सभी सरस्वती उपासकों को नमस्कार,
कभी-कभी लगता है भारतीय समाज कितना उत्सवप्रिय है। हाल ही में गणेशोत्सव सम्पन्न हुआ। दस दिनों तक हर जगह आनंद का वातावरण था। उसके समाप्त होते-होते पंद्रह ही दिन बाद नवरात्रि का त्योहार फिर उसी उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस नवरात्रि उत्सव के समाप्त होते ही अगले पंद्रह दिनों में दीपावली आ जाती है। रौशनी के इस त्यौहार को आम तौर पर भारतीय संस्कृति का बड़ा त्यौहार माना जाता है। ध्यान दें, बुद्धि के देवता गणपति की पूजा से प्रारंभ होकर शक्ति की पूजा आराधना कर फिर यह दीपोत्सव मनाया जाता है। देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाने वाली दीपावली अंततः प्रकृति की महान शक्ति की पूजा है। इसका व्यापक उद्देश्य यह है कि उस शक्ति का उपयोग दुष्प्रवृत्तियों के विनाश के साथ- साथ स्वयं और समाज में सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन के लिए भी किया जाए। अप्रत्यक्ष रूप से सामूहिक जन शक्ति का जागरण भी होता है। इसीलिए हमारे त्योहारों में जागरण का विशेष महत्व है।
उत्सव को लेकर महाकवी कालिदास का एक उद्धरण है, ‘उत्सवप्रिया: खलु मनुष्या:’ अर्थात मनुष्य उत्सवप्रिय हैं। दैनंदिन जीवन के तनाव से उत्सव हमें राहत देते हैं। त्यौहार मन में नई उमंग का संचार करते हैं और मन को तरोताजा कर देते हैं। हमारे त्योहारों को सामाजिक रूप देकर मनाया जाए और इसके पीछे की सकारात्मक भावना को जान लिया जाए तो निश्चित रूप से संपूर्ण मानव जाति को इसका लाभ होगा।
हर साल दीपावली का त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह से साथ मनाया जाता है। अंधेरी रात में जलाया वह छोटा सा दीप थोड़ी उम्मीद जगा कर मनुष्य के मन के आत्यंतिक घने अंधेरे में भी थोड़ी उम्मीद जागा देता है। हमारे देश में मनाए जाने वाले त्यौहार सांस्कृतिक रूप से बहुत गहरे विचार लिए हैं। क्या ऐसे त्यौहारों का अर्थ सिर्फ उत्सव मनाना ही हो सकता है? हम ज्ञान को प्रकाश और अज्ञान को अंधकार कहते हैं, इसी अर्थ में जब भी समाज में नकारात्मकता बढ़ती है, मनुष्य सत्य, सभ्यता, चरित्र निर्माण से दूर होने लगता है, दुराचार, पाप, स्वार्थ सर्वत्र फैलने लगता है तो उसे भी अज्ञानता का अंधकार ही मानना चाहिए। साथ ही मनुष्य की वृत्ति, स्मृति, दृष्टि, क्रिया, कर्म, संकल्प, स्वभाव, संस्कार की आसुरी प्रवृत्ति को समाप्त कर उसमें दैवी गुणों की स्थापना करना ही सबसे बड़ा कार्य है।
यह विचार सृजन करनेवाला दीपावली का पर्व हमें जागृति की ओर ले जाता है। क्या सच में त्योहार से हमारे अंदर कोई बदलाव आएगा? अज्ञान की नींद से स्वयं को जगाना ही जागरण है। क्या ये जागरण सिर्फ त्योहार के दिनों तक ही होने चाहिए? हमारा विश्वास है कि त्योहार के दिनों में हम मन, वाचा, कर्म से पवित्र रहते हैं। तो क्या यह पवित्रता भी केवल त्योहारों के दिनों में ही रहनी चाहिए? हर दिन क्यो नहीं? दीपावली पर दीपक जलाने का अर्थ यह है कि मेरी बौद्धिक लौ सदैव जागृत रहे। हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश सदैव रहना चाहिए, क्योंकि यह बौद्धिक लौ जलती रही तो ही व्यक्ति और समाज के लिए हितकारी होगी।
भारतीय संस्कृति में इस शक्ति को बारंबार जागृत करते रहने के लिए उत्सवों की योजना बनाई गई है। इन सभी उत्सवों के माध्यम से व्यक्ति के, समाज के दोष दूर होते हैं, अहंकार नष्ट होता है और नित्य आनंद की अनुभूति होती है। इसी कारण दीपावली का उत्सव शक्ति को बढ़ावा देने वाला उत्सव होता है। सभी त्यौहार और उत्सव हर साल एक जैसे ही होते हैं। फिर भी, प्रत्येक वर्ष का उत्साह नया होता है। यह व्यक्ति या समाज में ऊर्जा और आत्मविश्वास बढ़ाने का एक बड़ा स्रोत होता है। इसीलिए हर साल मनाया जाने वाला कोई भी त्यौहार पिछले साल की तुलना में अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसा लगता है जैसे कोई जागृति आ गई है।