सीमावर्ती राज्य पंजाब में खालिस्तानी मूवमेंट एक बार फिर सिर उठा रहा है। भगवंत मान सरकार का कर्तव्य बनता है कि इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगे ताकि वहां का माहौल न बिगड़ने पाए।
पंजाब एक सामान्य प्रदेश नहीं है। पाकिस्तान की सीमा से लगे होने के कारण यह सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत ही संवेदनशील है तथा इसका अतीत डरावना है। 1980 और 90 के दशक में पंजाब में आतंकवाद का ऐसा भयानक दंश झेला है जिसकी कल्पना मात्र से डर पैदा होता है। वैसे भी भगवंत मान सरकार के आने के पहले सीमा पार से हथियार, ड्रग के साथ-साथ पंजाब के अंदर आतंकवादी हिंसा और अशांति पैदा करने की लगातार कोशिशों के प्रमाण मिलते रहे हैं। पिछले करीब चार वर्षों में कई विस्फोट होने के साथ तीन दर्जन से ज्यादा संदिग्ध आतंकवादी गिरफ्तार भी किए गए। कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों के पंजाब में गतिविधियां चलाने और वहां के आतंकवादियों से सम्पर्क-सम्बंध होने के प्रमाण मिले। नशे के प्रसार ने पूरे पंजाब की समाज व्यवस्था को हिलाया ही नहीं है, कानून के राज पर भी प्रश्न खड़ा किया है। इसमें किसी भी सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। पंजाब की सरकार की पहली प्राथमिकता सुरक्षा, नशे और हथियार के अवैध कारोबार को खत्म करना, सीमा पार से आग भड़काने की कोशिशों को विफल करना होना चाहिए।
भगवंत मान ऐसे समय मुख्यमंत्री के पद पर बैठे जब तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध आंदोलन को अलगाववादी खालिस्तानी समर्थक तत्वों ने अपने उद्देश्य से उपयोग करने का प्रयास किया। उस दौरान कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि में खालिस्तानी समर्थकों के प्रदर्शन हुए, भारतीय पहचान से जुड़े स्थलों पर हमले हुए। अलगाववादी तत्वों ने वहां के राजनेताओं तक को अपने पक्ष में खड़ा होने के लिए तैयार किया। भारत विरोधी दुष्प्रचार की योजना की ऑनलाइन वैश्विक बैठकों में पाकिस्तान के मंत्री तक के होने की जानकारी आई। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस सरकार को ज्यादा सतर्क, सुरक्षा के मामलों पर पूरा सख्त तथा अलगाववाद के प्रति शत-प्रतिशत असहिष्णु नीति पर चलना चाहिए था। क्या भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार को इस कसौटी पर पूरी तरह सही माना जाना चाहिए?
आखिर एक अनाम सा व्यक्ति, जिसकी किसी क्षेत्र में कोई हैसियत नहीं थी, वह कैसे पंजाब में आकर इतना शक्तिशाली और लोकप्रिय हो गया कि उसके आह्वान पर हजारों लोग इकट्ठे होने लगे? 29 सितम्बर 2022 को रोड़े गांव के गुरुद्वारे में ही अमृतपाल को ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित किया गया था। उस समय इकट्ठी भीड़ और उसका भाषण बता रहा था कि उसे भारत विरोधी शक्तियों ने पूरी तरह तैयार कर भेजा है। यह हैरत की बात है कि अमृतपाल की खालिस्तानी अलगाववादी के रूप में पहचान होने के बावजूद उसने इस तरह भाषण दिया और पुलिस कुछ नहीं कर सकी।
पुलिस की छानबीन में ही यह तथ्य सामने आ चुका था कि अमृतपाल के दुबई से पंजाब लौटने के के पीछे योजना भिंडरावाले भाग-2 बनने की थी। वह दुबई से पहले जार्जिया गया और वहां भिंडरावाले जैसा दिखने के लिए सर्जरी कराई। पंजाब आने के साथ उसने भिंडरावाले के कपड़ों से लेकर बोलने के अंदाज तक की नकल की। यह सब वह अकेले नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि उसके पीछे संगठित योजना, मस्तिष्क एवं टीम थी। इसमें विदेशों से लेकर देश और पंजाब के अंदर बैठे षड्यंत्रकारी अलगाववादी सम्मिलित होंगे।
जरनैल सिंह भिंडरावाले को भी उभरने में समय लगा था जबकि अमृतपाल दुबई से आने के दो-ढाई महीने के अंदर ही इस धारा का जाना-पहचाना और प्रभावी चेहरा बन गया। यह सब यूं ही तो नहीं हो सकता। अमृतपाल को पहले रोक देते तो उसके साथ युवाओं की इतनी बड़ी फौज नहीं खड़ी होती। हजारों युवक और आम लोग अगर उसके विचारों से प्रभावित हो चुके हैं तो उन सबको मुख्यधारा में कैसे लाया जाएगा यह बड़ा प्रश्न पंजाब के समक्ष खड़ा है।
