अब्राहम लिंकन और नरेंद्र मोदी

किसी कम्पनी से लेकर राष्ट्र तक का भविष्य इस बात पर निर्भर होता है कि उसका नेतृत्व किसके हाथ में है। भारत के वर्तमान नेतृत्व की तुलना विश्व के कई नेतृत्वों से की जा सकती है, परंतु इस आलेख में अमेरिका के 16 वें राष्ट्राध्यक्ष लिंकन तथा नरेंद्र मोदी की तुलना की गई है, क्योंकि इन दोनों की ही पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय पृष्ठभूमि लगभग एक सी है।

व्यवस्थापन शास्त्र में ‘नेतृत्व’ संकल्पना की चर्चा बहुत गंभीरता से की जाती है। बड़ी-बड़ी कंपनियां, उनके डायरेक्टर्स, अध्यक्ष, कार्यकारी अधिकारी, इत्यादि लोगों में कौन से नेतृत्व गुण होने चाहिए, इसकी लंबी सूची व्यवस्थापन शास्त्र की किसी भी पुस्तक  में दी जाती है। इसमें से कुछ गुण जन्मजात होते हैं तो कुछ गुण सीखे जाते हैं। जन्मजात गुणों में साहस, खतरा स्वीकार करने की तैयारी, ऊंची महत्वाकांक्षा इत्यादि आते हैं। सहकर्मियों के साथ कैसा व्यवहार करना, उन्हें कैसे प्रेरित करना, उनके गुणों का कैसे विकास करना, इत्यादि गुण सीखने पड़ते हैं।

इस लेख में व्यवस्थापकीय नेतृत्व गुणों की चर्चा ना करते हुए राजनीतिक नेतृत्व के गुणों की चर्चा करनी है। राजनीतिक नेतृत्व को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले भाग में राष्ट्र का निर्माण करने वाले नेतृत्व का समावेश होता है तो दूसरे भाग में सत्ता के बल पर अपना नाम करने वाले नेतृत्व का समावेश होता है। पहले भाग के नेतृत्व को राष्ट्रपुरुष कहते हैं तथा दूसरे प्रकार के नेतृत्व को राजनीतिक नेतृत्व कहते हैं। इन दोनों प्रकार के नेतृत्व क्षेत्र में कुछ गुण समान होते हैं। प्रत्येक वर्ग में शामिल होने वाले गुणों में  महत्वाकांक्षा, संगठन कुशलता, अपने विचार सीमित और प्रभावी शब्दों में रखने की क्षमता, सहयोगियों के क्षमताओं की परख करने की शक्ति, क्या साध्य करना है इसकी स्पष्ट कल्पना होनी चाहिए। जनता को क्या चाहिए यह जानने की क्षमता होना चाहिए। किस समय, कौन से राजनीतिक दांवपेच खेलने चाहिए इसका ज्ञान प्राप्त करना पड़ता है। आवश्यक प्रमाण में धन शक्ति और स्नायु शक्ति (मसल पावर) भी होना चाहिए। तथा अपार परिश्रम करने की क्षमता होनी चाीहए।

कोई व्यक्ति राजनीतिक नेता है इसका अर्थ ही उस व्यक्ति में उपरोक्त सारे गुण मौजूद हैं यह मानना पड़ेगा। कुछ लोगों को यह विरासत में प्राप्त होते हैं तो कुछ उसे धीरे-धीरे स्वतः संपादन करते हैं। किसी वार्ड का कार्यकर्ता जब प्रदेश मंत्री तक का प्रवास पूर्ण करता है तो वह अपनी यात्रा में इन सब चीजों को प्राप्त करता है। समाज जीवन का राजनीतिक अंग सर्वाधिक प्रभावशाली होता है। समाज को अलग-अलग क्षमताओं वाले राजनीतिक नेताओं की आवश्यकता होती है। राजनीतिक सत्ता कितनी भी मनमोहक हो फिर भी वह बेलगाम घोड़े की तरह होती है, उसे नियंत्रण में रखकर जनकल्याण के लिए उपयोग करना राजनेताओं के लिए  आवश्यक होता है। उनके पास वह कौशल और क्षमता होना आवश्यक है।

यह हुई सामान्य राजनेताओं की बात! राष्ट्रनेता सामान्य राजनेता नहीं होता। सामान्य राजनेताओं की अपेक्षा अधिक असामान्य गुण उसके पास होने चाहिए। ऐसे राष्ट्रनेता को अंग्रेजी में ‘द ग्रेट’ कहा जाता है। हिंदी में उसे हम ‘महान राष्ट्रनायक’ कह सकते हैं। सामान्य राजनेता देश की सत्ता चलाने का काम करते हैं। राष्ट्रनेता राष्ट्र का निर्माण करने वाली एक पूरी पीढ़ी निर्माण करने का काम करते हैं। वह इतनी ऊर्जा निर्माण करता कि देश उससे सौ – सवा सौ साल चल सकता है। विश्व में जिन देशों के नाम लिए जाते हैं उन प्रमुख देशों में राष्ट्र की अनेक पीढ़ियों का निर्माण करने वाले कई राष्ट्र नायक हुए हैं। इंग्लैंड के ओलिवर क्रॉमवेल, अमेरिका के जॉर्ज वाशिंगटन, इटली के गरीबाल्डी, मैजिनी, फ्रांस के कार्डिनल रिरोल्यु/ नेपोलियन, रूस के पीटर द ग्रेट, जर्मनी के प्रिंस बिस्मार्क, इत्यादि का समावेश है। भारत में स्वतंत्रता के पूर्व राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का काम स्वामी विवेकानंद ने किया। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने 560 से अधिक राज्यों को भारत में विलीन कर लिया। इन सबको एकत्र बांधकर रखने का काम संविधान के माध्यम से डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने किया। इसलिए सरदार वल्लभभाई पटेल एवं डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर दोनों राष्ट्र नायक कहलाते हैं।

