पूर्वोत्तर में अरूणोदय अवश्य होगा– राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य

 वरिष्ठ और प्रगल्भ कार्यकर्ता पद्मनाभ आचार्य नगालैंड, असम राज्य के राज्यपाल हैं। स्वदेश और स्वसंस्कृति के प्रति उनके मन में गहरी आस्था है। इसी आस्था को जीवन निष्ठा बना कर उन्होंने स्वयं को इस कार्य में समर्पित कर दिया। अपने सम्पूर्ण जीवन में पूर्वोत्तर राज्यों के विकास को ही अपना लक्ष्य बनाकर और पूरी लगन के साथ कार्यरत रहने वाले व्यक्ति हैं पद्मनाभ आचार्य। वे अब इन दोनों राज्यों के राज्यपाल मा. पद्मनाभ आचार्य का साक्षात्कार।

          आपके जीवन को दक्षिण से पूर्वोत्तर तक  की यात्रा कहा जा सकता है। कृपया हमें आपके जीवन यात्रा की जानकारी दें।

मेरा जन्म कर्नाटक के उडुपी गांव में सन १९३१ में हुआ। वहां के टाटा मेमोरियल महाविद्यालय की पहली टुकड़ी का मैं विद्यार्थी हूं। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद मैंने कुछ समय तक माध्यमिक विद्यालय में नौकरी भी की। उसके बाद मैं मुंबई आ गया। मुंबई में आगे की पढ़ाई करने के साथ-साथ ही रूपारेल कॉलेज में कैंटीन चलाने का व्यवसाय भी सफलतापूर्वक किया।

इसी दौरान अर्थात ५० के दशक में मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा। उसके पहले सन १९४७ में संघ पर लगे प्रतिबंध के विरोध में सत्याग्रह करने के कारण मैं छह महीने कारावास में भी रहा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य करने के दौरान मेरे अंदर का कार्यकर्ता जागृत होने लगा। सन १९४९ में दिल्ली में शुरू हुआ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य प्रारंभिक अवस्था में था। हमने अलग अनोखे उपक्रम चलाकर और अभिनव प्रयोग करके जल्दी ही परिषद को विद्यार्थीप्रिय बना दिया।

सन १९६६ में परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन त्रिवेंद्रम में हुआ था। वहां मुझे परिषद की अखिल भारतीय जिम्मेदारी सौंपी गई। अगले १०-१२ साल में हमारे प्रयत्नों के परिणामस्वरूप अभाविप को कार्यक्षम विद्यार्थी संगठन के रूप में पहचान मिलने लगी। परिषद के कार्य को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में हमें सफलता प्राप्त हुई।

इसी समय में मेरी कल्पना के माध्यम से सन १९६८ में ‘अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन’ नामक उपक्रम शुरू किया गया। राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण था। पिछले ४०-४५ सालों में इस प्रकल्प ने पूर्वोत्तर राज्य के नागरिकों में, मुख्यत: युवकों में राष्ट्रीय भावना जागृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पूर्वोत्तर के युवक-युवतियों को प्रति वर्ष भारत के अन्य भागों में साथ ही शेष भारत के नागरिकों को भावनात्मक स्तर पर एकात्मता का अनुभव कराने का महत्वपूर्ण कार्य  इस उपक्रम के माध्यम से पूर्ण किया जाता है।

लगभग ३०-३५ साल तक भाजपा के पूर्वोत्तर क्षेत्र के संपर्क प्रमुख के रुप में मैंने कार्य किया है। राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर न्यूनतम प्रतिसाद मिलने के बाद भी आज सांसद किरण रिजीजू केंद्रीय मंत्रिमंडल में गृह राज्यमंत्री पद का पदभार संभाल रहे हैं।

      सन १९६६ में आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उस दौरान आपने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए? कृपया उन कार्यक्रमों के बारे में बताएं।

