तेजी से बढ़नेवाली मुंबई का भार कम करने के लिए बनी नवी मुंबई आज निस्संदेह देश के सर्वोत्तम शहरों में से एक है। इस शहर की रचना में सिडको का योगदान अतुलनीय है। किंतु इस शहर को बसाने का 100 प्रतिशत उद्देश्य सफल नहीं हो पाया है। शहर की बसाहट को लेकर बनाए गए कुछ नियमों के अनुपालन की अनदेखी की गई।
काफी समय पहले की बात है, मैं किसी संगोष्ठी के लिए गया था, जहां प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री चार्ल्स कोरिया एक वक्ता के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने अपने भाषण में नवी मुंबई नाम का नया शहर रचने और बसाने के पीछे योजनाकारों की क्या सोच थी, उसका बड़ी बारीकी से वर्णन किया। भाषण इतना प्रभावी रहा कि उनसे बात करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। उस भीड़ में मैं भी शामिल हो गया। जब उनसे बात करने का अवसर मिला तो मैंने कहा, मैं आप के डिजाइन किए घर में रहता हूं। उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा तो मैने कहा, मैं सीबीडी के आर्टिस्ट विलेज में रहता हूं। वह आश्चर्य से मेरी ओर देखते रहे। उनके आश्चर्यभरी नजों में प्रश्न थे। वह प्रश्न है, क्या इस शहर को बसाने का उद्देश सफल हो पाया है? स्वतंत्रता के बाद मुंबई की जनसंख्या की वृद्धि का दर तेजी से बढ़ा। रोजगार के अवसरों की उपलब्धता इसका बडा कारण था। इसी कारण 1951 से 1971 के बीच दो दशकों में मुंबई की जनसंख्या दुगनी से ज्यादा बढ़ गई। इसी बीच 1960 में महाराष्ट्र राज्य बना और नई सरकार ने इस बढ़ती जनसंख्या के कारण जीवन के स्तर में आनेवाली गिरावट को रोकने के प्रयास शुरू किए। इन प्रयासों का भाग थी एक समिति जो महाराष्ट्र सरकार ने प्रख्यात अर्थशास्त्री धनंजयराव गाडगिल की अध्यक्षता में गठित की। इस समिति को मुंबई और पुणे के महानगरीय क्षेत्रों के लिए क्षेत्रीय व्यापक योजना तैयार करने और कार्यान्वयन की दिशा निश्चित करने का कार्य सौंपा गया।
गाडगिल समिति ने महानगरीय प्राधिकरणों की स्थापना की सिफारिश की जिसके दो महत्वपूर्ण बिंदुओं ने नवी मुंबई की योजना को प्रभावित किया। पहले तो उन्होंने मुंबई में औद्योगिक विकास पर गम्भीर प्रतिबंधों के साथ उद्योगों के नियोजित विकेंद्रीकरण पर जोर देने की बात कही। दूसरा मुद्दा था, मुंबई के इर्दगिर्द मुख्य भूमि क्षेत्र का बहु-केंद्रीय बस्ती के रूप में विकास करना। इन बस्तियों का आकार लगभग ढाई लाख की जनसंख्या के लिए पर्याप्त हो, उनका सुझाव था।
गाडगिल समिति की सिफारिश के अनुसार महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम 1966 में पारित किया गया। बॉम्बे मेट्रोपोलिटन क्षेत्र को जून 1967 में अधिसूचित किया गया और क्षेत्रीय योजना बोर्ड गठित किया गया। बोर्ड की मसौदा क्षेत्रीय योजना को जनवरी 1970 में अंतिम रूप दिया गया। इसी क्षेत्रीय योजना में मुंबई के दक्षिणी सिरे पर होने वाले कार्यालय संकेंद्रण के प्रति-चुंबक के रूप में, बंदरगाह के पार, पूर्व में मुख्य भूमि पर एक जुड़वां शहर के विकास का प्रस्ताव रखा। यही थी नवी मुंबई की शुरुआत। उस समय उसे नया मेट्रो-सेंटर कहा जाता था। 21 लाख जनसंख्या को धारण करने के लिए इस नए शहर की रचना करने का लक्ष्य उस समय सामने रखा गया।