अभी हमारे देश का नेतृत्व प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। देश के अन्य राजनीतिक नेताओं की तरह वे एक राजनेता हैं या उनसे अलग राष्ट्रनेता है? इस प्रश्न की चर्चा हमें इस लेख में करनी है। नरेंद्र मोदी के समकालीन राजनेता उनके दल में भी हैं और विरोधी दलों में भी है। प्रधान मंत्री पद की इच्छा रखने वाले उनके अपने दल में भी हो सकते हैं और विरोधी दलों में भी। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री पद का अमरत्व लेकर नहीं आए हैं, कुछ वर्षों बाद उनके स्थान पर जो दूसरा कोई आएगा वह उनका स्थान लेने में समर्थ होगा भी या नहीं। राष्ट्र नायक के रूप में नरेंद्र मोदी की गुणवत्ता और अन्य सभी राजनेताओं की गुणवत्ता को तोला जाए तो नरेंद्र मोदी का पलडा भारी पड़ेगा। उनसे तुलना करने के लायक एक भी समकालीन राजनीतिक नेता नजर नहीं आता।

विश्व स्तर पर कुछ राष्ट्रनेताओं से नरेंद्र मोदी की तुलना की जा सकती है। उनकी सब लोगों से तुलना करना एक पूरी किताब लिखने के समान है। इसलिए इस लेख में अमेरिका के 16 वें राष्ट्राध्यक्ष अब्राहम लिंकन के व्यक्तित्व एवं गुणवत्ता से मोदी के व्यक्तित्व एवं गुणवत्ता की तुलना की गई है।

लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 को हुआ। उनका जन्म केंटुकी राज्य के ग्रामीण भाग में हुआ। उनका जन्म राजमहल में नहीं, एक लकड़ी की झोपड़ी में हुआ था। लिंकन के माता-पिता अशिक्षित थे। उनकी मां का नाम नैंसी हैंक्स था। लिंकन का बचपन बहुत गरीबी में बीता। अमेरिका तब तक समृद्ध नहीं हुआ था। अमेरिका में अपना भाग्य आजमाने के लिए इंग्लैंड और यूरोप से गोरे लोग भारी मात्रा में वहां आ रहे थे। पश्चिम की ओर सरकने का वह युग था।

लिंकन की शिक्षा दूसरी तक हुई थी। अमेरिका का नसीब अच्छा था कि उनके समय वहां अरविंद केजरीवाल नहीं था अन्यथा उसने दूसरी पास राष्ट्राध्यक्ष लिंकन की खिल्ली उड़ाई होती। लिंकन किसी भी कॉलेज में नहीं पढे न ही उनके पास कोई डिग्री थी। परंतु उन्होंने कानून की स्वतंत्र पढ़ाई कर कानून की परीक्षा पास की थी। पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से था। युवा होने तक उन्हें भयंकर कष्टप्रद जीवन जीना पड़ा। खेत में मजदूरी, झाड़ तोड़ना, बाड लगाने के लिए लकड़ी के स्लीपर तैयार करना (अंग्रेजी में इसे ‘रेल स्प्लिटर’ कहते हैं) जैसे काम करने पड़े।

एक बार लिंकन अपने एक परिचित के यहां से जार्ज वाशिंगटन का चरित्र पढ़ने के लिए लाये। दिनभर शारीरिक कष्ट करने के बाद वे यह पुस्तक पढ़ते थे। उनका घर लकड़ी के स्लीपरों का बना था। दो स्लीपरों के बीच की जगह में वे पुस्तक रख दिया करते थे। एक दिन बहुत पानी गिरा और वह पुस्तक पूरी तरह भीग गई। वह भीगी किताब लेकर लिंकन अपने परिचित के यहां गए और उनसे कहा,  आपकी मूल्यवान पुस्तक मुझसे खराब हो गई है। उसके बदले मैं आपके खेत में तीन दिन मजदूरी करूंगा। उस व्यक्ति ने तीन दिनों तक अब्राहम लिंकन से भरपूर काम करवा लिया। अब्राहम लिंकन को ईमानदारी और प्रामाणिकता का समीकरण माना जाता था। यह उनके जन्मजात गुण माने जाते थे।

युवावस्था में उन्होंने अपने मित्र बेरी के साथ साझेदारी में दुकान खोली। बेरी शराबी और आलसी था। दुकान का दिवाला निकल गया। 1000 डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिंकन के सिर चढ़ गया। लिंकन अपने आप को दिवालिया घोषित कर सकता था परंतु उसने वैसा नहीं किया और आगे 10-12 वर्ष तक वह कर्ज चुकाता रहा। लिंकन के जीवन में ईमानदारी के ऐसे असंख्य उदाहरण मिलते हैं। उदाहरण के रूप में यहां केवल दो उदाहरण दिए हैं। अमेरिका में आज लिंकन की प्रतिमा राष्ट्र नायक की है। राष्ट्र नायक के पास सच्चाई और ईमानदारी यह दो गुण होने ही चाहिए।

नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ। गुजरात में मेहसाणा जिले का वडनगर गांव उनका जन्म स्थान है। वे अपने मां-बाप की तीसरी संतान हैं। उनकी मां का नाम हीराबेन एवं पिता दामोदरदास थे। माता-पिता की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। वडनगर रेलवे स्टेशन पर वे चाय की दुकान लगाया करते थे। पिता की मदद करने के लिए शालेय विद्यार्थी नरेंद्र रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने जाया करते थे। जैसे अब्राहम लिंकन को ‘रेल स्प्लिटर’ कहा जाता था वैसे ही नरेंद्र मोदी को भी ‘चाय वाले का लड़का’ कहा जाता है। अपने घराने का, शिक्षा का और धनवान होने का घमंड करने वाले, चाय वाला प्रधान मंत्री कहकर उनका उपहास करते हैं। ऐसा उपहास करने वाले अपनी सांस्कृतिक ऊंचाई का दर्शन लोगों को कराते हैं।

