लव जिहाद से धधकता उत्तरकाशी

पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में गायब होती बच्चियों एवं लव जिहाद के मुद्दे के निराकरण का देवभूमिवासियों ने मन बना लिया है। इसलिए बाहर से आकर बसे मुसलमानों पर कार्रवाई की जा रही है, जो कुछ सेक्युलरों को रास नहीं आ रही है। जल्द ही इस मुद्दे पर महापंचायत बुलाई जा रही है।

वो कौन लोग, कारण और कारक हैं जिन्होंने उत्तराखंड के प्रसिद्ध और लोकप्रिय चार धाम यात्रा के सीजन में इस पर्वतीय क्षेत्र में लव जिहाद की एक ऐसी चिंगारी लगाई कि यहां के निवासियों की भावनाओं का ज्वार भभक उठा। अब थोड़ी शांति दिख रही है, लेकिन मन मस्तिष्क में अपनी बहू, बेटियों की सुरक्षा को लेकर अभी भी एक ज्वालामुखी भड़क रहा है।

कारण यह भी है कि कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी राजनीतिक दल, पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का एक गुट, उत्तराखंड में मुस्लिम समाज के ठेकेदार, दिल्ली दंगों में जिस प्रोफेसर अपूर्वानंद का नाम आया था उसके साथ वामपंथी लेखक अशोक वाजपेयी सहित तमाम लोग बच्चियों को भगाने का विरोध कर रहे पुरोला और यमुना घाटी के पर्वतीय लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते दिखे।

पुरोला में 26 मई को हिंदू नाबालिग बच्ची को भगाने के प्रयास में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के दो युवक रजाई गद्दे का काम करने वाला उबैद अहमद (23) और उसका दोस्त कार मैकेनिक जितेंद्र सैनी लोगों को शक होने पर पकड़े गए। लड़की के माता-पिता नहीं हैं। वह मामा के यहां रह कर पढ़ती है। पहली ही मुलाकात में उबैद ने उसे पटाया। मोटर साइकिल से ले जाने के लिए जितेंद्र उसका साथ दे रहा था। दोनों आरोपियों को पोक्सो कानून के तहत जेल भेज दिया गया। लड़की परिजनों के हवाले कर दी गई। घटना को लेकर पुरोला के स्थानीय व्यापारियों में रोष फैल गया। क्योंकि मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों से हिंदू नाबालिग बेटियों को फुसला कर भगाने के मामले आते ही रहते हैं। व्यापारियों ने जुलूस निकाला। मांग रख दी कि जो भी बाहरी लोग पुरोला में व्यापार कर रहे हैं, सबका सत्यापन कराया जाए। व्यापारियों का कहना था कि व्यापार की आड़ में स्मैक, नशे का कारोबार, देह व्यापार, चोरी और छिछोरी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसा काम करने वालों को पुरोला से निकाल दिया जाएगा। सभी मकान मालिकों से कहा गया कि वह भी लिख कर दें कि बाहर से आकर जो भी लोग उनके यहां किराए की दुकान और मकान लेकर पुरोला में व्यापार या दूसरा कोई भी काम कर रहे हैं, उनकी गतिविधियां क्या हैं? व्यापार क्या है? वे किसी अवैध गतिविधि में तो नहीं शामिल हैं। इसकी पूरी जिम्मेदारी मकान मालिक की होगी। कुछ मकान मालिकों ने अपने किरायेदारों को खाली करने का नोटिस दे भी दिया। मुस्लिम व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं। उधर किसी ने अफवाह उड़ा दी कि मुस्लिम व्यापारी पुरोला छोड़कर जा रहे हैं। एडीजीपी वी. मुरुगेशन ने इस अफवाह का खंडन किया।

उधर, सत्यापन की मांग को लेकर जुलूस निकालने का सिलसिला जारी रहा। महिला, बच्चे, बच्चियां, युवा, बुजुर्ग, व्यापारी सभी ढोल दमाऊं के साथ जुलूस निकाल कर अपनी मांगें दोहराते रहे। मुस्लिम समुदाय के कबाड़ी, सब्जी बेचने वाले, नाई, वेल्डिंग करने वाले ओर फेरी लगाने वाले ऐसे लोग पुरोला छोड़ कर जाने लगे, जिनके पास कोई ऐसा प्रमाण नहीं था कि वे पुरोला या कहां के रहने वाले हैं।