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद छिड़ा युद्ध कई महीनों से जारी है। दूसरी ओर, अजरबैजान और आर्मेनिया युद्ध की स्थिति में हैं। इधर एशिया प्रशांत क्षेत्र में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया और जापान के बीच कूटनीति का माहौल बना दिया है। विश्व महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा से ग्रस्त चीन ने एक बार फिर भारत, जापान और ताइवान के साथ सीमा विवाद शुरू कर दिया है। विशेषत: ताइवान के विलीनीकरण को लेकर चीन निकट भविष्य में बड़ा कदम उठा सकता है। अमेरिकी थिंक टैंक के मुताबिक चीन भारत पर भी हमला कर सकता है। इन सभी के कारण विश्व में शांति असुरक्षित है और खतरे फिर से बढ़ने लगे हैं। जहां शांतिप्रिय देश विभिन्न बहुराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से इस युद्ध जैसे माहौल में तनाव को कम करने की कोशिश कर ही रहे थे कि इजराइल और फ़िलिस्तीन के बीच भीषण संघर्ष भड़क गया है। हमास के घातक हमले के बाद इजराइल ने युद्ध की घोषणा कर दी। हमास के आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट किया जा रहा है। इस हमले के बाद निर्माण हुई स्थिति ने वैश्विक शांति प्रक्रिया में एक नई दरार पैदा कर दी है।
यह खतरे की स्थिति है। अगर इस खतरें को भांप कर जल्द कदम नहीं उठाए गए तो इसके भयानक वैश्विक परिणाम निकल सकते हैं। यह आण्विक युग है। विश्व के बड़े-बड़े राष्ट्रों के पास आण्विक हथियार हैं। सम्पादकीय लिखते समय तक इसराइल और हमास के युद्ध के कारण निर्माण हुई स्थिति हमारी मानव जाति को विनाश की कगार तक ना ले जाए, इस बात का भय सभी के मन में है। आण्विक अस्त्रों का अहंकार और हमास एवं हिजबुल्लाह जैसी जिहादी मानसिकता के उन्माद में कहीं इस युग का सर्वनाश तो नहीं हो जाएगा?
वर्तमान वैश्विक तनाव की स्थिति को देखते हुए हमें समझना चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामासिक, सांस्कृतिक व्यक्तित्व का विकास किया है, भारत के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन-से हैं और उसकी एकता कहां समाहित है। भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय संस्कृति, कला-कौशल के विभिन्न आयामों का मौलिक योगदान है। यदि हम इस बुनियादी बात को समझ पाते हैं तो हम भारत को समझने में सफल रहेंगे।
दुर्भाग्य की बात है कि हम इस सांस्कृतिकता को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ रहे हैं। यह कार्य राजनीति से नहीं, शिक्षा और साहित्य के द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए। इस दिशा में साहित्य एवं पत्रकारिता के माध्यम से कई प्रयास होते रहते हैं। इन्हीं प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान वैश्विक युद्धजन्य स्थिति में भी हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के दिपावली विशेषांक के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुति का विनम्र प्रयास हम कर रहे हैं। यह विशेषांक विद्वानों के पढ़ने के लिए तो है ही, साथ ही जो भारतीय संस्कृति को समझना तो चाहते हैं, किन्तु, उनके पास सैकड़ों ग्रन्थों को पढ़ने का समय नहीं है, जो अनुसंधान और खोज की नीरस भाषा से भी घबराते हैं। ऐसे ही पाठकों को भी यह सांस्कृतिक दीपावली विशेषांक समर्पित है। स्वतन्त्रता के बाद से देश में संस्कृति और सांस्कृतिक एकता के नारे बड़े जोर से लगाए जा रहे हैं, किन्तु, पाठकों के सामने ऐसी सामग्री का अभाव रहा है, जिससे पाठक यह समझ सकें कि भारत की संस्कृति है क्या? विभिन्न कला, कौशल क्या है? कैसे-कैसे वह बढ़ी और आगे वह कौन से रूप ले सकती है? भारत की संस्कृति है क्या? सांस्कृतिक भारत का अर्थ क्या है? शब्दकोश उलटने पर इन सारे सवालों की अनेक परिभाषाएं मिलती हैं। उन सारी परिभाषाओं का सार निकाले तो यह बात सामने आती है कि भारत में जो भी सर्वोत्तम बातें जानी या कही गई हैं, या हो रही है, उनसे अपने आपको परिचित करना संस्कृति है। इसी दिशा में समर्पित हिंदी विवेक का यह दीपावली विशेषांक है।