सौभाग्य से नरेंद्र मोदी ने प्राथमिक, माध्यमिक एवं महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण की है। एक्सटर्नल स्टूडेंट के रूप में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की है। शालेय जीवन से वे वाद विवाद स्पर्धा में भाग लेते रहे हैं। आज वे महान वक्ता के रूप में देश में जाने जाते हैं। भाषण की तैयारी करते-करते, बचपन से ही उन्हें पढ़ने का शौक लगा। शाला के ग्रंथालय में दीर्घकाल तक बैठकर वे भरपूर वाचन करते थे। आज जब हम उनके भाषण सुनते हैं तब सामान्य मनुष्य को अनसुने महापुरुषों के कुछ किस्से वे सुनाते हैं। वेद उपनिषदों की ऋचायें उन्हें कंठस्थ हैं जिसे वे अपने भाषणों में प्रस्तुत करते हैं। इन सब की नीव उनके विद्यार्थी काल में ही रची गई थी।

अब्राहम लिंकन तथा नरेंद्र मोदी दोनों ने ज्ञान की साधना की है। सरस्वती की साधना बहुत कष्टप्रद होती है। साधना की उम्र ऐसी होती है कि उस उम्र में आकर्षण के सैकड़ों विषय होते हैं। सामान्य मनुष्य उन आकर्षणों के पीछे दौड़ता है और सामान्य ही रह जाता है। परंतु महान लोगों का वैसा नहीं होता। हेनरी वर्ड्सवर्थ लॉन्गफेलो इस नाम के महान अमेरिकन कवि हो गए हैं। उनके The Ladder of St. Augustine इस कविता की बहुत प्रसिद्ध पंक्तियां इस प्रकार हैं।

The heights by great men reached and kept
were not attained by sudden flight,
but they while their companions slept,
were toiling upward upward in the night.

इसका हिंदी भावानुवाद इस प्रकार है, चोटी पर पहुंचे हुए मनुष्य ने जो ऊंचाई प्राप्त की होती है वह अकस्मात नहीं होती। उनके सहयोगी जब नींद में होते हैं तब वे रात में भी अपार कष्ट करते हैं। अब्राहम लिंकन और नरेंद्र मोदी ने उनकी किशोरावस्था और युवावस्था में स्वतः का भविष्य बनाने के लिए अपार कष्ट किए हैं।

अब्राहम लिंकन के जीवन पर उनकी मां नॅन्सी, राष्ट्र पिता जॉर्ज वाशिंगटन, बाइबल, थॉमस जेफरसन और अमेरिकन संविधान का जबरदस्त प्रभाव था। वे जब 9 साल के थे तब उनकी मां का देहांत हुआ। उनके पिता ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी मां सारा बुश विधवा थी। इन दोनों माताओं का लिंकन के जीवन पर अत्यंत गहन परिणाम हुआ। अपनी मां के विषय में लिंकन कहते हैं, मां जो प्रार्थनाएं करती थी कि मुझे अभी भी उनकी सतत याद आती है। यह प्रार्थनाएं मेरे जीवन का अविभाज्य अंग हैं। उनकी मां नॅन्सी की बाइबल पर अगाध श्रद्धा थी। अपनी मां के विषय में वह कहते थे- “All that I am, or hope to be, owe to my ” आज मैं जो कुछ हूं और कल जो कुछ बनूंगा उसका सारा श्रेय मेरी देवदूत समान मां को जायेगा।

सौतेली मां की कथाएं हमने बचपन में बहुत सुनी हैं। लिंकन की सौतेली मां सारा यह जन्मदात्री मां के समान ही थी। अब्राहम लिंकन के पास अलौकिक गुण है यह उसने पहचाना। सारा मां के घर आने से उनका घर, घर जैसा हो गया। अब्राहम को अच्छे कपड़े मिलने लगे। उनके पढ़ने के शौक को सारा ने बहुत प्रोत्साहन दिया। अपने स्वतः के पुत्र के समान उन्होंने उनका लालन-पालन किया। इन दोनों माताओं की अब्राहम लिंकन के जीवन पर अमिट छाप है। महान व्यक्ति आकाश से नहीं उतरते, वे समाज में से ही निर्माण होते हैं। उनको बनाने का काम उनकी माताएं करती हैं। इसलिए हम कहते हैं- कौशल्या का राम, यशोदा का कृष्ण, जिजा माता का शिवाजी।

नरेंद्र मोदी भी अब्राहम लिंकन के समान मातृभक्त हैं। पिता को मिलने वाली कमाई से घर चलाना कठिन होने के कारण उनकी मां ने अनेक मेहनत के काम किये। बालक नरेंद्र एक बार तालाब से मगरमच्छ का एक छोटा बच्चा पकड़ कर घर ले आये। तब मां हीराबेन उन पर गुस्सा हुई। उन्होंने कहा, बच्चे को उसकी मां से दूर नहीं करना चाहिए। जाओ और तालाब में इस बच्चे को छोड़ आओ। एक दिन बालक नरेंद्र को रास्ते पर 1रुपया मिला, वह उसने मां हीरा बेन को दिया। मां ने कहा- यह तुम अपने पास रखो और उचित काम के लिए खर्च करो। शाला की एक गरीब लड़की के पास कापी पुस्तक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। नरेंद्र ने वह रुपया उसे दिया। मां के संस्कार ऐसे होते हैं। अपनी मां के 100 वें जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी ने अपनी भावनाएं व्यक्ति की थीं। वे लिखते हैं, मेरे जीवन में जो कुछ अच्छा है और मेरे चरित्र में जो कुछ अच्छा है उसका सारा श्रेय बिना किसी संकोच के अपने मां-बाप को देता हूं। आज मैं दिल्ली में बैठा हूं और ऐसे समय भूतकाल की यादों से मेरा मन भर आया है। मेरी मां जितनी असामान्य थी उतनी ही भोली। नरेंद्र मोदी लिखते हैं, ‘मां’ केवल शब्द नहीं जीवन की ऐसी भावना है जिसमें वात्सल्य, धैर्य, विश्वास जैसी अनेक भावनाएं समाविष्ट हैं। विश्व का कोई भी भाग हो, कोई भी देश हो, प्रत्येक पुत्र के मन में मां के लिए सबसे अनमोल स्नेह भावना होती है। मां हमें केवल जन्म ही नहीं देती अपना मन, अपना विश्वास भी देती है। हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में उसका बहुत बड़ा हाथ होता है। अपने बच्चों के लिए वह जन्म भर त्याग करती है, स्वतः को समर्पित करती है। आज मेरा आनंद, मेरा भाग्य, मैं आपके सामने बताना चाहता हूं। मेरी मां हीरा बा आज 18 जून को अपनी उम्र के सौवें वर्ष में पदार्पण कर रही हैं। अर्थात यह उनका जन्म शताब्दी वर्ष शुरू हो रहा है। पिताजी होते तो गत हफ्ते वे भी 100 वर्ष के हो जाते। अर्थात सन 2022 ऐसा वर्ष है जिसमें मेरी मां का जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है तथा पिताजी का जन्म शताब्दी वर्ष पूर्ण हो रहा है।’

