पनवेल का आर्थिक विकास और जेएनपीटी

पनवेल शहर के शुरुआती विकास में जेएनपीटी का प्रमुख योगदान रहा है, जो वर्तमान में भी अनवरत जारी है। तेजी से औद्योगिक हब बनते पनवेल के भविष्य में भी जेएनपीटी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए तैयार है।

दुनिया के अधिकतर बडे शहरों का का इतिहास अगर देंखें, तो पता चलता है, या तो वो किसी नदी के किनारे बसे हुए हैं या वहां कोई समुद्री बंदरगाह है। मुंबई शहर का जन्म केवल वहां पर पत्तन होने की वजह से हुआ है। पुरातन काल से लेकर आज तक आवाजाही का प्रमुख माध्यम समुद्री मार्ग ही रहा है। पत्तनों की वजह से मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहर बसे हैं और महानगरों मेें बदल गये। 1984 में जवाहरलाल नेहरू पत्तन न्यास की नींव रखी गई और मई 1990 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के करकमलों द्वारा यह देश को हस्तांतरित हुआ। वर्तमान में  इस पत्तन के सबसे नजदीक का शहर पनवेल है। जवाहरलाल नेहरु पत्तन न्यास के साथ साथ पनवेल का भी विकास होता गया और पनवेल आज  महानगरो में गिना जाता है।

2016 से पनवेल भी महानगरपालिका से प्रशासित हो रहा है। 34 साल पहले जब जेएनपीटी का जन्म हुआ तब पनवेल एक छोटा सा नगर था। पर आज पनवेल इलाका जेएनपीटी समवेत नवी मुंबई से सटा हुआ तथा कलम्बोली और तलोजे तक फैल चुका है। मुंबई से नजदीकी के कारण पनवेल का विकास हुआ है ये बात काफी हद तक सच है। परंतु पनवेल की आज की समृद्धि के लिए जवाहरलाल नेहरु पत्तन न्यास काफी मददगार साबित हुआ है।

न्हावा शेवा पत्तन न्यास के नाम से इस बंदरगाह का काम शुरू हुआ और तत्पश्चात वह जवाहरलाल नेहरू पत्तन न्यास के नाम से पहचाना जा रहा है। सिर्फ बीस-पच्चीस किलोमीटर दूरी पर होने के कारण वह सहज रूप से पनवेल शहर से जुड़ गया और उसके साथ ही आगे प्रवासरत है।

पनवेल को कोंकण प्रादेशिक क्षेत्र का प्रवेशद्वार माना जाता है, जिसकी सीमाएं नवी मुंबई और थाने से लगी हैं। मुंबई पुणे द्रुतगामी मार्ग एक्सप्रेसवे भी पनवेल से गुजरता है। मुंबई से इसकी दूरी मात्र 21 किमी है। आज पनवेल रायगढ़ जिले का का सबसे विकसित तथा अधिक जनसंख्या वाला शहर है। पनवेल शहर तालुका मुख्यालय है, जिसमें लगभग 1000 गांव आते हैं। पनवेल क्षेत्र के विकास और रखरखाव के लिये दो संस्थाएं जिम्मेदार हैं, एक पनवेल म्यूनिसिपल कार्पोरेशन (पीएमसी) और सिडको (सिटी एण्ड अर्बन डेव्प्लपमेन्ट कार्पोरेशन)। परंतु पनवेल के विकास में जेएनपीटी का महत्वपूर्ण योगदान निस्संदेह अतुलनीय रहा है।

तकरीबन तीन लाख आबादी का यह शहर, गाढ़ी नदी के किनारे बसा है। गाढ़ी नदी ही आगे जाकर पनवेल क्रीक में परिवर्तित हो जाती है।

पनवेल ऐतिहासिक महत्व का शहर भी है। आगरी, कोली और कराडी संस्कृति वाले पनवेल का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है। प्राचीन काल में यह पनेली के नाम से भी यह जाना जाता था। इस अवधि के दौरान, मुगलों, ब्रिटिश, पुर्तगाली और मराठों ने अलग-अलग समय के लिए पनवेल पर अधिपत्य किया।

विशेष बात यह है पनवेल नगर पालिका की स्थापना वर्ष 1852 में हुई थी। यह महाराष्ट्र राज्य की पहली नगरपालिका थी । नगरपालिका चुनाव की शुरूआत 1910 से हुई। 1910-1916 में युसूफ नूर मोहम्मद को पहले मेयर के रूप चुना गया था। आगे चलकर समुद्री और खुश्की व्यापार के कारण पनवेल लगातार समृद्ध होता गया। पेशवा काल के दौरान शहर में कई कोठियां बनी, जिन्हें वाडा कहा जाता है और आज भी कुछ वाडे मजबूती से यहां खड़े है।

