पंजाब ने देश के विकास के हर क्षेत्र में योगदान दिया है। देश के प्रथम नागरिक, प्रधान मंत्री, क्रिकेटर समेत लगभग हर विधा के पारंगत व्यक्तित्वों ने इस प्रदेश का नाम देश ही नहीं पूरी दुनिया तक पहुंचाया है।
सिख एक ऐसी कौम है जो अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए दुनियाभर में जानी जाती है। यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो सिखों के ऐसे अनेक योगदान मिलेंगे जो ये बताते हैं कि सिखों ने देश और समाज के लिए बहुत कुछ किया है उनके योगदान पर अनेक किताबें लिखी जा सकती हैं। सिखों ने देश और धर्म को बचाने के लिए तो कुर्बानियां दी ही हैं। इसके अलावा भी उनके कई योगदान हैं। आजादी की लड़ाई में और आजादी के बाद भी सिख समाज का देश के लिए जो योगदान है उसके लिए पूरा भारत कृतज्ञता अनुभव करता है। भारत में सिख समुदाय का देश में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और पूर्व मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ज्ञानी जैल सिंह ने 1982-87 तक भारत के सातवें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उनकी लम्बी अवधि की राजनीतिक पृष्ठभूमि थी और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। उन्हें पूर्व कांग्रेस प्रमुख इंदिरा गांधी का करीबी सहयोगी माना जाता था। ज्ञानी जैल सिंह का जन्म पंजाब में संधवा नाम के छोटे से गांव में पांच मई 1916 को साधारण परिवार में किशन सिंह के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ। ज्ञानी जी का असली नाम जनरैल सिंह था। राष्ट्रपति के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत की विदेश नीति को आकार देने और देश के अपने पड़ोसी देशों के साथ सम्बंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। वह एकजुट और धर्मनिरपेक्ष भारत के विचार में दृढ़ता से विश्वास करते थे और इस कारण को बढ़ावा देने के लिए अथक रूप से काम करते थे। वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों के कट्टर समर्थक थे और उनके हितों की रक्षा के लिए काम करते थे।
राष्ट्रपति के रूप में ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल बिना विवाद के नहीं रहा। 1984 के सिख विरोधी दंगों में उनकी भूमिका के लिए उनकी आलोचना की गई थी जो उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई थी। दंगों में कई सिख मारे गए थे और ज्ञानी जैल सिंह पर हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करने का आरोप लगाया गया था। 1987 में राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद ज्ञानी जैल सिंह ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। 25 दिसंबर 1994 को अपनी मृत्यु तक उन्होंने अपने गृहनगर संधवन में एक शांत जीवन व्यतीत किया। ज्ञानी जैल सिंह अपनी सरल और विनम्र जीवन शैली के लिए जाने जाते थे। हर कोई जो उन्हें जानता था उनका सम्मान करता था क्योंकि वह एक ईमानदार व्यक्ति थे। वह एक बेहतरीन लेखक भी थे और उन्होंने राजनीति धर्म और दर्शन सहित कई विषयों पर कई किताबें लिखीं।
इसी प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के एक गांव में हुआ था। डॉ. सिंह ने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डीफिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं’ में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया। 1971 में डॉ सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। डॉ सिंह ने वित्त मंत्रालय के सचिव योजना आयोग के उपाध्यक्ष भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष प्रधानमंत्री के सलाहकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। डॉ सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को डॉ सिंह के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों का जनक माना जाता है।