नरेंद्र मोदी 8 वर्ष की उम्र से संघ की शाखा में जाने लगे थे। संघ की भाषा में कहें तो वे शिशु काल से संघ स्वयंसेवक है। संघ स्वयंसेवक के जीवन पर डॉ. हेडगेवार, श्रीगुरुजी और स्वामी विवेकानंद के विचारों का जबरदस्त प्रभाव होता है। डॉ. हेडगेवार एवं श्रीगुरुजी के बारे में नरेंद्र मोदी ने दो पुस्तिकाएं लिखी हैं। स्वामी विवेकानंद का समग्र साहित्य उन्होंने पढ़ा है। संघ विवेकानंद के विचारों का कालसापेक्ष अविष्कार है। नरेंद्र मोदी की कृति, प्रत्येक योजना और महत्वपूर्ण निर्णय और कुछ नहीं स्वामी विवेकानंद के महान विचारों की राजनीतिक क्षेत्र में अभिव्यक्ति है। इसी को कुछ लोग हिंदुत्व कहते हैं, तो कुछ लोग वैश्विक मानवतावाद कहते हैं।

संघ प्रचारक के रूप में कार्य करते हुए उनके जीवन पर लक्ष्मणराव इनामदार के जीवन की गहरी छाप दिखाई देती है। उनके बारे में भी नरेंद्र मोदी ने एक पुस्तिका लिखी है। जब से उनमें समझ विकसित हुई, उनका विरक्ति के प्रति आकर्षण बढ़ता गया। घर बार छोड़कर वे हिमालय चले गए। उन्होंने भारत भ्रमण किया। वे स्वामी विवेकानंद के बेलूर मठ में गए। उस समय की रूढी के अनुसार उनका विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया गया था। रामदास स्वामी के समान वे लग्न मंडप से भागे नहीं, परंतु उन्होंने पति-पत्नी का संसार कभी नहीं किया। वैवाहिक जीवन से वे विरक्त रहे।

अब्राहम लिंकन के जीवन का विचार करते समय हम देखते हैं कि वे संसारी थे। मेरी टाड़ नामक युवती से उनका विवाह हुआ। उनके तीन बच्चे हुए। मेरी से विवाह के पूर्व उनका एन रुटलेज नामक युवती से प्रेम था। उसकी अचानक मृत्यु हो गई जिसका घाव वे जन्म भर नहीं भूल सके। उनका चरित्र लिखने वाले बताते हैं कि उनके चेहरे पर दुख की मोटी चादर थी। यह चादर उनकी प्रेमिका के अचानक निधन की थी।

अब्राहम लिंकन युवावस्था से राजनीति में रुचि रखते थे। इलिनोविस राज्य की विधानसभा में अमेरिकन कांग्रेस के वे सदस्य बने। 1858 में सीनेटर के पद के लिए उन्होंने चुनाव लड़ा। उसमें उनकी हार हुई। 1860 में राष्ट्रपति पद के लिए वे रिपब्लिकन पार्टी की ओर से चुनाव में खड़े हुए। उम्मीदवारी पाने के लिए उन्होंने किसी भी प्रकार के अच्छे या बुरे प्रयत्न नहीं किये। अपना चरित्र, सच्चाई और ईमानदारी के बल पर उन्हें उम्मीदवारी मिली। उनके विरोध में स्टीफन डगलस, जॉर्ज ब्रेकिनरिज तथा जॉर्ज बेल थे। मतों के विभाजन के कारण लिंकन को सर्वाधिक मत मिले और वे चुनाव जीत गए।

उनका जब चुनाव हुआ तब अमेरिका के सामने सबसे बड़ा प्रश्न था कि अमेरिका एक रहेगा या उसका विभाजन होगा। विभाजन का कारण था अमेरिका में रहने वाले नीग्रो गुलाम। गुलामी रहना चाहिए या नहीं इस प्रश्न पर अमेरिका का जनमत विभाजित था। संसद के कुछ कानून और सर्वोच्च न्यायालय के एक दो निर्णय से जनमत का निर्णय अधिक धारदार होता गया। अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका की 11 राज्यों ने अमेरिका से अलग होकर नया देश निर्माण करने की घोषणा की। अब्राहम लिंकन के सामने देश की एकता कैसे कायम रखी जाए, संविधान किस प्रकार अबाधित रखा जाए, नीग्रो की गुलामी कैसे समाप्त की जाए ऐसे तीन ज्वलंत प्रश्न थे। उन प्रश्नों का समाधान लिंकन ने सफलतापूर्वक किया इसलिए उनकी गणना राष्ट्रपुरुष-राष्ट्रनायक इन शब्दों में की जाती है।

