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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पंजाब

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पंजाब

by हिंदी विवेक
in राष्ट्र- धर्म रक्षक विशेषांक -जुलाई-२०२३, विशेष, सामाजिक
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अपनी स्थापना के पहले दशक में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पंजाब में संस्कृति एवं हिंदुओं की रक्षा हेतु कार्य शुरू कर दिया था। चाहे स्वर्ण मंदिर की रक्षा हो या विभाजन के समय शरणार्थियों की सुरक्षा, संघ सदैव प्रथम पंक्ति में खड़ा रहा। वर्तमान समय में सिख संगत उस परम्परा का पूर्ण वहन कर रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसकी स्थापना का हेतु भारत के समाज में अपनी माटी, अपनी संस्कृति, अपने गौरवपूर्ण इतिहास का पुनः स्मरण करना ही रहा था। 1925 में लगे इस बीज रूपी संघ का आज का स्वरूप वटवृक्ष के रूप में हमें दिख रहा है। नागपुर महाराष्ट्र से निकले संघ विचार ने देश के भिन्न-भिन्न भागों में पढ़े लिखे युवा स्वयंसेवकों को प्रचारक के रूप में देश के विभिन्न भागों में भेजा। इसी क्रम में सन 1936 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पंजाब प्रांत की ओर अपना प्रभाव विस्तार किया। संघ ने अपने कार्य विस्तार हेतु पंजाब को सात हिस्सों में विभाजित किया जिसे विभाग अनुसार माना जाता था। प्रत्येक विभाग में 5-7 जिले होते थे, जैसे मुलतान में ही 7 जिले थे, जिसमें मियावली, डेरा-इस्माइल खान, मुलतान जैसे शहर शामिल थे।

इस काल खंड में महाराष्ट्र में पढ़े लिखे स्वयंसेवक प्रचारक को भेजा गया। जनार्दन चिंचोलकर, राजा भाऊ पातुरकार, मोरेश्वर मुंजे, के. डी. जोशी, नारायण राव पुराणिक जैसे प्रचारकों ने संघ बीज को पंजाब क्षेत्र में रोपित करने का काम किया। इनकी मेहनत का ही परिणाम था कि 1938 आते-आते संघ का विस्तार पंजाब के काफी क्षेत्रों में हो गया। पंजाब के कई प्रमुख हिस्सों में संघ ने कई अच्छे कार्यकर्ता खड़े किए। संघ का प्रभाव लाहौर, रावलपिंडी, मुलतान, सिंध आदि क्षेत्रों में काफी था। प्रारम्भिक दिनों में संघ को आर्य समाज के लोगों ने काफी सहयोग किया। 1935 में ही आर्य समाज के बड़े नेता परमानंद के दामाद धर्मवीर ने संघ के प.पू. सर संघचालक डॉ. हेडगेवार जी को एक पत्र लिख उन्हें अखिल भारतीय हिंदू युवक परिषद में एक भाषण के लिए आमंत्रित किया एवं हिंदू समाज के मुद्दे पर उनसे मंत्रणा की इच्छा जाहिर की। संघ का कार्य दिनों-दिन बढ़ रहा था। लाहौर अमृतसर आदि तमाम शहरों में संघ का बड़ा अच्छा प्रभाव हो गया था। 1936 से 1938 के बीच ही अमृतसर शहर में सतपाल काका, राम सिंह एवं कपूर चंद जैन जैसे संघ के स्वयंसेवक हमें देखने को मिल जाते हैं। अमृतसर में पहली शाखा सियालकोट के स्वयंसेवक कपूर चंद जैन जी अध्ययन हेतु अमृतसर गए तो वहां पर संघ की पहली शाखा उनके द्वारा लगाई गई। इसी शाखा में वेद प्रकाश महाजन, सतपाल काका डॉ बलदेव प्रकाश, गोवर्धन लाल चोपड़ा आदि भी संघ के सम्पर्क में आये। अमृतसर गुरु की नगरी थी, परंतु वहां पर हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। ऐसे में संघ की इस शाखा ने सुप्त पड़े हिंदू समाज के भीतर एक जागरण करने का कार्य किया। ठाकुर रामसिंह अमृतसर के पहले विभाग प्रचारक थे। उनके मार्ग दर्शन में संघ कार्य ने अपने विस्तार को प्राप्त किया।