उस समय किए गए कई कार्यों में से सील (अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन) एक महत्वपूर्ण और सफलतम कार्यक्रम था। एक बार हम सभी कार्यकर्ता बैठे थे और रेडियो में कुछ नेफा-नेफा सुनाई दे रहा था। खबर आ रही थी कि चीन के लोग तेजपुर तक आ गए हैं। यह सब सुनकर मन ही मन बहुत लज्जा हुई कि हम लोगों को कुछ पता ही नहीं कि नेफा क्या है, तेजपुर कहां है, चीन के लोग वहां क्यों आ रहे हैं।

पूर्वोत्तर के बारे में इस अनभिज्ञता के लिए किसी को दोष देना सुलभ है। नेहरू को दोष दे दो, कांग्रेस को दोष दे दो। परंतु ऐसा  न करते हुए हमें अपने देश की जानकारी नहीं है यह मान्य करना होगा। हमने कार्यक्रमों की शुरु आत में ही अपने आप में जो त्रुटियां हैं उसे माना और संगठन में उसी के अनुसार कार्यक्रमों की रचना की।

    आपने अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन नामक उपक्रम ५० साल पहले शुरू किया था वह आज पूरे देश में फैल चुका है। इस उपक्रम की जानकारी और इसके विस्तार के बारे में बताएं।

पूर्वोत्तर के प्रवास के दौरान हमें पता चला कि नेफा आज के प्रदेश में एक छोटा सा गांव है, जहां पर पंडित नेहरू के नाम से कॉलेज शुरु हुआ है। तुरंत दिमाग में आया कि यह तो बहुत अच्छा मौका है। कॉलेज शुरू होगा तो वहां के अच्छे -अच्छे युवक, जो कॉलेज में आनेवाले है उनसे दोस्ती की जा सकती है। हमारा और उनका संबंध बढ़ेगा। कॉलेज में जाने पर पता लगा कि वहां बहुत अच्छे विद्यार्थी हैं। उनमें उत्साह भी है। उनकी परिस्थिति के लिए हम मुख्य धारा के लोग ही कारणीभूत हैं। हमने कालेज के विद्यार्थियों से सम्पर्क बढाया। उन्हें मुंबई आने का न्यौता दिया। जब आप मुंबई आएंगे तो आप किसी होटल या होस्टेल में नहीं रहेंगे। आप घर पर रहेंगे।’ इस तरह पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों को शेष भारत से जोड़ने का प्रयत्न शुरू हुआ।

   इस योजना का विस्तार कैसे हुआ? आज की परिस्थिति देखकर आपको क्या लगता है?

कभी-कभी लगता है कि उस योजना का मुख्य मुद्दा पीछे छूटता जा रहा है। क्योंकि आज गूगल और इंटरनेट के कारण एक दूसरे को जानने के लिए उस जगह पर जाने की जरुरत नहीं है। परंतु वहां की जो मुख्य समस्या है वह है शेष भारत के लोगों को अपने बंधुओं के रूप में स्वीकार करना वह केवल इंटरनेट के माध्यम से, पढ़ने से, देखने से, जानने से नहीं होगा। उसके लिए साथ रहना आवश्यक है उसका कहीं ना कहीं अभाव अभी भी है। इस प्रकल्प का, इस योजना का आधार यही था कि साथ में रहकर वहां की  पिछड़ी जाति और जनजाति के लोगों के मन से यह भाव निर्माण करना कि वे लोग प्रमुख समाज के साथ सम्मिलित हो सकते हैं। यह केवल कृति से ही संभव था। युवकों को चुनने का उद्देश्य यह था कि युवकों की आवाज को वहां के लोग सुनेंगे। अगर वे वापिस जाकर पूर्वोत्तर के लोगों को समझाते हैं तो वहां के लोग जरूर सुनते हैं।

      पूर्वोत्तर के राज्य सीमावर्ती राज्य हैं। वे सुरक्षा कीदृष्टि से अंत्यत महत्वपूणर्र् हैं, उन राज्यों के नागरिकों से भावनात्मक संबंध बढने के लिए एक भारतीय के रूप में क्या प्रयत्न किए जाने चाहिए?