नरेंद्र मोदी संघ प्रचारक थे। संघ प्रचारक को व्यक्तिगत या राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होती। ‘संघ जो कहे वह काम करना’ ही प्रचारक की मानसिकता होती है। 1987 में तत्कालीन  सरसंघचालक पू. बालासाहेब देवरस ने नरेंद्र मोदी को भाजपा में काम करने के लिए कहा। तब से उनकी राजनीतिक पारी शुरू हुई। संघ प्रचारक में स्वभावत: संगठन कुशलता होती है। शुरुआत के कुछ वर्षों में उन्होंने गुजरात में भाजपा संगठन का काम किया बाद में उन्हें भाजपा की केंद्रीय समिति में शामिल किया गया। 1990 में सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा का नियोजन उन्होंने किया। लाल कृष्ण आडवाणी इस रथ यात्रा के प्रमुख थे। इस रथ यात्रा ने देश की राजनीति में बदलाव ला दिया। ऐसी घटनाओं को अंग्रेजी में ‘वाटरशेड इवेंट’ कहते हैं। 2002 तक मोदी ने कभी चुनाव नहीं लड़ा। 2001 में वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके कारण चुनाव लड़ना और जीतना अपरिहार्य था। 2013 तक वे सतत गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़े गए। यह नेतृत्व उन्होंने मांगा नहीं। अब्राहम लिंकन को जिस प्रकार राष्ट्राध्यक्ष पद की उम्मीदवारी मांगनी नहीं पड़ी उसी प्रकार मोदी को भी प्रधान मंत्री पद की कुर्सी मांगनी नहीं पड़ी। अब्राहम लिंकन और नरेंद्र मोदी दोनों को उनके देश के सर्वोच्च पद अपने चरित्र और राष्ट्रहित की दृष्टि तथा जनता की कर्तृत्वशक्ति जागृत करने के सामर्थ्य के कारण प्राप्त हुए।

अब्राहम लिंकन की तरह नरेंद्र मोदी के सामने भी कठिन चुनौतियां थी। परंतु ऐसा नहीं कहा जा सकता की नरेंद्र मोदी के सामने वैसी जानलेवा चुनौतियां थीं जैसी अब्राहम लिंकन के सामने। नरेंद्र मोदी के सामने जो चुनौती थी वह थी केंद्र में बहुमत के आधार पर एक दल की सरकार स्थापित करना। 1989 से 2013 तक देश में एक दल की सरकार नहीं थी। अलग-अलग राजनीतिक दल एक साथ आए और उन्होंने सरकारें बनाईं। ऐसी सरकारें कार्यक्षम नहीं रह सकती। उनके निर्णयों में एकरूपता नहीं रह सकती। जनहित की दृष्टि नहीं रहती। राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी की जाती है। प्रत्येक घटक दल ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करने की ओर ध्यान देता है। भ्रष्टाचार सामान्य विषय बन जाता है। राजीव गांधी इसी भ्रष्टाचार के भंवर में फंस गए थे एवं मनमोहन सिंह की नाव इसी भ्रष्टाचार के तूफान में डूब गई।

स्थिर, कार्यक्षम, जनहित दक्ष, सुरक्षा के प्रति जागरूक सरकार देना नरेंद्र मोदी के सामने की सबसे बड़ी चुनौती थी। साथ ही साथ हम कौन हैं? हमारी अस्मिता किसमें है? हमारी क्षमता कितनी है? हमारा वैश्विक मिशन कौन सा है? इसकी जागृति करना भी एक बड़ी चुनौती थी। विकास, सुरक्षा, रोजगार इत्यादि कार्य शासन को ही करने पड़ते हैं परंतु राष्ट्र भाव जागृति का कार्य सामान्य नेता नहीं कर सकता। विरोधी दल के किसी भी नेता में यह क्षमता नहीं है। अब्राहम लिंकन में वह क्षमता थी और नरेंद्र मोदी में यह क्षमता जन्मजात है।

अब्राहम लिंकन के राष्ट्र अमेरिका का जन्म 1782 में हुआ। मोदी के भारत की उम्र 10000 साल से अधिक है। थॉमस जेफरसन ने अमेरिकन राष्ट्र का ध्येयवाद, स्वतंत्रता की घोषणा में लिखा है। वह उन्होंने तीन शब्दों में व्यक्त किया है।life, liberty and the pursuit of happiness ये वे तीन शब्द हैं। जीवन जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और सुख की खोज। इस घोषणा का पहला वाक्य है- ‘सभी मनुष्यों की निर्मिती एक जैसी है’। अमेरिका का जन्म, सब मनुष्य समान है, सबको जीने का अधिकार है, सभी मनुष्य अकृत्रिम बंधनों से मुक्त होने चाहिए तथा प्रत्येक को उसकी इच्छा के अनुसार सुखी जीवन का मार्ग खोजने का अधिकार है, यह प्रस्थापित करने के लिए हुआ। यह सम्पूर्ण ध्येयवाद एक अत्यंत छोटे अमेरिकन संविधान में व्यक्त हुआ है। अब्राहम लिंकन ने स्वतंत्रता की घोषणा को केवल रटा ही नहीं था वरन उसे आत्मसात किया था। संविधान केवल कानून की धाराएं नहीं है तो वह अमेरिका को एकसंध रखने वाला एक दस्तावेज है, यह लिंकन की धारणा थी।

राष्ट्रनेता दूर दृष्टा होना चाहिए। मुझे अमेरिका अखंड रखना है, संविधान कायम रखना है, राष्ट्र में लोगों के बीच जो खाई है उसे दूर करना है, लिंकन की यह जो दृष्टि थी उसमें कोई खोट नहीं थी। नरेंद्र मोदी के सामने 10000 वर्षों का सनातन भारत है। इस भारत का एक वैश्विक मिशन है। संपूर्ण मानव जाति को मानव धर्म की सीख देना यह हमारा वैश्विक लक्ष्य है। सभी मानव एक हो, सुखी हों, सबको उत्तम स्वास्थ्य मिले, आपस में सभी बंधुवत व्यवहार करें, यह हमारी सनातन सीख है। वैदिक प्रार्थना, उपनिषदों के मंत्र, भगवान गौतम बुद्ध की सीख, विवेकानंद की वाणी से यही सीख अभिव्यक्त हुई है। नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को उसके जीवन लक्ष्यों से अवगत कराया है। हमें समृद्ध होना है, किस लिए? हमें विज्ञान और टेक्नोलॉजी में प्रगति करनी है, क्यों? भारत में हमें एक समर्थ समरस समाज का निर्माण करना है, किस लिए? नरेंद्र मोदी का कहना है कि केवल स्वार्थ के लिए नहीं अपितु राष्ट्र कल्याण के लिए हमें यह साध्य करना है। सनातन भारत के अस्तित्व का वही एक कारण है।