अमृतसर में स्वर्ण मंदिर हमले की साजिश को संघ कार्यकर्ताओं ने असफल किया – भारत का विभाजन 1947 में जरूर हुआ लेकिन पंजाब के कई क्षेत्रों में मुस्लिमों द्वारा हिंदू आबादी पर अपना प्रभाव जमाने का चलन तो 1945 से ही प्रारम्भ हो गया था, जिसमें एक था स्वर्ण मंदिर पर मुस्लिम जेहादियों द्वारा हमले की साजिश। संघ के कार्यकर्ताओं को जैसे ही इसकी जानकारी हुई उन्होंने उस समय के नगर प्रचारक डॉ. बलदेव प्रकाश को इसकी सूचना दी। उन्होंने विभाग प्रचारक ठाकुर राम सिंह को सूचना दी कि, ‘यहां तो कर्फ्यू लगा है और मुस्लिम समाज स्वर्ण मंदिर पर हमला करने की साजिश कर रहा है। ऐसे में आप हमारा मार्गदर्शन करें कि हम क्या करें।’ इस पर राम सिंह जी ने कहा, ‘जो भी स्वर्ण मंदिर की रक्षा एवं हिंदू समाज के लिए करने में उपयुक्त हो, वैसा ही सब करो।’ डॉ. बलदेव प्रकाश जी ने 25 लम्बे-चौड़े, जवान स्वयंसेवकों का चयन किया और उन्हें आर्मी की ड्रेस पहना खुुद ऑफिसर बन सबसे आगे हाथ में पिस्टल ले सेना की टुकड़ी रूप में लेफ्ट-राइट-लेफ्ट करते हुए अमृतसर हाल गेट से शहर के अंदर प्रवेश कर गये। हमारे संघ के स्वयंसेवक तो बहुत थे लेकिन उनके पास कोई लीडर नहीं था। जैसे ही डॉ. बलदेव प्रकाश पहुंचे, सभी स्वयंसेवकों में जोश आ गया। इन सब को देख मुस्लिम आतंकियों की हिम्मत ही नहीं पड़ी कि वे हमारे आस्था के केंद्र को क्षतिग्रस्त कर पाते। इस कार्य ने संघ के प्रति समाज का विश्वास अधिक प्रबल किया।

मुलतान में पंडित लेखराज प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे। वहीं मिंटगुमरी जिले में बलवीर शर्मा प्रचारक थे। रामलाल छड़ियां ने मालवा भाग में संघ के काम को आगे बढ़ाया। वे नागपुर गये थे और वहां से संघ विचार को लेकर आये थे। अविभाजित पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास आज से ज्यादा 100 प्रचारक कार्यरत हैं, जिनमें से 58 लाहौर से ही आते थे। अविभाजित पंजाब में एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों की दैनिक उपस्थिति के साथ 1500 से अधिक आर.एस.एस. दैनिक शाखाएं थीं। लाहौर भले आर्य समाज का केंद्र था लेकिन वहां आर्य समाज के मानने वालों में भी संघ का काफी अच्छा प्रभाव था। संघ का प्रभाव पंजाब में सिख समाज के भीतर भी बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। सिख समाज के भी कई प्रचारक निकले, जिनमेें शास्त्री रामसिंह जिला प्रचारक रहे, फिर व्रती कार्यकर्ता हो गये। जालंधर में सरदार संथोख सिंह प्रचारक थे, जो अपने अंतिम समय तक संघ कार्यालय में सेवा कार्य करते रहे। सरदार चिरंजीवी 1953 में ही प्रचारक निकल गये, आजीवन संघ कार्य में लगे रहे।1940 के आसपास पंजाब में माधव राव मुले को प्रांत प्रचारक के रूप में नियुक्त किए जाने पर आरएसएस की गतिविधियों को एक बड़ा बढ़ावा मिला।

