जफरनामा के माध्यम से गुरु गोविंद सिंह ने सम्पूर्ण विश्व को संदेश दिया कि वास्तविक हार या जीत आंतरिक होती है, बाहरी नहीं। इसके माध्यम से उन्होंने उस समय के सबसे क्रूर शासक की आंखों में आंखें डालकर उसे आभास करवाया कि, जंग के मैदान में जीतकर भी तुम जीवन की जंग में हार गए।
सन 1704 में मुगलों एवं पहाड़ी सरदारों की संयुक्त सेना ने सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया। गुरु साहिब के आह्वान पर बड़ी संख्या में लोग अधिकार एवं न्याय की प्राप्ति हेतु खालसा धर्म से जुड़ रहे थे। फलतः गुरु साहिब की लोकप्रियता उत्तरोत्तर बढ़ रही थी। इसी बौखलाहट में संयुक्त सेना ने उन पर आक्रमण किया था। संयुक्त सेना ने आनंदपुर साहिब के किले की घेराबंदी की जहां गुरु साहिब, उनका परिवार एवं खालसा सेना के कुछ सैनिक ठहरे हुए थे। घेराबंदी कई महीनों तक चली किंतु गुरु साहिब विचलित नहीं हुए। जिससे दुश्मन सेना में हताशा पैदा हुयी। अंततः उन्होंने गुरु साहिब, उनके पारिवारिक सदस्यों तथा अनुयायियों को सुरक्षित मार्ग देने का वचन दिया। किन्तु आनंदपुर साहिब किले से बाहर निकलते वक्त दुश्मन सेना ने वचन का उल्लंघन करते हुए गुरु साहिब पर हमला कर दिया। चमकौर साहिब की इस लड़ाई में गुरु साहिब के दोनों बड़े साहबजादे बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए। उपरांत में सरहिंद के फौजदार तथा गुरु साहिब के कट्टर दुश्मन वजीर खान ने दोनों छोटे साहबजादों को भी क्रूरतापूर्वक शहीद कर दिया।
तदुपरांत कई युद्ध हुए जिनमें वजीर खान के सैनिकों ने गुरु साहिब को मृत या जीवित पकड़ने के अनेक असफल प्रयास किए। श्री मुक्तसर साहिब का युद्ध निर्णायक रूप से जीतने के पश्चात गुरु साहिब मालवा के दूरवर्ती क्षेत्रों तक गए। साथ ही लोगों का खालसा सेना में शामिल होना जारी रहा एवं मुगलिया सेना के भरण-पोषण हेतु दूरदराज के इलाकों में भोजन-पानी की किल्लत होने लगी थी। अतएव दुश्मन सैनिकों ने उनका पीछा करना छोड़ दिया। बठिंडा जिले के कांगर गांव पहुंचकर गुरु साहिब ने औरंगजेब की सेना एवं अधिकारियों द्वारा किए गए कुकर्मों का पर्दाफाश करने का निर्णय लिया। उन्होंने औरंगजेब द्वारा सुरक्षित मार्ग देने हेतु पवित्र कुरान पर ली गई शपथ के उल्लंघन, उसकी सेना द्वारा की गई ज्यादतियों, क्रूरता एवं अन्यायपूर्ण कार्यों के बारे में औरंगजेब के ध्यानाकर्षण का निर्णय लिया। इस हेतु उन्होंने फारसी में एक पत्र लिखा जिसे ‘जफरनामा’ यानी ’एपिस्टल ऑफ विक्ट्री’ कहा जाता है। जफरनामा को भाई दया सिंह को सौंपते हुए उसे व्यक्तिगत रूप से औरंगजेब को देने को कहा। यह वही समय था जब औरंगजेब दक्कन में मराठों के विरुद्ध युद्ध में उलझा हुआ था।
जफरनामा – आध्यात्मिक विजय पत्र
जफरनामा एक आध्यात्मिक विजय पत्र है जिसे ‘विजय की घोषणा’ या ‘एपिस्टल ऑफ विक्ट्री’ भी कहा जाता है। गुरु साहिब ने इस पत्र को 1705 में मूल रूप से फारसी भाषा में लिखा था। वर्तमान में यह पत्र दशम ग्रंथ में गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध है एवं इसमें ब्रज भाषा में चार सहित कुल 111 छंद हैं। चौंतीस छंद भगवान की प्रशंसा में हैं; बत्तीस छंदों में औरंगजेब का गुरु साहिब से मिलने हेतु निमंत्रण एवं उनका मिलने से इनकार; 24 छंदों में चमकौर साहिब के युद्ध का वर्णन; 15 छंदों में औरंगजेब द्वारा गुरु साहिब को दिए गए लिखित वादों को तोड़ने हेतु फटकार एवं छ: छंदों में औरंगजेब की अच्छाईयों का वर्णन है। छंद 78 एवं 79 में गुरु साहिब औरंगजेब को खालसा के संकल्प के बारे में जानकारी देते हैं कि जब तक मुगल साम्राज्य नष्ट नहीं हो जाता, तब तक हम विश्राम नहीं करेंगे। जफरनामा में गुरु साहिब यह भी कहते हैं कि उनको मृत या जीवित पकड़ने हेतु विशाल सेना भेजने के