राष्ट्र के जीवन लक्ष्य और ध्येय अत्यंत थोड़े और परिणामकारक शब्दों में व्यक्त करने की लिंकन की शक्ति अचंभित करने वाली थी। वही बात नरेंद्र मोदी के बारे में भी है। अब्राहम लिंकन का गेटिसबर्ग का भाषण उनके सब भाषणों में कोहिनूर हीरा कहा जा सकता है। केवल 3 मिनट के भाषण में उन्होंने अमेरिका क्या है, गृह युद्ध का अंतिम परिणाम क्या होगा और अमेरिका के जीवन मूल्य क्या होंगे, यह व्यक्त किया।

Fourscore and seven years ago,
Our fathers brought forth upon this continent,
A new nation, conceived in Liberty,
And dedicated to the proposition
That all men are created equals.
Now we are engaged in a great civil war.
Testing whether that nation, or any nation
So conceived and so dedicated
Can long endure; We are met
On a great battlefield of that war.
We have come to dedicate a portion of
That field as a final resting-place
For those who gave their lives
That that nation might live.
It is altogether fitting and proper
That we should do this.
But in a larger sense,
We cannot dedicate, we cannot consecrate
We cannot hallow this ground. The brave men,
Living and dead, who struggled here,
Have consecrated it for above out poor power
To add or distract. The World will little note,
Nor long remember what we say here,
But it can never forget what they did here.
It is for us the living, rather, to be dedicated here
To the unfinished work which they who fought here
Have thus far so nobly advanced.
It is, rather for us to be here dedicated
To the great task remaining before us
that from these honoured dead we take
Increased devotion to that cause for which
They have last full measure of devotion
that we here highly resolve that these dead
“Shall not have died in vain that this nation
Under God, shall have a new birth of freedom
And that government of the people
By the people, for the people
Shall not perish from the earth.”

अब्राहम लिंकन का यह भाषण तीन पैराग्राफ का है। वह गद्य काव्य है। डेल कॉर्नेजी ने उसे गद्य रूप में देने की अपेक्षा काव्य में व्यक्त किया है। वैसा ही वह ऊपर दिया गया है। इस भाषण पर गैरी विल्स ने 300 पृष्ठों की एक सुंदर किताब लिखी है। पुस्तक का नाम लिंकन एट गैटीसबर्ग-द वर्ड्स दैट रिमैड अमेरिका है। हिस्ट्री चैनल ने इस भाषण पर ‘परफेक्ट ट्रिब्यूट’ नामक एक सुंदर चित्रपट का निर्माण किया है।

ऐसे भाषणों का हिंदी अनुवाद करना बहुत कठिन कार्य है। अंग्रेजी भाषा की सुंदरता उसमें लाना बहुत कठिन है। उसका भावानुवाद इस प्रकार किया जा सकता है –

“हमारे पूर्वजों ने 87 साल पूर्व इस भूखंड पर स्वतंत्रता के गर्भ से एक नए राष्ट्र को जन्म दिया; और यह राष्ट्र ‘निर्मिती से सभी मानव समान है’ इस महावाक्य को समर्पित किया।”

आज हम गृहयुद्ध के अग्नि दिव्य से गुजर रहे हैं। हमारी परीक्षा ली जा रही है कि स्वतंत्रता के गर्भ से पैदा हुआ कोई भी राष्ट्र दीर्घकाल तक टिक सकता है या नहीं। यादवी युद्ध की इस रणभूमि पर आज हम एकत्रित हुए हैं। इस रणभूमि का कुछ भाग हम उन हुतात्माओं, जिन्होंने राष्ट्र को जीवित रखने के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया, उनकी चिरविश्रांति हेतु अर्पण करने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह काम करना सर्वथा उचित तथा योग्य है।

परंतु थोड़ा व्यापक विचार करने पर यह ध्यान में आता है कि यह भूमि हम समर्पित नहीं कर सकते, पवित्र नहीं कर सकते और  तेजोवलयांकित भी नहीं कर सकते। जो बहादुर लोग यहां लड़ते-लड़ते शहीद हो गए, उन्होंने अपने कृतित्व से यह भूमि पहले ही पवित्र की हुई है। उसको ना तो हम इंच भर घटा सकते हैं ना इंच भर बढ़ा सकते हैं। हम यहां क्या बोले इसे विश्व का कोई व्यक्ति याद नहीं रखेगा परंतु इस रणभूमि पर जिन लोगों ने अपने को न्योछावर किया, संसार उसे कभी भूल नहीं पाएगा।

आज जो जिंदा हैं उन्होंने स्वयं को उन शहीदों का जो कार्य अधूरा रह गया है उसे पूर्ण करने में लगा देना चाहिए। हम उन सम्माननीय शहीदों से अखंड प्रेरणा ग्रहण करें। हम ऐसा काम करें कि उनके बलिदान व्यर्थ न जाए। परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त यह राष्ट्र स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नवीन जन्म लेगा। उसका पुण्य स्मरण कर हम निश्चय करें कि लोगों के लिए, लोगों के द्वारा, लोगों का शासन इस भूतल से कभी भी अंतर्धान नहीं होगा।

तीन मिनट के इस भाषण पर आज तक असंख्य पुस्तकें लिखी गई हैं। लिंकन के सर्वोत्कृष्ट भाषणों में इस भाषण की गिनती होती है।

2014 में मोदी के भाषण की ये पंक्तियां, Government  has only one religion- India first. Government has only one holy book- the Constitution. The government must be emmersed in only one bhakti- Bharat bhakti. The Government’s only strength- Janshakti. Government’s only rituals is the well- being of the 125 crore Indians. The only code of conduct of the Government should be ‘Sabka Sath, Sabka Vikas.’

इसका अर्थ है सरकार का केवल एक ही धर्म है- भारत प्रथम। सरकार का केवल एक ही पवित्र ग्रंथ है- संविधान। सरकार का विश्वास केवल एक भक्ति में है- भारत भक्ति। सरकार की केवल एक ही ताकत है- जनशक्ति। सरकार का एक ही कर्तव्य है- 125 करोड़ भारतीयों का योगक्षेम। सरकार की केवल एक आचार संहिता है- ‘सबका साथ, सब का विकास’।

रामलीला मैदान पर कार्यकर्ताओं के सामने भाषण देते हुए नरेंद्र मोदी ने जो कहा उसका महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार है- इंद्रधनुष के सात रंगों की ओर नजर डालें तो ये हमारी भारत माता को इस प्रकार चमकाते हैं- पहला रंग है- भारत की संस्कृति की महान विरासत का। हमारी परिवार व्यवस्था- हजारों साल से इस परिवार व्यवस्था ने हमें बनाया है, बढ़ाया है, इसको हम और अधिक सशक्त कैसे बना सकते हैं। हमारी नीतियां, हमारी योजना, भारत की इस महान व्यवस्था, परिवार, उसका सशक्तिकरण कैसे करें?

