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एक दूसरे के सम्पूरक हिंदू-सिख

एक दूसरे के सम्पूरक हिंदू-सिख

by pallavi anwekar
in देश-विदेश, पनवेल विकास विशेष अक्टूबर-२०२३, विशेष, सामाजिक
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हिंदू और सिख समाज एक दूसरे के लिए इतने पूरक रहे हैं कि दोनों ने एक दूसरे को कभी अलग नहीं माना। परंतु पिछले कुछ समय से इनके बीच दरार डालकर देश की शांति भंग करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि खालिस्तान की अवधारणा को बल मिल सके।

भारत में जब धर्मों की बात की जाती है तो मुख्य रूप से हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म की चर्चा की जाती है। हालांकि सनातान विचार में धर्म शब्द की व्याख्या अलग है, परंतु वह इस लेख का विषय नहीं है। तो सामान्यत: उपरोक्त चार धर्म माने जाते हैं। इनमें से मुसलमान और ईसाई धर्म बाहर से आया है, जबकि हिंदू और सिख धर्म की उत्पत्ति भारत में ही हुई है। हिंदू या सनातन धर्म कई हजार वर्ष पुराना है, मानवीय सभ्यता या कालगणना से  भी पुरातन अत: उसके इतिहास को गिना नहीं जा सकता। चूंकि सनातन परम्परा में ईश्वर की आराधना का कोई एक मार्ग या पंथ नहीं है अत: इनमें से जो भी पंथ या मत निकला वह स्वीकार्य रहा। बौद्ध, जैन, जैनों में दिगम्बर, श्वेताम्बर, तेरा पंथ आदि सभी का मूल हिंदू ही रहा। इन सभी का इतिहास ज्ञात है।

सिखों का इतिहास इतना भी पुराना नहीं है कि उसे गिना न जा सके या उसकी शुरुआत तक न पहुंचा जा सके। गुरु नानक देव से शुरू हुई यह परम्परा आज तक चल रही है और सिखों के गुरुओं ने कभी स्वयं को हिंदुओं से अलग नहीं समझा, वरन हिंदुओं की रक्षा के लिए खालसा की स्थापना की। सारा इतिहास पढ़ें तो कहीं भी पंजाब, अफगानिस्तान, सिंध, कश्मीर में पूरी संगत हिंदुओं की ही थी और वह गुरु महाराज को अपना इष्ट मानती थी। जब 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की तो पूरे भारत से 5 हिंदू ही ‘पंज प्यारे’ सजे थे और उन्होंने सिख धर्म अपनाया था। जिन कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर गुरु तेग बहादुर ने अपनी कुर्बानी दी, वे पंडित सिख बन गए थे। कश्मीर, विशेष कर पुंछ क्षेत्र में सारी आबादी ब्राह्मणों से बने सिखों की है। यह भूलना नहीं चाहिए कि सभी ग्रंथी पहले इन्हीं क्षेत्रों से आते थे और वे ब्राह्मण ही थे। वर्तमान पाकिस्तान के भी कई सारे क्षेत्रों में हिंदू सहजधारी सिख थे। सारा सिंध क्षेत्र गुरु नानक देव को मानता था। आज भी दिल्ली में बहुत सारे हिंदू परिवार गुरुद्वारा साहिब में अखंड साहिब के भोग डलवाते हैं। बंगला साहिब में रोजाना की उपस्थिति में कितने सारे हिंदू परिवार आते हैं।

इतना सब होने के बाद भी हिंदुओं को सिखों का शत्रु क्यों माना जा रहा है? क्यों प्रचारित किया जा रहा है कि सिखों को हिंदुओं से खतरा है? क्यों हिंदुओं और सिखों के बीच खाई निर्माण करने का प्रयत्न किया जा रहा है? क्या 1984 की घटना के बाद योजनाबद्ध तरीके से सिखों का ‘ब्रेनवॉश’ किया जा रहा है और उन्हें स्वयं को हिंदुओं से अलग दिखाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है? हिंदुओं की रक्षा के लिये आगे आने वाले सिख गुरुओं को मुसलमान आक्रांताओं ने असीम यातनाएं देकर मारा था। गुरु अर्जुन देव जी की कुर्बानी का आदेश बादशाह जहांगीर ने दिया था। यह बात तुजके जहांगीरी में दर्ज है, जिसे कोई भी पढ़ सकता है लेकिन इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने वाले लोग मुगल सरकार को दोष मुक्त कर रहे हैं। कुछ समय पहले किसी ने यह भी लिखा था कि गुरु तेग बहादुर की कुर्बानी का औरंगजेब को पता ही नहीं था। इतिहास को बदलने का प्रयास क्यों हो रहा है और यह यह प्रयास कौन कर रहा है? मुसलमानों द्वारा दी गई यातनाओं को और हिंदुओं के लिए दी गई सिख गुरुओं की शहादत को क्या आज सिख भूल गए हैं? क्या 1984 की एक घटना इस पूरे इतिहास से बड़ी हो गई है? क्या वे ये नहीं समझ पा रहे हैं कि 1984 में जो हुआ वो कुछ कांग्रेसी मानसिकता के लोगों ने किया था, पूरे हिंदू समाज ने नहीं।

