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संघ जागरण का स्वाभाविक परिणाम

संघ जागरण का स्वाभाविक परिणाम

by अमोल पेडणेकर
in विशेष, संघ, संस्कृति, सामाजिक, सांस्कृतिक गोवा विशेषांक दिसम्बर २०२३
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राष्ट्रीय एवं सामाजिक प्रेरणा से जागृत होकर गोवा के विभिन्न क्षेत्रों में रा. स्व. संघ द्वारा सेवा कार्यों का जाल विस्तार से बुना गया, जिसका सकारात्मक परिणाम समाज के विभिन्न क्षेत्र में महसूस हो रहा है।

वर्तमान में गोवा में हिंदुत्ववादी विचारों वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। शुरुआत में गोवा राज्य में 4 विधायकों के साथ खाता खोलने वाली बीजेपी आज सत्ता में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक और अपने कार्य की निरंतरता के कारण म्हापसा नगर संघचालक के पद पर रहे संघ कार्यकर्ता स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर तीन बार गोवा के मुख्यमंत्री चुने गए। देश के रक्षा मंत्री बनने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त हुआ। केंद्रीय राज्य मंत्री श्रीपाद नाईक ने अटल बिहारी सरकार में भी और अब नरेंद्र मोदी के सरकार में गोवा का प्रतिनिधित्व भी किया है। श्रीपाद नाईक भी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। राजेंद्र आरलेकर हिमाचल के राज्यपाल रहे और अब बिहार के राज्यपाल हैं। गोवा राज्य में भाजपा का कार्य प्रारंभ होने से लेकर अब तक उन्होंने संगठनात्मक वृद्धि के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भाजपा को सरकार बनाने के लिए आवश्यक मतों का बल गोवा की जनता दे रही है। पहले यह मत था कि भाजपा को इस ईसाई-केंद्रित क्षेत्र से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, लेकिन विगत 4 दशकों में हुए हिंदुत्ववादी विचारों के ध्रुवीकरण ने गोवा को सुखद झटका दिया है। गोवा की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। गोवा के राजनीतिक इतिहास में हुए परिवर्तन की यह महत्वपूर्ण घटना आत्मविश्वास बढ़ाने वाली है।

वर्तमान में भाजपा तीन दशकों से गोवा में गतिशील है। हालांकि अन्य लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इतने कम समय में वह शक्तिशाली कांग्रेस को धूल चटा देगी और इतनी शानदार सफलता हासिल कर सकेगी। बीजेपी की सफलता के पीछे जो अत्यंत महत्वपूर्ण बात रही है, वह है राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का प्रचार-प्रसार। संघ परिवार के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय विचारों को फैलाने के लिए कड़ी मेहनत की है। कोई भी जानकार यह नहीं कहेगा कि यह राजनीतिक परिवर्तन सिर्फ भाजपा की लहर के कारण हुआ है। समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में हिंदुत्व का विचार प्रसारित करने में संघ परिवार के सभी आयामों के कार्यकर्ताओं ने अत्यंत कठोर परिश्रम किए हैं। राजनीतिक क्षेत्र में कार्यकर्ताओं ने उपहास का सामना करते हुए बहादुरी से, दृढ़तापूर्वक, लगातार, निष्पक्षता और निरंतरता से काम किया है। इस परिश्रम की बदौलत यह सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन गोवा में दिखाई दे रहा है।

अन्य क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर आंदोलन और अभियान चलाए गए हैं। संघ के कार्यकर्ताओं ने भी समाज के अलग-अलग संगठनों को साथ जोड़कर प्रभावी जनसंपर्क और जन प्रबोधन करने का कार्य किया। इसी के कारण बूंद-बूंद से सागर बनता गया और पिछले पांच दशकों से नियमित हो रहा संघ कार्य इस परिवर्तन का मुख्य कारण है। संघ का उद्देश्य कभी भी सत्ता प्राप्ति नहीं रहा, फिर भी समाज में जो वैचारिक परिवर्तन हुआ उसके आधार पर यह परिणाम निकला है। हिंदुत्व का ऊर्ध्वगमन कोई क्रांति नहीं है। यह एक स्वाभाविक, सकारात्मक विकास है। यह एक दिशा में, एक लक्ष्य के साथ किए गए सामूहिक कार्यों का परिणाम है। गोवा के जीवन को आंदोलित करने वाली रा.स्व.संघ द्वारा की गई विभिन्न गतिविधियों और जन आंदोलनों से यह परिवर्तन संभव हुआ है।