इंद्रधनुष का दूसरा रंग है, हमारी कृषि, हमारे पशु, हमारा गांव। महात्मा गांधी भारत को गांवों का देश कहते थे। यह हमारे इंद्रधनुष का एक महत्वपूर्ण और चमकीला रंग है। अगर हम इसे और चमकदार नहीं बनाते, कृषि हो, पशुपालन हो, हमारे गांव हो, गरीब हो, इनकी भलाई के लिए नीतियां बनानी चाहिए, हम जिस बात के लिए गर्व कर सकते हैं।

हमारे इंद्रधनुष का तीसरा रंग है- हमारे भारत की नारी, मातृशक्ति, त्याग और तपश्चर्या की मूर्ति। आज हमने उसे कहां लाकर छोड़ा है? इंद्रधनुष के रंग को यदि हमें वास्तव में इंद्रधनुष का रंग बनाना है तो हमारी माताओं का ‘एंपावरमेंट’ (सशक्तिकरण) होना चाहिए। उनकी शिक्षा दीक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। आर्थिक व सामाजिक धरोहर उनके पास है।

हमारे इंद्रधनुष का चौथा रंग है जल, जमीन, जंगल, जलवायु। यह हमारी विरासत है यह हमारी अमानत है अगर भारत को हमें आने वाली सदियों तक विकास की दौड़ में आगे रखना है तो हमें अपने इस इंद्रधनुष के चौथे रंग की भी परवरिश करनी होगी। उसको सुरक्षित करना होगा आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ।

हम कितने भाग्यवान हैं कि आज हिंदुस्तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है। 65% जनसंख्या 35 से कम आयु वर्ग की है। जिस देश के पास इतना बड़ा ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ हो, हमारे पास इतने नौजवानों की शक्ति हो तो वह दुनिया को क्या कुछ नहीं दे सकता। आने वाले दिनों में पूरे विश्व में गंभीर संकट आने वाला है। अगर हमने तैयारी कर ली होती तो दुनिया के लिए हमारे भारत का नौजवान न सिर्फ भारत का निर्माण करता, बल्कि पूरे विश्व का निर्माण करने की ताकत रखता। इसकी हमें चिंता करनी चाहिए।

जब यह खबर आती है कि ड्रग्स, नारकोटिक्स कुछ इलाकों में हमारी युवा पीढ़ी को तबाह कर रहे हैं, तब राजनीति को दरकिनार कर हम सबका दायित्व बनता है, देशवासियों का दायित्व बनता है कि अपने नौजवानों को ड्रग्स, नारकोटिक्स में कदम रखने के पहले बचा लें। जीरो टॉलरेंस रखना है हमें। अपनी इस युवा पीढ़ी की रक्षा करनी पड़ेगी हमें।

इंद्रधनुष का छठा रंग है, जो हमारी अनमोल विरासत है, वह है हमारी डेमोक्रेसी, हमारा लोकतंत्र। जिस देश के पास ऐसा डेमोग्राफिक डिविडेंड हो, वह देश दुनिया के सामने कितनी बड़ी ताकत के साथ आगे बढ़ सकता है। इसलिए हमारा लोकतंत्र हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। हमारे लोकतंत्र को रिप्रेजेंटेटिव सिस्टम से लेकर आगे बढाकर पार्टिसिपेटीव डेमोक्रेसी पर बल देने की जरूरत है। हमें गर्व है, हम गणतंत्र की परंपरा को निभाते हैं। लेकिन समय की मांग है की सब लोग गणतंत्र में गुणतंत्र की भी अनुभूति करें।

इंद्रधनुष का सातवां रंग जो अत्यंत महत्वपूर्ण भी है, वह है, ज्ञान। मानव जाति जब-जब ज्ञान युग में रही है, भारत ने डंका बजाया है। हम ज्ञान के उपासक हैं। हर मां अपने बेटे को आशीर्वाद देते हुए कहती है- ‘बेटा, पढ़ लिखकर बड़े होना।’ यह हर मां के मुंह से निकलता है। ज्ञान के इस रंग को हम किस प्रकार से अधिक शक्तिशाली बनाएं, उसकी ओर हमें जाना है।

अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति बनने के बाद उन पर जहरीली टिप्पणियां की गईं। वे अकार्यक्षम हैं, गंवार हैं, शासन का उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है, वे अत्यंत कुरूप हैं, स्वभाव से क्रूर हैं, तानाशाही प्रवृत्ति के हैं, देश के संविधान को अलग रखकर उन्हें सैनिक तानाशाही लानी है। यह सभी आरोप प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर भी किए गए थे और रोज किये जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी संविधान बदलना चाहते हैं, वे असहिष्णु हैं, मुस्लिम विरोधी हैं, ऐसे आरोप लगाकर ही विरोधी रुके नहीं तो उन्होंने उसके कथानक तैयार किये। अब्राहम लिंकन ने आरोपों की जिस नाव से सफर किया, नरेंद्र मोदी भी उसी नाव से सफर कर रहे हैं। जो नेता समय से आगे चलता है और उसके समकालीन नेता विचारों से, बुद्धि से, कर्तृत्व से, अत्यंत बौने होते हैं, इसलिए वे इस प्रकार आरोप लगाते रहते हैं। विश्व में जिन-जिन देशों में राष्ट्र नायक निर्माण हुए उन्हें यह सब भोगना पड़ा है। इतिहास बताता है कि वह ऐसे बौने लोगों की कोई परवाह नहीं करता। उनका नामोल्लेख किया जाए वे इस लायक ही नहीं होती। इतिहास को बदलने वाले और नया इतिहास निर्माण करने वाले इतिहास के महानायक कहलाते हैं। एक इतिहासकार ने पूछा कि, देश का इतिहास है क्या? स्वयं उत्तर देते हुए उसी ने कहा की महान, कर्तृत्ववान मनुष्य की जीवन गाथा ही उस देश का इतिहास होता है। अब्राहम लिंकन की गणना इतिहास बनाने वाले महापुरुषों में की जाती है। हम आज कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी नवीन इतिहास की रचना करने वाले महानायक हैं।