पिछले कुछ वर्षों में समाज का एक धड़ा विचारपूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से ये जहरीले बीज समाज में बो रहा है कि सिख धर्म को हिंदुओं से खतरा है। जो धड़ा इस प्रचार में लगा हुआ है वह इतिहास को बिगाड़कर ऐसे ढंग से पेश कर रहा है जिससेउसके तर्क को वजन मिले। जब कोई विद्वान या प्रचारक  ऐसी बात कहता है तो वह साफ शब्दों में हिंदूओं को सिखों का दुश्मन घोषित करता है। जब हिंदुओं की रक्षा की आवश्यकता जान पड़ी तो सिख सामने आए और कुछ समय पश्चात जब सिखों को आवश्यकता हुई तो हिंदुओं ने उनकी सहायता की। नादिरशाह और अब्दाली के जुल्मों से बचाने के लिए सिखों की सहायता हिंदुओं ने की थी। एक बार तो पूरे सिखों को खत्म करने की घोषणा कर दी गई थी। जब बोता सिंह की बहादुरी की कथा सुनते हैं, उस समय सिख कहां से आए? हिंदू ही सिख बने और सिख धर्म की चढ़त मची। जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और सिख पाकिस्तान की अपनी मिट्टी से उजड़ कर यहां आए थे तो पूरे देश ने उस बहादुर कौम को अपने हृदय में आत्मसात कर लिया। सिख भारत के प्रत्येक कोने में जा बसे। उन्होंने वहां अपना कामकाज शुरू किया। खेती के फार्म बनाए, गुरुद्वारे बनाए। सिखों के पुनर्वास के लिए हिंदुओं ने भी आगे बढ़कर सहायता की। पर जब पंजाब में कुछ खून-खराबा हुआ, झगड़े बढ़े तो अराजक तत्वों को खाई निर्माण करने का मौका मिल गया। अत: हिंदुओं-सिखों के बीच खाई निर्माण करने के वाले षड्यंत्रों को हिंदू और सिख दोनों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। एक मामला और आता है, संविधान की धारा 25 का। संविधान 1950 में लागू हुआ। उसमें सिख, जैन, बौद्धों को हिंदुओं से जोड़ दिया गया। लेकिन इस धारा का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि संविधान बनाने वाले सिखों के विरुद्ध थे या उनका कोई इरादा सिखों के विपरीत था। हालांकि संविधान में संशोधन करने वाली कमेटी ने इस मद को बदलने की भी सिफारिश कर दी है। चूंकि यह परिवर्तन भारत सरकार को करना है, इसके लिए सम्पूर्ण हिंदू समाज बाध्य नहीं है।

पंजाब में राजनीतिक झगड़ों को सामने रखकर कई बार हिंदुओं और सिखों में तकरार भी होती रही है परंतु वह कभी बड़े रूप में नहीं हुई। दोनों ओर से गैर-जिम्मेदार लोग छोटी-छोटी बात पर झगड़ पड़ते हैं। सिख-हिंदुओं के बीच बढ़ती कटुता से सम्बंधित सभी तथ्य समझने की आवश्यकता है। सिखों को पुन: एक बार गुरुओं के बलिदान की गाथाएं याद करनी चाहिए न कि राजनीति और स्वार्थ से प्रेरित 1984 की घटना। अलग खालिस्तान की मांग करते समय इस बात का तार्किक विचार करना चाहिए कि खालिस्तान की मांग केवल भारत के हिस्सों के लिए ही क्यों हो रही है, पाकिस्तान के क्यों नहीं? यह भी विचार करना होगा कि योजनाबद्ध तरीके से अमल में लाई जा रही फूट डालो और राज करो की नीति का सबसे बुरा असर किस पर पड़ेगा?

अत: नकारात्मक बातों की ओर ध्यान देने के बजाय सिख समुदाय का अपनी प्रगति की ओर ध्यान देना अधिक अच्छा होगा। हॉकी, फुटबाल और कबड्डी आदि खेलने वाले सिख खिलाड़ी बहुत कम हो रहे हैं। पंजाब, जहां के खेत कभी लहलहाते रहते थे, वहां खेती का प्रतिशत और जल स्तर गिरता जा रहा है। नई पीढ़ी नशे के गर्त में डूब रही है या विदेश जाकर देशद्रोही कामों में लिप्त हो रही है। क्या इन सब के पीछे हिंदुओं का हाथ है? इतिहास से लेकर अभी तक की घटनाओं का तार्किक विश्लेषण करें और कांगेे्रसियों की करतूत को सम्पूर्ण हिंदू समाज से न जोड़ें।

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