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संक्रमण काल से जूझती पंजाबी संस्कृति

संक्रमण काल से जूझती पंजाबी संस्कृति

by हिंदी विवेक
in राष्ट्र- धर्म रक्षक विशेषांक -जुलाई-२०२३, विशेष, सामाजिक
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जो पंजाब कभी विकास की इबारत लिख रहा था, वहां के युवा अब खेती के प्रति उदासीन हो गये हैं एवं विदेश जाने की जुगत में लगे रहते हैं। पाकिस्तान से आ रही नशे की खेप भी उनके विकास को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

निस्संदेह, आज पंजाब एक ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहां उसकी बहुआयामी संस्कृति को चौतरफा चुनौती मिल रही है। एक समय था कि हरित क्रांति से समृद्धि के शिखर पर खड़ा था पंजाब। पंजाब के मेहनतकश लोगों की सफलता की कहानी से पूरा देश प्रेरित होता था। एक समय किसानी संस्कृति के प्रदेश में गबरू जवानों की भांगड़े की धमक थी और गिद्दे की मोहक छवियां बिखरेती पंजाब की मुटियारें ऊर्जा व उल्लास की प्रतीक बन गई थी। वैशाखी पर खेतों में थिरकते किसान देश को संदेश देते थे कि भारत की आत्मा गांव में बसती है। लेकिन नब्बे के दशक की आतंक की आंधी से जूझकर पंजाब भले ही शांति स्थापना में कामयाब हो गया हो, लेकिन उस काले दौर के जख्मों के दाग अभी मिटे नहीं है। पंजाब के मन को जो गहरी चोट लगी उसकी भरपाई शायद ही वक्त कर पाये। लेकिन इस घटनाक्रम ने पंजाब के मिजाज और आर्थिकी को तमाम दंश दिये हैं। पाकिस्तान पोषित आतंकवाद ने देश की एकता में दरार डालने की कोशिश में अंतत: करारी शिकस्त पायी लेकिन सीमा पार से हथियारों व नशे की खेप भेजने का सिलसिला आज भी नहीं थमा है। आज भी तमाम ड्रोन भारतीय सीमा का अतिक्रमण करके हथियार व नशे की खेप फेंककर जाते हैं। कुछ भारतीय सीमा रक्षकों द्वारा मार गिराये जाते हैं, तो कुछ बचकर लौटने में कामयाब हो जाते हैं। हमारे तंत्र व समाज की कुछ काली भेड़ें राष्ट्रघाती कदमों में सीमा पार बैठे आकाओं की मदद कर रही हैं।

दरअसल, देश के नीति-नियंता पंजाब के मिजाज को नहीं समझ पाये। यह वह क्षेत्र था जहां के लोग लगातार मुगल व अन्य विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला करते रहे हैं। गुरुओं ने हर सिख को वह दमखम व जीवन शैली दी जो क्रूर आक्रांताओं का मुकाबला कर सके। लम्बे समय के संघर्ष ने एक मूल पंजाबी के व्यवहार में शक्ति, सामर्थ्य और तेवरों का समन्वय किया। एक जीवटता का जीवन और किसानी खानपान से पौरुष का बल और राष्ट्र विरोधियों का डटकर मुकाबला। अब चाहे विभाजन के बाद की स्थितियां हों या पाकिस्तानियों के आक्रमण, हर स्थिति का उन्होंने साहस से सामना किया। यही वजह है देश की सेना, सुरक्षा बलों व अर्द्ध सैनिकों बलों में पंजाबियों का सदा वर्चस्व रहा है। पूरे देश में लोग उनकी वीरता व साहस के किस्से सुनाया करते हैं।

कालांतर नब्बे दशक में आतंक की काली आंधी और धार्मिक ध्रुवीकरण ने पंजाब के मर्म को बड़ी चोट दी। एक विशाल पंजाब के भारत विभाजन में और बाद में हुए राज्य विभाजन ने पंजाब की सीमाएं छोटी की, एक पंजाबी को यह बात सदैव सालती रही है। जिसका फायदा राजनेताओं व धार्मिक नेताओं ने उठाया। यही सोच रही है कि चरमपंथ के विस्तार को पंजाब में जमीन मिली। आरोप लगाया जाता रहा है कि केंद्रीय सत्ता राज्य के हितों की अनदेखी लगातार करती रही है। हो सकता है कि इसके मूल में तत्कालीन केंद्र सरकार की संकीर्ण राजनीति रही हो, लेकिन इस घटनाक्रम ने सामाजिक समरसता को भारी नुकसान पहुंचाया। साम्प्रदायिक दुराग्रहों के चलते हजारों लोग मारे गये। आतंकवाद हो या उस पर सुरक्षाबलों का नियंत्रण, हमेशा कुछ निर्दोष लोग उसका शिकार बनते रहे हैं जो कालांतर में सामाजिक असंतोष का वाहक बनते हैं।

