तकनीक के कुछ लाभ हैं तो हानि भी कम नहीं है। डायनामाइट जैसे विस्फोटक का आविष्कार हुआ था पहाड़ में सुरंगें बनाने जैसे उपयोगी काम के लिए, लेकिन इस आविष्कार ने संहार का रास्ता भी खोला। कम्प्यूटर-इंटरनेट से लेकर ऐसी अनेक खोज हैं जो हमारी सहायता के लिए अस्तित्व में आईं, लेकिन उससे हुई हानि हमेशा चर्चा में रहे हैं। यही सब कुछ चैट जीपीटी के संदर्भ में भी सामने आ रहा है।
इंसान और मशीन में जब शक्लोसूरत के फर्क मिटा डाले गए तो एक ही चीज़ बची थी जिसके बल पर जड़ (मशीन) और चेतन (इंसान) में अंतर किया जा सकता था। वह थी हमारी चेतना यानी बुद्धि। मशीनों को इंसानी चेतना के स्तर पर लाने का काम तो बहुत पहले शुरू हो चुका था, लेकिन इक्कीसवीं सदी के दो दशक बीतते-बीतते वह घड़ी आ ही गई, जब लगने लगा कि बुद्धि (इंटेलीजेंस) के मामले में मशीनें हम इंसानों से पीछे नहीं रहेंगी। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) उस स्तर पर आ चुका है, जहां यह फर्क करना मुश्किल हो गया है कि जो सामग्री, लेख, कलाकृति टीवी एंकर के सामने या हमारी आंखों के सामने डिजिटल रूप में मौजूद है, उसकी रचयिता मशीन है या इंसान। अंतर मिटाने के इस काम पर पक्की मुहर लगाई है चैटजीपीटी नामक उस इंतजाम ने जिसे दुनिया के सामने आए अभी बमुश्किल एक साल हुआ है। इतनी छोटी सी अवधि में चैटजीपीटी या कहें कि चैटबॉट (एक तरह का सॉफ्टवेयर) की शक्ल में एआई ने जो तूफान दुनिया में उठाया है, उसने कुछ टेढ़े सवाल भी पैदा किए हैं। कुछ लोगों की राय है कि यह गूगल आदि सर्चइंजनों की छुट्टी कर सकता है और इंसानी बुद्धि को हाशिये पर डालने के साथ-साथ रोजगारों का अकाल भी पैदा कर सकता है। हालांकि कुछ इसे बड़े काम की चीज मान रहे हैं और कह रहे हैं कि एआई का असली दौर तो अब यानी 2023 से शुरू हो रहा है।
हमारे ज्ञान-विज्ञान को चुनौती
एआई और चैटजीपीटी को लेकर मची वैश्विक हलचल के केंद्र में यह आशंका सबसे बड़ी है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब इंसान हर काम से बेदखल कर दिए जाएंगे और उनकी जगह अक्लमंद मशीनें ले लेंगी। पर मशीनें तो कायनात ने नहीं बनाईं। उन्हें इंसानों ने ही गढ़ा है। यानी उन्हें हमने अपने लिए बनाया है। वैसे भी सदियों से इंसान की चाहत यह भी रही है कि मशीनें उतनी ही समझदार हो जाएं, जितने इंसान होते हैं। वे तेजी से काम करें, मेहनत करें, दस-सौ या हजार इंसानों के बराबर काम अकेले कर जाएं- वह भी बिना थके और बिना छुट्टी लिए। मशीनों से कभी कोई शिकायत भी सुनने को नहीं मिलती। हालांकि उन्हें कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के नाम पर ज्ञान और जानकारी अर्थात डेटा के जो रट्टे लगवाए गए हैं, उनकी सीमा एकाध अपवादों को छोड़कर इंसान की गुलामी के दायरे में ही खत्म हो जाती है। लेकिन यह खतरा तो है कि डेटा के बल पर समझदारी हासिल करती मशीनें हमारे कंट्रोल से बाहर जा सकती हैं। पर वे हमारे इशारे पर ही नाचती रहें, हमारे समाज, हमारे ज्ञान-विज्ञान को कोई चुनौती न दे सकें, इसके लिए पूरी दुनिया सचेत हो रही है। इस चेतना का अहसास हाल में इस साल की शुरुआत में भारत सरकार द्वारा पेश केंद्रीय बजट में भी मिला था, जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एआई और अन्य आधुनिक तकनीकों में देश को तरक्की के रास्ते ले जाने वाले रोडमैप की एक झलक दी थी।