गोवा मुक्ति के बाद पैदा हुई पीढ़ी अब 60 साल की है। लेकिन राष्ट्रीय गौरव, संस्कार, सामाजिक जागरूकता,

निःस्वार्थ भाव से सामाजिक कार्य करने का जुनून, सामाजिक कार्य करने के लिए आवश्यक स्वभाव पैदा करने में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था असफल रही। इस पृष्ठभूमि में, गोवा मुक्ति के 6 महीने बाद, जून 1962 में गोवा की धरती पर संघ विचारों के पौधे रोपे गए। सावंतवाड़ी के भालचंद्र सातार्डेकर पणजी आने वाले पहले संघ प्रचारक थे। उन्होंने 1971 में पणजी के श्री महालक्ष्मी मंदिर में पहली संघ शाखा लगाई। 1971 से अब तक गोवा राज्य के संघ कार्य ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।

1971 में दुर्गानंद नाडकर्णी तत्कालीन सावंतवाड़ी-गोवा जिले के प्रचारक बनकर आये। 1971 से 1975 के बीच, उनकी विशिष्ट व्यक्ति-उन्मुख कार्यशैली के कारण युवा कार्यकर्ताओं का एक कैडर उभरा, जिन्होंने धीरे-धीरे खुद को मजबूत बुद्धि और राष्ट्रीय आदर्शों के लिए प्रतिबद्ध किया। सन 1975 इन कार्यकर्ताओं की मानसिकता की परीक्षा का समय भी था। इन युवा कार्यकर्ताओं ने आपातकाल के संकट का डटकर मुकाबला किया। गोवा की मुक्ति के बाद की अवधि में आया आपातकाल का संकट राष्ट्रवादी विचारों के स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ताओं के लिए भविष्य के कार्य की नींव बना।

इसके बाद मजबूत वैचारिक आधार और स्वयंसेवकों के प्रयासों के आधार पर संघ का कार्य अत्यंत गति से फला-फूला। एक समय पूरे महाराष्ट्र में केवल जलगांव और गोवा जैसे दो जिलों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सैकड़ों शाखाएं पार करने का गौरव गोवा को प्राप्त हुआ था। 1977 से 1980 तक के 5 वर्षों में गोवा का संघ कार्य क्षितिज तक पहुंचा। समाज से जुड़े हुए विभिन्न कार्यों के लिए संघ की ओर से कार्यकर्ता दिये गये। विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय शिक्षा मंडल, गोवा विद्या प्रतिष्ठान, महिलाओं के क्षेत्र में राष्ट्र सेविका समिति, श्रमिकों के क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ और हिंदू एकजूट इन प्रमुख संस्थाओं में कार्य करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ता दिये। 1990 के बाद भारतीय महिला शक्ति, सहकार भारती, विद्या भारती, केशव सेवा साधना जैसी संस्थाओं ने जोर पकड़ना शुरू किया और अपने कार्यों के द्वारा स्थापित हुए।

1988 में संघ के प्रमुख कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी के विस्तार हेतु कार्य करने की आज्ञा दी गई। मनोहर पर्रिकर, श्रीपाद नाइक, लक्ष्मीकांत पार्सेकर, राजेंद्र आर्लेकर जैसे प्रमुख संघ कार्यकर्ताओं को संघ की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया और वे भाजपा में शामिल हो गए। जो भाजपा 1989 के चुनाव में मात्र कुछ सौ वोट पाकर उपहास की पात्र थी, मात्र 10 वर्षों में ही प्रमुख राजनीतिक विपक्ष बनकर उभरी और बाद में सत्ता में आयी। तब से अब तक भारतीय जनता पार्टी निरंतर गोवा की सत्ता में है। हिंदुत्व एवं राष्ट्रीय विचारों को राजनीतिक शक्ति में परावर्तित करने के लिए कई संघ स्वयंसेवकों ने अथक प्रयास किए। गोवा में संघ परिवार द्वारा निरंतर किए गए आंदोलन, गतिविधियों और कार्यक्रमों के कारण यह सब संभव हुआ है।