 आतंकवाद के दौर का सबसे बड़ा नुकसान यह रहा है कि पंजाब की अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई। लगातार हिंसा और हमलों के चलते जो असुरक्षा का वातावरण बना, उसके चलते राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के बड़े उद्योग अन्य राज्यों में चले गये। कुछ उद्योग हिमाचल तो कुछ हरियाणा चले गये। इससे जहां एक ओर अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचा, वहीं रोजगार के अवसर कम पैदा हुए। कालांतर में यह स्थिति विकट हो गई। फिर राजनीतिक विद्रूपताओं ने इस संकट को और गहरा किया।

दरअसल, पंजाब की आंतरिक अव्यवस्था के चलते ही पंजाब के विकास की जो इबारत लिखी जानी चाहिए थी, वह अधूरी रह गई। जिसने कालांतर में पंजाब की बहुआयामी संस्कृति को नुकसान ही पहुंचाया। राजनेताओं ने चुनाव के वक्त जो सब्जबाग दिखाये, वे हकीकत नहीं बने। दशकों तक रोजगार के सृजन में कोताही के चलते आज हर दूसरा पंजाबी युवक विदेश जाने को आतुर है। अब चाहे कानूनी या गैर कानूनी तरीके से उसे विदेश जाने का मौक मिले, वह सब कुछ दांव पर लगाने को आतुर है। जिसके चलते समाज में परजीवियों की एक ऐसी जमात विकसित हो गई है जो विदेश जाने के नाम पर ठगी के धंधों को सिर चढ़ा रही है। हजारों से मोटा पैसा वसूलकर बेरोजगार युवकों को परदेश के बियाबान इलाकों तथा मौत के मुंह में धकेलने के समाचार मिले हैं। हाल में भारत सरकार के प्रयासों से ओमान आदि देशों में कई महिलाओं को मुक्त कराया गया जिन्हें एजेंटों ने विभिन्न देशों में शोषण व अमानवीय स्थितियों में धकेल दिया गया था। लेकिन इसके बावजूद विदेश जाने का मोह कम नहीं हुआ है। मानवीय तस्करी करने वाले बदस्तूर अपनी साजिशों में लगे हैं।

पंजाब की आतंरिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार का चरम भी विकास के मार्ग में बाधक बना है। आये दिन बड़े राजनेताओं के भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते रहे हैं। जब राजनीतिक सत्ता का परिवर्तन होता है तो पिछले सरकार के दौरान बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते हैं। इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त पाये गये। कुछ मंत्रियों को हटाया भी गया। यही हाल पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भी रहा। उन पर कदाचार के गम्भीर आरोप लगते रहे हैं। हाल के दिनों में पाकिस्तान से आने वाली बड़ी नशे की खेपों में पुलिस के उन बड़े अधिकारियों की भूमिका पायी गई, जिन्हें नशे की आवाजाही पर रोक लगाने की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले दिनों एक सीमावर्ती गांव के एक ऐसे व्यक्ति का पता चला जो दिल्ली से ड्रोन खरीद के ले गया और पाकिस्तान से नशे व हथियार की खेप मंगा रहा था।

वास्तव में आज खेती उतनी लाभदायक नहीं रही है। यही वजह है कि नई पीढ़ी के युवा खेती के विमुख होते जा रहे हैं। वे इसके बजाय विदेश में छोट-मोटी नौकरी करके खुश हैं। बड़ी संख्या में आने वाले प्रवासी श्रमिकों ने भी पंजाब के युवाओं को खेती से दूर रहने की लत डाली है।

राज्य में राजनीतिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता व भ्रष्टाचार राज्य के विकास में बाधक बना हुआ है। जब तक राजनीति में अच्छे, समर्पित व ईमानदार लोग नहीं आएंगे, तब तक राज्य के बहुआयामी विकास को गति नहीं मिल सकती। केंद्र सरकार को ध्यान देना होगा कि यह सीमावर्ती राज्य सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील है। केंद्रीय एजेंसियों की सक्रिय व जिम्मेदार भूमिका से देश की इस सीमा को तस्करों, आतंकियों व घुसपैठियों से निरापद बनाना होगा।

             अर्णव

 

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