जुलूस निकालने वालों ने युवती को भगाने के आरोप में जेल भेजे गए दोनों युवकों की दुकानों से बोर्ड हटा दिए। इसी बीच चकराता के सावड़ा बाजार में भी हिमाचल के पांवटा से एक लड़की को लेकर पहुंचे युवक शाहरुख निवासी सहारनपुर और शौकीन ढकरानी पकड़ेे गए। उधर पुरोला में जैसे ही सत्यापन का काम शुरू हुआ, कुछ बाहरी लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दी। ये सभी मुस्लिम थे। स्थानीय लोगों की मांग थी कि रेहड़ी, फल, सब्जी बेचने के नाम पर अतिक्रमण कर जो भी बाहरी लोग व्यापार कर रहे हैं प्रत्येक के दस्तावेज देखे जाएं। यह भी पता किया जाए कि उनका मूल निवास कहां का है? वे कौन हैं? यहीं से पलायन शुरू हो गया। बड़कोट, नौगांव, डामटा, मोरी, बर्नीगाड़ में भी बाजार बंद हुए।

स्थानीय पंचायत संगठन और विश्व हिंदू परिषद, भूमि रक्षा अभियान समिति जैसे संगठन इसमें कूद पड़े। किराए पर लेकर मुस्लिम समुदाय के लोग जो दुकान चला रहे थे, उन पर पोस्टर चिपका दिए गए।

यह सब चल ही रहा था कि कई राज्यों के 210 से भी अधिक संगठनों ने राष्ट्रपति को ई-मेल पर एक पत्र भेज कर उसे सार्वजनिक कर दिया। इस पत्र में लैंड जिहाद, मजारों के खिलाफ अभियान से लेकर पुरोला में 42 परिवारों के भागने की चर्चा भी थी। जिसने आग में घी का काम किया। इससे आंदोलन कर रहे व्यापारी, स्थानीय लोग, ग्राम पंचायत प्रधान संगठन और हिंदू संगठनों में रोष व्याप्त हो गया। पंचायत प्रधान संगठन द्वारा 15 जून को महापंचायत बुलाने की घोषणा भी हो गई। कुछ राजनीतिक दल इसमें कूद पड़े।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का स्टैंड साफ था कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा की इस बात की जांच होगी कि कौन कहां से आ रहा है? उनका इतिहास क्या है? वह क्या करता है? इसी आधार पर उत्तराखंड में रहने की अनुमति दी जाएगी। उत्तराखंड में कोई भी ऐसी गतिविधि करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जिससे यहां का माहौल खराब हो। स्थानीय लोगों के मन में भय और रोष हो। लव जिहाद, भूमि को प्रतीक स्थल बनाकर उस पर कब्जा करने वालों को सफल नहीं होने दिया जाएगा। क्योंकि राज्य में मतांतरण कानून आने के बाद लोगों में जागरूकता बढ़ रही है तमाम मामले पकड़ में आ रहे हैं। सिर्फ पांच माह में 46 ऐसे मामले सामने आए हैं।

आखिर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इतना रोष क्यों है? सच यह है कि लम्बे समय से मुस्लिम आबादी बाहर से लाकर बसाई जा रही है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से बांग्लादेशी और रोहिंग्या को भी यहां बसाया गया है। चीन नेपाल सीमा वाले इस राज्य में विधानसभा वार और जिलों में मुस्लिम आबादी को बसाया जा रहा है। इसके पीछे कौन हैं? फंडिंग कहां से आ रही है? जांच के विषय हैं।

यदि एन. बी. आर. सी. के आंकड़े देखे जाएं तो उत्तराखंड मानव तस्करी के मामले में पर्वतीय राज्यों में सबसे ऊपर है। राज्य गठन से लेकर 2018 तक 10 हजार से अधिक बच्चियां गायब हो गई। जो मामले पुलिस तक नहीं पहुंचे, वे इसके दो गुना बताए जाते हैं। देव भूमि रक्षा अभियान संगठन के संस्थापक स्वामी दर्शन भारती का कहना है कि उत्तराखंड की बेटियों को अरब देशों में भेज दिया जा रहा है। दर्शन भारती को भी सर कलम करने के लिए पांच करोड़ के इनाम की धमकी वाला पत्र भेजा गया। उत्तराखंड में बेटियों को भगाने के जितने भी मामले पकड़े जा रहे हैं सब में मुस्लिम आरोपी हिंदू पहचान बनाए हुए थे। खतरा बहुत बढ़ गया है। फिलहाल पुरोला सहित यमुना और गंगा घाटी के निवासियों ने अपनी बेटियों की सुरक्षा के लिए अपनी सजगता दिखा दी है। भले ही पुरोला और उत्तरकाशी अभी बाहर से शांत दिख रहे हैं लेकिन उन्होंने निकट भविष्य में पंचायत बुलाने की घोषणा कर रखी है।

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