कांग्रेस सरकार ने वास्को-डी-गामा, वह समुद्री डाकू, जिसने गोवा को पुर्तगाली दासता का मार्ग दिखाया और गोवा के पहले गवर्नर आफोंस जिन्होंने मीरामार के चौक में अमानवीय नरसंहार को अंजाम दिया था, उनकी स्मृति में बहुत बड़ा महोत्सव आयोजित करने की योजना बनाई थी। इस बात का विरोध संघ स्वयंसेवक एवं स्थानीय सामाजिक संस्थाओं ने किया था। संघ के कई युवा स्वयंसेवक उन देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेें।

पुर्तगालियों द्वारा एक महाकाव्य कविता के रूप में रचा गया, जिसमें भारतीयों और एशियाई लोगों को जानवरों के रूप में संदर्भित किया गया। लुझीयदश ग्रंथ के कवि लुई द कारमाईस की एक मूर्ति, गोवा मुक्ति के कई वर्षों बाद तक पुराने गोवा में थी। संघ स्वयंसेवकों ने भी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ विरोध प्रदर्शन में जमकर भाग लिया। यह विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे इतना उग्र हो गया कि गोवा विधान सभा में विधायकों को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने और मूर्ति को वहां से संग्रहालय में लाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

वास्को-डी-गामा द्वारा भारत की तथाकथित खोज को 500 वर्ष पूर्ण हो रहे थे। इस उपलक्ष्य में कांग्रेस सरकार और पुर्तगाल का समर्थन करने वाले लोग एक विशाल उत्सव आयोजित करने के लिए एक साथ आए थे। संघ के स्वयंसेवक और स्वतंत्रता सेनानी संगठनों ने कांग्रेस सरकार के फैसले के खिलाफ आवाज उठाई। जगह-जगह देशभक्त नागरिक समिति की शाखाएं गठित की गईं, सरकार को चेतावनी देने के लिए पणजी के आज़ाद मैदान में एक बड़ा ‘निर्धार मेला’ आयोजित किया गया, स्वतंत्रता सेनानियों का एक प्रतिनिधि मंडल प्रधान मंत्री और गृह मंत्री से मिलने के लिए दिल्ली गया। आंदोलन इतना प्रबल हो गया कि केंद्र सरकार और गोवा सरकार दोनों को अपना उत्सव रोकना पड़ा। गोवा के राष्ट्रीय विचारों से जुड़े संगठित लोगों के लिए यह एक बड़ी जीत थी। पूरे गोवा से संघ कार्यकर्ताओं बड़ी संख्या में इस आंदोलन में सहभागी हुए थे।

गोवा पूर्व का रोम है, इस धारणा को लेकर गोवा के सार्वजनिक जीवन को ‘स्वच्छंदी, शराबी और मस्तीबाज’, दिखाने का प्रयास हो रहा था। कांग्रेस के राज में गोवा की प्रस्तुति ऐसी की चाहत चरम पर पहुंच गई थी। विरुप ‘कार्निवल’ ही गोवा का प्रमुख उत्सव है, इस बात को सरकारी पैसा बहाकर देशी- विदेशी पर्यटकों के सामने पेश किया जा रहा था। इस विकृत प्रदर्शन को रोकने के लिए विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से ‘कोंकण काशी गोवा’ योजना नामक एक सकारात्मक आंदोलन शुरू किया गया था। फोटो प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं के माध्यम से यह तथ्य जनता के सामने लाने का प्रयास शुरू किया गया कि गोवा मंदिरों और संतों की पवित्र भूमि है। विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित इस योजना को ब्रह्मानंद स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त था।

विश्व हिंदू परिषद के प्रयास से हरमल तट पर स्थित पवित्र परशुराम यज्ञभूमि और भस्म पर्वत, सांस्कृतिक ऐतिहासिक स्थल, अपने पूर्व इतिहास के साथ फिर से जागृत हो गए। अभियानों के माध्यम से राष्ट्रीय जागृति, हिंदुओं के एकीकरण पर आधारित थी। विश्व हिंदू परिषद ने हिंदू अस्मिता की जागरूकता के लिए 1989 से 2005 तक कई राष्ट्रीय अभियान चलाए। इन सभी अभियानों के माध्यम से विश्व हिंदू परिषद या परिवार के अन्य संगठनों के माध्यम से गोवा की मूल प्रतिमा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया। हिंदुत्व में राष्ट्रीयता का जो आशय है, वह लोगों तक पहुंचाने में और समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान का संदेश निर्माण करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं संघ परिवार के इन सभी अभियानों का सार्थक उपयोग हुआ।