सहायक या नौकरियों के लिए खतरा
बहरहाल, आज भी जिस तकनीक की सबसे ज्यादा चर्चा है और जिस पर तमाम निजी कम्पनियों से लेकर सरकारों का भी फोकस है, वह निश्चित रूप से एआई और चैटजीपीटी जैसी तकनीकें हैं। एआई का सारा दारोमदार इस पर टिका हुआ है कि इंसानी दिमाग की तरह सोचने और काम करने की खूबी से लैस मशीनें जब हमारे आसपास होंगी, तो क्या वे हमारे सहायक के रूप में काम करेंगी या फिर हमारे लिए खतरा बन जाएंगी। एआई की बदौलत समझदार हो रही मशीनों की ओर से चुनौती यह है कि इंसान और मशीन को एक दूसरे का प्रतिस्पर्धी या विरोधी माना जाए अथवा एक-दूजे का पूरक। इस सवाल के साथ एक बहस बड़े जोरशोर से दुनिया में उठी है कि कहीं इंसान मशीनों से हार न जाएं। इसमें भी सबसे बड़ा खतरा कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) से लैस मशीनों के हाथों अपने रोजगार यानी नौकरियां गंवा देने का है। निश्चय ही इसका एक सत्य यह है कि कृत्रिम बुद्धि से लैस मशीनें इंसानों से रोजगार छीन लेंगी, इस आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। चीन में कई कंपनियां बढ़ती श्रम लागत के मद्देनजर उत्पादन का काफी कामकाज रोबोट्स और एआई से लैस मशीनों-कंप्यूटरों के हवाले कर रही हैं। भारत में भी आईटी सेक्टर की 10 फीसदी नौकरियों पर ऑटोमेशन यानी खुद काम करने वाली मशीनों के कारण खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग, मशहूर कारोबारी एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक कह चुके हैं कि आने वाले वक्त में इंसानों को सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है। एलन मस्क ने कभी जिस ‘ओपन एआई’ परियोजना में पैसा लगाया था (फिलहाल वह इससे बाहर हो चुके हैं), आज उसके उत्पाद- चैटजीपीटी ने पूरी दुनिया में सनसनी मचा रखी है। कहा जा रहा है कि इसके असर से लेखन, पत्रकारिता और कोड लेखन आदि तमाम रोजगार खत्म ही हो जाएंगे। एक दावे के मुताबिक हमारे देश में आज अगर आईटी सेक्टर हर साल दो से ढाई लाख नौकरियों का सृजन करता है, तो इनमें से 25 से 50 हजार नौकरियां ऑटोमेशन के कारण जल्दी ही खत्म हो जाएंगी। हाल के अरसे में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर, एमेजॉन, इंफोसिस आदि कंपनियों में हुई छंटनी प्रक्रिया को इससे जोड़कर देखें तो हमें दावे की हकीकत का अहसास हो जाएगा। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। दुनिया में कैल्कुलेटर और कंप्यूटरों के आने पर भी रोजगारों के खात्मे की आशंकाएं थीं, लेकिन कंप्यूटर की वजह से नए रोजगार पैदा हुए और कामकाज का दायरा बढ़ा। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल बढ़ने से चिकित्सा में सलाह मिलने, ऑनलाइन ट्रेनिंग देने से लेकर कई किस्म के कामकाज चुटकियों में हल हो सकते हैं, साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जानकारों के लिए नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। अत: नतीजा यह निकल सकता है कि क्लर्की (बाबूगीरी) से जुड़े तमाम तरह के काम (जहां दिमाग नहीं, बल्कि ठप्पा लगाने जैसे मशीनी काम संपन्न कराए जाते हैं) एआई से लैस मशीनों के हवाले हो जाएं, लेकिन एआई और ऑटोमेशन से जुड़े नए रोजगार पैदा हो जाएं।
