यूसीसी और दशानन विपक्ष

भगवान कृष्ण के जन्म से पहले ही कंस ने वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया था, हालांकि आकाशवाणी में यह कहा गया था कि उनकी आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी परंतु कंस ने डर के कारण वासुदेव और देवकी की सातों संतानों को मार दिया था। परंतु न तो कंस आठवीं संतान के रूप में जन्मे कृष्ण को मार सका और न ही अपनी मृत्यु को टाल सका। यही हाल पिछले कुछ दिनों से यूसीसी यानी यूनिफार्म सिविल कोड अर्थात सामान नागरिक संहिता का हो रहा है। न तो इसका मसौदा सामने आया है, न ही इसमें क्या-क्या लिखा है इस पर किसी ने गहराई से अध्ययन किया है और न ही लाभ हानि की मीमांसा हो रही है ऊपर से तथाकथित डर यह दिखाया जा रहा है कि अगर यह लागू हो गया तो सभी को हिंदू नियमों के अनुसार चलना होगा। अतः यह कुछ समुदाय विशेष के लिए अहितकर है और इसके लागू करने पर पाबंदी लगाई जाए। यही मुद्दा वास्तव में इसका विरोध करने वालों के तुरुप का इक्का है।

भारत में हर आदमी कानून का जानकार नहीं है इसलिए ऐसी बातों में फंसना आसान है परंतु यदि सुनी सुनाई बातों को अलग रखकर अपनी बुद्धि पर थोड़ा जोर दें तो इसके कुछ पक्ष सामने आएंगे। सबसे पहला तो यह कि यूसीसी का किसी धर्म मत सम्प्रदाय से सम्बंध नहीं है। कोई व्यक्ति किस शैली में अपने इष्ट को पूजता है यह उसका व्यक्तिगत मुद्दा है, यूसीसी का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। वह व्यक्ति और भगवान, अल्लाह, गॉड के सम्बंध के विषय में नहीं है। यह दो व्यक्तियों के सम्बंध में है। जिस प्रकार आपराधिक मामलों में दंड के नियम सभी के लिए समान हैं, उनमें लिंग, जाति, धर्म, भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता उसी प्रकार विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि के लिए भी समान कानून हो; यही यूसीसी का मुख्य उद्देश्य है। दूसरा पक्ष यह है कि जब इसका आधार धर्म या जाति नहीं है तो यह अल्पसंख्यकों के विरुद्ध कैसे होगा? तीसरा पक्ष यह कि तर्क दिया जा रहा है कि यह वर्षों से चली आ रही मान्यताओं के विरुद्ध है तो उत्तर यह है कि यह मान्यताओं के विरुद्ध नहीं है अपितु उन मान्यताओं के कारण होने वाली हानि के विरुद्ध है और चौथा यह कि इससे भारत की बहुलता वाली संस्कृति को समाप्त करके जबरदस्ती एकरूपता की ओर धकेला जा रहा है तो यह भी पूर्णतः  असत्य है क्योंकि भारत को सांस्कृतिक विविधता विरासत में मिली है। वह किसी कानून के कारण तब तक नष्ट नहीं हो सकती जब तक उस विरासत से भारत के किसी नागरिक को कोई हानि नहीं पहुंच रही हो। भारत में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि के सम्बंध में अलग-अलग मान्यताएं हैं। लोग वर्षों से उन्हें मानते आ रहे हैं। जब तक बिना किसी विवाद के आपसी समझ के आधार पर ये मान्यताएं मानी जाती हैं तब तक किसी कानून का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। परंतु जब विवाद होता है तब निर्णय के लिए एक ऐसे कानून की आवश्यकता पड़ती है जो बिना किसी पक्षपात के निर्णय करता हो। यूसीसी वही कानून होगा।

रही बात इसका विरोध करने की तो यूसीसी भाजपा के मेनिफेस्टो का हिस्सा रहा है और उसने धारा 370, राम मंदिर निर्माण जैसे अपने अन्य मुद्दों को अपने कार्यकाल में पूरा किया है। वह यूसीसी भी लाना चाहती है परंतु विरोधी पक्ष के नेताओं ने उनका भी विरोध किया था और अब इसका भी विरोध कर रहे हैं। नवगठित ‘इंडिया’ इसे चुनावी मुद्दा मान रहा है। उसका आरोप है कि केंद्र सरकार अन्य मुद्दों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है, इसलिए यूसीसी ला रही है। अगर ऐसा है तो विपक्ष क्यों इसे हवा दे रहा है। उसके जो पास जो अन्य चुनावी मुद्दे हैं उन पर जनता का ध्यान आकर्षित करे, सदन में सरकार से उन प्रश्नों के उत्तर मांगे और चुनावों के समय अपने मुद्दों के साथ चुनाव लड़े। परंतु विपक्ष का हाल अभी दशानन की तरह है, वह दस दिमागों से सोच रहा है और किसी भी निर्णय पर सहमत नहीं हो पा रहा है। इसलिए भाजपा के मुद्दों का विरोध ही विपक्ष का मुख्य चुनावी मुद्दा है और अपने इस विरोध को बल देने के लिए वे जनता के बीच तरह-तरह के भ्रम निर्माण कर रहे हैं, जिससे यूसीसी जनता तक सही तरीके से न पहुंच सके।

भाजपा यूसीसी को लागू करके कोई नया काम नहीं कर रही है। यह संविधान में पहले से ही है, केवल पिछली सरकारों ने उसे इन्हीं भ्रमों और उनसे उपजने वाली क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं के कारण लागू नहीं किया। परंतु जिस प्रकार धारा 370 हटाने के पहले पूर्ण तयारी की गयी थी उसी प्रकार सरकार को भी यूसीसी लागू करने से पहले कानून विशेषज्ञों के साथ-साथ आम जनता को भी विश्वास में लेना होगा और जनता को भी आंखें मूंदकर स्वीकार या विरोध करने से बचना होगा।

 

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