बावजूद भी मुगल सेना अपने कुटिल मंसूबों में सफल नहीं हो पायी। गुरु साहिब ने सिख शहीदों की वीरता की प्रशंसा की जिन्होंने चमकौर साहिब की लड़ाई के दौरान निडर होकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए एवं स्वयं के साहसी तथा शहीद पुत्रों, साहबजादे अजीत सिंह एवं जुझार सिंह की भी प्रशंसा की। गुरु साहिब ने औरंगजेब को समस्याओं के निदान हेतु मिलने को आमंत्रित करते हुए एक अत्यंत लोकप्रिय छंद लिखा – चुन कर अज हमें हिलाते दार गुजशात; हलाल अस्त बर्दन बा शमशीर दस्त, अर्थात जब समस्या निवारण के सभी प्रयास निष्फल हो जाएं, तब तलवार उठाना पवित्र एवं न्यायपूर्ण है। कवि सैनापत के अनुसार गुरु साहिब ने जफरनामा को भाई दया सिंह एवं भाई धरम सिंह (पंच प्यारों में से दो) के माध्यम से औरंगजेब को भेजा। यद्यपि सैनापत रचित गुर सोभा (सिख इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत) में जफरनामा के सार का उल्लेख है, किंतु इसमें मूल पत्र का विवरण उपलब्ध नहीं है। फारसी पद्यों में रचित एवं औरंगजेब को सम्बोधित एक पत्र गुरु साहिब की रचनाओं में संकलित है, जिसे भाई मणि सिंह द्वारा तैयार किया गया था। अब यह दशम ग्रंथ के नाम से सुविख्यात है।
गुर-सोभा में सैनापत के वृत्तांत से प्रमाणित होता है कि गुरु साहिब द्वारा औरंगजेब को भेजा गया पत्र उसे शिवालिक पहाड़ियों में संघर्ष के सम्बंध में वास्तविक जानकारी देने हेतु था। पत्र के माध्यम से गुरु साहिब ने औरंगजेब को न्याय के वास्तविक निहितार्थों से अवगत कराने एवं शांति सुनिश्चित करने हेतु आनंदपुर साहिब की बहाली तथा भ्रष्ट अधिकारियों को पदच्युत करने की मांग की थी। गुरु साहिब ने उत्तरी भारत के पहाड़ी इलाकों की वास्तविक स्थिति, हिंदू पहाड़ी राजाओं एवं सरहिंद के वजीर खान जैसे स्थानीय कट्टर मुगल अधिकारियों द्वारा की जा रही क्रूरताओं के विषय में भी अवगत कराया। गुरु साहिब को उत्तर देते हुए औरंगजेब ने दक्षिण भारत में वार्तालाप हेतु उनसे मिलने का आग्रह करने के इतर गुरु साहिब के चार शहीद पुत्रों को खोने हेतु शोक संदेश भी भेजा।
डॉ. इंदुभूषण बनर्जी ने अपनी पुस्तक ‘एवोलूशन ऑफ द खालसा, खंड-दो’ में कहा है कि गुर-सोभा में सैनापत लिखते हैं कि खिदराना की लड़ाई के पश्चात गुरु साहिब ने सोचा कि औरंगजेब को अब वास्तविकता से अवगत कराने का समय आ गया है। अतएव उन्होंने भाई दया सिंह को एक पत्र सौंपते हुए उन्हें सलाह दी थी कि यह पत्र केवल औरंगजेब को ही सौंपे। तदनुसार, भाई दया सिंह ने पत्र को अपनी पगड़ी के नीचे छिपाकर यात्रा प्रारम्भ की। पहले वे दिल्ली पहुंचे, फिर आगरा एवं वहां से ग्वालियर, उज्जैन (मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र) होते हुए बुरहानपुर पहुंचे। जहां से वे औरंगाबाद होते हुए अंतत: अहमदनगर पहुंचे। भाई दया सिंह ने अहमदनगर में संगत में भाग लिया एवं स्थानीय सिखों को अपने उद्देश्य से अवगत कराया। भाई दया सिंह अंततः एक सिख की मदद से औरंगजेब को पत्र सौंपने में सफल हुए। गुरु साहिब ने पत्र में औरंगजेब से पूछा कि, क्या वह इन घटनाक्रमों को उचित एवं न्यायपूर्ण मानता है? वह आगे कहते हैं कि सच्चा व्यक्ति अपने जीवन की कीमत पर भी हमेशा अपनी बात पर अडिग रहता है। विपरीत इसके विश्वासघाती व्यक्ति के कथनी-करनी में अंतर होता है। औरंगजेब के अधिकारियों ने विश्वासघातियों की तरह काम किया है। इन कुकर्मों की जिम्मेदारी औरंगजेब की ही बनती है। गुरु साहिब ने औरंगजेब को फटकार लगाई कि वह धार्मिक व्यक्ति होने का दिखावा मात्र करता है, एवं वह अपने कुकर्मों के लिए अल्लाह को क्या जवाब देगा? जफरनामा के वर्तमान स्वरूप के अनुसार औरंगजेब सद्चरित्र व्यक्ति नहीं था। वह कपटी, धन लोलुप, अविश्वसनीय और झूठी बात करने वाला व्यक्ति था।
फतेहनामा
