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पूर्व राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य का स्वर्गवास

The Union Minister for Human Resource Development, Smt. Smriti Irani meeting the Governor of Tripura, Shri Padmanabha Balakrishna Acharya, in New Delhi on August 29, 2014.

पूर्व राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य का स्वर्गवास

by मुकेश गुप्ता
in ट्रेंडींग, विशेष, सामाजिक
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पूर्वोत्तर के असम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश एवं त्रिपुरा के राज्यपाल रहे पद्मनाभ आचार्य का ९२ वर्ष की आयु में कल दि. १० नवम्बर २०२३ को स्वर्गवास हो गया. कर्नाटक के उडुपी जिले में जन्में पद्मनाभ आचार्य की शिक्षा दीक्षा मैट्रिकुलेशन क्रिश्चियन हाई स्कूल एवं महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज (एमजीएम कॉलेज) उडुपी में हुई. स्नातक की शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उन्होंने मुंबई में कार्य किया. रा. स्व. संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से होते हुए भाजपा के लिए कार्य किया. उन्हें विशेष तौर पर पूर्वोतर राज्यों में उल्लेखनीय कार्यों के लिए याद किया जाता है.

लगभग ६ दशक पूर्व जब पूर्वोत्तर संघर्ष एवं अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था और पूरी तरह से अशांत था, तब कर्नाटक में जन्में राष्ट्र भाव से ओतप्रोत पद्मनाभ आचार्य का मन पूर्वोत्तर के लिए तड़प उठा और उन्होंने वहां का वातावरण बदलने का निश्चय किया. पूर्वोत्तर की समस्या, चुनौती को समझ कर उसके समाधान के लिए प्रयासरत रहने का उन्होंने संकल्प किया और आजीवन अपने इस संकल्प पूर्ति के लिए समर्पित रहे, जिसमें उन्हें सफलता भी मिली. आज पूर्वोत्तर राज्यों में जो सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहा है उसकी नींव में पद्मनाभ और उन जैसे संघ के अनेकानेक स्वयंसेवकों का योगदान रहा है.

सर्वप्रथम १९५२ में पूर्वोत्तर के अनेक राज्यों से युवा छात्र-छात्राओं को भारत के अन्य राज्यों में लाकर विविध समाज के परिवारों के बीच उनके रहने और भोजन की व्यवस्था की गई. जिसमें कुछ लोग शिक्षा के लिए यही रहे और कुछ लोग भारत दर्शन कर वापस अपने घर लौट गए. लेकिन वे अपने साथ ‘अनेक भाषा, अनेक वेश, फिर भी ‘एक’ हमारा भारत देश’ का साक्षात् दर्शन एवं विविधता में एकता की अनुभूति लेकर गए. इसके बाद बहुत बड़े स्तर पर पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों की भारत के अन्य प्रान्तों में आनाजाना शुरू हो गया. पद्मनाभ आचार्य और उनके सहयोगी मित्र मंडली का यह प्रयास ऐतिहासिक रूप से सफल रहा. पूर्वोत्तर से मुंबई आनेवाली छात्रों की टोली विद्यानिधि संकुल में भेंट करने जरुर आती थी. पद्मनाभ आचार्य के मार्गदर्शन में विद्यानिधि संकुल अंतर्गत बालकुंज का कायापलट किया गया था. विद्यानिधि हाई स्कुल के विकास में पालक एवं संचालक के रूप में अनन्य योगदान रहा है.

१९६९ में वह एबीवीपी के अध्यक्ष रहे. मुंबई विश्वविद्यालय के लगभग ३० वर्ष सीनेट सदस्य रहे. दिल्ली विश्वविद्यालय के ज्ञानोदय एक्सप्रेस कॉलेज की योजना बनाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. उनके जीवन के अमृत महोत्सवी वर्ष के अवसर पर रा. स्व. संघ के मदनदास देवी की अध्यक्षता में एक समारोह का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें उनका और उनकी पत्नी श्रीमती कविता जी का सम्मान किया गया था.

राज्यपाल बनने से पहले वह  भाजपा में विभिन्न पदों पर रहे थे. 1980 में पीबी आचार्य भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. वह 1987 में उत्तर पश्चिम बॉम्बे जिले के भाजपा अध्यक्ष चुने गए और बाद में 1989 में मुंबई भाजपा के समिति सदस्य बने. 1991 में उन्हें उत्तर पूर्वी राज्यों अर्थात् भारत के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड के प्रभारी के तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुना गया. वह 1995-2002 तक भाजपा के अखिल भारतीय राष्ट्रीय सचिव और उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी भी रहे. २००२ में वह केरल, लक्षद्वीप और 2005 में तमिलनाडु के प्रभारी के साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य थे. आचार्य एससी/एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी और ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के सह संयोजक और उत्तर पूर्व भारत संपर्क सेल के राष्ट्रीय प्रभारी थे. आचार्य उत्तर पूर्व के आदिवासी बच्चों के लिए एबीवीपी की एक परियोजना माई होम इज़ इंडिया में सक्रिय रूप से लगे हुए थे, जिन्हें शैक्षिक उद्देश्यों के लिए मुंबई शहर के परिवारों द्वारा आमंत्रित किया गया था. कई छात्र कई वर्षों (1969-79) तक उनके आवास पर रहे. वह आईएनएफसी की एक प्रकाशन शाखा – रानी मां गाइदिन्ल्यू भवन में भारतीय जनजातीय बोलियों के लिए अकादमी की गतिविधियों (1975 से) में शामिल थे और उन्होंने रानी गाइदिन्ल्यू (मणिपुर), यू.तिरोत सिंह और जाबन बे जैसे जनजातीय राष्ट्रवादी नेताओं पर 10 पुस्तिकाएं प्रकाशित कीं. (मेघालय), डॉ. डाइंग एरिंग और नरोत्तम (अरुणाचल प्रदेश) और आदिवासी कहावतों, लोक-कथाओं और कविताओं का प्रकाशन भी उल्लेखनीय है.

राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित हिंदी विवेक मासिक पत्रिका से वह आत्मीय भाव से जुड़े हुए थे. पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी विवेक पत्रिका के प्रचार एवं प्रसार हेतु उन्होंने अपनी महत्वपूर्व भूमिका अदा की थी. साथ में वहां हिंदी विवेक का अंक मिलता है या नहीं, इस पर भी उनका निरिक्षण रहता था. ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति एवं सद्गति प्रदान करें, हिंदी विवेक परिवार की ओर से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते है.

 

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