1983 में पुणे में सम्पन्न हुए सामाजिक समरसता अधिवेशन में गोवा के दलित समाज के विविध संगठनों का नेतृत्व करने वाले 50 नेता सहभागी हुए थे। सार्वजनिक रूप से ‘हिंदू’ कहे जाने वाले व्यापक हिंदू मंच पर एक साथ बैठने और पूरे व्यापक हिंदू समाज के बारे में सोचने की उम्मीद भरी तस्वीर का अनुभव गोवा के उन दलित नेताओं ने किया था। महात्मा फुले जन्म शताब्दी, डाक्टर बाबासाहब आंबेडकर और डॉ. केशव बळीराम हेडगेवार का स्मृति दिवस उसी दिन आया था।

फरवरी 1995 में संघ परिवार की महिला कार्यकर्ताओं द्वारा राष्ट्रीय विचारों के आधार पर नागेशी में महिला चेतना परिषद का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में गोवा के सभी ग्रामीण क्षेत्र से बडी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं थीं। सम्मेलन ने गोवा में महिलाओं के क्षेत्र में एक नई चेतना का संचार किया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में महिला गठबंधन मजबूत हुए। हिंदू समाज में संघ का विस्तार होने में इसका परिणाम हुआ था। इन सभी शाखाओं को चलाने, विभिन्न स्तरों पर जनसंपर्क करने और समाज के सहयोग से हिंदू संगठन के लिए विभिन्न गतिविधियों को चलाने के लिए संगठनात्मक संरचना में उत्तर और दक्षिण गोवा नामक दो जिले शामिल हैं। विश्व हिंदू परिषद, भाजपा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी प्रचारक के रूप में अपना घर-बार छोड़ने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या अब निरंतर बढ़ रही थी। राष्ट्रीय एवं सामाजिक प्रेरणा से जागृत होकर गोवा के विभिन्न क्षेत्रों में रा. स्व. संघ द्वारा सेवा कार्यों का जाल विस्तार से बुना गया, जिसका सकारात्मक परिणाम समाज के विभिन्न क्षेत्र में महसूस हो रहा है।

इन सभी बातों के कारण हिंदुत्व एवं राष्ट्रीय विचारों का प्रचार- प्रसार बहुत गति से हुआ है। गोवा के सामने वर्तमान मे भी निरंतर नई चुनौतियां उभर रही हैं। संघ का कार्य विश्वास निर्माण का कार्य है, इसी के कारण यहां का हिंदू समुदाय धीरे- धीरे इन बढ़ती चुनौतियों का सामना करने की ताकत हासिल करने में सफल हो गया है। छोटे से गोवा में हर क्षेत्र में मानस परिवर्तन करने की आज भी आवश्यकता है, उन सभी क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य उपयुक्त महसूस हो रहा है।

गोवा मुक्ति के बाद शुरू हुआ संघ कार्य आज गोवा में राष्ट्रीय एवं हिंदुत्व के क्षेत्र में सकारात्मक कार्य की दिशा देने में यशस्वी हो रहा है। गोवा में आज भी आदर्श परिवर्तन की आवश्यकता है। गोवा में 6 दशक में हुआ यह संघ कार्य, अपेक्षित परिवर्तन का आरंभ है। संघ का विचार सकारात्मक राष्ट्र जागृति का विचार है, यह विचार गोवा के सभी क्षेत्र की बुनियाद तक पहुंचना आवश्यक है। परिवर्तन यह अंतिम साध्य नहीं है। राष्ट्र जागरण के अखंड कार्य से गोवा में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहा है। यह परिवर्तन हिंदुत्व और राष्ट्रीय जागरण के निरंतर कार्य का स्वाभाविक परिणाम और फल होना चाहिए।

 

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