अब्राहम लिंकन को राष्ट्रनायक, राष्ट्ररक्षक जैसी उपाधियों से नवाजा जाता है। इसका कारण यह है कि, सामान्य राजनेता एवं राष्ट्रनायक के गुणों में बहुत बड़ा अंतर होता है। अब्राहम लिंकन के तीन गुण हैं- चरित्र, संपूर्ण समाज के प्रति उनका प्रगाढ़ प्रेम और राष्ट्र के सामने खड़े प्रश्नों की अचूक पहचान व उतनी ही अचूक निर्णय क्षमता। गृह युद्ध से कैसे निपटा जाए इसकी सलाह देने वाले सैकड़ों लोग लिंकन से मिलते थे। वे सबकी सलाह सुन लेते थे। सलाह देने वाले की सलाह कितनी गलत है यह उसके ध्यान में आए इसके लिए कोई मार्मिक कहानी सुनाते थे। देश की परिस्थिति बदलने वाले अनेक निर्णय उन्होंने किये। अलग हुए 11 राज्यों के विरुद्ध निर्णायक युद्ध करने का उनका निर्णय आज के अखंड अमेरिका के अस्तित्व का निर्णय साबित हुआ। 1 जनवरी 1863 को उन्होंने नीग्रो लोगों को गुलामी से मुक्त करने का आदेश दिया। गुलामी की प्रथा समाप्त करने के उनके निर्णय के कारण बराक ओबामा देश के राष्ट्रपति बन सके।

नरेंद्र मोदी की भी निर्णय क्षमता ऐसे ही अचूक होती है। धारा 370 को रद्द कर उन्होंने देश में दूसरा देश यह संकल्पना निरस्त कर दी। पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर उन्होंने दो बार हमले किये। इसके पूर्व पाकिस्तानी आतंकवादी अड्डों पर हमला करने का साहस कोई भी प्रधान मंत्री नहीं कर पाया था। नोटबंदी का निर्णय भी ऐसा ही एक साहसी निर्णय था। देश के विकास और जन सहयोग के लिए नरेंद्र मोदी ने कई योजनाएं घोषित की। बड़ौदा के पास सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा को ‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटी’ नाम देकर उन्होंने स्थापित करवाया। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का शुभारंभ उनके हाथों ही हुआ। देश की अस्मिता के प्रतीक काशी का कायापलट उन्होंने ही किया। उनके पूर्व देश का कोई भी प्रधान मंत्री, प्रधान मंत्री के रूप में पूजा में नहीं बैठा। मोदी ने वह कर दिखाया। विविध देशों के राज्यप्रमुखों से मिलते समय उन्होंने उन्हें भगवत गीता भेंट की।

अब्राहम लिंकन का चरित्र बहुत उच्च कोटि का था। भ्रष्टाचार, अनाचार, अनैतिकता इन सबसे वे कोसों दूर थे। नरेंद्र मोदी पर आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप करने का साहस कोई नहीं कर सकता।  उनका व्यक्तिगत और सार्वजनिक चरित्र अत्यंत स्वच्छ है। 4 वर्ष के राष्ट्रपति काल में अब्राहम लिंकन द्वारा किए गए शारीरिक कष्टों की कोई तुलना नहीं। यही बात नरेंद्र मोदी पर भी लागू होती है। प्रधान मंत्री बनने के बाद से उन्होंने एक दिन का भी अवकाश नहीं लिया। सतत कर्म करते रहना यह दोनों के जीवन की एक विशेष समानता है।

अब्राहम लिंकन महान थे और नरेंद्र मोदी भी महान नेता हैं, ऐसा कह कर बहुत कुछ साध्य नहीं होता। महापुरुषों के भक्त ऐसी प्रशंसा सुनकर या पढ़कर आनंदित होते हैं, परंतु हमें भक्ति के पार जाकर विचार करना है। वह विचार कैसा करना चाहिए यह लॉन्गफेलो की कविता- झीरश्रा ेष ङळषश की अंतिम तीन कड़ियों से ध्यान में आता है।

A Psalm of Life
Lives of great men all remind us
We can make our lives sublime,
And, departing, leave behind us
Footprints on the sands of time;
Footprints, that perhaps another,
Sailing o’er life’s solemn main,
A forlorn and shipwrecked brother,
Seeing, shall take heart again.
Let us, then, be up and doing,
With a heart for any fate;
Still achieving, still pursuing,
Learn to labor and to wait.

इस कविता का भाव यह है कि सभी महापुरुषों के जीवन चरित्र हमारे लिए एक सीख हैं। हम भी हमारा जीवन उदात्त बना सकते हैं। यह संसार छोड़ते समय काल के पटल पर हम अपने पद चिन्ह छोड़ सकते हैं। ऐसे पद चिन्ह होंगे जो ऐसे लोगों को प्रेरणा देंगे जिनकी नैया निराशा और दुर्बलता के गर्त में हिचकोले खा रही है।

इसलिए हमें नित्य कर्मरत रहना चाहिए। कल क्या होगा इसकी चिंता छोड़ दें। आज जो प्राप्त हुआ है उससे अधिक प्राप्त करने के लिए प्रयत्नरत रहे। कष्ट करने की एवं प्रतीक्षा करने की मन को आदत लगाएं।

ऊपर दी गई कविता का यह शब्दश: अर्थ नहीं है। मुझे जैसा समझ में आया वह मैंने यहां प्रकट करने का प्रयत्न किया है। लॉन्ग फेलो के शब्द यदि हम अपने जीवन में उतार सके तो मोदी नामक राष्ट्र नायक के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी।

 

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