गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व के पुनीत अवसर पर दिए अपने अभिभाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतवर्ष के विकास में सिख धर्म के योगदान को रेखांकित करते हुए उनके बलिदान एवं मानव सेवा के भाव को सबके सामने रखा।
गुरु तेगबहादुर जी के 400 वें प्रकाश पर्व को समर्पित इस भव्य आयोजन में मैं आप सभी का हृदय से स्वागत करता हूं। अभी सपथ कीर्तन सुनकर जो शांति मिली उसे शब्दों में अभिव्यक्त करना मुश्किल है। आज मुझे गुरु को समर्पित स्मारक डाक टिकट और सिक्के के विमोचन का भी सौभाग्य मिला है। मैं इसे हमारे गुरुओं की विशेष कृपा मानता हूं। इससे पहले 2019 में हमें गुरु नानक देव का 550 वां प्रकाश पर्व और 2017 में गुरु गोविंद सिंह जी का 350 वां प्रकाश पर्व मनाने का भी सौभाग्य मिला था। मुझे खुशी है कि आज हमारा देश पूरी निष्ठा के साथ हमारे गुरुओं के आदर्शों पर आगे बढ़ रहा है। मैं इस पुण्य अवसर पर सभी 10 गुरुओं के चरणों में आदरपूर्वक नमन करता हूं। मैं आप सभी को, सभी देशवासियों को और पूरी दुनिया में गुरुवाणी में आस्था रखने वाले सभी लोगों को प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई देता हूं।
साथियो! ये लाल किला कितने ही अहम कालखंडों का साक्षी रहा है। इस किले ने गुरु तेग बहादुर साहब की शहादत को भी देखा है और देश के लिए मर मिटने वाले लोगों के हौसले को भी परखा है। आजादी के बाद के 75 वर्षों में भारत के कितने ही सपनों की गूंज यहां से प्रतिध्वनित हुई है। इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान लाल किले पर हो रहा ये आयोजन बहुत विशेष हो रहा है।
साथियो! हम आज जहां है, अपने लाखों-करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान के कारण हैं। आजाद हिंदुस्थान, अपने फैसले खुद करनेवाला हिंदुस्थान, लोकतांत्रिक हिंदुस्थान, दुनिया में परोपकार का संदेश पहुंचाने वाला हिंदुस्थान, ऐसे हिंदुस्थान के सपनों को पूरा होते देखने के लिए कोटि-कोटि लोगों ने खुद को खपा दिया। ये भारत भूमि केवल एक देश ही नहीं है, बल्कि हमारी महान विरासत है, महान परम्परा है। इसे हमारे ऋषियों-मुनियों, गुरुओं ने सैकड़ों हजारों सालों की तपस्या से सींचा है, उसके विचारों से समृद्ध किया है। इसी परम्परा के सम्मान के लिए, उसकी पहचान की रक्षा के लिए, दसों गुरुओं ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था।
इसलिए सैकड़ों साल की गुलामी से मुक्ति को, भारत की आजादी को, भारत की अध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। इसलिए आज देश आजादी के अमृत महोत्सव और गुरु तेग बहादुर साहब के 400 वें प्रकाश पर्व को एक साथ मना रहा है, एक जैसे संकल्पों के साथ मना रहा है।
हमारे गुरुओं ने हमेशा ज्ञान और अध्यात्म के साथ ही समाज और संस्कृति की जिम्मेदारी उठाई, उन्होंने शक्ति को सेवा का मध्यम बनाया। जब गुरु तेगबहादुर साहब का जन्म हुआ था तो गुरु पिता ने कहा था ‘दीन रक्ष संकट हरण’ यानी ये बालक एक महान आत्मा है। ये दिन दुखियों की रक्षा करनेवाला संकट को हरने वाला है। इसलिए श्रीहरगोबिंद साहब ने उनका नाम त्यागमल रखा। और यही त्याग गुरु तेगबहादुर साहब ने अपने जीवन में चरितार्थ भी कर के दिखाया। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने तो उनके बारे में लिखा है, ‘तेग बहादुर सिमरिये, घर नव निधि आवे धाई’ सब थाई होई सहाई, अर्थात गुरु तेगबहादुर जी के सुमरन से ही सभी सिद्धियां अपने आप प्रकट होने लगती हैं। गुरु तेगबहादुर जी का ऐसा अद्भुत आध्यात्मिक व्यक्तित्व था। वे ऐसी विलक्ष्ण प्रतिभा के धनी थे।