पुलिस और प्रशासन राजनीतिक नेतृत्व की नीतियों के अनुरूप ही भूमिका निभाता है। अगर राजनीतिक नेतृत्व के लिए पंजाब की सुरक्षा या फिर सुरक्षा को जोखिम में डालने वाले अलगाववादियों के विरुद्ध कार्रवाई करना प्राथमिकता में नहीं हो तो पुलिस कुछ नहीं कर सकती। यही स्थिति एक वर्ष तक पंजाब की रही। ऐसा माना जाता है कि आम आदमी पार्टी के विजय के पीछे भी उन तत्वों की भूमिका रही जो किसी तरह पंजाब की सुरक्षा को जोखिम में डालना चाहते हैं। खालिस्तानी तत्वों ने भी कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा के विरोध में वातावरण बनाने में भूमिका निभाई। इन सब से आम आदमी पार्टी की विजय सुनिश्चित हुई।
वहां के वातावरण का अनुमान इसी से लगाइए कि भगवंत सिंह मान के द्वारा खाली की गई संगरूर लोकसभा सीट से खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत सिंह मान जीत गये, खुलेआम पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तान राज्य की बात करते हैं। यह पंजाब के अंदर घर कर रही खतरनाक प्रवृत्ति का ही परिणाम माना जाएगा।
कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां दिल्ली से लेकर पंजाब एवं देश के बाहर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि में साफ दिखाई पड़ रही थी। संगरूर चुनाव प्रचार के बीच आ रहे समाचारों से साफ लग रहा था कि मान को जिताने की पूरी कोशिश हो रही है।
भगवंत मान सरकार को समझना होगा कि पंजाब का शासन भारत, भारत राष्ट्र की एकता, अखंडता और शांति की दृष्टि से बहुत बड़े जिम्मेदारी का कार्य है।
आखिर पंजाब के अलगाववाद में ही प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर थल सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल अरुण वैद्य की जीवन लीला समाप्त कर दी।
आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल राजनीति करें लेकिन पंजाब की स्थिति का ध्यान रखते हुए भगवंत मान सरकार केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर आबादी विचारधारा को दृढ़ता से कुचलने के लिए प्रेरित करते रहें। मुफ्त की योजनाओं से वोट मिल सकता है, लेकिन पंजाब दिल्ली नहीं है जहां की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार निश्चिंत रहें या विपरीत परिस्थिति में केंद्र पर कैसे जिम्मेदारी डालकर अलग हो जाए।
हालांकि पंजाब की आर्थिक दशा इस सरकार में खराब हुई है। इस समय 3 लाख 47 हजार करोड़ का कर्ज पंजाब पर है। इसमें मोटा मोटी 35 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा मान सरकार ने कर्ज लिया है। मुफ्त की योजना में बिजली, पानी, राशन, चिकित्सा, यात्रा एवं अन्य सेवाएं मुफ्त देने के लिए कहीं से तो धन चाहिए।
यह चिंताजनक स्थिति है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने का असर किसी तरह पंजाब की सुरक्षा को जोखिम में न डालें यह ध्यान रखना होगा। देश को ध्यान रखना होगा कि भगवंत मान सरकार बुरी वित्तीय स्थिति में भी मुफ्तखोरी की योजना चलाने के लिए सुरक्षा खर्चों में कटौती ना करें।
विदेशों से खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियां बता रही है कि पंजाब के सुरक्षा चुनौतियां बढ़ीं हुई हैं। अभी तक आम आदमी पार्टी और पंजाब सरकार की ओर से इन गतिविधियों के विरुद्ध एक भी आक्रामक बयान नहीं आना चिंतित करता है। सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता जताने के लिए ही नहीं, अपनी सरकार के अंदर पंजाब में सुरक्षा माहौल बेहतर करने तथा अलगाववादियों द्वारा प्रोत्साहित करने वाले तत्वों को हतोत्साहित करने के लिए भी मुखर वक्तव्य आवश्यक है। ऐसा न होना पंजाब की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को लेकर सरकार को प्रश्नों के घेरे में तो खड़ा करता ही है।