है। विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार खाली होता जा रहा है। पाकिस्तान पर इस समय डिफाल्टर होने का खतरा नजर आ रहा है। इस समय वहां की सियासत आशंका और असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है। इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद सेना के बयानों में 9 मई को काला दिन बताते हुए कहा कि – ‘देश का शाश्वत शत्रु’ 75 साल में उसका इतना नुकसान नहीं कर पाया, जितना इमरान ने एक दिन में कर दिया। सेना ने इमरान को देश का सबसे बड़ा दुश्मन साबित कर दिया।

सत्ता, सेना के सियासी संकटों के भंवरजाल में फंसे पाकिस्तान में अस्थिरता का दौर चाहे जो करवट ले, किंतु यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान का भविष्य अब अधर में अटकता हुआ नजर आ रहा है। यह सच है कि पड़ोस के परिवेश का प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित अवश्य करता है। पाकिस्तान द्वारा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सत्ता और सेना की ओर से सीमा पार अपनी आतंकवादी गतिविधियों को सक्रिय करने का प्रयास किया जा सकता है। इस दौर से पाकिस्तान में पलायन का संकट भी पैदा हो सकता है। अतः भारत को संयम के साथ सतर्क, सजग एवं सशक्त रहने की विशेष आवश्यकता है, ताकि सभी का समय पर मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।

– डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र

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