1946-47 में श्री गुरु जी भी मुल्तान की यात्रा पर गये। गुरुजी मुलतान के बाद सियालकोट और मोंटगोमरी गए। राजपाल पुरी सिंध प्रांत के प्रांत प्रचारक थे। इस प्रांत में भी संघ का काफी अच्छा कार्य था। उस समय वहां लगभग 80 शाखाएं थीं, वहीं 52 प्रचारक थे, जिनमें लाल कृष्ण आडवाणी भी उस समय सिंध में प्रचारक थे। 1938 में लाहौर में पहला संघ शिक्षण वर्ग हुआ जिसमें डॉ. हेडगेवार एवं गुरु जी दोनों ही उपस्थित थे। संघ के बढ़ते प्रभाव का कारण था कि मुस्लिम लीग के मुखपत्र डॉन में एक लेख के माध्यम से यह कहा गया कि अगर कांग्रेस मुस्लिम लीग से सहयोग चाहती है तो उसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाना होगा। संघ के प्रभाव का परिणाम ही था कि हिंदू समाज के साथ-साथ सिख समाज का भी संघ के प्रति रुझान बढ़ रहा था। संघ अपनी एप्रोच में काफी लिबरल रहा। इसी का कारण था कि जब भाषा को लेकर पंजाब के स्थानीय लोगों के मन में सवाल पैदा हुआ तो उस समय संघ ने पंजाबी भाषा के पक्ष में अपना रुझान दिखाया। ऐसे में तत्कालीन प.पू. सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर गुरु जी ने कहा कि, संघ के सभी स्वयंसेवकों को वही भाषा बोलनी और लिखनी चाहिये जो वह घर पर बोलते हैं। भाषा को लेकर संघ में बड़ा ही स्पष्टीकरण रहा। हिंदी भाषा ही देश के सम्पर्क की भाषा है, लेकिन अपनी स्थानीय भाषा को अपने विचार अभिव्यक्ति में प्रयोग लेने में भी कोई परहेज नहीं होना चाहिए।

भारत विभाजन और पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – भारत के विभाजन में जब पाकिस्तान बना, उस समय पंजाब के उस हिस्से में नरसंहार हुआ जिसमें लाखों हिंदुओं को मार दिया गया। संघ की भूमिका को लेकर ख़ुशवंत सिंह ने ‘मनु माजरा’ उपन्यास, जिसे बाद में ट्रेन टू पाकिस्तान के रूप में प्रकाशित किया गया, में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदू शरणार्थियों की सेवा एवं उनका बचाव करने की भूमिका को बड़े ही अच्छे से बताया है।

आर. एस. एस. के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी ने इन हिंदुओं तक पहुंचने की पहल की और पंजाब राहत समिति और हिंदू सहायता समिति (हिंदू समर्थन समिति) की स्थापना की। इन दोनों की गतिविधियों का केंद्र शुरू में लाहौर था। पंजाब राज्य संघचालक रायबहादुर बद्रीदास इन समितियों के अध्यक्ष थे और डॉ गोकुलचंद नारंग कोषाध्यक्ष थे। विभाजन के दौरान आरएसएस के स्वयंसेवकों की भूमिका को याद करते हुए प्रोफेसर ए. एन. बाली ने अपनी किताब नाउ इट कैन बी टोल्ड में लिखा है कि ,आर. एस. एस. पंजाब में हमेशा मौजूद था। उस कठिन समय में लोगों की रक्षा के लिए कौन आया था, सिवाय उन नौजवानों के जिन्हें आरएसएस के नाम से जाना जाता है। उन्होंने राज्य के हर शहर में, हर मुहल्ले में, महिलाओं और बच्चों के सुरक्षित आने-जाने की व्यवस्था की। उन्होंने लिखा कि, उन्होंने उनके भोजन, चिकित्सा सहायता और कपड़ों की व्यवस्था की और हर सम्भव तरीके से देखभाल की। उन्होंने विभिन्न शहरों और कस्बों में अग्निशमन दलों का आयोजन किया। उन्होंने भागने वाले हिंदुओं और सिखों को ले जाने के लिए लॉरी और बसों की व्यवस्था की और रेलवे ट्रेनों में रक्षा दलों को तैनात किया। संघ के प्रचारकों और कार्यकर्ताओं ने जान की फिक्र किए बिना पंजाब में हिंदू सिख बंधुओं की रक्षा की।

पंजाब में सिख समाज के भीतर एक कट्टरवादी धड़ा उभर रहा था ऐसे में संघ के प्रेरणा से राष्ट्रीय सिख संगत की स्थापना की गई। सिख संगत ने 80 के दशक में राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से ब्रह्मकुंड से अमृतकुंड एक विशाल यात्रा हरिद्वार से अमृतसर तक निकाली, जिसने पंजाब में समरसता का वातावरण निर्मित किया। वही पंजाब में 11,12, 13 मार्च 1983 को अमृतसर गोलबाग में विशाल धर्म सम्मेलन हुआ। उस समय अशोक सिंहल वीएचपी में आये ही थे। इसमें राज माता सिंधिया, गुलजारी नंदा जैसे नेता शामिल हुए थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आजादी से पूर्व और पश्चात दोनों ही काल खंडों में पंजाब और पंजाबियत एवं राष्ट्रीय हितों के लिए प्रतिबद्धता से काम कर रही है इसी का परिणाम है कि संघ का प्रभाव पंजाब में बढ़ रहा है।

          प्रवेश कुमार 

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