साथियो! लाल किले के पास यहीं पर गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान का प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहब भी है। यह पवित्र गुरुद्वारा हमें याद दिलाता है कि हमारी महान संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी का बालिदान कितना बड़ा था। उस समय देश में मजहबी कट्टरता की आंधी आई थी। धर्म को दर्शन, विज्ञान, और आत्मशोध का विषय माननेवाले हमारे हिंदुस्थान के सामने ऐसे लोग थे जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर साहब के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी हिंद की चादर बनकर, एक चट्टान बन कर खड़े हो गये थे। इतिहास गवाह हैं, ये वर्तमान समय गवाह है, और ये लाल किला भी गवाह है कि औरंगजेब और उसके जैसे अत्याचारियों ने भले ही अनेकों सिरों को धड़ से अलग किया, लेकिन वो हमारी आस्था को हमसे अलग नहीं कर सके।
गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान ने भारत की अनेकों पीढ़ियों को अपनी संस्कृति की मर्यादा की रक्षा के लिए, उसके मान सम्मान के लिए जीने और मर मिट जाने की प्रेरणा दी है। बड़ी-बड़ी सत्ताएं मिट गईं, बड़े-बड़े तूफान शांत हो गए, लेकिन भारत आज भी अमर खड़ा है। भारत आगे बढ़ रहा है। आज एक बार फिर दुनिया भारत की तरफ देख रही है। मानवता के मार्ग पर पथ प्रदर्शक की उम्मीद कर रही है। गुरु तेगबहादुर जी का आशीर्वाद हम नए भारत के आभामंडल में हर ओर महसूस कर सकते हैं।
भाइयो और बहनो! हमारे यहां हर काल खंड में जब-जब नई चुनौतियां खड़ी होती हैं, तो कोई न कोई महान आत्मा इस पुरातन देश को नए रास्ते दिखाकर दिशा देती है। भारत का हर क्षेत्र, हर कोना हमारे गुरुओं के प्रभाव और ज्ञान से रोशन रहा है। गुरु नानक देव ने पूरे देश को एकसूत्र में पिरोया। गुरु तेगबहादुर जी के अनुयायी हर तरफ हुए। पटना में पटनासाहिब और दिल्ली में रकाबगंज साहिब के माध्यम से हमें हर जगह गुरुओं के ज्ञान और आशीर्वाद के रूप में एक भारत के दर्शन होते हैं।
मैं अपनी सरकार का सौभाग्य मानता हूं कि उसे गुरुओं की सेवा के लिए इतना कुछ करने का अवसर मिल रहा है। पिछले वर्ष ही हमारी सरकार ने साहेबजादों के महान बलिदान की स्मृति में 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस मनाने का निर्णय किया है। सिख परम्परा के तीर्थों को जोड़ने के लिए भी हमारी सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। जिस करतारपुर साहिब के कोरिडोर की दशकों से प्रतीक्षा की जा रही थी उसका निर्माण करके हमारी सरकार ने गुरु सेवा के लिए हमारी प्रतिबद्धता दिखाई है। हमारी सरकार ने पटना साहिब, श्री गुरु गोविन्द सिंह जी से जुड़े स्थानों पर रेल सुविधाओं का आधुनिकीकरण भी किया है। हम स्वदेश दर्शन योजना के जरिये पंजाब में आनंदपुर साहब और अमृतसर में अमृतसर साहब समेत सभी प्रमुख स्थानों को जोड़ कर एक तीर्थ सर्किट भी बना रहे हैं। उत्तराखंड में हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे बनाने का काम अभी आगे बढ़ रहा है।