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पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की स्थिति

पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की स्थिति

by हिंदी विवेक
in राष्ट्र- धर्म रक्षक विशेषांक -जुलाई-२०२३, विशेष, सामाजिक
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बंटवारे के बाद एक ओर भारत में मुसलमानों की संख्या बढ़ी, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की संख्या नगण्य रह गयी है। जो बचे हैं वे प्रताड़ना का शिकार होते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने के बाद बड़ी संख्या में सिखों को पलायन करना पड़ा।

पाकिस्तान एक कृत्रिम राष्ट्र है जो अति महत्वाकांक्षी मुस्लिम नेताओं और धर्मांध बुद्धिजीवियों की सोच का परिणाम है। मुसलमानों के लिए अलग देश का विचार सबसे पहले अल्लामा इकबाल के मन में आया। बसुधैव कुटुम्बकम् विचार में आस्था रखने वाले भारतीय समाज के लिए मुसलमानों के लिए अलग देश का विचार अस्वीकार्य था। लेकिन मुस्लिम लीग और अंग्रेज हुकूमत ने भारत विभाजन के बीज उससे बहुत पहले पहले बो दिए थे। 1920 में मोहम्मद अली जिन्ना ने इंडियन नेशनल कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। 1930 में अल्लामा इकबाल में मुस्लिम देश की अवधारणा मोहम्मद अली जिन्ना के साथ साझी की। 1933 इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्र रहमत अली ने पंजाब, अफगानिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, सिंध के आरम्भिक अक्षर पी. ए. के. एस. अक्षर और बलूचिस्तान शब्द से तान लेकर जो शब्द बनाया वह बना पाकस्तान। रहमत अली ने अपना यह विचार तीसरे गोलमेज सम्मेलन में 28 जनवरी 1933 को प्रस्तुत किया। बाद में मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने पाकस्तान शब्द को संबोधित कर पाकिस्तान बना दिया। कालांतर में जब भारत के विभाजन और स्वतंत्रता को तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने स्वीकृति दी तब एक अंग्रेज अधिकारी सिरिल रेड क्लिफ ने बिना भौगोलिक स्थितियों को जाने कागज पर भारत विभाजन का नक्शा तैयार कर दिया।

अगस्त 1947 में भारत के विभाजन और स्वतंत्रता सम्बंधित घोषणा 3 जून 1947 को आकाशवाणी से की गई। इस बीच धार्मिक आधार पर भारत विभाजन की तैयारियां भी जोरों पर थी। इस्लाम धर्मावलम्बियों की अलग देश की मांग पर आधरित यह विभाजन भारतीयों को अव्यवहार्य और अस्वीकार्य था। इस विभाजन से अखंड भारत के दो हिस्सों के सीमांकन कर पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में देश का निर्माण, सम्पत्ति का बंटवारा, और नए देश पाकिस्तान से हिंदुओं का शरणार्थी के रूप में भारत आना और मुसलमानों का पाकिस्तान जाना, प्रताड़ना जैसा काम था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन को ही दोनों जगह सत्ता हस्तांतरण करना था। पाकिस्तान को 14 अगस्त और भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्रदान की गई। भारत को 14/15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि में स्वतंत्रता मिली। पंडित जवाहर लाल नेहरू को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में गवर्नर जनरल लार्ड माउंट बेटन ने शपथ दिलाई। पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने 11 अगस्त 1947 के अपने एक भाषण में कहा था कि पाकिस्तान सरकार का कोई राज्य धर्म नहीं होगा। सरकार सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करेगी लेकिन उनका ये कथन सच न हो सका। उनकी मृत्यु के कुछ ही समय बाद पाकिस्तान को इस्लामिक रिपब्लिक देश घोषित कर दिया गया। इसके बाद अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ जो बर्बरताएं बरती गई हैं उसके परिणाम स्वरूप पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या 1.85 प्रतिशत रह गई है।