नवी मुंबई की योजना 1971 में शुरू हुई। इसमें चार्ल्स कोरिया (मुख्य वास्तुकार), शिरीष पटेल, प्रवीणा मेहता और आरके झा (मुख्य योजनाकार), शहर और औद्योगिक विकास निगम (सिडको) जैसे प्रमुख आर्किटेक्ट और शहरी योजनाकार शामिल थे। सिडको की स्थापना इस उद्देश्य के लिए 17 मार्च 1971 को भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत की गई। नए शहर की रचना के लिए सिडको को सौंपा गया क्षेत्र कोंकण तट के कुल 720 किलोमीटर में से 150 किलोमीटर को कवर करता है। नवी मुंबई की वर्तमान सीमा के भीतर 15,954 हेक्टेयर को कवर करने वाले 86 गांवों की निजी स्वामित्व वाली भूमि और अतिरिक्त 2,870 हेक्टेयर क्षेत्र को महाराष्ट्र सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया। नवी मुंबई में ठाणे जिले से ठाणे तालुका का दक्षिणी भाग और रायगढ़ जिले से पनवेल और उरण तालुकों के हिस्से शामिल किए गए। कार्य की सुविधा के लिए सिडको ने इस क्षेत्र को विभिन्न नोडस् में बांटा जो अब ऐरोली, घनसोली, कोपरखैराने, वाशी, तुर्भे, सानपाड़ा, जुईनगर, नेरुल, सीवुड्स, करावे, सीबीडी बेलापुर, खारघर, कामोठे, न्यू पनवेल, कलंबोली, उलवे, द्रोणागिरी और तलोजा नाम से जाने जाते हैं।
वाशी नोड के विकास के साथ नवी मुंबई की रचना शुरू हो गई तथा 1973 में वाशी खाड़ी पुल का निर्माण किया गया। सायन-पनवेल राजमार्ग पर सायन से पनवेल तक यात्रा का समय कम करने के लिए इसे बनाया गया था। ठाणे-तुर्भे कॉरिडॉर (टीटीसी) क्षेत्र के उद्योगों में काम करने वाले लोग इसी नए शहर में बस जाएं इसलिए प्रयास शुरू किए गए। पुराने लोग कहते हैं कि शुरुआती दिनों में सिडको के अधिकारी प्रायः टीटीसी क्षेत्र के कारखानों में शिफ्ट समाप्त होने के समय गेट पर नए घरों के लिए ग्राहक ढूंढ़ते दिखते थे। शुरुआत में नए शहर को लेकर लोगों में ज्यादा उत्साह नहीं दिखा। परंतु धीरे धीरे शहर बसने लगा, बढ़ने भी लगा। नवी मुंबई के विकास को 1990 के दशक में ही बड़ी गति मिली। 1991 में तुर्भे में थोक कृषि उपज बाजार की शुरुआत और मई 1992 में मुंबई लोकल की हार्बर लाइन मानखुर्द से वाशी तक बढ़ाई गई। अगले दो-तीन वर्षों में यह लाइन पहले बेलापुर और फिर खांडेश्वर तक बढ़ गई। 1998 में मुंबई की लोकल रेल सेवा पनवेल तक फैल गई। 2004 में थाने-पनवेल लोकल सेवा का प्रारम्भ हुआ। लोकल रेलवे सेवा के कारण नवी मुंबई में आर्थिक गतिविधियों और जनसंख्या में बड़ी वृद्धि हुई। सिडको ने
नवी मुंबई में सभी रेलवे स्टेशनों, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों की योजना बनाई और निर्माण किया और आसपास के क्षेत्रों को व्यावसायिक रूप से विकसित किया। नवी मुंबई के रेलवे स्टेशन वैशिष्ट्यपूर्ण हैं। कई स्टेशनों में व्यावसायिक उपयोग के लिए जगहों का निर्माण भी किया गया। मुंबई के विकास के अनुभवों का उपयोग इन सारी रचनाओं में किया गया। इसी कारण से नवी मुंबई देश के अग्रसर शहरों में एक बन गया।