तीन चार प्रकार से काम कर सकते हैं। वहां एक तरह से ‘वन वे ट्रेफिक’ की तरह काम हो रहा है। वहां के लोग शेष भारत  में पढाई के लिए आते हैं, उपचार के लिए आते हैं, काम के लिए आते हैं, नौकरी के लिए आते हैं। परंतु शेष भारत के लोगों को यहां से वहां जाने की जरूरत ही नहीं पडती। ना वहां नौकरी मिलती है और न ही पर्यटन के लिए अधिक लोग जा पाते हैं। क्योंकि इतना सुन्दर प्रदेश होने के बावजूद भी उसके बारे में जानकारी का अभाव है। अत: उन लोगों से आत्मीयता बढ़ाने के लिए हमें यहीं उन्हें कुछ और सहायता करनी होगी। उदाहरणार्थ  अगर कोई मरीज यहां उपचार के लिए आता है तो उसे वहां हॉस्पीटल में रहने मिलता है परंतु उसके साथ जो उसके परिवार के सदस्य आते हैं उनके रहने की कोई व्यवस्था नहीं होती। उनके रहने के लिए हमें कुछ इंतजाम करने चाहिए। जैसे टाटा मेमोरियल केपास रा. स्व.संघ के द्वारा नाना पालकर समिति कार्य कर रही है।

इसी तरह जो विद्यार्थी आए हैं, उनको सप्ताह में, महीने में एक बार या किसी अच्छे दिन घर पर बुलाना या उनसे जाकर बात करना, दोस्ती करना इत्यादि से भी भावनात्मक संबंध स्थापित हो सकते हैं। यहां से वापस जाते समय वे केवल डिग्री लेकर वापस नहीं जाएंगे उनके साथ अच्छे अनुभव भी होंगे। वरिष्ठ मराठी संगीतकार व गायक श्रीधर फडके जी के घर में पूर्वोत्तर का विद्यार्थी आया था। उसे वापस गए हुए भी बहुत समय हो गया परंतु उसकी बेटी का भी उस घर से गहरा संबंध है। इस तरह मानवीय भाव से अपने आप काम हो जाता है।

वहां के समाज में भी कई श्रेष्ठ व्यक्ति हैं। कवि, शिक्षक, वैद्य, व्यापारी आदि विभिन्न क्षेत्रों में ये लोग कार्यरत हैं। अगर हम हमारे यहां कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाते हैं तो भी वे बहुत सम्मानित महसूस करते हैं। क्योंकि उनको लगता है कि हमें कोई पूछने वाला नहीं है।

राजनैतिक दूरदृष्टि का अभाव इस परिस्थिति के लिए कारणीभूत है?

नहीं। मुझे नहीं लगता राजनैतिक दृष्टिकोण कारणीभूत है। वहां डेमोक्रेसी लागू ही नहीं हो पाई। शिक्षा का अभाव था। जो लोग कुछ शिक्षित थे उनकी शिक्षा आत्मकेंद्रित थी। उनका ज्ञान आत्मकेंद्रित था। समाज के लोगों के लिए उपयोगी नहीं था। जो लोग चुनकर आए हैं वे यही सोचते हैं कि वे ही सही बोल रहें हैं। करप्शन बहुत ज्यादा है। लोग धर्मभीरू हैं। आठ करोड़ लोगों में लगभग २०० ग्रुप हैं। हर समाज समझता है कि हमारी समाज पध्दति को धोखा है। उसे सुरक्षित रखने के लिए  हर कोई अलग राज्य की मांग करता हैं। वह भारत का अंग नहीं बनना चाहता। हमें स्वतंत्रता मिली, राजा महाराजाओं के, जमीनदारों के दिन गए। लेकिन ये नए जमीनदार डेमाक्रेसीसे हमने तैयार किए हैं। यहां हमारे सिस्टम को बदलना होगा। अच्छे लोगों को राजनीति में आना होगा। वहां पर तो पार्टी ही नहीं है। किसी बाहरी पार्टी का आना भी बहुत मुश्किल है।

      वहां के लोगों में यह भावना है कि ‘हम भारतीय नहीं हैं’ इस भावना को मिटाने के लिए क्या प्रयास करने होंगे?  