दिपावली विशेषांक में प्रकाशित यह सामग्री सजीव है। हमारी आशा है कि पाठक जब इस विशेषांक को पढेंगे, तब सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक भारत की प्रतिमा उनके अंतर्मन की गहराई तक चली जाएगी। इतनी विशाल भारतीय संस्कृति को एक विशेषांक के माध्यम से समझाना कदापी संभव नहीं है। हम यह भी मानते हैं कि यह दिपावली विशेषांक पूर्णत्व तक नहीं पहुंचा है। इस दीपावली विशेषांक को पाठकों के हाथ अब इस आश्वासन के साथ दे रहे हैं कि यह अपूर्णता हिंदी विवेक के भविष्य में होने वाले सृजनात्मक प्रयासों से पूरी होती रहेगी। यही अपूर्णता तो साहित्य का नित्य धर्म है, जो नूतन साहित्य का सृजन करती है।
राष्ट्र के लिए स्वैच्छिक सेवा करते हुए लंबे समय से पीढ़ी दर पीढ़ी स्वयंसेवकों ने स्वयं को संघ के माध्यम से राष्ट्र कार्य के लिए समर्पित किया है। प.पू. डॉक्टर हेडगेवार प्राय: कहा करते थे कि हमें इसका भी विश्लेषण करना चाहिए कि हम क्यों विदेशी आक्रांताओं का सामना नहीं कर पाए और क्यों बार-बार पराधीन होते रहे। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि हम अपनी सांस्कृतिक एकता और भारतीय अस्मिता को भूल गए थे। उसका पुनः स्मरण कराना और भारत के अतीत को उसके भविष्य के साथ जोड़ना ही संघ का एकमात्र उद्देश्य है। गत 98 वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कार्य के माध्यम से यही संदेश जन-जन तक पहुंचाने का प्रामाणिक व प्रभावी प्रयास किया है। राष्ट्र समर्पित संघ कार्य इस दसहरा को 98 वर्ष पूर्ण कर अपनी शताब्दी की ओर बढ़ रहा है। विगत पंद्रह वर्षों से हिंदी विवेक मासिक पत्रिका इसी राष्ट्रीय विचारधारा से प्रेरित होकर कार्य कर रही है। राष्ट्रीय विषयों पर विशेषांक प्रकाशित करना और पाठकों को सजक करना हिंदी विवेक की अब तक की परंपरा रही है।
दीपावली विशेषांक की पूर्तता के लिए हिंदी विवेक को विद्वानों और लक्ष्मी पुत्रों का बहुत बड़ा सहयोग प्राप्त हुआ है। इस विशेषांक के सारगर्भित आलेख देश के विभिन्न क्षेत्र के मान्यवर विद्वान लेखकों द्वारा प्राप्त हुए हैं। इन आलेखों को प्रकाशित करने के लिए हिंदी विवेक के शुभचिंतक लक्ष्मीपुत्रों ने विज्ञापन के रूप में हमें अर्थपूर्ण सहयोग दिया है। इन मान्यवरों के सहयोग के बिना यह विशेषांक देशभर के लाखों पाठकों तक पहुंचाना कठिन था। इस कठिनाई को सुलभ करने में जिन उद्योगपतियों ने हमें योगदान दिया है, उन सभी हितचिंतकों का हिंदी विवेक परिवार हृदय से आभारी रहेगा। श्रम शक्ति एवं धन शक्ति हिंदी विवेक के लेखक एवं उद्योगपतियों ने हमें विपुल स्वरुप में अर्पित की है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इस संसार में व्याप्त अच्छाइयां इन जैसे लोगों की ही देन है। हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के सभी पदाधिकारियों, कर्मचारियों, अनुवादकों तथा मुद्रित शोधन करने वालों के विशेष परिश्रमों से साकार हुआ यह दीपावली विशेषांक हमारे सुधी पाठकों को सांस्कृतिक भारत समझाने की दृष्टि से एक छोटा सा प्रयास है। आशा है कि सम्पूर्ण देशभर के सरस्वती उपासकों को निश्चित रूप में हमारा यह प्रयास पसंद आएगा। हमारे सभी लेखक, विज्ञापनदाता, सभी पदाधिकारी, कर्मचारी और इस दीपावली विशेषांक के निर्माण कार्य में सहयोग देने वाले सभी शुभचिंतकों को विनम्र नमन करता हूं। साथ ही सभी को दीपावली एवं नूतन वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं प्रदान कर मेरी लेखनी को विराम देता हूं।
पुनः नमस्कार।