अर्थव्यवस्था का असली आधार
आज की तारीख में, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के असर से किसी भी देश या समाज का अलग रह पाना संभव नहीं है। हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में चूंकि इसका दखल बढ़ रहा है, इसलिए खुद सरकार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल और इसके दायरे तय करने को लेकर गंभीर है। देश का वाणिज्य मंत्रालय इस संबंध में वर्ष 2017 में एक टास्क फोर्स गठित कर चुका है। यह टास्क फोर्स सरकार को सलाह देगी कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का भारतीय अर्थव्यवस्था में समावेश कैसे किया जाए। भारत में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर चल रहे कई प्रयोगों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसे लेकर काफी जागरूकता आई है, पर इस बारे में पड़ोसी देश चीन की बढ़त का उल्लेख करना जरूरी है। चीन की घोषणा है कि अगले एक दशक के भीतर वह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के मामले में एक महाशक्ति बन जाना चाहता है। इस बारे में चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने कहा है कि इंटरनेट, बिग डाटा और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी चीजें ही अब अर्थव्यवस्था का असली आधार हैं, इसलिए अब चीन का ध्यान इन चीजों पर है। चीन का दावा है कि 2030 में चीन की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंडस्ट्री 150 अरब डॉलर की होगी जो चीन की जीडीपी की 26 प्रतिशत होगी, जबकि इसी दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में से 14.5 फीसदी हिस्सा ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंडस्ट्री का हो पाएगा। ऐसे में हो सकता है कि हम मशीनों से उस तरह तो न हारें, जिसे असल में हार कहा जाता है, पर यदि चीन जैसे मुल्कों में एआई में बढ़त हमें पछाड़ दे, तो उसे हम क्या कहेंगे। इसलिए जरूरत इस तैयारी की है कि हम इंसान मशीनों पर हर हाल में अपना कंट्रोल बनाए रखें, भले ही समझदारी के मामले में वे हम से बीस ही क्यों न साबित हो रही हों।
आज से 20-25 साल पहले की ही बात है जब यह दावा किया जाता था कि कंप्यूटर, इंटरनेट के विस्तार और गूगल सर्च इंजन जैसे आविष्कार मौलिकता को समाप्त करते हुए कई तरह की नौकरियों के लिए काल बन जाएंगे। लेकिन विज्ञान की इस तरक्की को अभिशाप ठहराने की कोशिश करने वालों ने देखा है कि इन वैज्ञानिक आविष्कारों और क्रांतियों के बल पर कामकाज आसान हुआ है और नए रोजगारों का सृजन हुआ है। इसलिए चैट जीपीटी के आविष्कार को लेकर बहुत आशंकित होना उचित नहीं लगता। आज वॉशिंग मशीन से लेकर दुनिया भर की मशीनें हमारे आसपास हैं, जो एआई की बदौलत कई जटिल काम सीखकर उनमें इंसानों पर अपनी श्रेष्ठता साबित कर रही हैं। पर किसी कंप्यूटरीकृत कामकाज में मशीन का आगे निकलना इतना खतरनाक नहीं समझा गया, जिससे कि इंसान मशीन के