फतेहनामा, जिसे ‘विजय पत्र’ भी कहा जाता है, के विषय में दो भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विषय विशेषज्ञों की राय है कि यह पत्र जफरनामा के 24 छंदों का एक हिस्सा है, जिसमें गुरु साहिब ने औरंगजेब को वास्तविकता से अवगत कराते हुए उसकी कमजोरियों को उजागर किया है। एक मत यह भी है कि फतेहनामा गुरु साहिब द्वारा औरंगजेब को लिखा गया एक अन्य पत्र था। चमकौर साहिब युद्ध में अपने दोनों बेटों को खो देने के बावजूद विजय की घोषणा करते हुए गुरुसाहिब ने फतेहनामा के माध्यम से औरंगजेब को फटकार लगाई एवं चुनौती दी कि वह अपने सैनिकों समेत युद्ध के मैदान में आकर उनसे सामना करे।
फतेहनामा में गुरु साहिब ने औरंगजेब को स्मरण दिलाया कि उसका शासन अनियंत्रित लूट और छल पर आधारित है, उसके हाथ की माला एक धोखा मात्र है एवं उसका चेहरा उसके पिता एवं भाई के खून से रंगा हुआ है। साथ ही दक्कन एवं मेवाड़ में उसकी निराशाजनक विफलता उसके लिए अपनी प्रजा के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के प्रति संकेत था। गुरु साहिब ने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि वह पंजाब की धरती पर अपनी बुरी नजर न डाले क्योंकि यहां उसे पीने के लिए पानी की एक बूंद भी नसीब नहीं होगी एवं न ही एक पल की भी शांति मिलेगी। गुरु साहिब ने औरंगजेब को यह भी चेताया कि उसका अंतकाल निकट है एवं कुकर्मों के लिए अल्लाह द्वारा उसे दंडित किया जाएगा।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः जफरनामा मात्र एक पत्र नहीं बल्कि बौद्धिक रचना है जो न केवल औरंगजेब अपितु सम्पूर्ण मानवता के अनुकरण हेतु नैतिक सिद्धांतों की ज्ञान मीमांसा है। इस रचना का मूल भाव दमन की अवज्ञा है। इसका भावार्थ सत्य की महिमा एवं सत्य की जीत तथा सर्वशक्तिमान के प्रति अटूट विश्वास को प्रकट करता है। वास्तव में यह कृति बादशाह दरवेश श्री गुरु गोविंद सिंह द्वारा क्रूर एवं कुटिल शासक औरंगजेब को लगाई गयी आध्यात्मिक फटकार है।
जफरनामा हमें प्रेरित करता है कि अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों एवं व्यक्तिगत हानि के बावजूद भी हमें हार नहीं स्वीकारनी चाहिए। अपितु दूसरों को उनके छलपूर्ण कार्यों के लिए दंडित करने हेतु आत्मविश्वास, साहस एवं धैर्य बनाए रखना चाहिए। जफरनामा के माध्यम से गुरु साहिब ने औरंगजेब का मनोबल तोड़ते हुए उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया। औरंगजेब ने महसूस किया कि गुरु साहिब ही उसे सत्य के मार्ग पर ले जाने की एकमात्र आशा की किरण है। अतएव उसमें गुरु साहिब से मिलने की इच्छा बलवती हुई। दुर्भाग्यवश औरंगजेब के निधन के कारण गुरु साहिब से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी। परिणामस्वरूप हम मानव जाति की ज्ञानात्मक वृद्धि के निमित्त होने वाले एक प्रेरणादायक एवं आध्यात्मिक विमर्श से वंचित रह गए।
श्री गुरु गोविंद साहिब के जीवन का संघर्ष वास्तव में अन्याय, धोखे एवं षड्यंत्र का प्रतिकार करने हेतु था। उन्होंने दृढ़ संकल्प, साहस एवं आत्मबल के आधार पर भारत की उत्पीड़ित जनता को धर्म की रक्षा करने हेतु प्रोत्साहित किया। हम पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं कि मानव सभ्यता के इतिहास में श्री गुरु गोविंद सिंह का जीवन सबसे प्रेरणास्पद उदाहरणों में से एक है। एक दिव्यदूत, योद्धा, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं महान देशभक्त के रूप में श्री गुरु गोविंद सिंह ने मानव जाति को जीवन जीने का अनुकरणीय उद्देश्य प्रदान किया। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि दशमेश पिता का व्यक्तित्व एवं कृतित्व भावी पीढ़ियों का मार्ग सदैव प्रशस्त करती रहेंगी।
प्रो. राघवेंद्र पी. तिवारी