हरित क्रांति का अगुआ जैविक खेती में पिछड़ा

अधिकाधिक अनाज की पैदावार के चक्कर में पंजाब के किसानों ने इतनी अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया कि आज वहां की मिट्टी अपनी गुणवत्ता खो रही है। साथ ही, प्रदेश में कैंसर के रोगियों की संख्या में भी बड़ी मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई है।

एक समय रहा है जब इस देश के अंदर पंजाब और खुशहाली को पर्यायवाची माना जाता था। समय ने करवट ली और ना जाने हमारे पंजाब को किसकी नजर लग गई! पंज और आब से मिलकर बना है पंजाब। पंज का अर्थ यहां पांच से है और आब कहते हैं पानी को। झेलम, चेनाब, राबी, व्यास और सतलज वे पांच नदियां हैं, जिनसे मिलकर पंजाब को पंजाब की पहचान मिली। इसके साथ-साथ कई छोटी और मौसमी नदियां भी हैं जो पूरे पंजाब में बहती हैं। फैसलाबाद, रावलपिंडी, गुजरांवाला, मुल्तान जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं, ऐतिहासिक रूप से पंजाब से निकले हैं।इसकी राजधानी लाहौर थी। सरहद पर होने की वजह से भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का सबसे अधिक दंश इसी प्रांत ने झेला। भारत में पंजाब के अंतर्गत लुधियाना, अमृतसर, चंडीगढ़, पटियाला, जालंधर जैसे महत्वपूर्ण शहर हैं। आजादी के समय पंजाब प्रांत का अर्थ पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश होता था।

बंटवारे ने पंजाब को बहुत ही गहरा जख्म दिया और पंजाब ने उस चोट से खुद को सम्भाला और भारत के अंदर उसने अनाजों के उत्पादन में 50-70 फीसदी की भारी वृद्धि दर्ज की। इसीलिए पंजाब को अपने देश में अनाज का भंडार भी कहते हैं। पंजाब खेती-किसानी और सरकार की कृषि नीतियों को लेकर बेहद जागरूक प्रांत रहा है। किसानों के अधिकारों को लेकर भी यह एक जागरूक प्रदेश माना जाता है। यहां किसानों के पास हर प्रकार के उन्नत सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं और उन्हें सिचाई के लिए पर्याप्त पानी भी मिल जाता है। यहां के किसान नहरों को व्यापक तौर पर काम में लेते हैं। यह लिखा जा सकता है कि पंजाब के किसान खेती के दौरान थोड़ी सावधानी बरतें, उन्हें अपनी सरकार का इसमें साथ मिले तो वे पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।

नदियों, उपजाऊ मिट्टी और अधिक पानी की उपलब्धता के कारण पंजाब को नई किस्म के बीजों को आजमाने के लिए प्रमुख क्षेत्र के रूप में चुना गया। नए बीजों को अतिरिक्त उपज देने के लिए रासायनिक उर्वरकों और पानी की पर्याप्त खुराक की आवश्यकता थी। भारत सरकार ने नए बीजों में सुधार के लिए अनुसंधान के अलावा उन पर सब्सिडी देना भी शुरू कर दिया और उसे लोगों तक पहुंचाया। पीडीएस के लिए होने वाली सुनिश्चित खरीद ने किसानों को इस क्रांति में भाग लेने के लिए और उत्साहित किया।

पंजाब के किसानों ने अपनी मेहनत और 60 वर्षों की खेती से पंजाब को आर्थिक रूप से समृद्ध तो बनाया है, लेकिन राज्य पर कृषि से सम्बंधित एक बड़ा संकट भी इस बीच आ खड़ा हुआ है, जिसकी वजह है पंजाब के अंदर खेतों में कृषि-रसायनों का अत्यधिक उपयोग। यह खेत के साथ-साथ हमारे पर्यावरण को भी जहरीला बना रहा है। इसके अलावा गेहूं-चावल के फसल चक्र पर हमारी उच्च निर्भरता भी पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। पंजाब में किसानों का उत्पादन बढ़ा इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन महंगी मशीनों और कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से लागत में बढ़ोत्तरी हुई। यह भी सच है कि ऋण पर खरीदी गई मशीनें कई किसानों के लिए बड़ा बोझ बन गई।

इन सारी चुनौतियों के बावजूद पंजाब में औसत कृषि आय देश में सबसे अधिक रही है, जो अब कम होने लगी है। भारत के गांवों के अंदर किसान परिवारों में भूमि और पशुधन की स्थिति पर राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा किए गए 2019 के सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब में 2013-14 की तुलना में वृद्धि दर धीमी हो गई है।

