मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ती जा रही है। भाजपा और कांग्रेस में इस बार कांटे की टक्कर नजर आ रही है। एक-एक सीट और एक-एक वोट के लिए दोनों ही दलों को कड़े संघर्ष एवं अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। अब देखना होगा कि ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद किसके पक्ष में मतदाताओं का झुकाव होता है।
मध्यप्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव साधारण नहीं होगा। मानो एक-एक वोट के लिए संघर्ष होगा। सत्ता के लिए मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच है। दोनों के बीच एक दूसरे के विरूद्ध तीखे आरोप लगाने और जनता को मीठे वादों से लुभाने की मानों स्पर्धा आरम्भ हो गई है। लेकिन फिर भी चुनाव परिणाम का मुख्य आधार भारतीय जनता पार्टी की संगठनात्मक शक्ति और कांग्रेस के कूटनीतिक कौशल के बीच होगा। अभी विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। अनुमान है अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में आचार संहिता घोषणा और नवम्बर के तृतीय सप्ताह तक मतदान प्रकिया पूरी होने की सम्भावना है। मध्यप्रदेश विधान सभा में कुल 230 सीटें हैं। इनमें 47 अनुसूचित जनजाति के लिए, 25 अनुसूचित जाति के लिए और शेष सामान्य सीटें हैं। 2018 के आम चुनाव में भाजपा ने 41.02 प्रतिशत वोट लेकर 109 और कांग्रेस ने 40.89 प्रतिशत वोट लेकर 114 सीटें जीतीं थीं। किसी पार्टी को बहुमत नहीं था। कांग्रेस बहुमत के समीप थी। कांग्रेस ने निर्दलीय तथा बसपा का समर्थन लेकर सरकार बना ली थी। वह सरकार केवल पन्द्रह महीने ही चल सकी। कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 24 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी थी जिससे सरकार गिरी और उनके सहयोग से भाजपा ने पुनः सरकार बनाई। दल बदल कर आए सभी कांग्रेस जन भाजपा में शामिल हुए और बाद में उपचुनावों में भाजपा बहुमत में आ गई। अभी भाजपा के 128 और कांग्रेस के 96 सदस्य हैं जबकि निर्दलीय 4 एवं बहुजन समाज पार्टी के 2 सदस्य हैं।
अब इस वर्ष नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच वर्ष 2018 की तुलना में बहुत कांटे का मुकाबला होने वाला है। यह इतने कांटे का होगा कि दोनों दलों की ओर से एक-एक सीट के लिए नहीं, एक-एक वोट की खींचतान शुरू हो गई है। कांग्रेस अपनी खोई सरकार को वापस पाने के लिए कोई भी पैंतरा नहीं छोड़ रही तो भाजपा पुनः सरकार बनाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। दोनों ही दल आक्रामक प्रचार कार्य में जुट गए हैं।
भाजपा: संगठनात्मक शक्ति और उपलब्धियों पर भरोसा
भारतीय जनता पार्टी का संगठनात्मक स्वरूप किसी भी दल से अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत और मजबूत है। भाजपा ने अपने प्रांतीय संगठन को सक्रिय किया ही है इसके साथ केंद्र प्रमुख व्यक्तियों को प्रभारी बनाया है। सबसे प्रमुख बात यह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा स्वयं भी हर बात की फीडबैक ले रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन हो रहे हैं और मतदान केंद्र स्तर पर तीन प्रभारी बनाए हैं जिन्हें त्रिदेव नाम दिया है। इन्हें मतदाता से सतत संपर्क के काम में जुटाया गया है। इन त्रिदेवों को मतदाताओं के घर जाकर चाय पीने का अभियान चलाने को कहा गया है। कार्यकर्ता को मतदाता के घर से केवल चाय पीकर नहीं लौटना अपितु चार बिंदुओं पर चर्चा करनी है। कौन सी बात पसंद है? क्या मतदाता में किसी बात पर असंतोष है? भाजपा सरकार के कार्यकाल में किए गए कार्यों और उपलब्धि बताना और यह समझना कि मतदाता की राय में कौन सा कार्य और किया जाना आवश्यक है। ताकि भाजपा अपना घोषणा पत्र तैयार करते समय उन बिंदुओं पर विचार कर सके।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने संगठन और कार्यकर्ताओं के लिए निर्धारित कार्यों की समीक्षा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं कर रहे हैं। वे मध्यप्रदेश में चुनाव प्रभारियों की तीन बैठकें ले चुके हैं। दो बैठक दिल्ली में और एक भोपाल में। भाजपा ने मध्य प्रदेश में सात सदस्यीय टोली बनाई है इसमें पांच केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रहलाद पटेल हैं। इनके साथ प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और राष्ट्रीय सह संगठन महासचिव शिव प्रकाश हैं।
इसके साथ पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी अपनी सक्रियता बढ़ाई है। जुलाई और अगस्त माह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तीन मध्यप्रदेश यात्राएं हो चुकीं हैं। इन यात्राओं में उन्होंने मध्यप्रदेश को बड़ी-बड़ी सौगातें दीं हैं। विशेषकर बीना में निवेश, 34 रेल्वे स्टेशन के लिए पुनर्निर्माण कार्य तथा सागर में संत रविदास मंदिर का शिलान्यास। इन तीनों बातों ने भाजपा के पक्ष में अच्छा वातावरण बनाया है। इसके साथ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा लाड़ली बहना योजना, किसानों की ब्याज माफी, तथा कर्मचारियों के लिए की गई घोषणाओं से बने इस वातावरण को वोट में बदलने के लिए ही भाजपा ने मतदाता के साथ चाय कार्यक्रम चलाया है।
कांग्रेस : आक्रामक रणनीति और कूटनीतिक कौशल
विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए इस बार कांग्रेस अपने आक्रामक प्रचार तकनीक के साथ कूटनीतिक कौशल पर भी ध्यान दे रही है। कांग्रेस जानती है कि आस्था, राष्ट्रभाव और सांस्कृतिक मूल्यों को प्राथमिकता देने वाला मतदाता भारतीय जनता पार्टी की ओर अधिक आकर्षित होता है। मतदाता के इस समूह में अपनी पैठ बनाने के लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा मंदिरों में जाने, पूजन करने, कथाओं के आयोजन और समूह बनाकर तीर्थ कराने के काम भी किए जा रहे हैं। बागेश्वर धाम के जिन धीरेंद्र शास्त्री की कांग्रेस के अनेक नेताओं ने खुली आलोचना की थी। उनकी कथाओं में उमड़ते जन सैलाब को देखकर कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में उनकी कथा का आयोजन किया।
भाजपा और कांग्रेस की रणनीति वोट में कितनी बदलती है यह तो भविष्य पर निर्भर करेगा फिर भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के चेहरे को डबल इंजन सरकार का नारा देकर भाजपा द्वारा मतदाता को एकजुट करने का प्रयास अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है।
रमेश शर्मा