1990 के दशक में ही नवी मुंबई महानगरपालिका का काम शुरू हो गया था। अगले दशक में खारघर, कामोठे, पनवेल और कलंबोली के आधुनिक नोड्स को तेजी से विकसित किया। यह क्षेत्र अब पनवेल महानगरपालिका का भाग बन गया है। 2018 में नेरुल और उरण के बीच एक नए रेलवे लिंक का उद्घाटन किया गया और साथ ही नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का विकास शुरू हो गया। इस कारण इस सारे क्षेत्र के विकास की गति बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है।
आज इस शहर में प्रायः गढ्ढों से मुक्त चौडी सड़कें, जगह-जगह उद्यान, बच्चों को खेलने के लिए मैदान, जिनके पास-पड़ोस में खुली जगह है ऐसे घर, बिजली और पानी की अखंडित सेवा समेत सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। शहर नियोजन में पानी की भूमिका अहम होती है। मुंबई की रचना करते समय हर व्यक्ति को हर दिन 100 लीटर पानी मिले, इस दृष्टि से नियोजन किया गया था। जनसंख्या विस्फोट के कारण वह वास्तविक रूप में नहीं पूर्ण हो पाया। पर, नवी मुंबई की रचना करते समय हर व्यक्ति को हर दिन 180 लीटर पानी मिले, ऐसी रचना की गई थी। यानी शहर में बसने वाले लोगों के जीवन का स्तर ऊंचा रहे, मूल योजना में इसका पूरा ध्यान रखा गया था। नवी मुंबई में एक मजबूत बुनियादी ढांचा है। यह राज्य और देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और मुंबई की तुलना में अपेक्षाकृत कम प्रदूषित है। शहर में एक अच्छी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली है, जिसमें एनएमएमटी, एनएमएमसी की परिवहन शाखा, बस यात्रियों की सेवा करती है, मुंबई उपनगरीय रेलवे ट्रेन यात्रियों की सेवा करती है और इंट्रा-नोडल आवागमन के लिए ऑटो रिक्शा का एक बड़ा बेड़ा है। मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे नवी मुंबई के कलंबोली से शुरू होता है। दक्षिण मुंबई को नवी मुंबई से जोड़ने वाला 22 किलोमीटर लम्बा मुंबई ट्रांसहार्बर लिंक (एमटीएचएल), जिसे शिवडी-न्हावा शेवा ट्रांसहार्बर लिंक के रूप में भी जाना जाता है, फ्रीवे ग्रेड सड़क पुल अगले कुछ ही महीनों में पूरा होने की स्थिति में है।
किंतु इस सारे चकाचौंध में इस नए शहर की रचना का मूल उद्देश्य खो गया है? शहर की योजना मूल रूप से उन लोगों के लिए किफायती आवास बनाने की थी जो मुंबई में रहने का खर्च वहन नहीं कर सकते थे। यह निर्णय भी लिया गया था कि शहर में झुग्गी-झोपड़ी को नहीं फैलने दिया जाएगा। लेकिन आज इन दोनोें निर्णयों पर अमल करनें में शासकीय यंत्र पूरी तरह सफल रहा है। 2001 की जनगणना के अनुसार नवी मुंबई महापालिका के आबादी का 20 से 33 प्रतिशत हिस्सा झुग्गियों और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां हजारों इमारतें नियोजित मानदंडों का उल्लंघन करती हैं, रहता है। इसके अलावा मुंबई के सम्पन्न जनजीवन का भी नवी मुंबई में अभाव देखने को मिलता है। बहुत सुंदर शरीर का निर्माण तो हुआ है, पर आत्मा गायब है। ऐसी ही कुछ दुविधाओं में यह नया शहर आज भी अपनी जड़ें खोज रहा है।
अभिजित मुल्ये