आज के पंजाब की खेती का संकट यही है कि पर्यावरण को लेकर अब उसकी चिंता खत्म हो गई है। प्रकृति के साथ अब उसका पहले जैसा याराना नहीं है। हवा, पानी, मिट्टी और समाज के आपसी मेल जोल से होती थी अच्छी खेती। इन सबका आपसी रिश्ता धीरे-धीरे खत्म हुआ है, जिससे परिस्थितिकी का सारा संतुलन अस्त-व्यस्त हो गया है। पंजाब ने अपनी माटी पर पिछले तीन दशकों में इतना अत्याचार किया है कि वह अब बेदम हो गई है। वहां कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हुए कभी इस बात का ख्याल ही नहीं किया गया कि अब बस करने का टाइम आ गया है। हम पंजाब की लहलहाती फसलों की तरफ देखते और जहां भी ‘भारत कृषि प्रधान देश है’ का गौरवशाली गान होता, उसके साथ में तस्वीर पक्के तौर पर पंजाब की ही लगाई जाती थी। भारत में खेती का मतलब हो गया था पंजाब।

वक्त बदला और फिर एक दिन पंजाब से खबर आई कि बठिंडा से चलकर राजस्थान के बीकानेर जाने वाली ट्रेन नम्बर 54703 को वहां के लोग कैंसर एक्सप्रेस कहकर पुकारते हैं। बिना किसी नियंत्रण के खेतों में कीटनाशक डालने का असर फसल पर होने लगा। अब अनाज की जगह फसलों में कैंसर लगने लगा। इसी दौर में पंजाब के अदर समृद्धि और नशा दोनों ने एक साथ पैर पसारने शुरू किए। पंजाब ने गांव-गांव तक कनाडा जाने वालों की भीड़, ढेर सारा पैसा और घर-घर तक नशे की पहुंच को देखा।

इस प्रदेश में हमारे देश के फसली क्षेत्र का 4 प्रतिशत हिस्सा ही होता है, लेकिन यहां पर रासायनिक कीटनाशकों का 8 प्रतिशत उपयोग किया जाता है। जितनी जमीन उससे दोगुना अधिक कीटनाशक का इस्तेमाल। पर्यावरणविद सुनीता नारायण की संस्था सीएसई द्वारा 2005 में किए गए एक अध्ययन के आधार पर 2016 में संसदीय स्थायी समिति द्वारा एक कृषि रिपोर्ट पेश किया गया, जिसमें पंजाब के ग्रामीणों के खून के अंदर बड़ी संख्या में कीटनाशकों के अवशेष पाए गए।

कई बार ऐसा लगता है कि भारत के अंदर हरित क्रांति का पूरा तंत्र रासायनिक खेती के आसपास बुना गया था। जहां पैदावार अचानक बढ़ी लेकिन बढ़े हुए पैदावार की बाद के समय में किसानों ने कीमत भी चुकाई। पंजाब की बात करें तो यह हरित क्रांति के दौर का अग्रणी राज्य था। हरित क्रांति के पंजाब मॉडल को राज्य और बाजार दोनों का समर्थन हासिल था। इस मॉडल ने देश में गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ाया, इस खेती में रसायनों का भरपूर उपयोग हुआ। इससे देश भर में संदेश गया कि खेती के अंदर रासायनिक खाद का इस्तेमाल किफायती है और खेती के लिए भरोसेमंद है। पंजाब के रासायनिक खादों के लिए भरोसे का मंत्र पूरे देश में गया। पंजाब ने खेती से हुई बम्पर पैदावार से जहां एक समय खूब पैसा बनाया, इस पैदावार के साइड इफेक्ट से सबसे अधिक प्रभावित भी पंजाब ही हुआ।

पूरे देश में जैविक खेती का अभियान चल रहा है। देश ने जैविक खेती के महत्व को समझा है। देश भर में जैविक खेती के साथ तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। इसके विपरीत जैविक खेती को लेकर पंजाब को सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब में ‘खेती विरासत मिशन’ चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता उमेंद्र दत्त भी इस कठिनाई को पंजाब में काम करते हुए महसूस करते हैं।

यह बिल्कुल सच है कि पंजाब के अंदर जैविक खेती करने के लिए रासायनिक खेती की तुलना में कम से कम 10 गुना अधिक प्रयास की आवश्यकता होती है। यह श्रमसाध्य कार्य है और इसमें लाभ मामूली है। इसलिए पंजाब का किसान जैविक खेती के लिए तैयार नहीं है। जैविक खेती के उत्पाद सामान्य उत्पाद से आठ-दस गुना महंगे बिके तो उसके लिए ग्राहक की तलाश कर पाना आसान नहीं होगा। इन्हीं वजहों से हरित क्रांति का अगुआ प्रदेश पंजाब इस समय जैविक खेती के मामले में देश के अंदर पिछले पायदान पर है।

पंजाब ने हमेशा अपने आपको हर तरह की मुश्किलों से बाहर निकाला है। निश्चित तौर पर थोड़ी कठिनाई है, लेकिन पंजाब इससे भी बाहर निकल कर आएगा। खेती के लिए जिस पंजाब की पूरी दुनिया में पहचान रही है। वह देश का सिरमौर रहेगा। निश्चित तौर पर यह कठिन समय है पंजाब की खेती के लिए। यह दौर भी निकल जाएगा। पंजाब को अपनी मिट्टी में मिले रसायन और अपनों के खून में मिले नशे से मुक्ति के लिए साथ-साथ लड़ना है और जीतना है।

Leave a Reply