सारे पूर्वोत्तर में यह भावना नहीं है। एक दो राज्यों में ही यह भावना है। परंतु है जरूर। और इसके पीछे के कारण भी बहुत लंबे चौड़े हैं। हमें यह सोचना होगा कि इन कारणों का निराकरण करने के लिए हम क्या कर सकते हैं। क्या सकारात्मक सोच सकते हैं। किन बातों को लागू कर सकते हैं जिससे लोगों के मन यह भावना निकल जाए कि वे भारतीय नहीं हैं।

     धार्मिक ध्रुवीकरण और घुसपैठ वहां की एक बड़ी समस्या है। इन षड्यंत्रों से बचने के लिए वहां क्या प्रयास किए जा रहे हैं?

वैसे सरकार ने एन .आर.सी नेशनल रजिस्टर ओकसेडिज्म नामक एक विशेष कानून बनाया है। इसके अंतर्गत लोगों से यह पूछा जाता है कि आपके पास क्या प्रूफ है कि आप १९७९के पहले आए हैं? इस कानून के क्रियान्वयन का परिणाम यह हो सकता है कि एक बहुत बड़ा वर्ग वोटर की लिस्ट से बाहर निकल सकता है। बांग्लादेश से बड़ी संख्या में विदेशी लोग आ रहे हैं और वे हमारी सरकार पर कब्जा करना चाहते हैं। बांग्लादेश से आने वाले सभी मुस्लिम होते हैंं। ध्यान रहे यहां विरोध मुस्लिम होने का नहीं है, विरोध है विदेशी होने का। विदेश से लोग आकर हमारी सरकार पर कब्जा करें इसका विरोध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्यम से भी किया जा रहा है।

  पूर्वोत्तर के नागरिकों में अस्तित्व और अस्मिता की समस्या भी है। क्या वह इसी से संबंधित है? भविष्य में उसका विस्तार होगा या समस्या कम होगी?

बिलकुल! इसी से जुड़ा हुआ है। दूसरी बात यह भी है कि भारत में आर्थिक प्रगति हुई है। अब इंटरनेट और गूगल के कारण सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता। पूर्वोत्तर के लोग भी फिल्म देख रहे हैं, टीवी देख रहे हैं, अलग-अलग कार्यक्रम देख रहे हैं। उन्हें दिखाई दे रहा है कि मुंबई, दिल्ली का विकास हो रहा है। वे सोचते हैं हमारे यहां गांव में रास्ता भी नहीं है और हम डेमोक्रेसी की बात करते है। हम लोगों के पास बिजली नहीं है। खनिज संपदा, पानी, तेल सब कुछ होने के बाद भी हमारे यहां बिजली नहीं है। हम गरीब हैं। इस तरह कि भावना उनके मन में है। इसका ध्यान रखना चाहिए। हमें ऐसे कार्य करने होंगे जिससे भारत की प्रगति का फल खाने का मौका उन्हें भी मिले।

 बड़े दु:ख की बात है कि देश के अनेक प्रमुख महानगरों में पूर्वोत्तर के युवा जाते हैं, तो उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। कहीं उन पर हमले होते हैं, कई बार तो उनकी बलि चढ जाती है। इस स्थिति पर कैसे नियंत्रण रखा जा सकता है?