जनेप प्राधिकरण से इस शहर के विकास को चार चांद लगे और वह आज भी बरकरार है। प्राधिकरण के 85% कर्मचारी पनवेल के क्षेत्र में क्षेत्र के निवासी ही हैं। पनवेल क्षेत्र का एक पूरा सेक्टर ही जेएनपीटी के लिए समर्पित है। सामाजिक तौर पर जेएनपी प्राधिकरण से जुड़े लोग पनवेल की मुख्य धारा के लोग हैं और पनवेल के विकास में इन सब का बड़ा योगदान है। पनवेल के सांस्कृतिक जीवन में भी इनका काफी बड़ा हाथ है। ये सभी मिलकर ‘आविष्कार’ नामक एक संस्था चलते हैं जो सांस्कृतिक तथा सामाजिक कार्यों में काफी अग्रेसर है।

जनेप प्राधिकरण के आने के बाद पनवेल शहर में नई जान सी आ गई थी। स्थानीय तथा पूरे देश भर के लोगों को रोजगार के अनेक मार्ग इस पत्तन के आने से खुल गए। भारत भर से लोग यहां आकर्षित हो रहे हैं। देश के विभिन्न भागों से हजारों लोग रोजगार की खोज में जेएनपीटी आए और यहीं के हो कर रह गए। विकास का पहिया बहुत तेजी से चलने लगा। विकास के अगले क्रम में अच्छे इंटरनेशनल स्कूल्स, कॉलेजेस, इंजीनियरिंग कॉलेजेस, मेडिकल कॉलेजेस, एमजीएम जैसे मेडिकल कॉलेज, आर्किटेक्चर कॉलेज यहां आए। पिछले 30 सालों में शिक्षा की कई सारी संस्थाएं यहां उभर कर आई हैं। 1998 में पनवेल को लोकल ट्रेन सर्विस से जोड़ा गया। पनवेल रेलवे स्टेशन राज्य के महत्वपूर्ण एवं व्यस्त स्थानकों में से एक है। देश के कोने-कोने से यहां ट्रेनें आती-जाती है।

जेएनपीटी की वजह से कंटेनर्स लेकर आने-जाने वाली रेलगाड़ियों की हर रोज बढ़ती हुई संख्या के कारण रेल्वे विभाग को अच्छा राजस्व प्राप्त हो रहा है। सचमुच एक बंदरगाह जब आता है तो साथ-साथ खूब सारी प्रगति और इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट लेकर आता है। पनवेल का आज का स्वरूप और समृद्धि इसी को दर्शाता है। कितने सारे प्रॉपर्टी डेवलपर्स, बिल्डर्स, विकासक अपना धन, सालों से खाली पड़ी हुई जमीनों पर लगाने लगे हैं। पिछले बीस सालों में उन्हें यहां से कई गुना मुनाफा प्राप्त हुआ है। यह पत्तन नजदीक होने की ही देन है

जेएनपीटी के अगल-बगल के इलाके में कई सारे वेयरहाउसेस बने हैं, जहां पर कंटेनर्स रखे जाते हैं। कंटेनरों में माल भरा या निकाला जाता है। इन्हें कंटेनर फ्रेइट स्टेशंस (सीएफएस) कहा जाता है। आसपास के छोटे- छोटे गांवों की जो बंजर जमीनें खाली पड़ी थी उनके अच्छे दाम मिल गये। साथ ही इन गोदामों में काम करने के लिए स्थानीय मजदूरों को रोजगार मिल रहा है। जो पहले नमक की खेती या मछुआरे थे, वे गरीबी की रेखा से ऊपर उठ गये। मराठवाड़ा क्षेत्र से यातायात को पूरा करने के लिए एनपीटी जालना में एक ड्राई पोर्ट भी विकसित कर रहा है। परियोजना के लिए 190 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण हो चुका है। चरण-1 के अंतर्गत 60 हेक्टेयर जमीन के लिए क्षेत्र समतलीकरण का काम भी शुरू हो गया है।

नेशनल हाईवे के साथ-साथ कितनी सारी नई सड़कें, फ्लाईओवर्स अत्यंत अल्प समय में यहां बनकर तैयार हुई। कुछ सालों में पनवेल से मेट्रो ट्रेन चलेगी और इस महानगर की शान बढ़ायेगी। परंतु वर्तमान में पनवेल का का सर्वांगीण विकास जो आज सामने दिखाई देता है, एक नगर से छोटे से नगर से गांव से लेकर महानगर तक का सफर एक सफल यात्रा और उज्जवल भविष्य इन सारे विकास कामों के पीछे जेएनपीटी का नजदीक होना महत्वपूर्ण है।

                                                                                                                                                                                        शेखर मालवदे 

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