जस्टिस जेएस खेहर भारत के 44 वें मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने 4 जनवरी 2017 को प्रधान न्यायाधीश के पद की शपथ ग्रहण की और 27 अगस्त 2017 तक वे इस पद पर रहे। जस्टिस खेहर देश के पहले सिख मुख्य न्यायाधीश रहे। 28 अगस्त 1952 में जन्मे न्यायमूर्ति खेहर ने वर्ष 1974 में चंडीगढ़ से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने एलएलएम भी किया। उन्होंने एलएलएम में प्रथम स्थान हासिल किया था। वर्ष 1979 से उन्होंने वकालत की शुरुआत की। वह मुख्य तौर पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते थे। आठ फरवरी 1999 में उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया। नवम्बर 2009 में वह उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। इसके बाद वह कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। सितम्बर 2011 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने। मालूम हो कि न्यायमूर्ति खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को निरस्त कर दिया था।
बात यदि खेलों की की जाए तो सबसे पहला नाम मिल्खा सिंह का आता है। मिल्खा सिंह भारत के प्रसिद्ध धावक थे जिन्होंने देश के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते फ्लाइंग सिख के रूप में लोकप्रिय इस एथलीट ने भारतीय सेना में सेवा करते हुए अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने लगभग 2 दशकों तक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व किया राठौर राजपूत सिख परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह एशियाई खेलों के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर में स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र एथलीट बने थे 1958 और 1962 में उन्होंने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते इसके बाद उन्होंने मेलबर्न में 1965 के ओलम्पिक, रोम में 1960 के ओलम्पिक और टोक्यो में 1964 के ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत में एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह के योगदान ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया।
गुरचरण सिंह का भारतीय क्रिकेट में योगदान के लिए जाना पहचाना जाता है। भारत के सर्वोच्च खेल कोचिंग सम्मान द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले दूसरे क्रिकेट कोच बने। गुरचरण सिंह का जन्म 25 मार्च 1935 को हुआ था। वह एक भारतीय क्रिकेट कोच और पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर हैं। उन्होंने 12 अंतरराष्ट्रीय और 100 से अधिक प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों को प्रशिक्षित किया है। 87 साल के गुरचरण द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले दूसरे क्रिकेट कोच हैं। गुरचरण ने 37 प्रथम श्रेणी मैचों में 1198 रन बनाए। इनमें एक शतक और सात अर्धशतक शामिल है। उनका उच्चतम स्कोर 122 रन का रहा है। इसके अलावा 44 विकेट भी लिए हैं। 100 से अधिक प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों के अलावा उन्होंने मनिंदर सिंह, सुरिंदर खन्ना कीर्ति आजाद, विवेक राजदान, गुरशरण सिंह, अजय जडेजा, राहुल सांघवी और मुरली कार्तिक सहित 12 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को प्रशिक्षित किया। 1987 में देश प्रेम आजाद 1986 में सम्मानित के बाद वे भारत के सर्वोच्च खेल कोचिंग सम्मान द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले दूसरे क्रिकेट कोच बने। इनके अलावा बिशन सिंह बेदी, नवजोत सिंह सिद्धू, मनिंदर सिंह, हरभजन सिंह जैसे क्रिकेट खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया।
भारतीय हॉकी इतिहास में सिख समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पंजाब के जालंधर से ताल्लुक रखने वाले उधम सिंह भारतीय हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक थे। उन्होंने अपने करियर में तीन ओलम्पिक स्वर्ण और एक रजत पदक जीता। हॉकी से रिटायरमेंट के बाद उधम सिंह ने मैनेजर के रूप में भारतीय टीम की कमान सम्भाली। उनके मैनेजर रहते ही भारत ने मैक्सिको ओलम्पिक 1968 में और बैंकॉक 1970 एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था। उधम सिंह ताउम्र भारतीय हॉकी में अपनी सेवा देते रहे। खेल इतिहास में बलबीर सिंह सीनियर एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने एक ओलम्पिक मैच में पांच गोल किए। नीदरलैंड के खिलाफ फाइनल मैच में उन्होंने पांच गोल किए थे। 1956 में हुए मेलबर्न ओलम्पिक में उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी की और 1958 तथा 1962 के एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें भारत को रजत पदक मिला था। सुरजीत सिंह, अजीत पाल सिंह, संदीप सिंह, एमपी सिंह, राजपाल सिंह ने हॉकी के जरिए देश में खेलों के विकास में योगदान दिया।