ऐसा कुछ नहीं है। यहां से हजारों लोग गए हैं। किसी एक का उदाहरण लेना गलत होगा। दूसरे लोगों पर भी अत्याचार होता है, इन सभी को रोकना चाहिए। पूर्वोत्तर के लोगों पर बाहर अत्याचार न हो इसके लिए यहां के लोगों को संगठित होना होगा। पूर्वोत्तर के लोगों और स्थानीय लोगों का फेलिसिटेशन होना चाहिए।  स्कूल के द्वारा, कॉलेज के द्वारा और समाज सेवा में लगे हुए अन्य लोगों के द्वारा प्रयत्न किया जाना चाहिए। हमारी संस्कृति सभ्यता सब एक है इसकी अनुभूति लाने लिए प्रयास करने की आवश्यकता है।

      पूर्वोत्तर के युवाओं का विकास हो उन्हें रोजगार, आत्मसम्मान मिले, इसदृष्टि से वहां पर कौन से प्रयास करने चाहिए?

रोजगार के लिए इंडस्ट्रीज चाहिए, इंडस्ट्रीज चलाने के लिए बिजली चाहिए। बिजली को प्राथमिकता देनी होगी। सोलर एनर्जी, हायड्रो एनर्जी, पेट्रोल एनर्जी, विन्डएनर्जी आदि कई विकल्प हैं। बहुत बड़ेे पैमाने पर छोटे छोटे उद्योग के लिए भी जो बिजली आवश्यक है उसे तैयार करना होगा। फिर अपने आप लोगों को रोजगार मिलने लगेगा। उद्योेग कैसा बढ़ेगा? जब तक यूनिवर्सिटी में उस तरह से कोर्स शुरु नहीं करेंगे तब तक नहीं हो सकेगा। बीएसी, बीकॉम, बीए की डिग्री लेकर जब विद्यार्थी बाहर निकलते हैं वे उद्योग करने योग्य नहीं होते। वे ज्यादा से ज्यादा कोई सरकारी नौकरी कर सकते हैं। सरकारी नौकरी में भी एक सेचोरेशन पाइन्ट आ गया है। अत: हमारी यूनिवर्सिटी जो पढ़े लिखे बेरोजगार निर्माण कर रही है, इसे बदल कर ऐसे विद्यार्थी तैयार करने होंगे जो उद्योग कर सकें।  फिर ये युवां हमारे लिए संपत्ति होंगे न कि बोझ।

पिछले ५० सालों में आपने पूर्वोत्तर की समस्याओं को नजदीक से देखा है। अब सौभाग्य से आपको पूर्वोत्तर राज्य का राज्यपाल बनाया गया है। राज्यपाल बनने के बाद आपकी ओर से इन समस्याओं को कम करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं

मेरा सबसे पहला प्रयास है लोगों को एक दूसरे से अधिक से अधिक जोड़ने का। मैंने मुंबई के, मरचेंट चेंबर और डिमापुर तथा नगाण्लैड के मर्चेंट चेंबर के लोगों को बुलाया। उनकी आपस में पहचान करवाई। उनसे कहा कि आपका एक दूसरे में इंटरेस्ट भी है। एक – दूसरे को समझो जानो। मुबंई में भी साधन है। इन दोनों का अच्छी तरह से अर्थिक उपयोग कैसे किया जा सकता है यह सोचो।

मुंबई से गेस्ट के रूप में १५ डॉक्टर्स आये और ११२ ऑपरेशन किए गए। लेकिन एक पैसा भी नहीं लिया। दवाई भी दे दी गई। पूर्वोत्तर से वापस जाते समय उन्होंने १२ लाख रुपए की एक्सरे मशीन दी। एक स्कूल में गए थे। उस स्कू ल में बस नहीं थी। उन्होंने वहां पर एक बस भेजी। अभी एक मुंबई के उद्योगपति से मिला। उन्होंने कहा कि मैं एक लाख डॉलर आपको देता हूं। आप सभी स्कूलों में एज्यूकेशन शुरू करें। अब हम ढूंढ रहे हैं कि किन स्कूलों में इसे क्रियान्वित किया जा सकता है। लोगों के मन में पूर्वोत्तर के लोगों के लिए कुछ काम करने की जागृति आ गई है। अब हमें मोदी जी का नेतृत्व प्राप्त है। मोदीजी ने पहली बार कहा था कि, ‘‘लुक ईस्ट एण्ड एक्ट ईस्ट।’’ पूर्वोत्तर से ही भारत में समृद्धि आएगी।

मोदीजी के आने के बाद अच्छे दिन आएंगे, यह लोगों की धारणा थी। क्या पूर्वोत्तर में कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है? 