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब हमारे लिए आत्म कल्याण के पथप्रदर्शक के साथ-साथ भारत की विविधता और एकता का जिवंत स्वरूप भी है। इसलिए जब अफगानिस्तान में संकट पैदा होता है, हमारे पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब को लाने का प्रश्न खड़ा होता है तो भारत सरकार पूरी ताकत लगा देती है। हम न केवल गुरुग्रंथ साहिब को पूरे सम्मान के साथ शीश पर रखकर लाते हैं, बल्कि संकट में फंसे अपने सिख भाइयों को भी बचाते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ने पड़ोसी देशों से आये सिख और अल्पसंख्यक परिवारों को देश की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ किया है। यह सब इसलिए सम्भव हुआ है क्योंकि हमारे गुरुओं ने हमें मानवता को सबसे सर्वोपरि रखने की सीख दी है। प्रेम और सौहार्द्र हमारे संस्कारों का हिस्सा है।
साथियो! हमारे गुरु की वाणी है, ‘भय काहू को देत नहीं, नहीं भय मानत आन। कह नानक सुने रे मना, ज्ञानी ताहि बखानी॥’ अर्थात ज्ञानी वही है, जो न किसी को डराए और न किसी से डरे। भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा पैदा नहीं किया। आज भी हम पूरे विश्व के कल्याण के लिए सोचते हैं। एक ही कामना करते हैं। हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो उसमें पूरे विश्व की प्रगति का लक्ष्य सामने रखकर करते हैं। भारत विश्व में योग का प्रसार करता है, तो पूरे विश्व के स्वास्थ्य और शांति की कामना से करता है।
कल ही मैं गुजरात से लौटा हूं। वहां पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के पारम्परिक चिकित्सा के ग्लोबल सेंटर का उद्घाटन हुआ है। अब भारत विश्व के कोने-कोने तक पारम्परिक चिकित्सा का लाभ पहुंचाएगा। लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने में अहम भूमिका निभाएगा।
साथियो! आज का भारत वैश्विक द्वंद्वो के बीच भी पूरी स्थिरता के साथ शांति के लिए प्रयास करता है, काम करता है। और भारत अपने देश की सुरक्षा के लिए भी आज उतनी ही दृढ़ता से अटल है। हमारे सामने गुरुओं की दी हुई महान सिख परम्परा है। पुरानी सोच, पुरानी रूढ़ियों को किनारे हटाकर गुरुओं ने नए विचार सामने रखे हैं। उनके शिष्यों ने उन्हें अपनाया, उन्हें सीखा। नई सोच का यह सामाजिक अभियान एक वैचारिक इनोवेशन था। इसलिए नई सोच और सतत परिश्रम और शत प्रतिशत समर्पण, ये आज भी हमारे सिख समाज की पहचान है। आजादी के अमृत महोत्सव में आज देश का भी यही संकल्प है। हमें अपनी पहचान पर गर्व करना है। हमें लोकल पर गर्व करना है, हमें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसका सामर्थ्य दुनिया देखे, जो दुनिया को नई ऊंचाई पर ले जाए। देश का विकास, देश की तेज प्रगति ये हम सबका कर्तव्य है। इसके लिए सबके प्रयास की जरूरत है। मुझे पूरा भरोसा है कि गुरुओं के आशीर्वाद से भारत अपने गौरव के शिखर तक पहुंचेगा। जब हम आजादी के 100 साल मनाएंगे तो एक नया भारत हमारे सामने होगा। गुरु तेगबहादुर जी कहते थे कि, ‘साधू, साधू गोविन्द के गुण गाओ, मानस जन्म अमोल कपायो, व्यर्था काहे गवावनो’ इसी भावना के साथ हमें अपने जीवन का प्रत्येक क्षण देश के लिए लगाना है। देश के लिए समर्पित कर देना है। हम सभी मिलकर देश को विकास की नई ऊंचाई पर लेकर जायेंगे। इसी विश्वास के साथ आप सभी को एक बार फिर आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह…