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वाल्मीकि समाज के हितों के लिए समर्पित

वाल्मीकि समाज के हितों के लिए समर्पित

by अमोल पेडणेकर
in दीपावली विशेषांक-नवम्बर २०२३, विशेष, संस्था परिचय, साक्षात्कार, सामाजिक
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वाल्मीकि समाज को हमेशा ही समाज में न्यून दर्जा दिया गया। परंतु अब इस समाज के लोग भी अपनी मेहनत के बल पर समाज में उच्च पदों पर आसीन हो रहे हैं। ये लोग एक साथ आकर अपने समाज का उत्थान करने के लिए कटिबद्ध हैं तथा विविध उपक्रमों के माध्यम से समाज को संगठित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। प्रस्तुत है इस संदर्भ में लिए गए वाल्मीकि समाज के वरिष्ठ नेता कर्म सिंह ‘कर्मा’ के साक्षात्कार के प्रमुख अंश-

वाल्मीकि समाज के कल्याण एवं उत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा आपके मन में कैसे निर्माण हुई ?

कुछ समय पूर्व की बात है। एक समाज का हॉस्पिटल बनने जा रहा था। मैंने उनके साथ जुड़ने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने विनम्रता पूर्वक कहा कि यह हमारे समाज का कार्यक्रम है इसमें दूसरे समाज के लोग शामिल नहीं हो सकते। यह बात तो छोटी थी, लेकिन इसमें बड़ा मर्म छुपा हुआ था, जिसे मैं समझ गया। फिर मेरे मन में भी यह भाव आया और मैं सोचने लगा कि जिस वाल्मीकि समाज में मैंने जन्म लिया है,

उसके लिए हम क्या कर रहे है? हमारे समाज के एक आइएएस ऑफिसर है राजीव कुमार (हालांकि पहले मुझे नहीं पता था कि वाल्मीकि समाज से हैं)। मैं उनसे मिलने विशेष रूप से केरल गया क्योंकि वे केरल में पदस्थ थे। इस संदर्भ में उनके साथ देर रात तक विचार विमर्श होता रहा। वे मेरे विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे अपने घर में ही रोक लिया, होटल वापिस नहीं जाने दिया। वे खुद भी समाज के गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का कार्य करते थे। उनसे बात करने पर मुझे बहुत प्रेरणा मिली।

 वाल्मीकि समाज की अवस्था देखकर आपके मन में क्या भाव आया?

हर जाति के लोग अपनी-अपनी जाति के खिलाडियों को प्रोत्साहित करते हैं, प्रमोट करते हैं, उनके पोस्टर-होर्डिंग लगाते हैं, उनका सम्मान करते हैं। पुरस्कार और आर्थिक सहयोग भी देते है। फिर मैंने भी सोचा कि हमारे समाज के भी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, आईएएस, आइपीएस अधिकारी, डॉक्टर, इंजिनियर हैं। पूरे भारत में न तो एक भी वाल्मीकि भवन है न ही कोई प्रभावी संस्था है, जिनके साथ जुड़ कर हम कार्य कर सकें। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वाल्मीकि समाज के लोगों को संकट, तकलीफ के समय कहीं से सहायता मिल सके। अपने समाज को सन्देश देने के लिए भी कोई तंत्र विकसित नहीं किया गया है। हम कुछ ही राज्यों में हैं और अल्पसंख्यक भी हैं इसलिए हमारी उपेक्षा की जाती है।

आप कौन-कौन से विविध धार्मिक एवं सामाजिक कार्य से जुड़े हैं?

मैं युवावस्था से ही से रामलीला, भजन, जागरण, माता की चौकी, आदि धार्मिक कार्यों में अधिक व्यस्त रहता था। वर्तमान में मैं सालासर खाटू श्याम मंदिर तथा वहां की धर्मशाला का भी ट्रस्टी हूं। हनुमान सेवा समिति के अंतर्गत हम एक गोशाला बना रहे है जिसका मैं उपाध्यक्ष हूं। जमुना बजार मरघट वाले बाबा तथा  मेहंदीपुर बालाजी में भी हमारी धर्मशाला है इन दोनों से मैं सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ हूं।

 खेल जगत से आपका गहरा रिश्ता रहा है। खेल में आपके योगदान के बारे में जानकारी दीजिए?

स्पोर्ट्स से भी मैं जुड़ा हुआ हूं। पहले मैं थ्रो बॉल में था। फिस्ट बोल का इण्डिया का अध्यक्ष बना, वर्ल्ड ओलम्पिक वालों ने जर्मानी में मुझे इण्डिया का अध्यक्ष बनाया। थ्रोह बोल फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया का अभी अध्यक्ष हूं। इसके अलावा अनेकों खेलों से मेरा गहरा रिश्ता रहा है। इसलिए दंगल भी कराते थे। विविध खेलों के टूर्नामेंट का भी आयोजन करते रहते थे।

 रामलीला के माध्यम से कैसे आप समाज को संगठित एवं सक्रिय कर रहे हैं?

पंजाब से वाल्मीकि जाति का उदय माना जाता है। कई राज्यों में हमें अलग-अलग जाति-उपजाति जैसे भूमिहार, डूम, हेला, सुदर्शन, लालबेगी, मेहतर, भंगी आदि के नाम से जाना जाता है। वे सभी छोटे और सीमित स्तर पर अलग-अलग नामों से संस्था चलाते हैं। हम इस तरह से आपस में बंटे हुए हैं कि एकत्रित होना मुश्किल है। बावजूद इसके हमने पहल की क्योंकि हमारे समाज को विधर्मियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक बांटने का प्रयास किया जा रहा है और उन्हें गुमराह कर धर्मान्तरित किया जा रहा है। हम लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि इस संकट के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए हम कहां और कैसे एकत्रित हों।

मैं विगत 26 वर्षों से रामलीला का आयोजन करता हूं इस वर्ष 27 वीं रामलीला का आयोजन किया जाएगा। इसमें मैं मुख्य संयोजक की भूमिका निभाता हूं। इस कार्यक्रम में कभी खाटूश्यामजी का कीर्तन कराते हैं, तो कभी जैन समाज का भजन, अबकी बार हमने गुरु नानक जी का पाठ कराया है।

 रामलीला के आयोजन से ज़ुडा कोई संस्मरण बताना चाहेंगे?

शुरूआती दिनों में रामलीला समिति के लोगों ने मुझे ही कार्यक्रम का मुख्य संयोजक बनने का आग्रह किया। उस समय मैंने साढ़े सत्रह लाख की एक प्रोपर्टी खरीदी थी, जिस पर मैंने 8 लाख का लोन भी लिया था। मैंने 51 हजार या 1 लाख रुपए तक का चंदा देने का विचार किया था। तब मेरी मां ने कहा कि रामलीला का कार्य बहुत महान है, यह सबसे अच्छी होनी चाहिए। मां की इच्छा जानकर मैंने साढ़े 9 लाख रूपये खर्च कर रामलीला का भव्य-दिव्य कार्यक्रम करवाया। इसके बाद प्रभु श्रीराम जी की मुझ पर विशेष कृपा रही। उन्होंने जो मेरा हाथ पकड़ा तो फिर मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा, आगे ही आगे बढ़ता गया।

 रामलीला द्वारा आप समाज के बुद्धिजीवी एवं आम आदमी को कैसे जोड़ रहे हैं और उन्हें क्या संदेश दे रहे हैं?

रामलीला सामिति कार्यकारिणी की बैठक मैंने पूछा कि रामायण किसने लिखी थी, तो सभी ने एकस्वर में कहा ‘वाल्मीकि’। फिर हमने रामलीला के साथ-साथ भगवान वाल्मीकि मेले का आयोजन करना भी शुरू किया। हमारे समाज के बुद्धिजीवियों को कार्यकारिणी में जोड़ कर हम हमारे समाज के अशिक्षित और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को यह सन्देश देना चाहते थे कि हमारे समाज में भी पढ़े लिखे लोगों की कोई कमी नहीं है। हम केवल पिछड़े नहीं अगड़े भी हैं।

 भगवान वाल्मीकि मेले में कौन-कौन आते हैं?

मेले के माध्यम से हम वाल्मीकि समाज को एकजुट और जागरूक करते हैं। इस कार्यक्रम में हम समाज के प्रतिष्ठित लोगों को बुलाते हैं। धीरे-धीरे इसकी व्याप्ति-प्रसिद्धि देश दुनिया तक होने लगी और अब तक 8 देशों से हमारे समाज के लोग उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। लगभग देश के 18 राज्यों के लोग इस मेले में आते है।

 समाज से कट चुके लोगों को आपने कैसे एकत्रित किया?

हमने अमृतसर के वाल्मीकि तीरथ में वहां प्रथम निमंत्रण कार्ड भगवान वाल्मीकि के चरणों में चढाया। फिर मेले का कार्ड बांटने की शुरुआत की। जो लोग समाज से दूरियां बना चुके थे, जो लोग शिक्षित होकर वरिष्ठ मुकाम हासिल कर केवल अपने परिवार, मित्र एवं रिश्तेदार में ही सीमित हो गए थे, उन सब को अपने मंच पर एकत्रित किया और वाल्मीकि समाज को सकारात्मक सन्देश दिया। इस मेले से जुड़े सभी वाल्मीकि समाज से ही होते हैं। देखने, गाने, केटरर्स, सिक्योरिटी और समारोह में आने वाले सभी वाल्मीकि समाज से ही होते हैं। हम हमेशा अपने ही समाज के गायकों को बुलाते है इसलिए कन्हैया मित्तल और हंसराज हंस को बुलाया था।

 वाल्मीकि समाज में शिक्षा की अलख जगाने हेतु आप छात्रों को कैसे प्रोत्साहित करते हैं?

हमने इस मंच द्वारा समाज को यह सन्देश दिया है कि आप लोग शिक्षित होकर आगे बढ़ें, आपको यहां सम्मानित किया जाएगा। 10वीं, 12वीं के होनहार छात्रों को सम्मानित करते हैं ताकि वे आगे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अधिक परिश्रम करें। इसके अलावा विवाह के लिए युवक-युवती पंजीकृत करने का कार्य भी इस कार्यक्रम में किया जाता है। यह कार्यक्रम केवल समाज के कल्याण, उत्थान के लिए पूरी तरह से समर्पित है। हमने इस मेले का आयोजन समाज के लिए करना शुरू किया, इसका कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है।

 सामाजिक समरसता की आवश्यकता क्यों है?

हम विशेष तौर पर सामाजिक समरसता के लिए कार्यरत हैं। हम भगवान् वाल्मीकि के नाम से जाने जाते हैं। हम सभी जानते हैं कि पहले हम राजा-राजवाडों और जातियों में बंटे हुए थे, इसलिए देश गुलाम हो गया। आज हम फिर से ऐसा दृश्य देख रहे हैं। सभी अपने-अपने जातिवाद को प्रबल कर रहे हैं। यादव, जाट, गुर्जर, राजपूत, सिख आदि सभी अपने झन्डे उठाकर समाज और जातियों को बांटने में लगे हुए हैं। इसलिए हमने वाल्मीकि मेले में  सामाजिक समरसता का विषय रखा। वाल्मीकि समाज के लोग अधिकतर ईसाई हो रहे हैं। इस खतरे को देखते हुए समाज को जागरूक करने का काम हम कर रहे हैं। मुस्लिम और वाल्मीकि समाज तो समुद्र के दो किनारों की तरह है। हम आपस में कभी एक नहीं हो सकते क्योंकि हमारे पूर्वजों ने मैला ढोने का कार्य स्वीकार कर लिया था, लेकिन इस्लाम धर्म अपनाना स्वीकार नहीं किया। इसलिए समाज जागरण हेतु हमने सामाजिक समरसता पर कार्य करना शुरू किया।

ओलम्पिक से आप कैसे जुड़े?

जब मैं फिस्ट बॉल फेडरेशन ऑफ इण्डिया का अध्यक्ष बना तो मैं टीम के साथ गया था। तब वहां पर महाराष्ट्र के अमरावती के प्राग्वान खेड़े से मुलाकात हुई। वे भारत के सचिव थे और उस गेम के उपाध्यक्ष थे। उस दौरान भारत की टीम को खेलने से मना कर दिया गया था क्योंकि दस वर्ष की वार्षिक फीस बकाया थी।  हैदराबाद तेलंगाना से जगन मोहन गोड मेरे साथ बैठे हुए थे। मैंने उनसे इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि आयोजकों का कहना है कि अभी नगद पैसे भरो, वर्ना खेल से बाहर हो जाओ। सौभाग्यवश उस समय मेरे पास नगद पैसे थे। मैं यूरो लेकर गया था। मैंने तत्काल 20 लाख टेबल पर रख दिए और कहा कि पिछले 10 वर्ष का बकाया और आगामी 10 वर्ष का अग्रिम दोनों इससे ले लीजिए। अंतत:बात हमारे देश के सम्मान की थी और मैं भारत की ओर से गया था। आयोजक देश भारत को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा था। मैंने भी सोचा कि  ऐसा पैसा किस काम का जो देश के काम न आए। तब ओलम्पिक के अधिकारीयों ने कहा कि यदि इस व्यक्ति को भारत का अध्यक्ष बनाया जाएगा तो ही हम आधिकारिक पत्र देंगे वर्ना नहीं। उसी दिन वर्ल्ड ओलम्पिक ने मुझे फ़ाइनल किया।

 राजनीति में वाल्मीकि समाज कैसे आगे बढ़ रहा है?

मेले के माध्यम से वाल्मीकि समाज सतत एकजुट होता जा रहा है। एकजुट होने का लाभ कैसे मिलता है इसका एक उदाहरण है। दिल्ली में कभी भी लोकसभा की टिकट वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधि को नहीं दी गई थी। हमारे समाज के लोग कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों से मिले और अपनी बात रखी। दोनों ही पार्टियों ने हमारे समाज के लोगों को टिकट दिया। मेले के माध्यम से सामाजिक कार्य को गति मिली है और राजनीतिक चेतना जागृत हुई है।

 वाल्मीकि समाज के जरुरतमंद लोगोें की सहायता कैसे करते हैं?

समाज में अगर कोई गरीब परिवार है और उसकी बेटी की शादी में पैसों की जरुरत है तो हम हर प्रकार से ऐसे लोगों की मदद करते हैं और वह भी गुप्त तरीके से ताकि उनके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे। जो गरीब बच्चा पढने-लिखने में होनहार है उनकी कोचिंग और शिक्षा में सहायता करते हैं। वाल्मीकि समाज के लोग इस कार्य में स्वयं प्रेरणा से आगे बढ़कर आर्थिक सहयोग दे रहे हैं, इसलिए समाज को प्रगती के नए अवसर भी मिल रहे हैं। इसलिए कहा जाता है कि एकता में शक्ति होती है। आज हमें कोई सन्देश देना होता है तो मेले की टीम के माध्यम से देश भर में अपने समाज को संदेश पहुंचा दिया जाता है।

 ‘जय भीम-जय मीम’ के बारे में आपके क्या विचार हैं?

अभी मैं देहरादून के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गया था, जिसमें पूरे उत्तराखंड से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे। उस कार्यक्रम में मैंने अपने वक्तव्य में कहा था कि देश है तो हम है। जो लोग सनातन, हिंदुत्व और देश के बारे में अनर्गल बातें कहते हैं और समाज को विभाजित करने के लिए षड्यंत्र रचते है उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।

‘जय भीम जय मीम’ की बात करनेवाले भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य है। योगेन्द्र मंडल का जो हाल हुआ था उनके बारे में भी जानना जरुरी है। वे भी ‘जय भीम जय मीम’ के बहकावे में आ गये और पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बनाने में सहयोग दिया आखिर में उनके साथ क्या हुआ। वह भी जिन्ना के साथी थे। जिन्ना के साथ मिलकर उन्होंने अपने समाज का बेडा गर्क कर दिया। वर्तमान समय में ‘जय भीम जय मीम’ वाले भी अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए उसी राह पर चल रहे हैं। योगेन्द्र मंडल तो पाकिस्तान से भाग खड़ा हुआ लेकिन अपने समाज को पाकिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिया। अभी इजराइल में हमास के आतंकवादियों ने जो बर्बरता का नंगा नाच किया वही हाल पाकिस्तान में हमारे हिन्दू दलित भाइयों के साथ हुआ।

 आप भगवान वाल्मीकि मेले के भव्य आयोजन के लिए आर्थिक नियोजन कैसे करते हैं?

पूरे भारत वर्ष में वाल्मीकि मंदिर बनाना हो, मूर्ति स्थापना हो, चाहे भगवान वाल्मीकि की शोभा यात्रा निकालनी हो, या बैठक होनी हो, सब कार्य चंदा लेकर होता है। लेकिन एकमात्र भगवान वाल्मीकि मेला ही है जिसमें चंदे के लिए पर्ची नहीं छपती। हम केवल दानपात्र रखते हैं, इसमें जिन्हें सहर्ष दान देना होता है वे खुले दिल से देते हैं। यह गुप्त दान होता है। उसी पैसों से हम यह मेले का कार्यक्रम करते हैं। समाज का पैसा समाज के ही कल्याण हेतु उपयोग किया जाता है।

अखिल भारतीय सफाई मजदूर संघ, सफाई मजदूरों की किस प्रकार सहायता करता है?

राजपाल मेहरोलिया अखिल भारतीय सफाई मजदूर संघ के संस्थापक हैं और मैं इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं। सफाई कर्मियों की कई बार काम करते समय दुर्घटनावश अचानक मृत्यु हो जाती है। जिससे उसके परिवार वालों का आर्थिक सहारा भी ख़त्म हो जाता है। तो ऐसे लोगों के परिजनों को हम अखिल भारतीय सफाई मजदूर संघ की ओर से 50 हजार या 1 लाख रूपये की आर्थिक सहायता देते हैं।

 सफाई कर्मियों की यूनियन उन्हें न्याय क्यों नहीं दिलवा पाती है?

यूनियनबाजी करनेवाले लोग सफाई कर्मचारियों को ठगते हैं, उनके अधिकारों का हनन करते हैं। देश भर के सभी सफाई संगठनों के अधिकारियों में से एकमात्र मैं ही ऐसा हूं जो एक बिजनेसमैन हूं, बाकी के संगठनों में सफाई कर्मचारी ही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे करते क्या हैं? मजदूरों के सामने तो अधिकारियों से लड़भिड़ जाते हैं, संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं लेकिन अंदरखाने में उनके साथ मिल जाते हैं। ऐसे लोग अपने साथी सफाई कर्मियों की मांग कैसे पूरी करेंगे।

 वाल्मीकि समाज का नेतृत्व करने वाला कोई राष्ट्रीय नेता है?

हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे समाज की आवाज बुलंद और नेतृत्व करनेवाला देश में एक भी राष्ट्रीय नेता नहीं है। हमारी दिक्कत यह भी है कि बहुत सारे ऐसे भी नेता हैं जो यह दावा तो करते हैं कि हम आपके समाज के नेता हैं लेकिन जब वह जीत जाते है तब साथ छोड़कर चले जाते हैं। उदाहरण देखें- सरदार बूटा सिंह इसी तरह गृह मंत्री बने थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की एक रैली करके इंदिरा गांधी को खुश कर दिया था। जब इंदिरा गांधी ने उनसे मंच पर इतने लोगों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि रामलीला मैदान में जितने आदमी दिख रहे हैं, वे सभी सफाई कर्मचारी हैं, उनके संगठन का मैं ही राष्ट्रीय नेता हूं। इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा ‘आपको क्या चाहिए?’ तो उन्होंने कहा ‘मुझे गृह मंत्री बना दीजिए।’ इस तरह वे गृह मंत्री बने थे। वर्तमान समय में संसद में हमारी आवाज बुलंद करनेवाला कोई नेतृत्व नहीं है।

 दिल्ली की केजरीवाल सरकार के विरुद्ध आप क्यों मुखर हुए?

जब आप सरकार 1 करोड़ रूपये दिल्ली पुलिस को किसी दुर्घटना के समय दे सकती है तो सीवर में जो बच्चा मरा है वह भी तो इंसान ही है। यह आवाज केजरीवाल सरकार के खिलाफ मैंने उठाई। जो 200 गाड़ियां सीवर साफ़ करने के लिए आईं, तब केजरीवाल ने विज्ञापन लगवाया कि ‘अब नहीं होगी सीवर में मौत, अब होगी मशीनों से सफाई’। इसके लिए पहले फ्री घोषणा की थी, फिर ढाई लाख रूपये रख दिए और इसके बाद 5 लाख रूपये कर दिए। तब मैंने केजरीवाल को कहा कि जिसके पास 5 लाख रूपये होंगे वो गटर में काम करने के लिए क्यों जाएगा, वह खुद का कोई धंदा व्यवसाय कर लेगा।

वर्तमान मोदी सरकार के बारे में आपके क्या विचार हैं?

कुम्भ मेले के सफाई कर्मचारियों के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पैर धोये थे। 370 हटाने का सबसे ज्यादा फायदा तो हमें और हमारे समाज को ही हुआ है। 26 जनवरी को भगवान वाल्मीकि के साथ अयोध्या राम मंदिर की जो झांकी निकली तो पूरे विश्व में सबसे अधिक भगवान वाल्मीकि की झांकी को पसंद किया गया और सराहा गया। यह हमारे समाज के लिए गर्व और सम्मान की बात थी। मोदी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है लेकिन हमारे समाज को भी आगे बढ़कर उनका साथ देना पड़ेगा। अपने हितों के लिए लड़ना खुद पड़ेगा।

 क्या सफाई कर्मियों के कल्याण के प्रति शासन-प्रशासन उदासीन है?

यह सबसे बड़ी विडंबना है कि वाल्मीकि समाज से काम तो कराया जाता है लेकिन उसका उचित पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है। एक ही विभाग ऐसा है जिसमें सफाई कर्मचारी काम करते है जिन्हें नगरपालिका, महानगरपालिका कहते हैं। जिसमें 20-25 वर्ष तक इन्हें परमनेंट नहीं किया जाता है। लोग परमनेंट हुए बिना ही काम करते-करते मर जाते हैं। बावजूद इसके इन्हें स्थायी तौर पर काम पर नहीं रखा जाता। जितने दिन काम किया उतने दिन की सैलरी मिलती है। प्रश्न यह है कि कैसे एक सफाई कर्मी अपने परिवार का जीवन स्तर ऊंचा उठाएगा? वह अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएगा?

 वाल्मीकि समाज के बच्चे शिक्षा में क्यों पिछड़ते जा रहे हैं?

बच्चों के माता-पिता सुबह मंदिर जाते हैं, गुरुद्वारे जाते हैं, गार्डन-पार्क में दौड़ लगाने जाते है या स्वस्थ रहने के लिए योग करने जाते हैं, लेकिन वाल्मीकि समाज सभी को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने के लिए सबसे पहले उठकर अपने बच्चों को सोता हुआ छोड़कर काम पर चले जाते हैं, ताकि उनके बच्चे अगले दिन भूखे न रहें। उनके बच्चों को सुबह जगाकर स्कूल कौन भेजेगा? उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। उनको अच्छे से कौन पढ़ाएगा? वह तो अलग से कोचिंग ट्यूशन नहीं कर सकते। प्राइवेट स्कूल, कोचिंग-ट्यूशन में पढ़ने वाला बच्चा तो इनसे आगे ही रहेगा।

 सजग एवं एकजुट समाज नहीं होने के क्या दुष्परिणाम आपको दिखाई देते हैं?

एक मुस्लिम और एक वाल्मीकि दोनों की नॉनवेज की दुकान होती है। हमारे हिन्दू समाज के लोग मुस्लिम की दुकान से तो मांस खरीदने जाता है परन्तु वाल्मीकि की दुकान में नहीं जाता है। इसका लाभ विधर्मी उठाते हैं। वे आकर बहकाते हुए कहते हैं कि देखो! तुम्हारे अपने ही लोग तुम्हारी दुकान से सामान खरीदने नहीं आते। तुम्हारे साथ मंदिरों में भेदभाव होता है। तुम्हें कोई मान सम्मान नहीं मिलता। जब तुम शेरावाली माता की चौकी करते हो और किसी मुसलमान से तुम्हारा झगडा हो जाता है तो कोई हिन्दू तुम्हारा साथ देने नहीं आता। तुम्हे क्या मिलता है इन लोगों से? हम तुम्हे पैसा भी देंगे, इज्जत भी देंगे, कन्वर्ट हो जाओ। हमारे समाज में सब एक हैं। इनके बहकाने वाली बातों से भोले-भाले अशिक्षित लोग झांसे में आ जाते हैं और कन्वर्ट हो जाते हैं।

 क्या समाज में छुपे क्रिप्टो क्रिश्चन वाल्मीकि समाज के आरक्षण के अधिकार पर डाका डाल रहे हैं?

कन्वर्जन के विरुद्ध हमने जन जागरण मुहीम शुरू की है। वाल्मीकि मेले में हम खास कर ईसाई मिशनरियों की गतिविधि के बारे में बताते हैं। क्रिप्टो क्रिश्चन को पहचानना बहुत मुश्किल है क्योंकि वे अपने आप को वाल्मीकि समाज का ही बताते हैं और हमारे अधिकार के नाम पर आरक्षण की मलाई भी खुद खाते हैं। जिससे समाज के लोग आरक्षण के लाभ से वंचित हो जाते हैं। इसलिए आरक्षण की समीक्षा अवश्य की जानी चाहिए। क्योंकि बड़ी संख्या में आरक्षण का लाभ सरकारी नौकरी और बड़े पदों पर बैठे हुए क्रिप्टो क्रिश्चन अवैध रूप से उठा रहे हैं। उनका पूरा सिंडिकेट है जो उन्हें आरक्षण का फायदा दिलवाता है। हमारे ही समाज के बीच क्रिप्टो क्रिश्चन के रूप में गद्दार छुपे हुए हैं। इनकी पहचान करना और घरवापसी कराना जरुरी है।

 हिंदी विवेक के दीपावली विशेषांक के माध्यम से आप वाल्मीकि समाज सहित देश को क्या सन्देश देना चाहेंगे?

वाल्मीकि समाज में प्रतिभा, क्षमता, शौर्य पराक्रम में कोई कमी नहीं है लेकिन यह समाज हनुमानजी की तरह अपनी अपार शक्तियों को भुला बैठा है, इसलिए जामवंत की तरह उन्हें उनकी शक्ति स्मरण कराने की आवश्यकता है। विविध कार्यक्रमों एवं वाल्मीकि मेले के माध्यम से हम यह जागरण का कार्य अनवरत कर रहे है परन्तु सभी को इसमें अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होगा। आज तक हम अज्ञानता के कारण दूसरों पर दोषारोपण करते रहे हैं। कमियां हममें है तो सुधार एवं बदलाव भी हमें ही करना होगा। अशिक्षा एवं जागृत, सशक्त, संगठित समाज का अभाव ही हमारे समाज के पिछड़ने का एकमात्र कारण है। आत्मबोध, दिशाबोध, शत्रुबोध के साथ ही अपनी कमजोरियों को पहचानना तथा उसे दूर करना आवश्यक है. देश और हिन्दू समाज के हम सभी घटक है, हमारी गौरवशाली समृद्ध परम्परा रही है. ‘वाल्या से वाल्मीकि’ बनने की प्रेरणादायी कथा से हम सभी परिचित हैं। देव, देश, धर्म के संरक्षण एवं संवर्धन तथा समाज के सर्वांगीण विकास हेतु हमें एकजुट होकर सामूहिक प्रयास करना होगा। संघ का यह प्रेरणादायी गीत मेरी ओर से हमारे वाल्मीकि समाज सहित देश को सन्देश के रूप में समर्पित करता हूं –

युग परिवर्तन की बेला में, हम सब मिलकर साथ चलें।

देश धर्म की रक्षा के हित, सहते सब आघात चलें।

मिलकर साथ चलें…

 

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