 भारत विभाजन से जो दर्द अदला बदली करते हुए लोगों को हुआ, वैसा विश्व में कहीं नहीं हुआ। जो सम्पन्न और जागरूक लोग थे उन्होंने काफी पहले से स्थानांतरण करना शुरू कर दिया था लेकिन जो लोग इस धारणा के थे कि विभाजन नहीं होगा, उन्हें ही सर्वाधिक कष्ट झेलने पड़े। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान 55000 महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसी तरह पाकिस्तान ने बताया कि 12000 महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया। अपुष्ट आंकड़े जो अलग अलग मिलते हैं उनके अनुसार 10 लाख से 20 लाख लोगों तक इस विस्थापन की त्रासदी में जानेें गंवानी पड़ी। पाकिस्तान से भारत आने वाली रेल गाड़ियों में जो मारकाट मची उनका विस्तृत वर्णन बाद में कई उपन्यासकारों ने किया। उपन्यासकार यशपाल का झूठा सच, भीष्म साहनी का उपन्यास तमस, अमृता प्रीतम का उपन्यास पिंजर, खुशवंत सिंह का उपन्यास ट्रेन टू पाकिस्तान, और सलमान रशदी का उपन्यास मिड नाइट चिल्ड्रन विभाजन की विभीषिका का दर्द जिस रूप में प्रस्तुत करते हैं उससे दिल दहल जाता है। विभाजन की पीड़ाओं को लेकर अनेक फिल्में भी बनी जैसे गरम हवा, अर्थ, हे राम, गदर एक प्रेम कथा आदि। इस स्थानांतरण के 1951 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं की संख्या 72,49,000 थी। इनमें से 78% अर्थात 56,54,220 लोग पश्चिमी पाकिस्तान से आये, बाकी पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्ला देश) से। भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों की संख्या 72,26,000 थी। भारत के मुसलमानों ने भारत विभाजन के पक्ष में मतदान किया था लेकिन बंटवारे के समय वे पाकिस्तान नहीं गए। इसे क्या कहा जाय? जिन मुसलमानों ने भारत विभाजन की रायशुमारी में मुसलमानों के लिए अलग राज्य के पक्ष में मतदान किया था उन्हें भारत में क्यों और किसने रोका था?

1951की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान में हिंदू आबादी 14.20 प्रतिशत थी वह अब घट कर 1.85 प्रतिशत रह गई। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक आबादी के सही-सही आंकड़े नहीं मिल पाते हैं इसलिए विभिन्न आंकड़ों का जो मध्यमान निकलता है वह बताता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या लगभग 40 लाख है। इसी प्रकार सिखों की जनसंख्या 15,000 से 20,000 बताई जाती है। अधिकतर सिख पश्चमी पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में रहते हैं। पाकिस्तान में कुल गुरुद्वारे 160 बताए जाते हैं, लेकिन संचालन में केवल 20 गुरुद्वारे हैं। प्रमुख गुरुद्वारे हैं- गुरुद्वारा ननकाना साहिब, करतारपुर साहिब, गुरुद्वारा पंजा साहिब, गुरुद्वारा कियारा साहिब, गुरुद्वारा डेरा साहिब, गुरुद्वारा रोरी साहिब, छोटा ननकियाना साहिब, गुरुद्वारा सच्चा सौदा, गुरुद्वारा खरा साहिब, गुरुद्वारा भूमन साहिब, गुरुद्वारा बेबे, गुरुद्वारा छैवीं, अलीबेग गुरुद्वारा आदि। गुरुद्वारा करतारपुर साहिब जो कि पाकिस्तान के नारोवाल जिले में है अंतरराष्ट्रीय सीमा से भारत की ओर से 4 किमी की दूरी पर है। यह एक मात्र ऐसा सिख धार्मिक स्थल है जहां श्रद्धालु बिना वीजा के जा सकते हैं। इसका शुभारम्भ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 नवम्बर 2019 को किया। यह उन सभी श्रद्धालुओं के आनंद का विषय भी है और आध्यात्मिकता का भी, जो पहले 4 किलोमीटर दूर रखी दूरबीन से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब को देखने को लालायित रहते थे।

पाकिस्तान में अधिकतर हिंदू लाहौर, रावलपिंडी, फैसलाबाद, पेशावर और सिंध प्रांत के अनेक हिस्सों में रहते हैं। खासकर हैदराबाद सिंध, कराची, उमरकोट, मतिआरी, मीरपुर, थारपारकर आदि स्थानों में निवास करते हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं के अधिकतर मंदिरों को खंडहर में बदला जा चुका है। वर्तमान में पाकिस्तान में 22 मंदिर बचे हुए हैं। इनमें से 11 मंदिर सिंध प्रांत में, 4 पंजाब प्रांत में, 4 खैबर पख्तूनख्वा में और 3 बलूचिस्तान में। इनमें एक शक्तिपीठ हिंगलाज माता भी है। पाकिस्तान में आये दिन हिंदू मंदिरों को दूषित किया जाता है या मंदिरों में छेड़छाड़ की जाती है।

धार्मिक कट्टरता बढ़ने के कारण अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, ईसाई अपने धार्मिक क्रियाकलापों को स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर पाते। हिंदू, होली या दिवाली उत्साहपूर्वक नही मना पाते। हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को दोयम दर्जे का माना जाता है। धार्मिक उन्माद इतना अधिक है कि किसी के ऊपर भी ईशनिंदा का आरोप लगाकर उन्हें मृत्युदंड तक दिए जाने की व्यवस्था है। हिंदुओं को काफिर कहना एक आम बात है। सरकारी सेवाओं में वहां के अल्पसंख्यक वर्ग को कोई सम्मानजनक स्थान नहीं है।

पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं और सिखों (अल्पसंख्यक) को शैक्षणिक संस्थाओं में इस्लामी पाठ्यक्रम पढ़ना पड़ता है। यह उन सभी की मजबूरी है कि न चाहते हुए भी उन्हें इस्लाम की धार्मिक पढ़ाई करनी पड़ती है। इसका प्रभाव यह होता है कि देर सबेर वह धर्मांतरण की ओर बढ़ता है।

सिखों और हिंदुओं की महिलाएं असामाजिक तत्वों से बहुत पीड़ित हैं। आये दिन जवान बेटियों का अपहरण करना आम बात है। अपहरण करने के बाद किसी बूढ़े, लूले, या किसी गरीब गुरबे से उसका इस्लामीकरण करके निकाह करवा दिया जाता है। पीड़ित पक्ष के लोग थानों के चक्कर काटते रहते हैं। सुनाई करने वाला कोई नहीं है। बल्कि एफ.आई.आर लिखाने गए लोगों के साथ बदसलूकी की जाती है। इन लोगों की स्थिति इस कहावत जैसी है-

किससे कहें और कौन सुने, सुने तो समझे नाहीं

धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव के कारण हिंदू और सिख समुदाय के लोग हमेशा आशंकित रहते हैं। अधिकतर लोगों ने रोज-रोज की परेशानियों के कारण इस्लाम धर्म अपना लिया। कुछ लोग अपने धर्म की रक्षा की खातिर वैध या अवैध रूप से भारत मेें रहने लगे हैैं। ऐसे लोगों को नागरिकता संशोधन अधिनियम के अंतर्गत भारत की नागरिकता मिल जाने से राहत मिली है।

पाकिस्तान में यह भेदभाव केवल हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों के साथ ही नही बल्कि शिया मुसलमानों और अहमदिया मुसलमानों के साथ भी किया जाता है। पाकिस्तान में अधिकतम मुसलमान सुन्नी वर्ग के हैं। वे सुन्नियों के अलावा किसी को देखना भी पसंद नहीं करते। यही कारण है कि पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता बढ़ी। इसे विस्तार देने के लिए पाकिस्तान ने अनेक आतंकवादी संगठनों को अपने देश में प्रशिक्षण देकर आतंक को विस्तार दिया। जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने पनाह दी, वही तालिबानी अब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए सिरदर्द बन गए हैं। दो साल पहले जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी फौजें हटाई और तालिबान सरकार अफगानिस्तान में बनी तब अन्य धर्मावलम्बियों का अफगानिस्तान में रहना मुश्किल हो गया था। भारत सरकार ने अफगानिस्तान से हिंदुओं, सिखों और अन्य देशों के धर्मावलम्बियों को सुरक्षित निकाला और अफगानी सिखों को भारत मेें शरण दी।

सच्ची बात यह है कि पाकिस्तान का अपना न कोई इतिहास है, न भूगोल। सभी लोग धर्मांतरित मुसलमान हैं। उम्मा की रट और पाव-पाव के चोरी के परमाणु की मालाएं जपते-जपते अनाज के दाने-दाने के मोहताज हो गए हैं। आज विश्व की अर्थव्यवस्था में या वैज्ञानिक अनुसंधानों में उसका कोई योगदान नहीं है। उसका योगदान धर्म के आधार पर आतंक की फैक्टरियां चलाना है। भारत मेें अशांति फैलाने का खालिस्तानी एजेंडा उसकी नई चाल है। भारतीय समाज के लिए यह दृश्य चिंता और चिंतन का विषय है कि महाराजा रणजीत सिंह के उस पंजाब (पाकिस्तान) में हिंदुओं और सिखों की क्या स्थिति हो गयी है!

-पार्थसारथी थपलियाल 

 

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