सामने बौना साबित हुआ हो। असली खतरा नौकरियों का ही है। इसका एक सच यह है कि दुनिया भर में कई कंपनियां बढ़ती श्रम लागत के मद्देनजर उत्पादन का काफी कामकाज रोबोट्स और एआई से लैस मशीनों-कंप्यूटरों के हवाले कर रही हैं। भारत में भी आईटी सेक्टर की 10 फीसदी नौकरियों पर ऑटोमेशन यानी खुद काम करने वाली मशीनों के कारण खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। इंफोसिस के पूर्व अधिकारी टीवी मोहनदास पई के मुताबिक आज अगर आईटी सेक्टर हर साल दो से ढाई लाख नौकरियों का सृजन करता है, तो इनमें से 25 से 50 हजार नौकरियां ऑटोमेशन के कारण खत्म हो जाएंगी। वैज्ञानिक स्टीफन, मशहूर कारोबारी एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक कह चुके हैं कि आने वाले वक्त में कारखानों, घरों और दफ्तरों में कामकाजी इंसानों को सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है। यह अकारण नहीं है कि माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनी और एलन मस्क जैसे कारोबारी ‘ओपनएआई’ की उन परियोजनाओं में खूब पैसा लगाते रहे हैं, जिनसे अक्लमंद मशीनें तैयार की जाएंगी। संकेत साफ है कि अगर इंसान ने खुद को समझदार मशीन से ज्यादा अक्लमंद साबित नहीं किया, तो उसके हाथ का काम छिनने वाला है।
संदेह नहीं है कि तकनीक का जो पहलू दुनिया को हमेशा परेशान करता रहा है, वह यही है कि अगर उससे कुछ फायदे हैं तो नुकसान कम नहीं है। डायनामाइट जैसे विस्फोटक का आविष्कार हुआ था पहाड़ में सुरंगें बनाने जैसे उपयोगी काम के लिए, लेकिन इस आविष्कार ने संहार का रास्ता भी खोला। कंप्यूटर-इंटरनेट से लेकर ऐसी तमाम ईजादें हैं जो हमारी मदद के लिए अस्तित्व में आईं, लेकिन उनके नुकसान हमेशा चर्चा में रहे हैं। यही सब कुछ चैटजीपीटी के संदर्भ में सामने आ रहा है। जैसे इसकी एक समस्या यह है कि इंसानों की तरह प्रतिक्रिया देने के क्रम में ऐसे जवाब दे सकता है जो मनुष्यों को सही लगते हैं, लेकिन हकीकत में वे गलत होते हैं। खुद ओपनएआई (चैटजीपीटी की निर्माता कंपनी) ने बताया है कि कुछ मामलों में चैटजीपीटी गलत या निरर्थक उत्तर दे सकता है क्योंकि सही उत्तर या सत्य कई संदर्भों में उनसे अलग हो सकता है, जिनके बारे में इसे पहले से अलग तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो। असल में कोई उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि इससे सवाल पूछने वाला व्यक्ति किसी समस्या के बारे में क्या जानता है और वह सवाल पूछने के लिए कौन-से कीवर्ड चुनता है, बजाय इसके कि चैटजीटीपी क्या जानता है। बेशक, चैटजीपीटी नामक यह एआई चैटबॉट कुछ गलत, नकारात्मक और निरर्थक समाधान देगा लेकिन इसे तैयार करने में लगे इंजीनियर और शोधकर्ता यह उम्मीद करते हैं कि आखिर में कुछ तो सकारात्मक होगा। हालांकि सबसे सकारात्मक तो यह होगा कि यदि चैटजीपीटी की यह तकनीक दुनिया से हजारों रोजगारों के खात्मे की बजाय नई नौकरियों के सृजन का रास्ता खोल दे। असल और नकल की बुद्धि का फर्क मिटाने वाली तकनीक मेधा के विकास और रोजगारों की संख्या बढ़ाने में मददगार साबित होगी, तो फिर इसके विरोध की आवाजें अपने आप शांत हो जाएंगी।
अभिषेक कुमार सिंह