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कोरोना काल सिखों का सेवा भाव

कोरोना काल सिखों का सेवा भाव

by हिंदी विवेक
in राष्ट्र- धर्म रक्षक विशेषांक -जुलाई-२०२३, विशेष, सामाजिक
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कोरोना के संक्रमण काल में, जबकि लोग अपनों से मिलने में कतरा रहे थे, सिखों ने बिना किसी भेदभाव के लोगों की सेवा की। ऑक्सीजन लंगर के माध्यम से हजारों लोगों की जान बचाई। आखिर गुरबाणी यही सीख तो देती है।

मानस की जात सब एक पहचानबो

पूरी मानव जाति को एक मानना। ये मानवता और एकता का आह्वान करता है, कुछ ऐसा जो सिख धर्म ने हमेशा उपदेश दिया है। गुरु नानक देव की मानवता सेवा उनके रंग, जाति या पंथ की परवाह किए बिना सभी के लिए है। सिख गुरुओं का समाज के विभिन्न स्तरों पर असाधारण प्रभाव था। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग के और हर वर्ण के लोगों को महत्वपूर्ण नेतृत्व प्रदान किया। आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में उनका योगदान आश्चर्यजनक और उल्लेखनीय था।

सिखों का मानना है कि हर जीवित चीज में, उनके भीतर भगवान का अंश है। उनका मानना है कि सभी मनुष्यों के साथ समान और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। यह विश्वास कि सभी मनुष्य समान हैं, दर्शाता है कि सिख लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाता है, चाहे उनका लिंग, आयु, स्थिति या आस्था कुछ भी हो। सिख धर्म पुरुषों और महिलाओं की पूर्ण समानता सिखाता है। सिख धर्म ईमानदारी से रोटी कमाने की शिक्षा देता है, रचनात्मक, उत्पादक और ईमानदार श्रम के माध्यम से अपनी आजीविका अर्जित करता है। ब्रिटिश शासकों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में उनका बलिदान 90 प्रतिशत था, जबकि उस समय भारत की कुल आबादी का मुश्किल से सिख 1.5 प्रतिशत थे।

जब भारत  कोविड – 19 महामारी की विनाशकारी लहर की चपेट में था, तो कई शहरों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी। सिख समुदाय एक बार फिर मदद के लिए आगे आया। इस बार न केवल पारम्परिक लंगर बल्कि ऑक्सीजन लंगर और अन्य चिकित्सा सहायता के साथ। ये ऑक्सीजन लंगर प्रभावित शहरों और गुरुद्वारों में लगभग तुरंत फैल गए, जहां सिख स्वयंसेवक ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ घंटों खड़े रहे, जिससे सांस लेने वाले मरीजों को सांस लेने में मदद मिली। पीड़ितों की सहायता करने वाले सैकड़ों सिख स्वयंसेवकों के साथ, कई सिख धर्मार्थ संगठन सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में से थे। महामारी (विशेष रूप से दूसरी लहर) में, सरकारी बुनियादी ढांचा बुरी तरह विफल रहा। जैसा कि सभी जानते हैं, न तो ऑक्सीजन थी और न ही बिस्तर उपलब्ध थे, हालांकि ये सिख धर्मार्थ समूह ज्यादा संख्या में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने इस तरह की स्थिति को सम्भालने में बहुत योगदान दिया। वे उस वक्त उठ खड़े हुए थे, जब स्थिति बहुत ही खराब थी। जब अपने रिश्तेदार, मित्र, सगे सम्बंधी भी एक दूसरे की मदद को चाह कर भी आगे नहीं आ पा रहे थे। कई गुरुद्वारों ने अपने हॉल और सराय को कोविड वार्ड और आइसोलेशन सेंटर में बदल दिया। इसके अलावा कई सिखों ने व्यक्तिगत रूप से और सिख संगठनों ने मुर्दाघरों से शवों को ले जाना शुरू कर दिया क्योंकि ये ऐसा समय था जब कोई भी शवों को छूने के लिए भी आगे नहीं आता था। राजधानी दिल्ली में बेड और संसाधनों की कमी से निपटने के लिए, क्योंकि यह कोविड की दूसरी लहर से जूझ रहा था, दिल्ली सरकार के साथ दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गुरुद्वारा रकाब गंज दिल्ली में 400 बिस्तरों वाला कोविड देखभाल और उपचार केंद्र स्थापित किया । यह सेंटर कोविड की रोकथाम की लिए जरूरी हर सुविधा, ऑक्सीजन समर्थन और दवाओं से सुसज्जित था। कोविड के मामलों में उछाल के बीच एंबुलेंस की मांग बढ़ने से मरीजों के लिए एंबुलेंस की कमी हो गई। इसे हल करने के लिए, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने मुफ्त एम्बुलेंस सेवा प्रदान करके रोगियों की मदद करने के अपने प्रयासों को बढ़ाया।

 सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पूरजा-पूरजा कट मरे कबहू न छाड़े खेत, अर्थात शूरवीर की असली पहचान है कि जो दीन-दुखियों के लिए मर मिटे।  सिख भाईयों ने ऐसे मुश्किल वक्त में मैदान में डट कर अपनी इसी भावना को चरितार्थ कर दिखाया। उनकी इस भावना को पूरा भारत देश नमन करता है, और आभार प्रगट करता है!

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        नवीन संगर 

 

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