पूर्वोत्तर कोे आगे बढने के लिए शांति चाहिए। वहॉं पर नगालैंड में चार बड़े-बड़े गुट हैं। उनमें से एक गुट को मोदी जी ने बुलाया और कहा ‘‘हम दोनों में विश्वास की कमी नहीं रहेगी। एक दूसरे पर पूरा विश्वास कर आप और हम सब अपना कर्तव्य शुरू करें। अब आप शांति के मार्ग पर आ जाएँ।’’ तो उन्होंने फ्रेम ऑफ पीस एग्रीमेन्ट पर साईन किया। अब समाज में बहुत उत्सुकता है कि अगर अन्य समुह भी आ जाएं तो समाज में शांति आ जाएगी, समृध्दि का रास्ता खुल जाएगा, नगाण्लैड शांत हो जाएगा। और नगालैंड शांत हो गया तो पूरा पूर्वोत्तर शांत हो जाएगा।

      अभी मोदी जी ने वहां जो करार किया है उस करार की रूपरेखा क्या है? और इस करार का भविष्य में पूर्वोत्तर पर क्या असर होगा?

वहां के अलगाववादी गुट अपने शस्त्र नीचे रख दें। उनके बहुत सारे गुट हैं। जिसके साथ अभी करार हुआ है। उनके करीब चार हजार से पाच हजार तक सिपाही हैं। वे १५/२० साल से युद्ध कर रहे हैं। हमने सुझाव दिया कि इन लोगों को देश की पुलिस या फौज में योग्य स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने अपने समाज को आगे बढाने के लिए उनके विचार से अभी तक युद्ध किया है। अत: वे केवल उग्रवादी या अलगाववादी हैं ऐसा नहीं सोचना चाहिए।

      क्या आपकी ऐसी धारणा कि पूर्वोत्तर में अब अरुणोदय होगा? सुख, शांति और वैभव के दिन आएंगे?  

सौ फीसदी अरुणोदय होगा। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो सारा हिंदुस्थान विदीर्ण हो जाएगा। आजकल किसी को गुलाम बनाने के लिए किसी से युदध की जरूरत नहीं है। मानसिक रूप से गुलाम बनाने की साजिस पूर्वोत्तर और पूरे भारत में की गई है। हमारी जड़ों को उखाड़कर फेंक दिया गया है।  हमारी संस्कृति को हम नहीं जानते। हमारे समाज की अलग-अलग पध्दतियां हमारी इतनी बड़ी पूंजी है। इनके आधार पर अगर हम चलेंगे तो भारत को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है।

आपने ५० साल में पूर्वोत्तर राज्य के  विकास के लिए अपने तन-मन से योगदान दिया है आज जब आप सिंहावलोकन करते हैं तो अपको क्या दिखाई देता है।  

मैंने विकास के लिए नहीं वरन पूर्वोत्तर को समझने के लिए ५० साल दिए हैं। पूर्वोत्तर को समझने के लिए बहुत अलग-अलग उपक्रम शुरू किए हैं। सील, माय होम इंडिया आदि प्रोजेक्ट हैं। अभी चार विषय मैंने हाथ में लिए हैं। बोलियों का, वहां के जो गुणवंत युवा हैं, उन्हें यहां पर बुलाने का, विद्यार्थियों को विद्यार्थियों से जोड़ने का, संस्थाओं को संस्थाओं से जोड़ने का। ये सभी काम सरकार को दूर रखकर करने हैं। जब संगठन इकट्ठे होंगे तो काम अपने आप आगे बढ़ेगा।

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